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Draupadi Murmu: बीजेपी को राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में दूसरा 'कलाम' मिल गया है

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 22 जून, 2022 09:33 PM
  • 22 जून, 2022 09:31 PM
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अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि वे सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति नजर आते हैं. राज्यपाल रहते हुए द्रौपदी मुर्मू ने सभी धर्मों के लोगों को राजभवन में एंट्री दी थी. उनसे मिलने वालों में अगर हिंदू धर्म के लोग शामिल रहे, तो उन्होंने मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म के लोगों को भी राजभवन में उतनी ही सम्मान दिया.

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार (presidential candidate) के रूप में बीजेपी ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के नाम का ऐलान किया है. सुनकर हैरानी हो सकती है, लेकिन जब उनके नाम की घोषणा हुई तो वे अपने गांव के घर में थी. उनका घर ओड़िशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर गांव में है. उन्हें पता ही नहीं था कि वे राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाली हैं. उन्होंने टीवी में अपना नाम देखा. 

भारत देश का राष्ट्रपति होना अपने आप में एक सम्मान है. उन्हें तो ही लगा होगा कि उनके जीवन भर की ईमानदारी और मेहनत का फल मिल गया. भले ही वह अभी सिर्फ उनके नाम की घोषणा हुई है, लेकिन एनडीए के संख्‍या बल को देखते हुए राजनीतिक गलियारे में यह संभावना जताई जा रही है कि वे चुनाव जीत सकती हैं. अगर ऐसा हुआ तो द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी.

डॉ. कलाम की तरह द्रौपदी मुर्मू भी सादगी भरी जिंदगी जीती हैं

जब बीजेपी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की चर्चा शुरु हुई तो सभी ने यह जानना कि द्रौपदी मुर्मू कौन हैं? हमने जितना इनके बारे में पढ़ा, यह समझ आया कि इनका स्वभाव और व्यक्तित्व काफी हद तक हमारे प्रिय पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से मिलता है. हालांकि किसी का 'कलाम' हो जाना आसान नहीं है, लेकिन द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी कुछ हद तक डॉ. कलाम साहब की तरह रही है. भले ही द्रौपदी मुर्मू वैज्ञानिक नहीं रही हैं, लेकिन एक पिछड़े समाज से निकलकर किसी महिला का यहां तक पहुंचना इतना आसान भी नहीं रहा.

बात सिर्फ मंजिल पाने की ही नहीं होती, इंसान की असलियत तो उसके सफल होने के बाद ही दिखती है. क्या वह जिंदगी की कसौटी पर खरा उतरता है, क्या वह रूपयों के बीच में रहकर ईमानदार रहता है, क्या वह आसमान में उड़ने के बाद जमीन को याद...

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार (presidential candidate) के रूप में बीजेपी ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के नाम का ऐलान किया है. सुनकर हैरानी हो सकती है, लेकिन जब उनके नाम की घोषणा हुई तो वे अपने गांव के घर में थी. उनका घर ओड़िशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर गांव में है. उन्हें पता ही नहीं था कि वे राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाली हैं. उन्होंने टीवी में अपना नाम देखा. 

भारत देश का राष्ट्रपति होना अपने आप में एक सम्मान है. उन्हें तो ही लगा होगा कि उनके जीवन भर की ईमानदारी और मेहनत का फल मिल गया. भले ही वह अभी सिर्फ उनके नाम की घोषणा हुई है, लेकिन एनडीए के संख्‍या बल को देखते हुए राजनीतिक गलियारे में यह संभावना जताई जा रही है कि वे चुनाव जीत सकती हैं. अगर ऐसा हुआ तो द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी.

डॉ. कलाम की तरह द्रौपदी मुर्मू भी सादगी भरी जिंदगी जीती हैं

जब बीजेपी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की चर्चा शुरु हुई तो सभी ने यह जानना कि द्रौपदी मुर्मू कौन हैं? हमने जितना इनके बारे में पढ़ा, यह समझ आया कि इनका स्वभाव और व्यक्तित्व काफी हद तक हमारे प्रिय पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से मिलता है. हालांकि किसी का 'कलाम' हो जाना आसान नहीं है, लेकिन द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी कुछ हद तक डॉ. कलाम साहब की तरह रही है. भले ही द्रौपदी मुर्मू वैज्ञानिक नहीं रही हैं, लेकिन एक पिछड़े समाज से निकलकर किसी महिला का यहां तक पहुंचना इतना आसान भी नहीं रहा.

