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नीतीश कुमार को अमित शाह का अभयदान उनकी ताकत पर मुहर है

    • आईचौक
    • Updated: 19 अक्टूबर, 2019 06:49 PM
  • 19 अक्टूबर, 2019 06:49 PM
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2020 के विधानसभा चुनाव के वक्त अमित शाह ने जो भी रणनीति सोच रखी हो, लेकिन नीतीश कुमार को लेकर उनका बयान तात्कालिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है - साथ ही, जेडीयू की महात्वाकांक्षाओं पर भी ब्रेक लगाने जैसा है.

नीतीश कुमार को बीजेपी ने बिहार में आखिरकार बड़ा भाई मान लिया है. नीतीश कुमार के बिहार में एनडीए के नेतृत्व पर आम चुनाव से पहले भी सवाल उठाये गये थे - और एक बार फिर कुछ दिन से वैसा ही माहौल बनने लगा था. आम चुनाव और 2020 के विधानसभा चुनाव में बड़ा फर्क ये है कि लोक सभा के चुनाव में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेहरा था. तब तो बगैर घोषणा पत्र के भी जेडीयू ने बहती गंगा में करीब करीब बीजेपी के बराबर ही सीटें बटोर ली. बीजेपी के कुछ नेता नीतीश कुमार को बीजेपी के लिए सिंहासन खाली करने की ही सलाह देने लगे थे.

बहरहाल, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का ये कह देने भर देना कि 2020 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा - बीजेपी के बड़बोले नेताओं के लिए चुप हो जाने के लिए एक सख्त मैसेज है. नीतीश कुमार के लिए तो ये राहत भरी बात है ही गठबंधन सरकार के कामकाज के लिए भी ये काफी जरूरी था - और सबसे ज्यादा जरूरी तो ये 21 अक्टूबर को होने जा रहे चुनावों के हिसाब से रहा.

अमित शाह के बयान नीतीश के लिए बहुत बड़ी राहत है

21 अक्टूबर को ही बिहार में पांच विधानसभा सीटों और एक लोक सभा सीट पर उपचुनाव होना है - नतीजे भी महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के साथ ही 24 अक्टूबर को ही आएंगे.

देश भर में होने जा रहे उपचुनावों के साथ ही बिहार की पांच विधानसभा सीटों पर भी चुनाव होंगे - नाथनगर, सिमरी बख्तियारपुर, दरौंदा, बेलहर और किशनगंज. साथ ही, बिहार की समस्तीपुर लोक सभा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है. बीजेपी ने सिर्फ किशनगंज विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार खड़ा किया है, जबकि बाकी चार सीटों पर जेडीयू के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. समस्तीपुर सीट एनडीए की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के कोटे की है इसलिए वहां राम विलास पासवान का उम्मीदवार खड़ा है.

देखा जा रहा था कि जेडीयू को कम से कम दो विधानसभा सीटों पर बीजेपी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं का पूरा सहयोग नहीं मिल पा रहा था. जाहिर है ये नेता उस खेमे के ही होंगे जो धड़ा नीतीश...

नीतीश कुमार को बीजेपी ने बिहार में आखिरकार बड़ा भाई मान लिया है. नीतीश कुमार के बिहार में एनडीए के नेतृत्व पर आम चुनाव से पहले भी सवाल उठाये गये थे - और एक बार फिर कुछ दिन से वैसा ही माहौल बनने लगा था. आम चुनाव और 2020 के विधानसभा चुनाव में बड़ा फर्क ये है कि लोक सभा के चुनाव में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेहरा था. तब तो बगैर घोषणा पत्र के भी जेडीयू ने बहती गंगा में करीब करीब बीजेपी के बराबर ही सीटें बटोर ली. बीजेपी के कुछ नेता नीतीश कुमार को बीजेपी के लिए सिंहासन खाली करने की ही सलाह देने लगे थे.

बहरहाल, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का ये कह देने भर देना कि 2020 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा - बीजेपी के बड़बोले नेताओं के लिए चुप हो जाने के लिए एक सख्त मैसेज है. नीतीश कुमार के लिए तो ये राहत भरी बात है ही गठबंधन सरकार के कामकाज के लिए भी ये काफी जरूरी था - और सबसे ज्यादा जरूरी तो ये 21 अक्टूबर को होने जा रहे चुनावों के हिसाब से रहा.

अमित शाह के बयान नीतीश के लिए बहुत बड़ी राहत है

21 अक्टूबर को ही बिहार में पांच विधानसभा सीटों और एक लोक सभा सीट पर उपचुनाव होना है - नतीजे भी महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के साथ ही 24 अक्टूबर को ही आएंगे.

देश भर में होने जा रहे उपचुनावों के साथ ही बिहार की पांच विधानसभा सीटों पर भी चुनाव होंगे - नाथनगर, सिमरी बख्तियारपुर, दरौंदा, बेलहर और किशनगंज. साथ ही, बिहार की समस्तीपुर लोक सभा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है. बीजेपी ने सिर्फ किशनगंज विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार खड़ा किया है, जबकि बाकी चार सीटों पर जेडीयू के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. समस्तीपुर सीट एनडीए की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के कोटे की है इसलिए वहां राम विलास पासवान का उम्मीदवार खड़ा है.

