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नवाब मलिक केस में संयोग और प्रयोग क्या है - यूपी चुनाव या महाराष्ट्र पॉलिटिक्स?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 23 फरवरी, 2022 11:00 PM
  • 23 फरवरी, 2022 11:00 PM
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नवाब मलिक की गिरफ्तारी (Nawab Malik Arrest) को शिवसेना ने यूपी चुनाव (UP Election 2022) की वोटिंग से जोड़ दिया है और 2024 के बाद बदला लेने की बात की है - क्या महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में विचारधारा पर निजी दुश्मनी भारी पड़ने लगी है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली चुनावों में जो पूछा था, जवाब मिले न मिले वो सवाल पीछा तो नहीं छोड़ रहा है - ये संयोग है या प्रयोग?

देश की राजनीति में अक्सर ही ऐसे वाकये देखने को मिल जाते हैं - और वे यूं ही संयोग और प्रयोग के बीच उलझा देते हैं. यूपी चुनाव में वोटिंग के दिन महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मंत्री नवाब मलिक की गिरफ्तारी का मामला भी इसी सूची में शामिल हो गया है.

नवाब मलिक की गिरफ्तारी (Nawab Malik Arrest) का कानूनी पक्ष तो अपनी जगह होगा ही, राजनीति को ध्यान से देखें तो फिर से संयोग और प्रयोग के बीच में उलझ कर रह जाते हैं. ऐन उसी वक्त वो संयोग भी लगता है, प्रयोग भी प्रतीत होता है.

वोटिंग से पहले यूपी के मुस्लिम वोटर को लेकर अमित शाह का बयान आता है, हालांकि, मायावती की राजनीति बहाना बनती है. मायावती भी पूरी विनम्रता के साथ रिएक्ट करती हैं और दोनों के निशाने पर अखिलेश यादव होते हैं - क्योंकि चुनावों के बीच एक जोरदार चर्चा ये भी है कि बीजेपी के खिलाफ मुस्लिम वोटर अखिलेश यादव का साथ देता लग रहा है.

मुमकिन भी नहीं है कि पूरे सूबे में ऐसा ही हो और अमित शाह जहां ऐसे मामलों को विधानसभा सीट विशेष के दायरे में समेट देते हैं, मायावती अपना वोट बैंक सर्वजन से जोड़ कर आगे बढ़ जाती हैं.

केंद्रीय जांच एजेंसी ED की बातों से तो नवाब मलिक की गिरफ्तारी संयोग ही लगती है. एजेंसी का कहा है कि जांच पहले से चल रही थी. जाहिर है जांच जब भी पूरी होगी एक्शन हो जाएगा.

केंद्र की मोदी सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप अपनी...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली चुनावों में जो पूछा था, जवाब मिले न मिले वो सवाल पीछा तो नहीं छोड़ रहा है - ये संयोग है या प्रयोग?

देश की राजनीति में अक्सर ही ऐसे वाकये देखने को मिल जाते हैं - और वे यूं ही संयोग और प्रयोग के बीच उलझा देते हैं. यूपी चुनाव में वोटिंग के दिन महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मंत्री नवाब मलिक की गिरफ्तारी का मामला भी इसी सूची में शामिल हो गया है.

नवाब मलिक की गिरफ्तारी (Nawab Malik Arrest) का कानूनी पक्ष तो अपनी जगह होगा ही, राजनीति को ध्यान से देखें तो फिर से संयोग और प्रयोग के बीच में उलझ कर रह जाते हैं. ऐन उसी वक्त वो संयोग भी लगता है, प्रयोग भी प्रतीत होता है.

वोटिंग से पहले यूपी के मुस्लिम वोटर को लेकर अमित शाह का बयान आता है, हालांकि, मायावती की राजनीति बहाना बनती है. मायावती भी पूरी विनम्रता के साथ रिएक्ट करती हैं और दोनों के निशाने पर अखिलेश यादव होते हैं - क्योंकि चुनावों के बीच एक जोरदार चर्चा ये भी है कि बीजेपी के खिलाफ मुस्लिम वोटर अखिलेश यादव का साथ देता लग रहा है.

