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नीतीश कुमार को NDA का नेता अमित शाह ने यूं ही नहीं बनाया है

    • आईचौक
    • Updated: 26 अक्टूबर, 2019 04:13 PM
  • 26 अक्टूबर, 2019 04:13 PM
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नीतीश कुमार को एनडीए का नेता बना कर बिहार बीजेपी के नेता अब ये जताने लगे हैं कि नीतीश कुमार के बड़ा दिल दिखाने की बारी है. पहले बड़े दिल दिखाने से आशय कुर्सी छोड़ना रहा - लेकिन अब मतलब सीटें छोड़ने से है.

नीतीश कुमार की NDA में मुश्किलें सिर्फ कम तो हो जाती हैं, कभी खत्म नहीं होतीं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बिहार में 2020 के लिए नीतीश कुमार को NDA के नेता के तौर पर घोषणा कर देने के बाद नयी मुश्किलें सामने आने लगी हैं.

अमित शाह के बयान के बाद बिहार बीजेपी के नेताओं का हमलावर तेवर तो बदल गया है, लेकिन मौका देखकर वार करना नहीं रुका है. बिहार बीजेपी के नेता नये सिरे से कहने लगे हैं कि बीजेपी ने अपना काम कर दिया है - अब नीतीश कुमार की बारी है.

आसमान से गिरे खजूर पर अटके

नीतीश कुमार को बीजेपी के नेता अब इस बात का एहसास करा रहे हैं कि जो कुछ पाना था पा लिये - अब कुछ खोने के बारे में सोचिये. सबक वही पुराना ही है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. सबक ये भी है कि अमित शाह ने नीतीश कुमार को बिहार में NDA का नेता यूं ही नहीं बनाया है.

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जब बेगूसराय से नीतीश कुमार पर सियासी गोले छोड़ना जारी रखे थे, भागलपुर में बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल उन्हें न्यूट्रलाइज भी करने की कोशिश की थी. ये अमित शाह के बयान से ठीक पहले की बात है. तब संजय जायसवाल ने कहा था कि एनडीए अटूट है और गिरिराज सिंह जो बयान देते हैं वो उकी निजी राय होती है - अधिकृत प्रवक्ताओं के बयान ही पार्टी का स्टैंड समझा जाना चाहिये.

बहरहाल, अमित शाह का बयान आने के बाद गिरिराज सिंह ने भी अपने सुर बदल लिये हैं - लेकिन संजय जायसवाल के साथ मिल कर दोनों नये सुर में शुरू हो गये हैं.

गिरिराज सिंह ने बेगूसराय में ही मीडिया से बातचीत में कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जो फैसला लिया है, हम लोग उसके साथ हैं. मतलब, बिहार में स्वाभाविक है कि एनडीए नीतीश कुमार की अगुवाई में ही चुनाव लड़ेगा.

लगे हाथ गिरिराज सिंह ने एक बात अपनी तरफ से जोड़ भी दी है - लोकसभा चुनाव में हम बराबरी की सीटों पर चुनाव लड़े थे... उम्मीद है विधानसभा चुनाव भी इसी आधार पर लड़ा जाएगा.'

नीतीश कुमार की NDA में मुश्किलें सिर्फ कम तो हो जाती हैं, कभी खत्म नहीं होतीं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बिहार में 2020 के लिए नीतीश कुमार को NDA के नेता के तौर पर घोषणा कर देने के बाद नयी मुश्किलें सामने आने लगी हैं.

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नीतीश कुमार को बीजेपी के नेता अब इस बात का एहसास करा रहे हैं कि जो कुछ पाना था पा लिये - अब कुछ खोने के बारे में सोचिये. सबक वही पुराना ही है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. सबक ये भी है कि अमित शाह ने नीतीश कुमार को बिहार में NDA का नेता यूं ही नहीं बनाया है.

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जब बेगूसराय से नीतीश कुमार पर सियासी गोले छोड़ना जारी रखे थे, भागलपुर में बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल उन्हें न्यूट्रलाइज भी करने की कोशिश की थी. ये अमित शाह के बयान से ठीक पहले की बात है. तब संजय जायसवाल ने कहा था कि एनडीए अटूट है और गिरिराज सिंह जो बयान देते हैं वो उकी निजी राय होती है - अधिकृत प्रवक्ताओं के बयान ही पार्टी का स्टैंड समझा जाना चाहिये.

बहरहाल, अमित शाह का बयान आने के बाद गिरिराज सिंह ने भी अपने सुर बदल लिये हैं - लेकिन संजय जायसवाल के साथ मिल कर दोनों नये सुर में शुरू हो गये हैं.

गिरिराज सिंह ने बेगूसराय में ही मीडिया से बातचीत में कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जो फैसला लिया है, हम लोग उसके साथ हैं. मतलब, बिहार में स्वाभाविक है कि एनडीए नीतीश कुमार की अगुवाई में ही चुनाव लड़ेगा.

