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बिहार में बच्चों की मौत पर नीतीश कुमार को योगी आदित्यनाथ से सीखने की जरूरत है

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 18 जून, 2019 06:43 PM
  • 18 जून, 2019 06:43 PM
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बिहार में जापानी इन्सेफेलाइटिस और AES से मरने वाले बच्चों की संख्या 100 के पार जा चुकी है. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए ये जरूरी है कि वो उन उपायों पर ध्यान दें जो योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तरप्रदेश में अपनाए थे.

बिहार के मुजफ्परपुर जिले में जापानी इन्सेफेलाइटिस की वजह से 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. मौत की ये संख्या दर्ज है जबकि स्थानीय लोगों का दावा है कि मरने वालों की असल संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि दूरदराज के गांव से लोग अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते.

नीतीश कुमार की सरकार उत्तर बिहार के इस जिले व इसके आस-पास के क्षेत्र में जापानी इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों को लेकर बेखबर है.

इस वक्त जापानी इंसेफेलाइटिस का केंद्र मुजफ्फरपुर है. लेकिन कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश का गोरखपुर जापानी इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ गया था. जिसकी वजह से चार दशकों में हजारों बच्चों की मौत हो गई थी. जब योगी आदित्यनाथ सरकार ने अखिलेश यादव क् बाद  सत्ता संभाली, तो 2017 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में जापानी इंसेफेलाइटिस सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती थी.

नीतीश कुमार अगर योगी आदित्यनाथ के उपाए आजमाएं तो बिहार के हालात बदल सकते हैं

उस साल गोरखपुर और उसके पड़ोसी इलाकों में जापानी इंसेफेलाइटिस से 500 से भी ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी. कुल मिलाकर क्षेत्र के 14 जिले जापानी इंसेफेलाइटिस की चपेट में थे. अगस्त 2017 में, जापानी एन्सेफलाइटिस और एक्यूट एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के उपचार के लिए भर्ती हुए कई बच्चों की मृत्यु गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में हुई थी, जिससे राजनीति में भारी हंगामा भी हुआ था.

और तब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने AES और जापानी इंसेफेलाइटिस से निपटने के लिए WHO और यूनिसेफ के साथ मिलकर जरूरी उपाय किए और एक्शन प्लान 2018 लॉन्च किया.

एक्शन प्लान 2018 के तहत-

* जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए एक बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान शुरू किया गया.

* एक मजबूत स्वास्थ्य और स्वच्छता...

बिहार के मुजफ्परपुर जिले में जापानी इन्सेफेलाइटिस की वजह से 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. मौत की ये संख्या दर्ज है जबकि स्थानीय लोगों का दावा है कि मरने वालों की असल संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि दूरदराज के गांव से लोग अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते.

नीतीश कुमार की सरकार उत्तर बिहार के इस जिले व इसके आस-पास के क्षेत्र में जापानी इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों को लेकर बेखबर है.

इस वक्त जापानी इंसेफेलाइटिस का केंद्र मुजफ्फरपुर है. लेकिन कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश का गोरखपुर जापानी इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ गया था. जिसकी वजह से चार दशकों में हजारों बच्चों की मौत हो गई थी. जब योगी आदित्यनाथ सरकार ने अखिलेश यादव क् बाद  सत्ता संभाली, तो 2017 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में जापानी इंसेफेलाइटिस सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती थी.

नीतीश कुमार अगर योगी आदित्यनाथ के उपाए आजमाएं तो बिहार के हालात बदल सकते हैं

उस साल गोरखपुर और उसके पड़ोसी इलाकों में जापानी इंसेफेलाइटिस से 500 से भी ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी. कुल मिलाकर क्षेत्र के 14 जिले जापानी इंसेफेलाइटिस की चपेट में थे. अगस्त 2017 में, जापानी एन्सेफलाइटिस और एक्यूट एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के उपचार के लिए भर्ती हुए कई बच्चों की मृत्यु गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में हुई थी, जिससे राजनीति में भारी हंगामा भी हुआ था.

और तब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने AES और जापानी इंसेफेलाइटिस से निपटने के लिए WHO और यूनिसेफ के साथ मिलकर जरूरी उपाय किए और एक्शन प्लान 2018 लॉन्च किया.

