• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

यूपी में योगी आदित्यनाथ के लिए सब ठीक है, सिवाय एक खतरे के- ओमिक्रॉन!

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 07 दिसम्बर, 2021 04:53 PM
  • 07 दिसम्बर, 2021 02:41 PM
offline
यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. फिलहाल काफी हद तक मामला भाजपा के पक्ष में नजर आ रहा है. लेकिन जिस तरह ओमिक्रॉन वैरिएंट का शोर बढ़ रहा है वह योगी आदित्यनाथ और भाजपा की परेशानी बढ़ा सकता है.

उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल साफ़ और गहरा नजर आने लगा है. अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में आजकल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके नाम या पदनाम से नहीं पुकारा जाता. बल्कि लोग उन्हें "महराज जी" कहकर बुला रहे. महराज शब्द एक विशेषण है जो प्राय: इस अंचल में साधु-संन्यासियों या फिर गुरुओं के लिए इस्तेमाल होता है. खैर बात यहां विशेषण की है ही नहीं बल्कि यूपी चुनाव की है जिसमें फिलहाल योगी आदित्यनाथ सबसे आगे नजर आ रहे हैं. कब तक यह, बाद की बात है.

कुछ हफ्ते पहले तक तमाम वजहों से यूपी में भाजपा नुकसान पर नुकसान उठाते दिख रही थी. मगर लखीमपुर खीरी हादसे के बाद जितनी तेजी से खराब होते दिखे उतनी ही तेजी से सुधरते भी नजर आ रहे. लखीमपुर को इसलिए भी विपक्ष चुनाव लायक मुद्दा नहीं बना पाया क्योंकि पश्चिम को छोड़ दिया जाए तो यूपी के शेष इलाकों में किसान आंदोलन पर वही ताल सुनाई देगा जो भाजपा गाती रही है. हालांकि लखीमपुर के बाद ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और सांगठनिक मशीनरी ने तेजी से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें शुरू कीं. वैसे भी भारतीय मतदाताओं की स्मृति इतनी कमजोर होती है कि वो पिछली बातें भुलाने में ज्यादा वक्त नहीं लेता. फिलहाल तो स्थितियां भाजपा के पक्ष में मानी जा सकती हैं. कम से कम अभी तक.

इस वक्त के हालात के आधार पर भविष्य में भाजपा के लिए विपक्ष की चुनौती से ज्यादा बड़ा खतरा ओमिक्रॉन वैरिएंट का ही नजर आ रहा है. ओमिक्रॉन वैरिएंट का शोर बहुत तेजी से बढ़ रहा है. एक्सपर्ट मानकर चल रहे हैं कि जनवरी-फरवरी में ओमिक्रॉन वैरिएंट से उपजी तीसरी लहर पीक पर होगी. जनवरी के बाद कभी भी चुनाव कराए जा सकते हैं. यानी जब लहर पीक पर होगी उसी दौरान चुनाव होंगे. चूंकि केंद्र और राज्य की सत्ता में भाजपा काबिज है तो तमाम चीजों के प्रति उसकी जवाबदारी भी तय है. हालात बिगड़े तो बने बनाए खेल पर पानी फिर जाएगा और जो विपक्ष अभी मोदी-योगी-मौर्य की तिकड़ी के आगे कमजोर नजर आ रहा भारी एक झटके में भारी साबित हो जाएगा.

उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल साफ़ और गहरा नजर आने लगा है. अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में आजकल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके नाम या पदनाम से नहीं पुकारा जाता. बल्कि लोग उन्हें "महराज जी" कहकर बुला रहे. महराज शब्द एक विशेषण है जो प्राय: इस अंचल में साधु-संन्यासियों या फिर गुरुओं के लिए इस्तेमाल होता है. खैर बात यहां विशेषण की है ही नहीं बल्कि यूपी चुनाव की है जिसमें फिलहाल योगी आदित्यनाथ सबसे आगे नजर आ रहे हैं. कब तक यह, बाद की बात है.

कुछ हफ्ते पहले तक तमाम वजहों से यूपी में भाजपा नुकसान पर नुकसान उठाते दिख रही थी. मगर लखीमपुर खीरी हादसे के बाद जितनी तेजी से खराब होते दिखे उतनी ही तेजी से सुधरते भी नजर आ रहे. लखीमपुर को इसलिए भी विपक्ष चुनाव लायक मुद्दा नहीं बना पाया क्योंकि पश्चिम को छोड़ दिया जाए तो यूपी के शेष इलाकों में किसान आंदोलन पर वही ताल सुनाई देगा जो भाजपा गाती रही है. हालांकि लखीमपुर के बाद ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और सांगठनिक मशीनरी ने तेजी से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें शुरू कीं. वैसे भी भारतीय मतदाताओं की स्मृति इतनी कमजोर होती है कि वो पिछली बातें भुलाने में ज्यादा वक्त नहीं लेता. फिलहाल तो स्थितियां भाजपा के पक्ष में मानी जा सकती हैं. कम से कम अभी तक.

इस वक्त के हालात के आधार पर भविष्य में भाजपा के लिए विपक्ष की चुनौती से ज्यादा बड़ा खतरा ओमिक्रॉन वैरिएंट का ही नजर आ रहा है. ओमिक्रॉन वैरिएंट का शोर बहुत तेजी से बढ़ रहा है. एक्सपर्ट मानकर चल रहे हैं कि जनवरी-फरवरी में ओमिक्रॉन वैरिएंट से उपजी तीसरी लहर पीक पर होगी. जनवरी के बाद कभी भी चुनाव कराए जा सकते हैं. यानी जब लहर पीक पर होगी उसी दौरान चुनाव होंगे. चूंकि केंद्र और राज्य की सत्ता में भाजपा काबिज है तो तमाम चीजों के प्रति उसकी जवाबदारी भी तय है. हालात बिगड़े तो बने बनाए खेल पर पानी फिर जाएगा और जो विपक्ष अभी मोदी-योगी-मौर्य की तिकड़ी के आगे कमजोर नजर आ रहा भारी एक झटके में भारी साबित हो जाएगा.

