• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

Tablighi Jamaat पर हमलावर केजरीवाल अभिमन्यु जैसे घिर गए

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 अप्रिल, 2020 08:38 PM
  • 01 अप्रिल, 2020 08:38 PM
offline
तब्लीगी आयोजन (Tablighi Jamaat Delhi Event) का मुद्दा लगातार तीसरा वाकया है जब अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) राजनीतिक तौर पर भाजपा (BJP Politics) के आगे बेबस नजर आ रहे हैं - दो-दो वोट बैंकों को मैनेज करने के चक्कर में कहीं दोनों ने गंवा बैठें.

कोरोना संकट के वक्त अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की सक्रियता कदम कदम पर बोल रही है, लेकिन सियासत खामोश हो गयी लगती है. पहले दिल्ली दंगों को लेकर, फिर लॉकडाउन के दौरान पूर्वांचल के लोगों के पलायन को लेकर और अब तब्लीगी जमात के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री बुरी तरह घिरते नजर आ रहे हैं - ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल के पास पूछने के लिए सवाल नहीं बचे हैं. तब्लीगी जमात के मामले में अजीत डोभाल की दखल से साफ है कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी (BJP Politics) कैसे खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही होगी, लेकिन राजनीति तो यही होती है कि कैसे विरोधी को ही घसीट कर सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया जाये.

तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat Delhi Event) के आयोजन के लिए सवाल तो केंद्र सरकार को रिपोर्ट करने वाली दिल्ली पुलिस से भी पूछे जा रहे हैं, लेकिन सवालों पर केजरीवाल को सफाई देते नहीं बन रहा है. ऐसा लगता है जैसे बीजेपी ने केजरीवाल को चारों तरफ से घेर लिया हो और उनको निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा हो - फिर भी केजरीवाल के मुंह से बीजेपी के खिलाफ एक भी शब्द नहीं निकल रहा है.

अरविंद केजरीवाल कहते हैं - 'अर्जुन की आंख की तरह इस समय सिर्फ देश को बचाना है. कोई राजनीति करने की जरूरत नही है.' खुद तो खामोशी बरत ही रहे हैं, कार्यकर्ताओं से भी केजरीवाल यही अपील कर रहे हैं वे भी चुप रहे और ऐसा कोई राजनीतिक बयान न दें जिससे बवाल मचने लगे.

आखिर क्यों? क्या केजरीवाल ने राजनीति का ककहरा भर ही सीखा है और आगे की राजनीति के लिए और सबक की जरूरत है?

आखिर अभिमन्यु कैसे बन गये दिल्ली की राजनीति के अर्जुन?

दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए राहत भरी एक ही खबर है, लेकिन फिलहाल वो उनके किसी काम नहीं आने वाली है. दिल्ली में प्रदूषण पर काबू पाने के लिए अरविंद केजरीवाल के पास ले देकर आखिरी रास्ता बचता था - ऑड ईवन, लेकिन रिपोर्ट आयी है कि राजधानी की हवा पांच साल पहले जितनी साफ हो चुकी है. ऐसा बारिश के चलते हुए है क्योंकि मार्च 109.6 MM...

कोरोना संकट के वक्त अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की सक्रियता कदम कदम पर बोल रही है, लेकिन सियासत खामोश हो गयी लगती है. पहले दिल्ली दंगों को लेकर, फिर लॉकडाउन के दौरान पूर्वांचल के लोगों के पलायन को लेकर और अब तब्लीगी जमात के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री बुरी तरह घिरते नजर आ रहे हैं - ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल के पास पूछने के लिए सवाल नहीं बचे हैं. तब्लीगी जमात के मामले में अजीत डोभाल की दखल से साफ है कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी (BJP Politics) कैसे खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही होगी, लेकिन राजनीति तो यही होती है कि कैसे विरोधी को ही घसीट कर सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया जाये.

तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat Delhi Event) के आयोजन के लिए सवाल तो केंद्र सरकार को रिपोर्ट करने वाली दिल्ली पुलिस से भी पूछे जा रहे हैं, लेकिन सवालों पर केजरीवाल को सफाई देते नहीं बन रहा है. ऐसा लगता है जैसे बीजेपी ने केजरीवाल को चारों तरफ से घेर लिया हो और उनको निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा हो - फिर भी केजरीवाल के मुंह से बीजेपी के खिलाफ एक भी शब्द नहीं निकल रहा है.

