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क्या नोएडा के अंधविश्वास की बात करते - करते मोदी राजनाथ सिंह को भूल गए?

    • अशोक उपाध्याय
    • Updated: 25 दिसम्बर, 2017 06:00 PM
  • 25 दिसम्बर, 2017 06:00 PM
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पिछले मुख्यमंत्रियों पर कटाक्ष करते हुए नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ की तारीफ तो कर दी, लेकिन इस मामले में वो राजनाथ सिंह की गलती कैसे भूल गए?

नोएडा में मजेंटा लाइन के उद्धाटन कार्यक्रम में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर योगी आदित्यनाथ की तारीफ करना नहीं भूले. मोदी ने जनसभा को सम्बोधित किया एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि कुछ लोग उनके भगवा कपड़े देखकर कहते हैं यह तो पुराने खयालों के होंगे, पोगापंथी होंगे, लेकिन उन्होंने दशकों से चले रहे उस अंधविश्वास को तोड़ दिया जिसकी वजह से यह इलाका मुख्यमंत्री के लिए अछूत बना रहा.

पिछले कुछ मुख्यमंत्रियों पर कटाक्ष करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि जो लोग कुर्सी के जाने के डर से जीते हैं उनको मुख्यमंत्री बनने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि श्रद्धा का अपना स्थान होता है, लेकिन अंधश्रद्धा के लिए कोई जगह नहीं होती है. प्रधानमंत्री ने बिलकुल सही कहा है कि इस तरह की अंधश्रद्धा और अन्धविश्वास के लिए सार्वजनिक जीवन में कोई भी स्थान नहीं होना चाहिए.

भारत के संविधान की धारा 51-ए में भी कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे. उत्तर प्रदेश के कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों का यह अंधविश्वास संविधान की भावनाओं से उल्टा था.

मैं प्रधानमंत्री का ध्यान भाजपा के एक अन्य उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की तरफ आकर्षित करना चाहता हूँ. बात सात फरवरी 2001 की है. नोएडा - दिल्ली DND टोल ब्रिज कंपनी का उद्घाटन होना था. दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने आश्रम की ओर से इसका उद्घाटन किया. राजनाथ जी को भी अपने कुर्सी जाने का डर था इसलिए उन्होंने नोएडा में प्रवेश नहीं किया. मतलब तो वो भी इस अंधश्रद्धा को मानते थे.

अब अगर मोदी की मानें तो जो लोग कुर्सी के...

नोएडा में मजेंटा लाइन के उद्धाटन कार्यक्रम में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर योगी आदित्यनाथ की तारीफ करना नहीं भूले. मोदी ने जनसभा को सम्बोधित किया एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा कि कुछ लोग उनके भगवा कपड़े देखकर कहते हैं यह तो पुराने खयालों के होंगे, पोगापंथी होंगे, लेकिन उन्होंने दशकों से चले रहे उस अंधविश्वास को तोड़ दिया जिसकी वजह से यह इलाका मुख्यमंत्री के लिए अछूत बना रहा.

पिछले कुछ मुख्यमंत्रियों पर कटाक्ष करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि जो लोग कुर्सी के जाने के डर से जीते हैं उनको मुख्यमंत्री बनने का कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि श्रद्धा का अपना स्थान होता है, लेकिन अंधश्रद्धा के लिए कोई जगह नहीं होती है. प्रधानमंत्री ने बिलकुल सही कहा है कि इस तरह की अंधश्रद्धा और अन्धविश्वास के लिए सार्वजनिक जीवन में कोई भी स्थान नहीं होना चाहिए.

भारत के संविधान की धारा 51-ए में भी कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे. उत्तर प्रदेश के कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों का यह अंधविश्वास संविधान की भावनाओं से उल्टा था.

मैं प्रधानमंत्री का ध्यान भाजपा के एक अन्य उत्तर प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की तरफ आकर्षित करना चाहता हूँ. बात सात फरवरी 2001 की है. नोएडा - दिल्ली DND टोल ब्रिज कंपनी का उद्घाटन होना था. दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने आश्रम की ओर से इसका उद्घाटन किया. राजनाथ जी को भी अपने कुर्सी जाने का डर था इसलिए उन्होंने नोएडा में प्रवेश नहीं किया. मतलब तो वो भी इस अंधश्रद्धा को मानते थे.

अब अगर मोदी की मानें तो जो लोग कुर्सी के जाने के डर से जीते हैं उनको मुख्यमंत्री बनने का कोई अधिकार नहीं है. अर्थात राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के लिए योग्य नहीं हैं. पर प्रधानमंत्री जी ने उनको भारत का गृह मंत्री बना दिया है. उनके जिम्मे पूरे देश की सुरक्षा का दारोमदार है. अगर वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के लिए योग्य नहीं है तो भारत के गृह मंत्री बनने के लिए योग्य कैसे हैं?! क्या उनका नोएडा न जाने का फैसला संविधान की भावनओं के प्रतिकूल नहीं था?

शायद प्रधानमंत्री जी योगी आदित्यनाथ के साहसिक कदम के बढ़ाई करते - करते अपने पार्टी के मुख्यमंत्रियों का अतीत भूल गए. अगर उनको राजनाथ सिंह के इस कदम के बारे में पता होता तो वो इस तरह का वक्तव्य नहीं देते.

आखिर क्यों है नोएडा को लेकर अंधविश्वास..

इससे पहले जब भी यूपी का मुख्यमंत्री नोएडा गया है उसे अपने पद से हाथ धोना पड़ा. जैसे 1982 में वीवी गिरी श्रमसंस्थान का उद्धाटन करने गए विश्वनाथ प्रताप सिंह हों या फिर 1988 में नोएडा फिल्म सिटी में आए वीर बहादुर सिंह हों. इसके बाद 1989 में नारायण दत्त तिवारी भी आए थे जिन्हें बाद में कुर्सी से हाथ धोना पड़ा.

1994 में मुलायम सिंह यादव के साथ भी यही हुआ था जब वो नोएडा के एक स्कूल का उद्घाटन करने गए थे. यादव ने मंच से कहा कि मैं इस मिथक को तोड़ कर जाऊंगा कि जो मुख्यमंत्री नोएडा आता है उसकी कुर्सी चली जाती है. उसके कुछ समय बाद ही उनकी कुर्सी चली गई थी. 2000 में राजनाथ सिंह तो नोएडा आए ही नहीं थे. हालांकि, ये मिथक 2008 में मायावती तोड़ ही चुकी हैं. वो लगातार 4 बार नोएडा आईं थीं. फिलहाल तो योगी आदित्यनाथ को हम सिर्फ बधाई ही दे सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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