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दलितों को रिझाने के चक्कर में नीतीश कुमार को लेने के देने पड़ने वाले हैं

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 06 सितम्बर, 2020 07:02 PM
  • 06 सितम्बर, 2020 07:01 PM
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार में अपना दलित एजेंडा (Dalit Agenda) तेजी से बढ़ाने में लगे हुए हैं. जीतनराम मांझी के आने से एनडीए में टकराव तो बढ़ा ही है, दलितों को नौकरी देने के पैमाने पर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने सवाल खड़ा किया है.

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का दलित एजेंडा (Dalit Agenda) रफ्तार भरने लगा है, लेकिन रफ्तार के साथ दिक्कत ये होती है कि हादसों की आशंका भी बनी रहती है. नीतीश कुमार के साथ भी तकरीबन वैसा ही हो रहा है. एक तरफ नीतीश कुमार जेडीयू के लिए दलित चेहरे जुटा रहे हैं, तो साथ ही साथ दलित वोटों को अपनी तरफ खींचने के लिए लुभावने वादे भी कर रहे हैं.

नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को जिस मकसद से एनडीए में लाया है, उसके नतीजे तो बाद में देखने को मिलेंगे - अभी तो ऐसा लग रहा है कि जीतनराम मांझी आपसी टकराव की वजह बन रहे हैं. ऐसा सिर्फ चिराग पासवान की एलजेपी के साथ होता तो स्वाभाविक समझा जाता, लेकिन बिहार बीजेपी के नेताओं में भी नाराजगी महसूस की जा रही है.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बार बार दोहरा रहे हैं कि एनडीए के सभी दल मिल कर नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, लेकिन चिराग पासवान के तेवर अब भी वैसे ही बने हुए हैं.

अगर वक्त रहते नीतीश कुमार ने दलितों के प्रति मेहरबानी दिखाने में समझदारी नहीं दिखायी तो लेने के देने पड़ सकते हैं - क्योंकि नीतीश कुमार के दलित कार्ड पर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने भी धावा बोल दिया है.

मांझी बढ़ा रहे हैं मुसीबत

जीतनराम मांझी को एनडीए में लाने का तात्कालिक फायदा नीतीश कुमार को यही मिला है कि वो नीतीश कुमार के नये प्रवक्ता बन गये हैं, हालांकि, जेडीयू के बाकी प्रवक्ताओं से मांझी के बयान ज्यादा असरदार साबित हो रहे हैं.

ये तो पहले से ही पता था कि नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को काउंटर करने के लिए ही एनडीए में जीतनराम मांझी को शामिल कराया है. चिराग पासवान ने भी फौरन ही नाराजगी जाहिर कर दी है. चिराग पासवान ने सवाल उठाया है कि जीतनराम मांझी को एनडीए में शामिल करने ने से पहले उचित फोरम पर चर्चा क्यों नहीं की गयी? चिराग पासवान की ये दलील भी सही है कि एनडीए को लेकर जो भी कॉमन फैसला हो उसके लिए एक मीटिंग बुलाकर बात तो होनी ही चाहिये. चिराग पासवान ये भी जानते हैं कि नीतीश...

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का दलित एजेंडा (Dalit Agenda) रफ्तार भरने लगा है, लेकिन रफ्तार के साथ दिक्कत ये होती है कि हादसों की आशंका भी बनी रहती है. नीतीश कुमार के साथ भी तकरीबन वैसा ही हो रहा है. एक तरफ नीतीश कुमार जेडीयू के लिए दलित चेहरे जुटा रहे हैं, तो साथ ही साथ दलित वोटों को अपनी तरफ खींचने के लिए लुभावने वादे भी कर रहे हैं.

नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को जिस मकसद से एनडीए में लाया है, उसके नतीजे तो बाद में देखने को मिलेंगे - अभी तो ऐसा लग रहा है कि जीतनराम मांझी आपसी टकराव की वजह बन रहे हैं. ऐसा सिर्फ चिराग पासवान की एलजेपी के साथ होता तो स्वाभाविक समझा जाता, लेकिन बिहार बीजेपी के नेताओं में भी नाराजगी महसूस की जा रही है.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बार बार दोहरा रहे हैं कि एनडीए के सभी दल मिल कर नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, लेकिन चिराग पासवान के तेवर अब भी वैसे ही बने हुए हैं.

अगर वक्त रहते नीतीश कुमार ने दलितों के प्रति मेहरबानी दिखाने में समझदारी नहीं दिखायी तो लेने के देने पड़ सकते हैं - क्योंकि नीतीश कुमार के दलित कार्ड पर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने भी धावा बोल दिया है.

मांझी बढ़ा रहे हैं मुसीबत

जीतनराम मांझी को एनडीए में लाने का तात्कालिक फायदा नीतीश कुमार को यही मिला है कि वो नीतीश कुमार के नये प्रवक्ता बन गये हैं, हालांकि, जेडीयू के बाकी प्रवक्ताओं से मांझी के बयान ज्यादा असरदार साबित हो रहे हैं.

ये तो पहले से ही पता था कि नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को काउंटर करने के लिए ही एनडीए में जीतनराम मांझी को शामिल कराया है. चिराग पासवान ने भी फौरन ही नाराजगी जाहिर कर दी है. चिराग पासवान ने सवाल उठाया है कि जीतनराम मांझी को एनडीए में शामिल करने ने से पहले उचित फोरम पर चर्चा क्यों नहीं की गयी? चिराग पासवान की ये दलील भी सही है कि एनडीए को लेकर जो भी कॉमन फैसला हो उसके लिए एक मीटिंग बुलाकर बात तो होनी ही चाहिये. चिराग पासवान ये भी जानते हैं कि नीतीश ने बगैर बीजेपी से पूछे ऐसा किया तो होगा नहीं, लेकिन ये पूछने का अधिकार तो उनके पास है ही कि उनसे क्यों नहीं पूछा गया.

