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बौराए राष्ट्रवाद के दौर में गांधीजी और आरएसएस का एक पुराना संवाद

    • पीयूष बबेले
    • Updated: 23 फरवरी, 2016 02:45 PM
  • 23 फरवरी, 2016 02:45 PM
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एक स्वयं सेवक ने गांधी जी से बिलकुल वही सवाल पूछा जिस तरह का सवाल इस समय अदालत परिसर में कन्हैया की पिटाई करने वाले वकील पूछ रहे हैं, क्या हिंदू धर्म आतताइयों (अब आतंकवादियों) को मारने की अनुमति नहीं देता?

मुल्क आजाद हो चुका था. गांधी जी कलकत्ता को सांप्रदायिक खून-खराबे से काफी हद तक निजात दिलाने के बाद दिल्ली आ चुके थे. देश की राजधानी दिल्ली दंगों की आग में झुलस रही थी. पाकिस्तान से भगाए गए हिंदू और सिख शरणार्थियों का गुस्सा मुसलमानों पर इस कदर उतर रहा था कि बापू को दिल्ली मुर्दों का शहर नजर आने लगा. इसी बीच सितंबर के दूसरे पखवाड़े में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम उसी भंगी कॉलोनी में हो रहा था, जो दिल्ली छोडऩे से पहले तक राष्ट्रपिता का निवास हुआ करती थी. कार्यक्रम में संघ ने बापू को बुलाया और वह आए भी. हालांकि कुछ दिन पहले ही संघ वालों से बापू का तल्ख संवाद हो चुका था.

इसे भी पढ़ें: आरएसएस को नाजी और फासिस्टों जैसा मानते थे महात्मा गांधी

गांधी जी का स्वागत करते हुए आरएसएस के नेता ने उन्हें हिंदू धर्म में जन्मा महापुरुष बताया. लगातार हिंसा को कम करने में जुटे गांधी ने जवाब में कहा मुझे हिंदू होने पर गर्व अवश्य है, परंतु मेरा हिंदू धर्म न तो असहिष्णु है और न ही बहिष्कारवादी. बापू ने इसी लाइन पर अपना भाषण दिया. जो काफी सख्त चेतावनी के लहजे में था.

इसके बाद प्रश्न-उत्तर का सत्र शुरू हुआ. यह सत्र इस वसंत में बौराए राष्ट्रवाद के दौर में बड़ा प्रासंगिक है. एक स्वयं सेवक ने गांधी जी से बिलकुल वही सवाल पूछा जिस तरह का सवाल इस समय अदालत परिसर में कन्हैया की पिटाई करने वाले वकील पूछ रहे हैं, क्या हिंदू धर्म आतताइयों (अब आतंकवादियों) को मारने की अनुमति नहीं देता? यदि नहीं देता तो गीता के दूसरे अध्याय में श्री कृष्ण ने कौरवों का नाश करने का जो उपदेश दिया है, उसके लिए आपका क्या स्पष्टीकरण है?

गांधी जी ने कहा: पहले प्रश्न का उत्तर हां और नहीं, दोनों है. मारने का निर्णय करने से पहले हम अपने भीतर वह अचूक शक्ति पैदा करें कि आततायी कौन है....

मुल्क आजाद हो चुका था. गांधी जी कलकत्ता को सांप्रदायिक खून-खराबे से काफी हद तक निजात दिलाने के बाद दिल्ली आ चुके थे. देश की राजधानी दिल्ली दंगों की आग में झुलस रही थी. पाकिस्तान से भगाए गए हिंदू और सिख शरणार्थियों का गुस्सा मुसलमानों पर इस कदर उतर रहा था कि बापू को दिल्ली मुर्दों का शहर नजर आने लगा. इसी बीच सितंबर के दूसरे पखवाड़े में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम उसी भंगी कॉलोनी में हो रहा था, जो दिल्ली छोडऩे से पहले तक राष्ट्रपिता का निवास हुआ करती थी. कार्यक्रम में संघ ने बापू को बुलाया और वह आए भी. हालांकि कुछ दिन पहले ही संघ वालों से बापू का तल्ख संवाद हो चुका था.

इसे भी पढ़ें: आरएसएस को नाजी और फासिस्टों जैसा मानते थे महात्मा गांधी

गांधी जी का स्वागत करते हुए आरएसएस के नेता ने उन्हें हिंदू धर्म में जन्मा महापुरुष बताया. लगातार हिंसा को कम करने में जुटे गांधी ने जवाब में कहा मुझे हिंदू होने पर गर्व अवश्य है, परंतु मेरा हिंदू धर्म न तो असहिष्णु है और न ही बहिष्कारवादी. बापू ने इसी लाइन पर अपना भाषण दिया. जो काफी सख्त चेतावनी के लहजे में था.

इसके बाद प्रश्न-उत्तर का सत्र शुरू हुआ. यह सत्र इस वसंत में बौराए राष्ट्रवाद के दौर में बड़ा प्रासंगिक है. एक स्वयं सेवक ने गांधी जी से बिलकुल वही सवाल पूछा जिस तरह का सवाल इस समय अदालत परिसर में कन्हैया की पिटाई करने वाले वकील पूछ रहे हैं, क्या हिंदू धर्म आतताइयों (अब आतंकवादियों) को मारने की अनुमति नहीं देता? यदि नहीं देता तो गीता के दूसरे अध्याय में श्री कृष्ण ने कौरवों का नाश करने का जो उपदेश दिया है, उसके लिए आपका क्या स्पष्टीकरण है?

गांधी जी ने कहा: पहले प्रश्न का उत्तर हां और नहीं, दोनों है. मारने का निर्णय करने से पहले हम अपने भीतर वह अचूक शक्ति पैदा करें कि आततायी कौन है. दूसरे शब्दों में हमें ऐसा करने का अधिकार तभी मिल सकता है, जब हम पूरी तरह निर्दोष बन जाएं. एक पापी दूसरे पापी का न्याय करने या उसे फांसी लगाने का दावा कैसे कर सकता है. रही बात दूसरे प्रश्न की. यह मान भी लिया जाए कि पापी को दंड देने का अधिकार गीता ने स्वीकार किया है, तो भी कानून द्वारा उचित रूप में स्थापित सरकार ही उसका उपयोग भलीभांति कर सकती है. अगर आप न्यायाधीश और जल्लाद दोनों एक साथ बन जाएं तो सरदार पटेल और पंडित नेहरू दोनों लाचार हो जाएंगे. वे राष्ट्र के परखे हुए सेवक हैं. उन्हें अपनी सेवा करने का अवसर दीजिए. कानून को अपने हाथ में लेकर उनकी कोशिशों को नाकाम न कीजिए.

आज भरी अदालत में काला कोट पहनकर एक छात्र की पिटाई की जा रही है. इस बात को दर्ज करने वाले पत्रकारों की मरम्मत की जा रही है. मानवाधिकार आयोग कुछ और कह रहा है और पुलिस कमिश्नर कुछ और कह रहे हैं. ऐसे में सरकार को गांधीजी की नजीर याद क्यों नहीं आती. कहीं इसकी वजह यह तो नहीं की सरकार एक तरफ बापू को पूजती है तो दूसरी तरफ उनके हत्यारोपी वीर सावरकर को भी फूल चढ़ाती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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