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नीतीश कुमार भी उद्धव ठाकरे की तरह बेवफा न बन जाएं...

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 11 नवम्बर, 2020 05:09 PM
  • 11 नवम्बर, 2020 05:09 PM
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बिहार में भाजपा और जदयू के रूझानों में जीत की खबरों के बीच नई चर्चा ने जन्म दे दिया है. चर्चा है मुख्यमंत्री पद के चेहरे की,भाजपा के कार्यकर्ता चाहते हैं कि अब मुख्यमंत्री भाजपा का होना चाहिए. ऐसे में क्या महाराष्ट्र का दृष्य दुबारा देखने को मिल सकता है.

Bihar Assembly Election Results : बिहार के चुनावी रुझान को देखते हुए लग रहा है कि एनडीए अपने दम पर बहुमत से कई सीट अधिक जीत रही है. चुनावी माहौल को देखते हुए लगभग तमाम राजनीतिक पंडितों ने अनुमान लगाया था कि यूपीए का गठबंधन बाजी मार जाएगा लेकिन बिहार के मतदाताओं ने खामोशी के साथ हवाओं का रुख मोड़ दिया है. हालांकि अभी स्पष्ट नतीजा आऩे में रात तक का इंतेज़ार करना होगा जहां बदलाव मुमकिन है लेकिन ताजा स्थिति के अनुकूल चर्चा की जाए तो भाजपा (BJP) और जदयू (JD) खेमा खुश है. दिवाली से पहले ही दिवाली मनाने को तैयार है. एनडीए ने मान लिया है कि वह तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. तेजस्वी (Tejasvi Yadav) ने मेहनत तो की लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के आगे वह कमजोर ही साबित हुए हैं. एनडीए में नीतीश कुमार की पार्टी को नुकसान ज़रूर हुआ है लेकिन इसका फायदा भाजपा ने कमा कर दे दिया है.

अब जबकि बिहार के नतीजे आने में कुछ वक़्त बचा है माना जा रहा है कि नीतीश कुमार उद्धव ठाकरे से मिलता जुलता दांव खेलेंगे

भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में महज 53 सीट मिली थी लेकिन इस चुनावी रूझान के मुताबिक वह 70-80 सीटें हासिल कर सकती है. जबकि उसकी साथी पार्टी जदयू 20-30 सीट के नुकसान के साथ 40-50 सीट के आसपास रह सकती है. चिराग पासवान का अगला कदम क्या हो सकता है इसके बारे में महज उन्हें ही जानकारी होगी.

चुनावों में चिराग भाजपा के तो साथ थे लेकिन जदयू के खिलाफ थे.चिराग पासवान से इस चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन वह अपने पुराने प्रदर्शन के आसपास ही हैं. पिछले चुनाव में चिराग की पार्टी को 2 सीटें प्राप्त हुयी थी इस चुनाव में उनसे 8-10 सीटों की उम्मीद लगाई जा रही थी लेकिन वह रुझानों के मुताबिक 2-3 सीट ही प्राप्त करते नज़र आ रहे...

Bihar Assembly Election Results : बिहार के चुनावी रुझान को देखते हुए लग रहा है कि एनडीए अपने दम पर बहुमत से कई सीट अधिक जीत रही है. चुनावी माहौल को देखते हुए लगभग तमाम राजनीतिक पंडितों ने अनुमान लगाया था कि यूपीए का गठबंधन बाजी मार जाएगा लेकिन बिहार के मतदाताओं ने खामोशी के साथ हवाओं का रुख मोड़ दिया है. हालांकि अभी स्पष्ट नतीजा आऩे में रात तक का इंतेज़ार करना होगा जहां बदलाव मुमकिन है लेकिन ताजा स्थिति के अनुकूल चर्चा की जाए तो भाजपा (BJP) और जदयू (JD) खेमा खुश है. दिवाली से पहले ही दिवाली मनाने को तैयार है. एनडीए ने मान लिया है कि वह तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. तेजस्वी (Tejasvi Yadav) ने मेहनत तो की लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के आगे वह कमजोर ही साबित हुए हैं. एनडीए में नीतीश कुमार की पार्टी को नुकसान ज़रूर हुआ है लेकिन इसका फायदा भाजपा ने कमा कर दे दिया है.

अब जबकि बिहार के नतीजे आने में कुछ वक़्त बचा है माना जा रहा है कि नीतीश कुमार उद्धव ठाकरे से मिलता जुलता दांव खेलेंगे

भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में महज 53 सीट मिली थी लेकिन इस चुनावी रूझान के मुताबिक वह 70-80 सीटें हासिल कर सकती है. जबकि उसकी साथी पार्टी जदयू 20-30 सीट के नुकसान के साथ 40-50 सीट के आसपास रह सकती है. चिराग पासवान का अगला कदम क्या हो सकता है इसके बारे में महज उन्हें ही जानकारी होगी.