बात सिर्फ मंजिल पाने की ही नहीं होती, इंसान की असलियत तो उसके सफल होने के बाद ही दिखती है. क्या वह जिंदगी की कसौटी पर खरा उतरता है, क्या वह रूपयों के बीच में रहकर ईमानदार रहता है, क्या वह आसमान में उड़ने के बाद जमीन को याद रखता है, क्या वह जिस जगह जिन लोगों के बीच से निकलता है उन्हें याद रखता है या भूल जाता है. क्या इस काली दुनिया में वह अपने बेदाग व्यक्तित्व को बचाए रख पाता है, क्या वह समाज के लिए कुछ करता या सिर्फ अपने बारे में सोचता है...द्रौपदी मुर्मू इन सभी सवालों का सकारात्म जवाब हैं, जो बिना किसी लालच के सादगी के साथ अपना काम करती रहीं. इन्होंने निष्पक्ष होकर हमेशा अपने पद का सम्मान किया है.

द्रौपदी मुर्मू भी सामान्य लोगों के दिलों की नेता हैं

जिस तरह डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने गरीबी को झेली उसी तरह द्रौपदी मुर्मू ने भी परेशानियों का सामना किया. दुनिया कलाम साहब की सादगी की दिवानी है तो द्रौपदी मुर्मू ने भी अपना जीवन साधारण ही रखा. इन्हें कभी भी सुख-सुविधा और विलासिता का लालच नहीं रहा. ये हमेशा साधारण साड़ी में नजर आती हैं. साल 2009 में जब द्रौपदी मुर्मू दूसरी बार विधायक बनीं, तो उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी और कुल जमा पूंजी महज 9 लाख रुपए थी और उन पर तब चार लाख रुपए की देनदारी भी थी.

अब्दुल कलाम की तरह द्रौपदी मुर्मू भी एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं. जिस प्रकार कलाम साहब को बच्चे प्रिय थे और छात्रों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे उसी तरह द्रौपदी मुर्मू भी बच्चों से लगाव रखती हैं तभी तो राज्यपाल रहते हुए वे हमेशा स्कूलों-कॉलेजों में जाती थीं. इसलिए कस्तूरबा स्कूलों की हालत सुधरी.

द्रौपदी मुर्मू भी अब्दुल कलाम की तरह शिक्षा के महत्व को समझती हैं, इसलिए 2016 में उन्होंने विश्वविद्यालयों के लिए लोक अदालत लगवाई और विरोध के बाद भी चांसलर पोर्टल को शुरू कराए. इसके बाद ही विश्वविद्यालयों में नामांकन समेत दूसरी प्रक्रियाएं ऑनलाइन शुरू हो सकी. वे वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए भी कुलपतियों से हमेसा संपर्क में रहीं. उन्होंने जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई को लेकर लगातार निर्देश दिए. जिसके बाद ही विश्वविद्यालयों में लंबे समय से बंद पड़ी झारखंड की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति फिर से होने लगी.

अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व ऐसा रहा है कि वे सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति नजर आते हैं. वे तमिल मुस्लिम थे लेकिन उनकी शिक्षा हिन्दू शिक्षक के सानिध्य में हुई. उन्होंने उस चर्च में काम किया जो बाद में विक्रम सारामाई स्पेस लंचिग सेन्टर बना. डॉ. कलाम की सभी धर्मों के प्रति गहरी आस्था थी. डॉ. कलाम ईश्वर और विज्ञान दोनों में यकीन रखते थे. उनका कहना था कि ईश्वर की प्रार्थना करने से हमारे अंदर की इंद्रियां शक्तिशाली होती हैं. उन्हीं की तरह द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासी हैं और ईश्वर में यकीन रखती हैं.

आज उनकी एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें वे नंदी की पूजा कर रही हैं. वे रायरंगपुर जगन्नाथ मंदिर में परिसर में झाड़ू भी लगाते हुए दिख रही हैं. वे शिव मंदिर और आदिवासी पूजा स्थल जहिरा (Jahira) भी गई थीं.