मुमकिन भी नहीं है कि पूरे सूबे में ऐसा ही हो और अमित शाह जहां ऐसे मामलों को विधानसभा सीट विशेष के दायरे में समेट देते हैं, मायावती अपना वोट बैंक सर्वजन से जोड़ कर आगे बढ़ जाती हैं.

केंद्रीय जांच एजेंसी ED की बातों से तो नवाब मलिक की गिरफ्तारी संयोग ही लगती है. एजेंसी का कहा है कि जांच पहले से चल रही थी. जाहिर है जांच जब भी पूरी होगी एक्शन हो जाएगा.

केंद्र की मोदी सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप अपनी जगह हैं, लेकिन नवाब मलिक की गिरफ्तारी महाराष्ट्र पॉलिटिक्स का नतीजा है

जैसे यूपी में गाड़ी कभी भी पलट सकती है. एक्सीडेंट कभी भी हो सकता है. वोटिंग के दिन ही अल्पसंख्यक मंत्री की गिरफ्तारी भी हो सकती है. ये सब तो संयोग ही है - और अगर प्रयोग ही है तो साबित कौन कर सकता है?

तभी तो जैसे अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी की सरकार बनने पर बीजेपी वालों पर बुलडोजर चलवाने की बात करते हैं, ये महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में विचारधारा की लड़ाई पर निजी दुश्मनी के भारी पड़ने का ही असर है कि शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत भी कहने लगे हैं - '24 के बाद आपकी भी जांच कराएंगे.'

नवाब मलिक का नंबर आ ही गया

महाराष्ट्र की राजनीति में जिस तरह से बदले की राजनीति शुरू हो चुकी है, नवाब मलिक का नंबर तो आगे पीछे आना ही था - ये तो यूपी चुनाव में मतदान का दिन बस एक अच्छा मुहूर्त बन गया - एनसीपी नेता रोहित पवार और शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी तो यही बता रहे हैं.

नवाब मलिक की गिरफ्तारी: सुबह 5 बजे ही ED की टीम ने नवाब मलिक के कुर्ला के नूर मंजिल में घर पर धावा बोल दिया और दो घंटे बाद उनको अपने दफ्तर ले गयी. किसी तरह के व्यवधान से बचने के लिए CRPF के जवानों की एक टीम साथ में थी.

करीब 8 घंटे की पूछताछ के बाद अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से तार जुड़ने और मनी लॉन्ड्रिंग के उनके खिलाफ लगे आरोप में उनको गिरफ्तार कर लिया गया.

नवंबर, 2021 में ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नवाब मलिक के अंडरवर्ल्ड से रिश्ते का सनसनीखेज दावा किया था - दाऊद इब्राहिम के गैंग से जमीनें खरीदने का गंभीर आरोप लगाया था. ये उसी दौरान की बात है जब आर्यन खान केस में नवाब मलिक एनसीबी अफसर रहे समीर वानखेड़े के खिलाफ सख्त लहजे में बयान दे रहे थे - और उनके दामाद समीर खान की गिरफ्तारी हुई थी, लेकिन फिर जमानत भी मिल गयी थी.

ED के निशाने पर NCP नेता: एनसीपी नेताओं के पीछे ED के अफसर काफी पहले से लगे हुए हैं. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान एनसीपी नेता शरद पवार को भी नोटिस मिला था, अपने राजनीतिक रूतबे और चाल की बदौतल तो वो बच गये लेकिन उनके साथी नेता अनिल देशमुख को गिरफ्तार कर लिया गया और अब नवाब मलिक भी अरेस्ट हो चुके हैं.

एनसीपी नेता शरद पवार का कहना है कि जिस तरह से एजेंसियों का गलत इस्तेमाल लगातार हो रहा है, ये तो पहले से लग रहा था कि आज नहीं कल ये जरूर होगा. नवाब मलिक लगातार बोल रहे हैं, लिहाजा कोई न कोई केस निकाल कर जरूर परेशान किया जाएगा, ये हमें पता था.

शरद पवार ने भी नवाब मलिक की गिरफ्तारी में मुस्लिम ऐंगल होने का शक जताया है, 'अगर कोई मुस्लिम कार्यकर्ता है तो ये दाऊद का नाम लेने लगते हैं, बिना किसी सबूत के.'