अरविंद केजरीवाल कहते हैं - 'अर्जुन की आंख की तरह इस समय सिर्फ देश को बचाना है. कोई राजनीति करने की जरूरत नही है.' खुद तो खामोशी बरत ही रहे हैं, कार्यकर्ताओं से भी केजरीवाल यही अपील कर रहे हैं वे भी चुप रहे और ऐसा कोई राजनीतिक बयान न दें जिससे बवाल मचने लगे.

आखिर क्यों? क्या केजरीवाल ने राजनीति का ककहरा भर ही सीखा है और आगे की राजनीति के लिए और सबक की जरूरत है?

आखिर अभिमन्यु कैसे बन गये दिल्ली की राजनीति के अर्जुन?

दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए राहत भरी एक ही खबर है, लेकिन फिलहाल वो उनके किसी काम नहीं आने वाली है. दिल्ली में प्रदूषण पर काबू पाने के लिए अरविंद केजरीवाल के पास ले देकर आखिरी रास्ता बचता था - ऑड ईवन, लेकिन रिपोर्ट आयी है कि राजधानी की हवा पांच साल पहले जितनी साफ हो चुकी है. ऐसा बारिश के चलते हुए है क्योंकि मार्च 109.6 MM बारिश हुई है - और ये 1901 से लेकर अब तक सबसे ज्यादा है. लेकिन ये साफ सुथरी हवा और ये बारिश फिलहाल अरविंद केजरीवाल के किसी भी काम नहीं आ रही है. दिल्ली में हुए दंगे हों, हाल फिलहाल पूर्वांचल के मजदूरों के पलायन का मुद्दा हो या फिर अभी अभी निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात के मरकज (मुख्यालय) में मजहबी जमावड़ा (इज्तिमा) - अरविंद केजरीवाल ने चुप्पी साधे हुए राजनीति करने की कोशिश की है. तीनों ही मामलों में अरविंद केजरीवाल को लगा होगा कि उनके चुपचाप बैठ जाने पर बीजेपी ही फंसेगी - क्योंकि केंद्र के साथ साथ यूपी में बीजेपी की सरकार है और बिहार की सरकार में वो साझीदार है. दिहाड़ी मजदूरों के पलायन को लेकर अरविंद केजरीवाल यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार और बिहार की नीतीश कुमार सरकार के मंत्रियों के निशाने पर रहे. दोनों ही सरकारों के मंत्रियों ने केजरीवाल पर पूर्वांचल के लोगों के बिजली-पानी के कनेक्शन तक काट डालने के आरोप लगाया - और केजरीवाल ये समझाने में भी नाकाम रहे कि क्यों लोगों को डीटीसी की बसें आनंद विहार से लेकर हापुड़ तक पहुंचाती रहीं.

अरविंद केजरीवाल लॉकडाउन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील की दुहाई देते फिर रहे थे, लेकिन जब पूरा देश घरों में बंद है और कैबिनेट की मीटिंग तक में सोशल डिस्टैंसिंग का ख्याल रखा जा रहा है, फिर निजामुद्दीन में तीन दिन तक तब्लीगी जमात का जमावड़ा कैसे चलता रहा?

मरकज में जमात के लोगों के जुटने के बाद भी न तो दिल्ली पुलिस हरकत में आयी और न ही केजरीवाल सरकार के अफसर. मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि अंडमान निकोबार प्रशासन की तरफ से दिल्ली पुलिस को भी अलर्ट भेजा गया था और स्थानीय प्रशासन को भी जो दिल्ली सरकार के अधीन है, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया. रिपोर्ट में जमात के आयोजन में शामिल 10 लोगों के कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी दी गयी थी.

तब्लीगी जमात के लोग और मौलाना साद

दिल्ली सरकार हरकत में तब आयी जब तब्लीगी जमात के लोगों के देश के तमाम हिस्सों में पहुंच जाने के बाद कोरोना वायरस के फैलने को लेकर हड़कंप मचने लगा. मरकज खाली कराये जाने की सूचना खुद डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने दी थी, लेकिन वो खाली कैसे हो पाया बाद में पता चला.

