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योगी के यूपी में मोदी का 'वाराणसी मॉडल' स्टार वॉर का संकेत तो नहीं!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 01 जून, 2021 09:53 PM
  • 01 जून, 2021 09:53 PM
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राष्ट्रीय राजधानी से आकर भाजपा के दो बड़े नेता उत्तर प्रदेश की राजधानी में डेरा डाले हुए हैं. ये नेता सूबे की योगी सरकार के मंत्रियों और विधायकों से 'फीडबैक' ले रहे हैं. कोरोना काल में योगी सरकार के कामों को लेकर लिया जा रहा, ये फीडबैक अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं है.

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) विपक्ष के साथ ही लगातार 'अपनों' के निशाने पर रहे थे. कोविड-19 से निपटने को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ चौतरफा आलोचनाओं से घिरे हुए नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश में 2022 की पहली तिमाही में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. पंचायत चुनाव में मजबूत पकड़ वाली जगहों पर भी भाजपा के कमजोर प्रदर्शन और कोरोना महामारी की दूसरी लहर में नदियों में तैरती लाशों व किनारों पर दफनाए गए शवों की खबरों से उत्तर प्रदेश के सियासी हालात अचानक से बदल गए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कोरोना संकट से उपजे हालातों से निपटने के लिए भाजपा के एमएलसी अरविंद शर्मा (Arvind Sharma) पर भरोसा जताया. अरविंद शर्मा ने कोविड-19 से उपजी समस्याओं को हल 'वाराणसी मॉडल' के रूप में निकाला. खुद पीएम मोदी ने शर्मा के इस मॉडल को आगे बढ़ाया है. और अब सूबे का दौरा कर रहे सीएम योगी आदित्यनाथ भी अपने मातहतों को इसे अपनाने की सलाह दे रहे हैं. कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और आरएसएस के पदाधिकारियों के बीच हुई बैठक के बाद उत्तर प्रदेश में नेतृत्व बदलने तक के कयास लगाए जा रहे थे.

हालांकि, यह कयास ही साबित हुए हैं और योगी आदित्यनाथ समेत डिप्टी सीएम की कुर्सियों पर किसी तरह का कोई खतरा फिलहाल नजर नहीं आ रहा है. लेकिन, राष्ट्रीय राजधानी से आकर भाजपा के दो बड़े नेता उत्तर प्रदेश की राजधानी में डेरा डाले हुए हैं. ये नेता सूबे की योगी सरकार के मंत्रियों और विधायकों से 'फीडबैक' ले रहे हैं. कोरोना काल में भाजपा सरकार के कामों को लेकर लिया जा रहा, ये फीडबैक अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं है. भाजपा के मंत्रियों और विधायकों का ये फीडबैक 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी भी कहा जा रहा है.

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) विपक्ष के साथ ही लगातार 'अपनों' के निशाने पर रहे थे. कोविड-19 से निपटने को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ चौतरफा आलोचनाओं से घिरे हुए नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश में 2022 की पहली तिमाही में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. पंचायत चुनाव में मजबूत पकड़ वाली जगहों पर भी भाजपा के कमजोर प्रदर्शन और कोरोना महामारी की दूसरी लहर में नदियों में तैरती लाशों व किनारों पर दफनाए गए शवों की खबरों से उत्तर प्रदेश के सियासी हालात अचानक से बदल गए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कोरोना संकट से उपजे हालातों से निपटने के लिए भाजपा के एमएलसी अरविंद शर्मा (Arvind Sharma) पर भरोसा जताया. अरविंद शर्मा ने कोविड-19 से उपजी समस्याओं को हल 'वाराणसी मॉडल' के रूप में निकाला. खुद पीएम मोदी ने शर्मा के इस मॉडल को आगे बढ़ाया है. और अब सूबे का दौरा कर रहे सीएम योगी आदित्यनाथ भी अपने मातहतों को इसे अपनाने की सलाह दे रहे हैं. कुछ दिनों पहले ही दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और आरएसएस के पदाधिकारियों के बीच हुई बैठक के बाद उत्तर प्रदेश में नेतृत्व बदलने तक के कयास लगाए जा रहे थे.

हालांकि, यह कयास ही साबित हुए हैं और योगी आदित्यनाथ समेत डिप्टी सीएम की कुर्सियों पर किसी तरह का कोई खतरा फिलहाल नजर नहीं आ रहा है. लेकिन, राष्ट्रीय राजधानी से आकर भाजपा के दो बड़े नेता उत्तर प्रदेश की राजधानी में डेरा डाले हुए हैं. ये नेता सूबे की योगी सरकार के मंत्रियों और विधायकों से 'फीडबैक' ले रहे हैं. कोरोना काल में भाजपा सरकार के कामों को लेकर लिया जा रहा, ये फीडबैक अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं है. भाजपा के मंत्रियों और विधायकों का ये फीडबैक 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी भी कहा जा रहा है.

भाजपा के दो बड़े नेता यूपी की राजधानी में योगी सरकार के मंत्रियों और विधायकों से 'फीडबैक' ले रहे हैं.