पासवान परिवार को टारगेट कर जीतनराम मांझी जो बयान दे रहे हैं वे और भी मुसीबत बढ़ाने वाले हैं. चिराग पासवान के सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के दावों पर जीतनराम मांझी कह रहे हैं कि अगर जेडीयू के खिलाफ ऐसा हुआ तो एलजेपी के खिलाफ भी उम्मीदवार मैदान में उतारे जाएंगे. ताजा मसलों पर चर्चा के लिए 7 सितंबर को दिल्ली में चिराग पासवान ने पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई है जिसमें आगे की चुनावी रणनीति पर फैसला लिया जाएगा.

मुश्किल तो ये है कि जीतनराम मांझी रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं - और तो और वो रामविलास पासवान पर भी हमला बोल चुके हैं. जीतनराम मांझी का कहना है कि रामविलास पासवान ने अपनी लंबी राजनीतिक यात्रा के दौरान दलितों के लिए कुछ भी नहीं किया - पूछते भी हैं, अगर उन्‍होंने कुछ किया है तो बतायें?

आगे जो भी हो फिलहाल तो जीतनराम मांझी के चलते नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ी ही हैं

बिहार बीजेपी के नेता आरजेडी से जेडीयू में शामिल विधायकों की सीटों को लेकर पहले ही आपत्ति जता चुके हैं. जीतनराम मांझी सीटों पर शुरू हुए टकराव को भी आगे बढ़ा रहे हैं. कहा तो ये जा रहा है कि जीतनराम मांझी बिना शर्त एनडीए में शामिल हुए हैं, लेकिन 9 विधानसभा सीटें और एक विधान परिषद की सीट पर दावा भी जता चुके हैं. गनीमत की बात बस इतनी है कि जीतनराम मांझी की डिमांड पूरी करने की जिम्मेदारी सिर्फ नीतीश कुमार पर ही है. अब सुनने में आया है कि जीतनराम मांझी को कम से कम 7 सीटें मिल सकती हैं.

इस तरह जीतनराम मांझी के हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के लिए 7 और आरजेडी से जेडीयू में आये 7 विधायकों के लिए कुल 14 सीटों पर पेंच फंसने वाला है - और ये नीतीश कुमार के लिए सिर्फ चिराग पासवान ही नहीं बल्कि बीजेपी के साथ तकरार का कारण बन सकता है.

नीतीश के दलित कार्ड पर तेजस्वी का सवाल

बिहार बीजेपी कार्यकारिणी में जेपी नड्डा के भाषण के बाद माना जा रहा था कि नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच टकराव खत्म हो जाएगा, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ है. जीतनराम मांझी को एनडीए में लाये जाने की वजह से चिराग पासवान कुच ज्यादा ही चिढ़े नजर आने लगे हैं.

चिराग पासवान के एक विज्ञापन की बिहार में काफी चर्चा है. लोक जनशक्ति पार्टी की तरफ से बिहार के सभी हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में दिये गये विज्ञापन में लिखा है - 'वो लड़ रहे हैं हम पर राज करने के लिए, हम लड़ रहे हैं बिहार पर नाज करने के लिए'.

ये विज्ञापन भी चिराग पासवान की तरफ से नीतीश कुमार पर निशाना साधने का एक नया जरिया माना जा रहा है. चिराग पासवान ने ट्विटर पर भी अपने नाम के पहले युवा बिहारी जोड़ रखा है. सुशांत सिंह राजपूत को इंसाफ दिलाने की बात कर चिराग पासवान बिहार के युवाओं को भी ऐसा ही मैसेज देने की कोशिश कर रहे थे.

इस बीच तेजस्वी यादव ने भी बेरोजगारी का मुद्दा उठाकर नीतीश कुमार पर धावा बोलने की कोशिश की है. नीतीश कुमार के दलित कार्ड के काउंटर में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी हटाओ नाम से एक वेब पोर्टल लांच किया है - और उसके लिए एक टोल फ्री नंबर भी जारी किया गया है. तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी हटाओ नारे के साथ बिहार का दौरा भी किया था. दरअसल, नीतीश कुमार ने ऐलान किया है कि एससी-एसटी परिवार के किसी सदस्य की हत्या होती है, तो वैसी सूरत में पीड़ित परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी. नीतीश कुमार ने अधिकारियों को इसक लिए नियम तैयार करने की भी हिदायत दे डाली है.

नीतीश कुमार की इस घोषणा के जवाब में तेजस्वी यादव का कहना है कि आरजेडी नौकरी देने के मामले में कभी जात-पांत का भेदभाव नहीं रखेगी. तेजस्वी यादव का कहना है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आयी तो हर वर्ग के लोगों को नौकरी देंगे. तेजस्वी यादव का कहना है कि टोल फ्री नंबर के जरिये रजिस्ट्रेशन कराने वालों के लिए रोजगार सुनिश्चित कराना उनकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद पहली प्राथमिकता होगी.

तेजस्वी यादव की दलील है कि नीतीश कुमार का दलितों की हत्या पर नौकरी देने वाला बयान दलितों के घर में हत्या को बढ़ावा देगा. तेजस्वी यादव का सवाल है कि क्या किसी सवर्ण, पिछड़े या अति पिछड़े जाति में कोई हत्या होगी तो हम उन्हें नौकरी नहीं देंगे? ये कौन सी बात है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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