देखा जा रहा था कि जेडीयू को कम से कम दो विधानसभा सीटों पर बीजेपी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं का पूरा सहयोग नहीं मिल पा रहा था. जाहिर है ये नेता उस खेमे के ही होंगे जो धड़ा नीतीश कुमार को लेकर सवाल खड़े कर रहा था.

बीजेपी आलाकमान के स्थिति साफ करने का पहला असर उपचुनावों में ही दिखा है. अमित शाह का बयान आते ही बीजेपी से दो बागी नेताओं को सस्पेंड कर दिये जाने की खबर है.

नीतीश कुमार के खिलाफ तो सबसे ज्यादा हमलावर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ही रहते हैं. नीतीश कुमार को सिंहासन खाली करने वाली जब ताजा मुहिम चली तो 'अगला मुख्यमंत्री गिरिराज' जैसे अभियान भी शुरू हो गये थे. जाहिर है इस अभियान को शह तो गिरिराज सिंह के बयानों से ही मिली होगी और इसके पीछे उनके समर्थक ही होंगे. वैसे पहले भी गिरिराज सिंह अपने गैर-जिम्मेदाराना बयान के लिए अमित शाह के कोपभाजन का शिकार हो चुके हैं. मान कर चलना चाहिये कि आगे से नीतीश कुमार को गिरिराज सिंह और उनके समर्थकों से कोई खास दिक्कत नहीं होनी चाहिये.

रहा सवाल विधानसभा की सीटों के बंटवारे का तो लोक सभा की तरह मान कर चलना होगा कि दोनों दल मिल बैठ कर सुलझा लेंगे - हो सकता है वो आम चुनाव जैसा न हो, फिर भी अगर महाराष्ट्र की तरह होता है तो भी नीतीश कुमार के लिए कोई खराब सौदा नहीं होगा. महाराष्ट्र में तो शिवसेना को न सीएम की कुर्सी मिल पायी न बराबर सीटें.

नीतीश की ताकत पर बीजेपी ने मुहर लगायी है

जब संजय पासवान ने नीतीश कुमार को बिहार में बीजेपी नेताओं के हक में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने की मुहिम छेड़ी थी तो डिप्टी सीएम सुशील मोदी आगे आये तो बोले, 'बिहार में तो NDA के कैप्टन नीतीश कुमार ही हैं.' ऐसा लगा सुशील मोदी के बयान के बाद नीतीश विरोधी बीजेपी नेता अपनी मुहिम बंद कर देंगे, लेकिन उसका कोई खास असर नहीं हुआ, लिहाजा अमित शाह को आगे आना पड़ा.

अमित शाह ने गठबंधन को लेकर अटकलों को तो खारिज किया ही, नीतीश कुमार का नाम लेकर सुशील मोदी की बातों पर भी मुहर लगा दिया है. अमित शाह ने कहा कि बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन अटल है और दोनों मिलकर चुनाव लड़ेंगे.

जो सबसे महत्वपूर्ण बात अमित शाह ने कही है, वो है, 'जेडीयू और बीजेपी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे... ये चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्‍व में लड़ा जाएगा... ये पूरी तरह से स्‍पष्‍ट है.'

अमित शाह ने बीजेपी ही नहीं जेडीयू पक्ष को भी इशारा किया कि कहीं से किसी तरह की गलतफहमी न रह जाये. अमित शाह ने स्पष्ट शब्दों में समझा दिया है कि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर दोनों दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में चुनाव लड़ रहे हैं और बिहार में मौजूदा नेतृत्‍व की अगुवाई में ही चुनाव लड़ा जाएगा. अमित शाह के इस बयान में नीतीश कुमार के लिए भी छिपा हुआ संदेश है. जेडीयू ने झारखंड चुनाव बीजेपी से अलग होकर लड़ने की घोषणा की है. जेडीयू का कहना है कि बीजेपी के साथ गठबंधन सिर्फ बिहार में है - लेकिन अमित शाह अब लगे हाथ बता रहे हैं कि ये बाजा नहीं बजेगा.

मोदी कैबिनेट 2.0 में हिस्सेदारी से लेकर तीन तलाक और धारा 370 तक ये ऐसे मामले रहे हैं - जिन पर नीतीश कुमार को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है. कैबिनेट को लेकर तो नीतीश कुमार ने थोड़ी नाराजगी दिखायी भी लेकिन तीन तलाक और धारा 370 पर बीजेपी के सपोर्ट के लिए राजनीतिक पैंतरेबाजी ही करते रहे. फिर तो जेडीयू को ये भी समझ लेना होगा कि झारखंड को लेकर छोटी सी ख्वाहिश को कुर्बान करना पड़ सकता है.

एनडीए के साथी दलों के लिए तो अमित शाह का ये बयान महत्वपूर्ण है ही, ये इस बात का भी सबूत है कि बिहार में चाहे जो भी समीकरण बन रहे हों या बिगड़ चुके हों - नीतीश कुमार की ताकत कम नहीं हुई है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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