लगे हाथ गिरिराज सिंह ने एक बात अपनी तरफ से जोड़ भी दी है - लोकसभा चुनाव में हम बराबरी की सीटों पर चुनाव लड़े थे... उम्मीद है विधानसभा चुनाव भी इसी आधार पर लड़ा जाएगा.'

नीतीश निशाने पर ही हैं, सिर्फ तेवर बदल गया है!

अगर अकेले गिरिराज सिंह ये बात कहते तो एक बार फिर ये उनकी निजी राय समझी जा सकती थी, लेकिन जब संजय जायसवाल भी वैसी बात करने लगे हों तो यही मान कर चलना होगा कि ऐसे बयान दिल्ली की मंजूरी के बाद ही मीडिया में दिये जा रहे हैं.

संजय जायसवाल कह रहे हैं कि जैसे बीजेपी ने नीतीश को नेता मान कर बड़ा दिल दिखाया है, नीतीश कुमार से भी वैसी ही अपेक्षा बनती है. बीजेपी नेताओँ के इस बड़े दिल से आशय सीटों के बंटवारे को लेकर है - अभी तक ये बात मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हुआ करती थी, अब सीटों पर आ सिमटी है. तो क्या पिस्तौल के लाइसेंस के लिए बीजेपी नेता तोप के लिए अप्लाई कर रहे थे?

कुर्सी से सीटों पर शिफ्ट हुआ फोकस

गिरिराज सिंह और संजय जायसवाल दोनों ही नीतीश कुमार का ध्यान संसदीय सीटों के बंटवारे की ओर खींच रहे हैं. बीजेपी नेता नीतीश कुमार को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी नीतीश कुमार के लिए लगातार कुर्बानी दे रही है, इसलिए अब जरूरी हो गया है कि जेडीयू नेता भी बीजेपी के लिए वैसे ही विशाल हृदय दिखाते हुए आगे आयें.

नीतीश कुमार भी अक्सर दबाव की राजनीति अपनाते रहे हैं, लेकिन इस बार बीजेपी बिहार के मुख्यमंत्री को पहले से ही घेर लेना चाहती है ताकि विधानसभा चुनाव के वक्त ऐसा कुछ न हो कि लेने के देने पड़ जायें. दरअसल, बीजेपी नेताओं का नीतीश कुमार पर ताजा हमला भी महागठबंधन से संपर्क की खबरों के इर्द-गिर्द ही शुरू हुआ. ऐसी खबरों के आते ही महागठबंधन के नेताओं की तरफ से भी नीतीश कुमार को सलाह पर सलाह दिये जाने लगे. ऐसा लगता है बीजेपी नेतृत्व ने मौके की नजाकत को देखते हुए पहले बिहार के पार्टी नेताओं को थोड़ी छूट दी और देखा कि हलचल शुरू हो गयी तो डोर कस दी. अब जो हो रहा है वो आगे की रणनीति का हिस्सा लगता है.

दरअसल, बीजेपी को लगता है कि नीतीश कुमार ने भले ही लोक सभा की सीटें बराबर बराबर बंटवा ली हो, लेकिन संभव है विधानसभा चुनाव में वो 2005 और 2010 का पैमाना अपनाने की जिद पर उतर आयें. दोनों ही बार जेडीयू ने ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े थे - 2005 और 2010 में जेडीयू 142 और बीजेपी 101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.

बीजेपी ने 2014 में बिहार से लोक सभा की 22 सीटें जीती थीं, लेकिन 2019 में पांच सीटों का नुकसान सहते हुए नीतीश कुमार को अपने बराबर 17 सीटें दी. यही वजह रही कि बीजेपी को शाहनवाज हुसैन से कुर्बानी दिलवानी पड़ी और गिरिराज सिंह को नाराज कर उन्हें नवादा से बेगूसराय शिफ्ट करना पड़ा.

गिरिराज सिंह और संजय जायसवाल नीतीश कुमार को यही याद दिला रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में भी वो सीटों की बराबरी पर मान जायें. वैसे तो ये बातें नीतीश कुमार और अमित शाह मिल कर ही तय करेंगे लेकिन जेडीयू की ओर से कोई नया पैंतरा न शुरू हो जाये इसलिए बीजेपी पहले से मुकम्मल इंतजाम करने की कोशिश कर रही है.

बीजेपी नेताओं के काउंटर में नीतीश की हरी झंडी मिलते ही जेडीयू नेताओं ने भी माहौल बनाना शुरू कर दिया है. जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह की बातें तो यही इशारा करती हैं. संजय सिंह कहते हैं, 'नीतीश कुमार जिस तरफ रहे हैं, उस तरफ बहुमत रहा है. 2005, 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजे देख लीजिए.'

सच तो यही है कि बगैर नीतीश के बीजेपी बिहार में लोक सभा चुनाव भले जीत ले, विधानसभा में सीटों की जुटाना मुश्किल है - ये बात नीतीश कुमार अच्छी तरह जानते हैं. नीतीश कुमार की एक खासियत ये भी है कि वो खोते कम है और पाने की कोशिश हमेशा ज्यादा ही रहती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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