योगी आदित्यनाथ.

अभी देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के मामले गिने-चुने हैं मगर दूसरी लहर से मिले राजनीतिक सबक भाजपा भूली तो नहीं होगी. गौर करें तो पाएंगे कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ काफी सतर्कता बरती जा रही है. केंद्र सरकार और उसके तमाम अंग सक्रिय हैं. जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं. ओमिक्रॉन वैरिएंट के गिने चुने मामलों के बावजूद मुख्यधारा का मीडिया जरूरत से ज्यादा कूद रहा है. एक्सपर्ट पैनल बैठाए जा रहे और जागरूकता इस तरह प्रसारित हो रही- गोया देश ओमिक्रॉन वैरिएंट को लेकर बड़े संकट के बीच फंस चुका है. यूपी सरकार ने भी तो तीसरी लहर की आशंका को लेकर अलग से इंतजाम किए हैं. सक्रियता साफ़ नजर आती है.

दरअसल, बंगाल में बीजेपी एक बार गर्म दूध से मुंह जला चुकी है. यूपी की तरह बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ सबकुछ बीजेपी के पक्ष में नजर आ रहा था. बरात सजी थी, रंग बिरंगे कपड़ों में लोग तैयार थे. तंबू-तनाक टंगा था. सबकुछ चकाचक था. लेकिन अप्रैल में अचानक से धूल के गुबार के साथ तूफ़ान उठा और बीजेपी के तंबू-तनाक उखड़ गए. सारी सजावट तहस-नहस हो गई. हालांकि बंगाल में बीजेपी की हार का मुद्दा अकेले दूसरी लहर की महामारी तो बिल्कुल नहीं कह सकते. लेकिन उस वक्त महामारी वह ढाल जरूर बन गई पहली बार जिसकी आड़ में अन्य मुद्दों को लेकर बीजेपी पर विपक्ष के घाव देने वाले होने लगे. महामारी के मुद्दे पर पहली बार भारतीय मीडिया की मोदी से कुट्टी नजर भी दिखी.

अप्रैल में तो टीवी, अखबारों में हर तरफ महामारी की खौफनाक कहानियां तस्वीरें, अस्पतालों की अव्यवस्थाएं, दवाइयों, मेडिकल ऑक्सीजन की किल्लत नजर आ रही थीं. पहले मोदी विरोध के लिए बदनाम या विदेशी मीडिया समूह ही बीजेपी के आलोचक नजर आते थे- जिनपर मोदी समर्थक जनता कभी भरोसा करते नहीं दिखी. मगर अप्रैल में जब मोदी समर्थन के लिए मशहूर अखबारों और टीवी चैनलों ने भी अव्यवस्थाओं को लेकर सख्त रवैया अपनाया तो हालात ही बदल गए. यह बंगाल चुनाव में बीजेपी के खिलाफ सबसे बड़ा यूटर्न साबित हुआ.

इसका नतीजा यह हुआ कि विपक्ष के जो बड़े से बड़े और वाजिब तर्क भी "मोदी कवच" के आगे भोथरे साबित हो रहे थे- अचानक बदली हवा में विपक्ष, खासकर ममता बनर्जी कई मनमाने तर्कों पर भी जनता का भरोसा जीतने लगीं और बीजेपी को मंगाल में मन मसोसने के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ. मैं फिर दोहरा रहा हूं कि बंगाल में बीजेपी महामारी की वजह से नहीं हारी, मगर दूसरी लहर ने ही ममता को जनता के बीच अपनी बात मनवाने का रास्ता दिया.

यूपी में फिलहाल बीजेपी के खिलाफ कोई ऐसा मुद्दा नहीं दिखता जिसे लेकर कहा जाए कि योगी सरकार के खिलाफ कोई मजबूत लहर है. अखिलेश यादव सरेंडर मोड में सहयोगियों के भरोसे दिख रहे हैं. कांग्रेस बहुत कोशिशों के बावजूद यह भरोसा जताने में नाकामयाब है कि वह सपा या बसपा का विकल्प बन सकती है. मायावती को त्रिकोण संघर्ष में उम्मीदें नजर आ रही हैं. मथुरा जैसे मुद्दों को खड़ाकर वेस्ट में भाजपा को जो थोड़ा बहुत नुकसान हुआ है उसे कवरअप कर रही है. भले ही किसान आंदोलन की वजह से माहौल खिलाफ हों, मगर वक्त के साथ वेस्ट के भी हालात बीजेपी की ओर जा सकते हैं. वैसे भी जाट मतदाताओं में बीजेपी का स्टेक पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ माना जा सकता. यानी बीजेपी अभी भी काफी हद तक सेफ है.

लेकिन योगी आदित्यनाथ या बीजेपी के लिए ओमिक्रॉन वैरिएंट भविष्य में बुरे सपने की तरह है. बीजेपी इस वक्त सिर्फ इसी दुआ में हाथ में उठा रही होगी कि महामारी की इस "सुरसा" का विस्तार ना हो. कम से कम यूपी चुनाव से पहले तक उसका साया टला ही रहे. क्योंकि बीजेपी को यह तो पता ही है कि जनता की याददाश्त भले कमजोर क्यों ना हो, मगर वो हद से ज्यादा भावुक है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