• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

नीतीश की खामोशी बिहार की मौजूदा राजनीति पर आधिकारिक बयान है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 23 जून, 2019 06:47 PM
  • 23 जून, 2019 04:45 PM
offline
मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से बच्चों की मौत पर नीतीश कुमार खामोश हैं, लेकिन उनकी चुप्पी में काफी गुस्सा भरा हुआ है. नीतीश की चुप्पी और बच्चों की मौत के सवाल पर उनके रिएक्शन में बिहार की राजनीतिक हालात के संकेत मिल रहे हैं.

बिहार में चमकी बुखार बेकाबू हो गया है. बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है. बुखार और मौत की वजह में मुजफ्फरपुर की लीची बतायी जा रही है. वही लीची जिसकी मिठास अमृतमय आनंद की अनुभूति देती रही - अचानक एक झटके में जहरीली हो गयी है.

संसद में भी बहस तो हो रही है लेकिन बुखार पर कम और लीची पर ज्यादा. लीची के खिलाफ साजिश बतायी जा रही है. बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी को तो इसमें चीन तक की साजिश की बू नजर आ रही है. हालांकि, डिस्क्लेमर वाले अंदाज में लगे हाथ वो कह भी देते हैं कि चीन पर आरोप नहीं लगा रहे हैं. फिर भी लीची के खिलाफ साजिश का सच जानना जरूर चाहते हैं. कुछ कुछ वैसे ही तो नहीं जैसे एक जमाने में हर घटना के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हुआ करता था - और हाल तक ऐसी बातों का मुंहतोड़ जवाब कड़ी निंदा हुआ करती रही.

बच्चों की मौत पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुप हैं. बच्चों की मौत से बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी बेखबर होंगे क्योंकि तीन हफ्ते से तो उनकी ही कोई खबर नहीं है. बच्चों की मौत पर आम चुनाव में बिहार के सबसे चर्चित चेहरे कन्हैया कुमार चुप हैं. बच्चों की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुप हैं. अपवाद कुदरत का एक अभिलाक्षणिक गुण माना जाता है, क्रिकेटर शिखर धवन पर मोदी के ट्वीट को भी उसी उसी कैटेगरी में रख कर देखा जा सकता है. वैसे भी इससे ज्यादा किया भी क्या जा सकता है.

मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से बच्चों की मौत पर नीतीश कुमार की चुप तो हैं - लेकिन उनकी चुप्पी में गुस्सा भरा है. राज्य सभा के लिए एलजेपी नेता रामविलास पासवान का नामांकन नीतीश कुमार के अंदर भरे गुस्से के विस्फोट का चश्मदीद बना - ये बात अलग है कि निशाने पर मीडिया रहा. बिलकुल वही मीडिया, जिसके अस्पताल के आईसीयू में पहुंच...

बिहार में चमकी बुखार बेकाबू हो गया है. बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है. बुखार और मौत की वजह में मुजफ्फरपुर की लीची बतायी जा रही है. वही लीची जिसकी मिठास अमृतमय आनंद की अनुभूति देती रही - अचानक एक झटके में जहरीली हो गयी है.

संसद में भी बहस तो हो रही है लेकिन बुखार पर कम और लीची पर ज्यादा. लीची के खिलाफ साजिश बतायी जा रही है. बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी को तो इसमें चीन तक की साजिश की बू नजर आ रही है. हालांकि, डिस्क्लेमर वाले अंदाज में लगे हाथ वो कह भी देते हैं कि चीन पर आरोप नहीं लगा रहे हैं. फिर भी लीची के खिलाफ साजिश का सच जानना जरूर चाहते हैं. कुछ कुछ वैसे ही तो नहीं जैसे एक जमाने में हर घटना के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हुआ करता था - और हाल तक ऐसी बातों का मुंहतोड़ जवाब कड़ी निंदा हुआ करती रही.

बच्चों की मौत पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुप हैं. बच्चों की मौत से बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी बेखबर होंगे क्योंकि तीन हफ्ते से तो उनकी ही कोई खबर नहीं है. बच्चों की मौत पर आम चुनाव में बिहार के सबसे चर्चित चेहरे कन्हैया कुमार चुप हैं. बच्चों की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुप हैं. अपवाद कुदरत का एक अभिलाक्षणिक गुण माना जाता है, क्रिकेटर शिखर धवन पर मोदी के ट्वीट को भी उसी उसी कैटेगरी में रख कर देखा जा सकता है. वैसे भी इससे ज्यादा किया भी क्या जा सकता है.

मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से बच्चों की मौत पर नीतीश कुमार की चुप तो हैं - लेकिन उनकी चुप्पी में गुस्सा भरा है. राज्य सभा के लिए एलजेपी नेता रामविलास पासवान का नामांकन नीतीश कुमार के अंदर भरे गुस्से के विस्फोट का चश्मदीद बना - ये बात अलग है कि निशाने पर मीडिया रहा. बिलकुल वही मीडिया, जिसके अस्पताल के आईसीयू में पहुंच जाने से नीतीश कुमार सबसे ज्यादा परेशान हैं. नीतीश कुमार ने मीडिया पर जो भड़ास निकाली है, वो असल में झूठी है - कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना है. दरअसल, नीतीश कुमार की खीझभरी चुप्पी ही बिहार के मौजूदा राजनीतिक हालात पर आधिकारिक बयान है, जिसे थोड़ा धैर्य और गंभीरता के साथ समझने की जरूरत है.

इतना सन्नाटा क्यों है भाई!

नीतीश कुमार की कोशिश मीडिया पर फुल कंट्रोल की होती है - ये बातें पटना की गलियों में मानते तो सभी हैं लेकिन खुल कर चर्चा भी नहीं करते. वही मीडिया आउट ऑफ कंट्रोल क्यों हो गया? नीतीश कुमार के लिए समझना मुश्लिक हो रहा है. दरअसल, वो पटना से बाहर का मीडिया है. ये जरूर समझ आ रहा होगा.

अस्पताल में नीतीश कुमार - लेकिन सवाल पर चुप्पी!

नीतीश कुमार ने बच्चों की मौत के सवाल पर जिस तरह रिएक्ट किया है वो बड़ा ही अजीब है. किसी भी संजीदे राजनेता से ऐसे व्यवहार की कतई अपेक्षा नहीं की जा सकती. मगर, नीतीश कुमार के करीबी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. नीतीश कुमार की राजनीति पर बारीक नजर रखने वालों को भी ये बहुत अजीब नही लगता. वो कहीं और इशारा करते हैं. वो दिल्ली और पटना की बीती घटनाओं के तार जोड़ कर देखने की कोशिश करते हैं. वो नीतीश कुमार के संकेतों के जरिये राजनीति को समझने की कोशिश करते हैं.

मोदी कैबिनेट 2.0 में दूसरे सहयोगी दलों की ही तरह जेडीयू को भी एक मंत्री पद ऑफर हुआ था. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात में नीतीश कुमार ने सांसदों की संख्या के हिसाब से सहयोगी दलों का कोटा तय करने की मांग की, लेकिन नामंजूर हो गयी. दिल्ली में नीतीश कुमार ने एक नपा तुला बयान देकर रस्मअदायगी की और चल दिये. पटना पहुंच कर अपने इरादे भी साफ कर दिये - भविष्य में जेडीयू का बीजेपी को सपोर्ट रहेगा लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

नीतीश कुमार यहीं नहीं रुके. बिहार मंत्रिमंडल को पुनर्गठित किया और बीजेपी को फटकने तक का मौका नहीं दिया. नीतीश के करीबियों का मानना है कि बीजेपी नेतृत्व ने बिहार कैबिनेट को मोदी कैबिनेट से जोड़ते हुए गंभीरता से लिया होगा - और बाद की घटनाएं प्रतिक्रिया हो सकती हैं. कहने की जरूरत नहीं कि नीतीश कुमार बच्चों की मौत के मामले में बुरी तरह घिरे हुए हैं - और इसका कंट्रोल, पटना की पॉवर गैलरी की चर्चाओं के मुताबिक, नीतीश कुमार की नजर में दिल्ली में बैठे बीजेपी लीडरशिप के अलावा दूसरे के होने की संभावना नहीं लगती.

नीतीश कुमार की इस आशंका की कई वजहें हैं. ऐसी वजहों में एक है बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय बीजेपी के कोटे में हैं और निशाने पर मुख्यमंत्री ही क्यों हैं? नीतीश सरकार में मंगल पांडेय स्वास्थ्य मंत्री हैं जो बीजेपी के नेता हैं. केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन हैं. नीतीश को हैरानी इसी बात पर ज्यादा है कि आखिर पूरे मामले में टारगेट पर वो ही अकेले क्यों हैं, आखिर एक बार भी मंगल पांडेय का नाम क्यों नहीं लिया जा रहा है.