एक्शन प्लान 2018 के तहत-

* जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए एक बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान शुरू किया गया.

* एक मजबूत स्वास्थ्य और स्वच्छता अभियान शुरू किया गया.

* लक्षण दिखते साथ ही शुरुआती टीकाकरण किया गया.

* प्रभावित बस्ती से सूअरों को अलग करने के लिए मुहिम शुरू की गई. क्योंकि सुअरों के जरिए ही इस रोग के फैलने की संभावनाएं थी. उद्देश्य गंदगी हटाना ही था.

* फॉगिंग के लिए तत्काल प्रतिक्रिया टीमों को काम पर लगाया गया. जहां भी इस बीमारी का कोई लक्षण दिखाई देता, ये फॉगिंग टीम आस-पास के इलाकों को सेनिटाइज कर देती थी.

* माता-पिता को जागरुक करने के लिए कैंपेन चलाए गए और उन्हें समझाया गया कि बच्चों को मिट्टी के फर्श पर सोने नहीं दिया जाए, पीने के पानी के लिए इंडिया मार्क-2 पानी के पाइप या हैंडपंप का इस्तेमाल किया जाए. और किसी भी तरह के शुरुआती लक्षण दिखने पर तुरंत एम्बुलेंस हेल्पलाइन 108 को सूचित किया जाए.

ये उपाय उत्तर प्रदेश के लिए कारगर साबित हुए. जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस के मामले एक साल पहले की तुलना में 2018 में करीब दो-तिहाई कम हो गए. यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इस साल फरवरी में विधानसभा को सूचित किया था कि 2017 में 557 मौतों के मुकाबले 2018 में जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस से 187 मौतें हुईं. जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस से प्रभावित 14 जिलों में 2017 में 3817 की तुलना में 2018 में 2,043 हो गए थे.

अस्पतालों में पहुंचने वाले जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस से पीड़ित रोगी कम हुए तो इसका असर ये हुआ कि डॉक्टर्स भर्ती होने वाले मरीजों की बेहतर देखभाल कर सकते थे, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु दर में गिरावट आई थी. 2017 में जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस के 7 रोगियों में से एक की मृत्यु हुई तो 2018 में 11 रोगियों में से एक की. स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक इस इलाके में इस साल फरवरी तक जापानी इन्सेफेलाइटिस और एईएस के 35 मामलों के बावजूद भी किसी की भी मौत नहीं हुई.

बिहार में जापानी इंसेफेलाइटिस से 100 से भी ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है

भौगोलिक दृष्टि से देखें तो, चूंकि पूर्वी यूपी और उत्तर बिहार दोनों एक जैसी गर्मी और उमस का मौसम झेलते हैं, इसलिए ये जगह जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस के फैलने के लिए अनुकूल हो जाती है. योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा अपनाए गए उपाय न केवल नीतीश कुमार सरकार को मौतों की जांच करने में मदद कर सकते हैं, बल्कि बिहार में आम आदमी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने में मददगार साबित होंगे.

हालांकि, बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने भी जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस के बढ़ते मामलों के मद्देनजर 2015 में मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) की शुरुआत की थी. 2012 में 120 बच्चों की बीमारी से मौत हुई थी, जबकि 2014 में मरने वालों की संख्या 90 थी. इंसेफेलाइटिस से लड़ने के लिए 2015 के SOP की शुरुआत यूनिसेफ के परामर्श से बिहार के स्वास्थ्य विभाग ने शुरू की थी. SOP बताता है कि नर्स-मिडवाइफ समेत मूल स्वास्थ्य कार्यकर्ता, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और आंगनवाड़ी कर्मचारियों को घर-घर जाकर सर्वे करके ये चेक करना होता है कि किसी भी बच्चे को जापानी इंसेफेलाइटिस और एईएस के लक्षण तो नहीं हैं.

इन प्रयासों से ने 2016 और 2017 में इंसेफेलाइटिस से मरने वालों की संख्या में गिरावट तो आई लेकिन इस साल के हालात को देखकर यह स्पष्ट हो गया कि SOP का पालन ही नहीं किया गया था. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के लिए इंसेफेलाइटिस की स्थिति बेहद खराब है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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