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच इस मामले की जांच कर रही है और मौलाना साद सहित 7 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है. ये केस निजामुद्दीन के SHO की तरफ से दर्ज कराया गया है जिसकी सिफारिश दिल्ली सरकार ने ही की थी. तब्लीगी जमात को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी सख्ती दिखायी है. मंत्रालय के फैसले के मुताबिक जो लोग पर्यटक वीजा पर मिशनरी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं, चाहे जिस तरीके से, उनको पर्यटक वीजा के उल्लंघन का दोषी माना जाएगा.

मनीष सिसोदिया के ट्वीट से ये तो पता चल गया कि किस तरह 36 घंटे के ऑपरेशन के बाद चार भजे भोर में मरकज खाली करा लिया गया - लेकिन ये नहीं मालूम होता कि इस मुश्किल को मुमकिन किसने बनाया?

दिल्ली पुलिस के एसीपी की तरफ से नोटिस का जवाब देने के बाद भी तब्लीगी जमात के पदाधिकारी मरकज खाली करने को राजी नहीं थे. दिल्ली पुलिस को नोटिस का जवाब देकर भारी हो गये. मस्जिद के मौलाना साद दिल्ली पुलिस, स्थानीय प्रशासन और दूसरी एजेंसियों के अफसरों के आग्रह को ठुकरा चुके थे - तब जाकर सरकार के संकटमोचक को मोर्चा संभालना पड़ा. खबर है कि गृह मंत्री अमित शाह के कहने पर NSA अजीत डोभाल 28/29 मार्च के रात 2 बजे खुद मरकज पहुंचे और मौलाना को समझा बुझा कर राजी किया - फिर उसके दो घंटे बाद मरकज को खाली कराया जा सका.

हालात कितने मुश्किल हो चले थे, अजीत डोभाल के आधी रात को मोर्चा संभालने से समझा जा सकता है, लेकिन अरविंद केजरीवाल ये भी नहीं कह पा रहे हैं कि सारे वाकये के लिए अकेले उनकी सरकार जिम्मेदार नहीं है. ऐसा ही दिल्ली में हुए दंगों के वक्त भी देखने को मिला था और तब भी अजीत डोभाल आधी रात को ही निकले थे - और अरविंद केजरीवाल इस कदर घिरे थे कि जवाब देते नहीं बन सका.

आखिर अरविंद केजरीवाल की ऐसी क्या मजबूरी है कि उनकी चुप्पी साधना पड़ रहा है. वरना, सीबीआई के कुछ अफसरों के दिल्ली मुख्यमंत्री के दफ्तर पहुंचने पर जमीन आसमान एक कर देने वाले केजरीवाल इतना कुछ हो जाने के बाद भी कुछ बोल क्यों नहीं पा रहे हैं? ये बीजेपी की राजनीतिक दक्षता के चलते हो रहा है या फिर अरविंद केजरीवाल अभी तक राजनीतिक तौर पर परिपक्व हो ही नहीं पाये हैं?

अर्जुन की तरह धैर्य और धर्म के भरोसे अरविंद केजरीवाल भले ही दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीत चुके हों - लेकिन उसके बाद से दिल्ली की राजनीति में कदम कदम पर उनकी राजनीतिक समझ अभिमन्यु जैसी ही नजर आ रही है.

राहुल गांधी जैसी गलतियां कैसे करने लगे केजरीवाल

ऐसा बार बार क्यों लगता है जैसे बीजेपी को शिकस्त देने के चक्कर में जैसी गलतियां कांग्रेस नेता राहुल गांधी करते गये, अरविंद केजरीवाल भी उसी रास्ते पर चलते हुए लड़खड़ाने लगे हैं. अगर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में दोबारा सत्ता हासिल कर खुद को साबित किया है तो राहुल गांधी भी 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस को यूपी की 12 सीटें एक्स्ट्रा दिला कर वाहवाही तो लूटी ही थी - और नौ साल बाद एक साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी को सत्ता में लाकर तारीफ बटोरी ही थी - राष्ट्रीय स्तर पर वो फेल हो गये अलग बात है. वैसे तो केजरीवाल भी दिल्ली के बाहर कोई चमत्कार नहीं ही दिखा पाये.

केजरीवाल की राहुल गांधी की तुलना यहां इसलिए प्रासंगिक हो जा रही है क्योंकि बीजेपी के खिलाफ अपनी राजनीति चमकाने के लिए दोनों ही नेताओं ने एक ही तरह के प्रयोग किये हैं. पहले राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग किया और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे हमले से थोड़ा परहेज. अरविंद केजरावाल ने भी हनुमान चालीसा से आगे बढ़ कर घर में गीता पाठ कराने लगे हैं. फर्क बस ये है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी को कुछ दिन सम्मान देते हैं, लेकिन फिर भूकंप लाने के चक्कर में कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं कि बवाल शुरू हो जाता है - केजरीवाल कम से कम इस मामले में लगातार चुप्पी साधे हुए हैं.