अस्पताल में बच्चों की चीख. लगातार दम तोड़ते बच्चे और उनकी मां की चीख. कुछ चीखें शोर जरूर मचा रही हैं, लेकिन राजनीतिक घात-प्रतिघात ने पूरे माहौल को नक्कारखाना बना दिया है. चीखों पर चुप्पी सिर्फ इतना ही कह पाती है - 'इतना सन्नाटा क्यों है भाई?'

संकेतों की सियासत को कैसे समझा जाये?

एक क्षण के लिए उस चुनावी रैली को याद कीजिये जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और उनके लोग नारा लगा रहे थे - वंदे मातरम. नीतीश कुमार चुपचाप मंच पर बैठे मुस्कुरा रहे थे. बाकी लोग उस नजारे को जैसे भी देखे हों, नीतीश कुमार के करीबी अलग नजरिये से देख रहे थे. वे उस नजारे को कैफी आजमी की तरह देख रहे थे और उनके कानों में जगजीत सिंह की आवाज गूंज रही थी - 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो...'

वैसे ही उस प्रदर्शनी को भी एक बार याद कीजिए जिसमें नीतीश कुमार को कमल के फूल में रंग भरते देखा गया था. नीतीश ने कमल के फूल में दूसरों को गुमराह करने के लिए लाल रंग भरा था - लेकिन संकेत ये था कि उसे भगवा ही समझा जाये. यही संकेत नीतीश की राजनीति को करीब से देखने वालों ने भी समझा था.

ठीक उसी वक्त एक वाकया हुआ जिस पर कम लोगों का ध्यान गया था. नीतीश कुमार के रंग भरने के बाद बीजेपी नेता सुशील मोदी ने प्रेस कांफ्रेंस कर लालू प्रसाद पर हमला बोला था. ध्यान रहे, निशाने पर तब महागठबंधन के सपोर्ट से मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार तो बिलकुल नहीं थे.

अब एक ताजा वाकया गौर करने लायक है. बिहार सरकार के भवन निर्माण विभाग ने तेजस्वी यादव के डिप्टी सीएम रहते उनके बंगले पर हुए रंग-रोगन को अनावश्यक खर्च के दायरे से बाहर माना है. एक तरीके से ये तेजस्वी यादव को क्लीन चिट है. इसे नीतीश सरकार द्वारा तेजस्वी यादव को दी गयी बड़ी राहत माना जा रहा है. खास बात ये है कि मौजूदा डिप्टी सीएम ने इस मामले की जांच कराने के लिए कमेटी गठित करने की मांग की थी, लेकिन सरकार की ओर से साफ कर दिया गया है कि इसकी कोई जरूरत नहीं रह गयी है.

अब आरजेडी में हुई इसकी प्रतिक्रिया पर भी ध्यान देना जरूरी है. तेजस्वी यादव ने आरजेडी के प्रवक्ताओं की छुट्टी कर दी है. ऐसा यूपी में अखिलेश यादव ने चुनावों में हार के बाद किया था - और राहुल गांधी ने भी कांग्रेस में. आरजेडी ने ये अब जाकर किया है. जिन प्रवक्ताओं पर गाज गिरी है वे दिन रात नीतीश कुमार पर जहर उगलते रहे.

ये बिहार की सियासत की वो नरम-गरम रोटियां हैं जिन्हें बच्चों की मौत के साये में ही सेंकने की भारी कवायद चल रही है - और यही उस खामोश राजनीति का बोलता आईना है. मुश्किल ये है कि आईने के सामने कोई खड़ा होने को राजी नहीं है. हकीकत मालूम सबको है, बस कोई देखना नहीं चाहता - लेकिन याद रहे चमकी बुखार से बच्चों की चीखें जाया नहीं जाएंगी.

इन्हें भी पढ़ें :

सरकारी चुप्‍पी से ठीक नहीं होगा चमकी बुखार

TDP सांसदों को झटक कर बीजेपी ने Nitish Kumar को अलर्ट भेजा है

बिहार में बच्चों की मौत पर नीतीश कुमार को योगी आदित्यनाथ से सीखने की जरूरत है



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