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तो वाघेला के बाद अब हुड्डा भी कांग्रेस को झटका दे सकते हैं!

    • आईचौक
    • Updated: 20 अगस्त, 2017 12:34 PM
  • 20 अगस्त, 2017 12:34 PM
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ये हरियाणा की मौजूदा जाट राजनीति का तकाजा है कि भूपिंदर सिंह हुड्डा की डिमांड बनी हुई है. हुड्डा कांग्रेस के लिए भी अहम बने हुए हैं और बीजेपी भी उन्हें शिद्दत से अपने पाले में मिलाना चाहती है.

शंकरसिंह वाघेला के बाद अब लगता है भूपिंदर सिंह हुड्डा भी कांग्रेस को झटका देने वाले हैं. हुड्डा की समस्या भी वही है जो कभी कैप्टन अमरिंदर सिंह की रही. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर ने तो लड़-झगड़ कर अपना हक हासिल कर लिया, लेकिन हुड्डा की आलाकमान के यहां कोई सुनवाई ही नहीं हो रही है. लिहाजा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा वैकल्पिक इंतजाम में जुट गये हैं. दिलचस्प बात ये है कि हुड्डा की मदद में नीतीश कुमार भी सक्रिय हो गये हैं.

हुड्डा की अहमियत

ये मौजूदा जाट राजनीति का तकाजा है कि हुड्डा की डिमांड बनी हुई है. हुड्डा कांग्रेस के लिए भी अहम बने हुए हैं और बीजेपी भी उन्हें शिद्दत से अपने पाले में मिलाना चाहती है. हुड्डा का जाट होना उनकी अहमियत बढ़ा देता है.

ये कोई शिष्टाचार भेट नहीं...

कांग्रेस में आलम ये है कि हुड्डा दिल्ली के बवाना में हो रहे उपचुनाव में स्टार प्रचारक बने हुए हैं. असल में बवाना इलाके में जाटों की खासी आबादी है. बवाना से कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार मैदान में हैं जो तीन बार वहां से विधायक रह चुके हैं और उन्हें जिताने के लिए हुड्डा दिन रात प्रचार में जुटे हुए हैं. खबर थी कि सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के साथ साथ जमीन सौदों के मामले में हुड्डा के खिलाफ भी जांच की होगी.

विपक्ष के किसी भी नेता के बीजेपी के करीब जाने में ये फैक्टर भी अहम हो जाता है. यूपी में समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देने वाले विधायकों के बारे में भी यही चर्चा रही. वैसे सच्चाई ये भी है कि बीजेपी को भी एक मजबूत जाट नेता की सख्त जरूरत बनी हुई है.

हुड्डा की नाराजगी

जाट आंदोलन को लेकर बीजेपी के रवैये से जाटों में खासी नाराजगी है. बीजेपी में इस बात को लेकर बहुत ही बेचैनी भी है....

शंकरसिंह वाघेला के बाद अब लगता है भूपिंदर सिंह हुड्डा भी कांग्रेस को झटका देने वाले हैं. हुड्डा की समस्या भी वही है जो कभी कैप्टन अमरिंदर सिंह की रही. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर ने तो लड़-झगड़ कर अपना हक हासिल कर लिया, लेकिन हुड्डा की आलाकमान के यहां कोई सुनवाई ही नहीं हो रही है. लिहाजा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा वैकल्पिक इंतजाम में जुट गये हैं. दिलचस्प बात ये है कि हुड्डा की मदद में नीतीश कुमार भी सक्रिय हो गये हैं.

हुड्डा की अहमियत

ये मौजूदा जाट राजनीति का तकाजा है कि हुड्डा की डिमांड बनी हुई है. हुड्डा कांग्रेस के लिए भी अहम बने हुए हैं और बीजेपी भी उन्हें शिद्दत से अपने पाले में मिलाना चाहती है. हुड्डा का जाट होना उनकी अहमियत बढ़ा देता है.

ये कोई शिष्टाचार भेट नहीं...

कांग्रेस में आलम ये है कि हुड्डा दिल्ली के बवाना में हो रहे उपचुनाव में स्टार प्रचारक बने हुए हैं. असल में बवाना इलाके में जाटों की खासी आबादी है. बवाना से कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार मैदान में हैं जो तीन बार वहां से विधायक रह चुके हैं और उन्हें जिताने के लिए हुड्डा दिन रात प्रचार में जुटे हुए हैं. खबर थी कि सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के साथ साथ जमीन सौदों के मामले में हुड्डा के खिलाफ भी जांच की होगी.

विपक्ष के किसी भी नेता के बीजेपी के करीब जाने में ये फैक्टर भी अहम हो जाता है. यूपी में समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देने वाले विधायकों के बारे में भी यही चर्चा रही. वैसे सच्चाई ये भी है कि बीजेपी को भी एक मजबूत जाट नेता की सख्त जरूरत बनी हुई है.

हुड्डा की नाराजगी

जाट आंदोलन को लेकर बीजेपी के रवैये से जाटों में खासी नाराजगी है. बीजेपी में इस बात को लेकर बहुत ही बेचैनी भी है. वैसे तो बीजेपी के पास कैप्टन अभिमन्यु और चौधरी बीरेंद्र सिंह जैसे जाट नेता हैं, लेकिन उनके मुकाबले हुड्डा में दमखम ज्यादा नजर आता है.

हुड्डा को बीजेपी की ये जरूरत समझ में आ गयी है और इसीलिए उन्होंने नीतीश कुमार के जरिये इस दिशा में पहल की है. मीडिया रिपोर्टों की मानें तो इसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली की भी भूमिका बतायी जा रही है. नतीजा ये है कि हुड्डा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो बार मिल चुके हैं जिसमें से एक मुलाकात तो संसद में हुई बतायी जाती है.

हुड्डा के समर्थक भी इन बातों को पूरी हवा दे रहे हैं. प्रधानमंत्री से हुड्डा की मुलाकात को उनके समर्थक महज एक शिष्टाचार भेंट नहीं समझने देना चाहते. हुड्डा इन सबके जरिये कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाना चाह रहे हैं.

हरियाणा में राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान अशोक तंवर को सौंप रखी है. हुड्डा को अशोक तंवर फूटी आंख नहीं सुहाते. जब भी कांग्रेस का कोई बड़ा कार्यक्रम होता है दोनों के समर्थक एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा संभाल लेते हैं. हुड्डा और तंवर के तेवर दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई कई रैलियों में साफ साफ देखा जा चुका है.

दरअसल, हुड्डा अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं. अगर ऐसा नहीं भी हो पाये तो कम से कम अशोक तंवर को तत्काल हटवाना चाहते हैं. लेकिन हुड्डा को ये लड़ाई लड़ते हुए भी तीन साल हो चुके हैं. लगता हुड्डा ने अब ब्रह्मास्त्र उठाने का फैसला कर लिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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