चुनावों में चिराग भाजपा के तो साथ थे लेकिन जदयू के खिलाफ थे.चिराग पासवान से इस चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन वह अपने पुराने प्रदर्शन के आसपास ही हैं. पिछले चुनाव में चिराग की पार्टी को 2 सीटें प्राप्त हुयी थी इस चुनाव में उनसे 8-10 सीटों की उम्मीद लगाई जा रही थी लेकिन वह रुझानों के मुताबिक 2-3 सीट ही प्राप्त करते नज़र आ रहे हैं.

चिराग ने चुनावों के बीच दावा किया था कि भाजपा अगर ज़्यादा सीट हासिल करेगी तो वह अपना मुख्यमंत्री बनाएगी उनकी पार्टी लोजपा के साथ. नीतीश कुमार जितनी भी सीट पाएंगें वह मुख्यमंत्री बनने की लालसा में राजद से हाथ मिला लेंगें. चिराग की इन बातों पर चुनावों से पहले किसी ने कोई चर्चा करना बेहतर नहीं समझा था, लेकिन राजनीति में कोई भी फैसला स्थाई नहीं होता है.

भाजपा नीतीश के चेहरे पर चुनाव ज़रूर लड़ी है लेकिन अब वह बड़े भाई की भूमिका में है. बिहार के स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में ये बिगुल बज चुका है कि मुख्यमंत्री भाजपा से होना चाहिए. जदयू के नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से भाजपा के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं अब मौका आ गया है कि नीतीश कुमार भाजपा के मुख्यमंत्री को अपना समर्थन दें.

बिहार में भाजपा का कद बढ़ गया है और सीट भी जदयू से दोगुनी के करीब हासिल कर रही है ऐसे में यह मांग तो जाएज़ है. भाजपा भी चाहती है कि बिहार में उसका कोई चेहरा हो वह नीतीश से आज़ादी पाकर आने वाले समय में अकेले दम पर चुनाव में जाए. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि भाजपा अगर अपना मुख्यमंत्री चेहरा नहीं देगी तो ज़रूर आधे-आधे कार्यकाल के मुख्यमंत्री पद की मांग कर सकती है.

नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद से कोई भी समझौता नहीं करते हैं क्या वह कोई भी शर्त मानने की स्थिति में होंगें यह एक बड़ा सवाल है. नीतीश कुमार क्या दूसरे खैमे से हाथ मिला लेंगें, इस सवाल का जवाब तलाशा जाए तो यह बेहद आसान है. नीतीश कुमार सियासत के वह खिलाड़ी हैं जो कहीं भी किसी भी विचारधारा के साथ फिट बैठ सकते हैं.

तो ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अगर भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री चेहरे की दावेदारी ठोकी तो नीतीश कुमार को पल्ला बदलने में ज़्यादा वक्त नहीं लगने वाला है. वहीं क्या राजद नीतीश को अपना लेगी इसका जवाब तलाशा जाए तो इसका जवाब थोड़ा मुश्किल भरा होगा.

नीतीश कुमार राजद से सिर्फ एक ही शर्त पर हाथ मिलाएंगें कि वह 5 साल का पूरा कार्यकाल करेंगें, तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ेगा. हालांकि ये महज एक अनुमान है इसकी चर्चाएं हो रही है. भाजपा आलाकमान कभी भी बिहार को अपने हाथ से फिसलने नहीं देने वाला है इसलिए यह मान कर चलना चाहिए कि ऐसी स्थिति पैदा होने वाली नहीं है.

लेकिन फिर भी राजनीति का मैदान ही ऐसा है कि कब कौन कैसी करवट ले बैठे इसकी भनक भी नहीं लग पाती है. भाजपा पूरे 20 सालों के बाद मजबूत स्थिति में पहुंची है इसलिए वह बड़ी भूमिका में ही दिखाई देना चाहती है.

भाजपा का महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से भी मुख्यमंत्री पद की ही झगड़ा था वही झगड़ा अगर बिहार में भी शुरू हुआ तो ये भाजपा के लिए आगे के राज्यों में गठबंधन के लिए नुकसानदायक होगा. आखिरी चुनावी नतीजों का इंतजार करते हैं और देखते हैं क्या लोगों के अनुमानों और चर्चाओं में किसी भी तरह का कोई दम है भी या नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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