अरविंद केजरीवाल लगता है ऐसी उलझन में फंसे हैं जिसमें वो न तो धर्म निरपेक्षता को छोड़ना चाहते हैं - और न ही हिंदुत्व का चोला ठीक से ओढ़ पा रहे हैं. दिल्ली दंगों से लेकर तब्लीगी जमात तक दोनों ही मामलों में यही उलझन केजरीवाल एंड कंपनी को ले डूबी है.

दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल ने हनुमान जी को शुक्रिया कहा था. फिर उनके एक विधायक ने हर मंगलवार को अपने इलाके में सुंदरकांड के पाठ का आयोजन शुरू किया - अब अरविंद केजरीवाल रामायण से महाभारत की तरफ शिफ्ट हो चुके हैं. हो सकता है केजरीवाल और उनके सलाहकारों को प्रधानमंत्री मोदी के लॉकडाउन को लेकर महाभारत के जिक्र के बाद आइडिया आया हो.

अरविंद केजरीवाल ने बताया कि उनके घर में श्रीमद्भागवत गीता का पाठ हो रहा है - और लॉकडाउन के दौरान जारी रहेगा. केजरीवाल समझाते हैं, 'गीता के 18 अध्याय हैं. कल यानी 28 मार्च से मेरी पत्नी ने गीता का पाठ शुरू किया है. आप भी अपने घर मे गीता पाठ करें. रोज एक पढ़िये - सिर्फ आधा घंटा लगता है.'

अरविंद केजरीवाल के अनुसार, लॉकडाउन के तीन दिन बाद उनके घर में गीता पाठ शुरू हुआ है - और हर दिन एक अध्याय का पाठ हो रहा है जिससे वो 18 दिन में खत्म होगा. महाभारत का युद्ध भी 18 दिन में ही लड़ा गया था, वाराणसी के लोगों से संवाद में प्रधानमंत्री मोदी ने बात का विशेष रूप से उल्लेख किया था.

केजरीवाल के करीबियों में जो भी कानाफूसी होती हो, लेकिन उनके पुराने साथी ये नहीं पचा पा रहे हैं. आम आदमी पार्टी छोड़ कर अपने पुराने पेश पत्रकारिता में लौट चुके आशुतोष को ये बात गले के नीचे नहीं उतरती - 'नहीं, ऐसा तो बिलकुल नहीं होना चाहिये था!'

अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ के सवाल पर आशुतोष कहते हैं, 'क्या वो ऐसा दावा कर रहे हैं कि वो सिर्फ हिंदुओं के मुख्यमंत्री हैं. मुझे उनकी मंशा नहीं मालूम - लेकिन अगर आप चीजों को जोड़ कर देखें तो वो CAA का विरोध करने वाले शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों से नहीं मिले, दिल्ली दंगों के वक्त उत्तर-पूर्वी दिल्ली में झांकने तक नहीं गये - फिर तो यही लगता है कि वो हिंदू वोट बैंक बढ़ाने में लगे हैं. अगर व्यक्तिगत तौर पर वो गीता का पाठ करते हैं तो किसी को आपत्ति नहीं होगी - लेकिन बतौर मुख्यमंत्री वो सभी को ऐसा करने को कह रहे हैं तो ये तो हद है.'

अरविंद केजरीवाल के बारे में किसी दौर में उनके बेहद करीबी रहे आशुतोष की टिप्पणी AAP नेता की मौजूदा राजनीति की साफ तस्वीर खींच रही है - लेकिन उनकी खामोशी हजार जवाबों से अच्छी तो बिलकुल नहीं लगती! कम से कम अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली के हिसाब से.

इन्हें भी पढ़ें :

Coronavirus को चुनौती देते मौलाना देखिए क्या क्या 'ज्ञान' दे गए!

निज़ामुद्दीन की तब्लीगी जमात मजहब फैला रही थी या कोरोना वायरस?

मोदी की माफी पर इमरान खान का झूठ पाक टीवी चैनलों ने धर पकड़ा



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