ये तो निजी दुश्मनी का नतीजा है

महाराष्ट्र सरकार के मंत्री की ये गिरफ्तारी भी वैसी ही है जैसे एक दिन केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को गिरफ्तार कर लिया गया था. जैसे केंद्रीय मंत्री को राज्य की पुलिस ने गिरफ्तार किया था, महाराष्ट्र के मंत्री को केंद्रीय एजेंसी ने गिरफ्तार किया है - आखिर ये निजी दुश्मनी नहीं तो और क्या है?

ये तो साफ साफ समझ में आ रहा है कि जहां राज्य सरकार की चल रही है, बहाने से केंद्र सरकार को चैलेंज कर रही है - और जहां केंद्र सरकार को मौका मिल रहा है राज्य सरकार को सबक सिखाने की कोशिश हो रही है.

जो हालत हो रखी है, भला कैसे मान लिया जाये कि महाराष्ट्र में जो कुछ भी चल रहा है वो सिर्फ राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने की जंग है. ये तो सत्ता पर काबिज होने जैसी लड़ाई भी नहीं लगती. नारायण राणे के साथ जो हुआ वो हुआ ही, उनके विधायक बेटे को भी जेल जाना पड़ा.

ऐसी किसी भी गिरफ्तारी का आधार तो कानूनी पक्ष ही होता है, लेकिन वो तो बाद की बात है. नारायण राणे की गिरफ्तारी को लेकर तो यही माना गया था कि उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मार देने वाले उनके बयान का नतीजा रहा - और नवाब मलिक केस में बीजेपी नेताओं पर उनके तीखे हमले ही लगते हैं. नवाब मलिक ज्यादा आक्रामक तभी से हो गये थे जब उनके दामाद को हाई कोर्ट से जमानत मिल गयी.

नवाब मलिक की गिरफ्तारी के बाद एनसीपी नेता शरद पवार भी एक्शन में देखे गये हैं. सबसे पहले तो अपने घर सिल्वर ओक पर शरद पवार ने पार्टी नेताओं की इमरजेंसी मीटिंग बुलायी. फिर, खबर है, कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी शरद पवार से बात की है और मौजूदा हालात में हर कदम पर साथ होने का आश्वासन दिया है. ये जानते हुए भी कि कांग्रेस के खिलाफ उनके स्टैंड को शरद पवार का साथ नहीं मिला था. सोनिया गांधी और शरद पवार सहित विपक्षी नेताओं की मीटिंग के बाद तो जैसे ममता बनर्जी को उनकी हदें समझाने की भी कोशिश हुई थी.

मलिक की गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी ने विपक्षी एकजुटता की बात दोहरायी है. विपक्षी एकजुटता का एक नया प्रयास तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की तरफ से भी हो रहा है. इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने की भी जोरदार चर्चा चल पड़ी है. हालांकि, उसके पीछे भी अलग ही राजनीति लगती है.

शिवसेना प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने नवाब मलिक की गिरफ्तारी को यूपी चुनाव से जोड़ते हुए कहा है कि बीजेपी एजेंसियों का इस्तेमाल समय-समय पर नैरेटिव सेट करने के लिए करती है.

यूपी चुनाव के जरिये सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव कहते हैं, 'भाजपा जब घबराती है तो एजेंसियों को लाकर लोगों को अपमानित करती है... झूठे आरोप लगाकर जेल भेजती है... हमने देखा है जब विधान परिषद में बारूद की पुड़िया निकली थी... बाद में वो बुरादा पाया गया था... भाजपा का यही काम है.'

ताजा राजनीतिक रस्साकशी में नवाब मलिक का बॉडी लैंग्वेज भी खासा ध्यान खींच रहा है. गिरफ्तारी के बाद जब उनको ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर के बाहर देखा गया तो वो मुट्ठी बांधे इंकलाबी मुद्रा में अपने हाथ हवा में लहरा रहे थे - मेडिकल जांच के लिए अस्पताल जाने के दौरान मीडिया से मुखातिब होकर ये भी कहा - 'डरेंगे नहीं, लड़ेंगे और जीतेंगे.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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