वहीं राज्यपाल रहते हुए द्रौपदी मुर्मू ने सभी धर्मों के लोगों को राजभवन में एंट्री दी थी. उनसे मिलने वालों में अगर हिंदू धर्म के लोग शामिल रहे, तो उन्होंने मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म के लोगों को भी राजभवन में उतनी ही सम्मान दिया. ये बातें बताती हैं कि द्रौपदी मुर्मू सभी धर्मों में यकीन रखती हैं.

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की तरह द्रौपदी मुर्मू अपनी विनम्रता, सरलता के लिए जानी जाती हैं. जिस तरह डॉ. कलाम आमजन के नेता थे उसी तरह द्रौपदी मुर्मू भी सामान्य लोगों के दिलों की नेता हैं. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर 25 जुलाई 2002 को देश का राष्ट्रपति बनाया गया. वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2022 राष्ट्रपति चुवान में द्रौपदी मुर्मू के नाम की पहल की है. जिस तरह डॉ. कलाम लाख परेशानियों के बाद और असफल होने के बाद हिम्मत नहीं हारे, उसी तरह द्रौपदी मुर्मू भी पति और दो बेटों की मौत के बाद भी जिंदगी की दंग लड़ती रहीं.

डॉ. कलाम के पास घर, न धन, न गाड़ी और संतान कुछ भी नहीं थी. राष्ट्रपति बनने के बाद भी वह सादगी उनके पूरे व्यक्तित्व में दिखती थी. वे राष्ट्रपति भवन में दो सूटकेस लेकर आए थे दो ही सूटकेस लेकर गए. इस मामले में द्रौपदी मुर्मू भी शायद डॉ. कलाम को फॉलो करती हैं. अगर वे चाहें तो किसी भी बड़े शहर में रह सकती हैं, लेकिन वे कई सालों से अपने गृहराज्य के गांव में ही रहती हैं. उनके अंदर ना घंमड है ना दिखावा, क्योंकि वे पहले क्लर्क रहीं, टीचर की नौकरी की, विधायक बनी, राज्यमंत्री रहीं और राज्यपाल बनने के बाद भी ना ही अपना स्वभाव बदला और ना ही पहनावा...

राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि "मैं आश्चर्यचकित हूं और खुश भी क्योंकि मुझे राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया गया है. मुझे टेलीविजन देखकर इसका पता चला. राष्ट्रपति एक संवैधानिक पद है और मैं अगर इस पद के लिए चुन ली गई, तो राजनीति से अलग देश के लोगों के लिए काम करूंगी. इस पद के लिए जो संवैधानिक प्रावधान और अधिकार हैं, मैं उसके अनुसार काम करना चाहूंगी. इससे अधिक मैं फिलहाल और कुछ नहीं कह सकती."

हालांकि कुछ लोग द्रौपदी मुर्मू की तुलना पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन से कर रहे हैं. उनका मानना है कि द्रौपदी मुर्मू ने कुछ नहीं किया है और उनके अंदर के.आर. नारायणन की तरह योग्यता नहीं है. कई लोग तो द्रौपदी मुर्मू के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं. ऐसे लोगों को पहले द्रौपदी मुर्मू के बारे में पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए और एक उम्रदराज महिला को अपशब्द कहने के लिए खुद पर शर्म करनी चाहिए. जिसने कम उम्र में पति खो दिया, 25 साल का जवान बेटा खो दिया उसका दिल और कोई क्या दुखाएगा.

जिसने खामोशी से अपना काम किया और उस वक्त भी अपने दामन पर एक भी दाग नहीं लगने दिया, जब तमाम राज्यपाल पर राजनीतिक पार्टियों को सपोर्ट करने का इल्जाम लगा. वह हमेशा निष्पक्ष रहीं. ऐसी महिला को राष्ट्रपति बनने का अधिकार क्यों नहीं है? अगर किसी को शक है तो इस आदिवासी नेता के काम के बारे में पढ़ ले, यह उनकी ईमानदारी का ही नतीजा है कि राज्यपाल का 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी वे पद पर बनी रहीं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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