स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर मंत्रियों और विधायकों की नाराजगी

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बुरी तरह से चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उनके ही कई मंत्री और विधायक मुखर हो गए थे. इसी दौरान भाजपा के चार विधायकों की भी कोरोना संक्रमण से मौत हो गई. प्रदेश में कोरोना संक्रमण से उपजी भयावहता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि बरेली के नवाबगंज से भाजपा विधायक केसर सिंह गंगवार ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को पत्र लिखकर अपने लिए एक बेड उपलब्ध कराने की मांग की. बेड उपलब्ध न होने की वजह से उनका कोरोना से निधन हो गया.

यूपी के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक, मोहनलालगंज से भाजपा सांसद कौशल किशोर, मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल, श्रम विभाग के चेयरमैन सुनील भराला से लेकर स्थानीय स्तर के नेताओं तक में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर नाराजगी साफ दिखी. सीतापुर के नगर विधायक राकेश राठौर का एक वायरल वीडियो में ये तक कहते नजर आए कि इस सरकार में विधायकों की हैसियत क्या है? ज्यादा बोलेंगे तो हम पर ही देशद्रोह लगा देंगे. कोरोना से निपटने के लिए योगी सरकार की ओर से बनाई गई 'टीम-11' की विफलता पर इन सभी का गुस्सा फूट पड़ा. जिसके बाद सीएम योगी ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश में इसे 'टीम-9' कर दिया और इसमें दो मंत्रियों को भी शामिल किया.

वहीं, कोरोना महामारी से मचे हाहाकार के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में परिस्थितियों से निपटने की जिम्मेदारी को संभालने का काम भाजपा एमएलसी अरविंद शर्मा के कंधों पर डाल दिया. अरविंद शर्मा ने मोर्चा संभाला और बहुत ही कम समय में 'वाराणसी मॉडल' के जरिये हालातों पर काबू पा लिया. पीएम मोदी ने वाराणसी मॉडल की तारीफ की और इसे अन्य जगहों पर भी अपनाने की सलाह दी. जिसके बाद अचानक से अरविंद शर्मा के वाराणसी से निकल सत्ता के गलियारे में धमक की बातें होने लगीं. कहा जाने लगा कि अरविंद शर्मा अब योगी को रिप्लेस कर सकते हैं. लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

मोदी बनाम योगी की लोकप्रियता

हाल ही में सामने आए एक सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में काफी उतार देखा गया. लोगों में कोरोना से निपटने को लेकर कमजोर तैयारियों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के खिलाफ भरपूर नाराजगी साफ झलकी. पीएम मोदी की इस घटती लोकप्रियता का सबसे ज्यादा असर 2022 में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर पड़ने की आशंका जताई गई, इनमें भी खासतौर से उत्तर प्रदेश को लेकर. पंचायत चुनावों में भाजपा का अयोध्या, मथुरा और काशी जैसे गढ़ों में लचर प्रदर्शन पार्टी ही नहीं मोदी और योगी के लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ है. 

लोगों में कोरोना से निपटने को लेकर कमजोर तैयारियों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के खिलाफ भरपूर नाराजगी साफ झलकी.

कोरोना काल में दोनों ही नेताओं की लोकप्रयिता को एक बड़ा झटका लगा है. हालांकि, कोरोना की पहली लहर के दौरान प्रवासी मजदूरों को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने कुशल प्रबंधन से बाजी मार ली थी. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लगभग सभी राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल था. उत्तर प्रदेश भी इसकी चपेट में आया और लोगों की सीएम योगी से नाराजगी बढ़ी. इसकी तुलना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी लोगों ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार करने को लेकर अपना गुस्सा जाहिर किया. इंडिया टुडे के एक सर्वे में पीएम मोदी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं की लिस्ट में योगी आदित्यनाथ ने अमित शाह और राहुल गांधी को भी पछाड़ दिया था. 

राजनीति में जो दिखता है, होता नहीं

कहा जाता है कि राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं है और यही बात यूपी के सियासी हालातों पर सबसे सटीक बैठती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा में केवल एक ही नेता से कड़ी टक्कर मिलती है और वो यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ हैं. दरअसल, मोदी और योगी में कई समानताएं हैं. दोनों ही हिंदुत्व के कट्टर समर्थक रहे हैं. सरकार चलाने के लिए बराबरी से नौकरशाहों पर भरोसा भी जताते रहे हैं. सियासी फैसलों से लेकर जनता के हितों के फैसलों तक एक बार कदम बढ़ाने पर वापस नहीं खींचते हैं. ऐसी ही कई बातें हैं, जो आमतौर पर मोदी और योगी की तुलना में कही जाती हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की ओर से चुनाव लड़ने की सियासी उम्र की सीमा पर पहुंच चुके होंगे. भाजपा ने 75 साल से ज्यादा उम्र के पार्टी नेताओं को चुनावी मैदान में उतारने से किनारा कर लिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी (91), मुरलीमनोहर जोशी (85) और सुमित्रा महाजन (76) के सियासी सफर को आराम दे दिया गया था. भाजपा का ये फैसला प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक नई मुसीबत खड़ी कर सकता है. इस स्थिति में ये कहना गलत नहीं होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव के समय पीएम मोदी के लिए अगर कोई चुनौती बन सकता है, तो वह योगी आदित्यनाथ ही हैं.

कोरोना से निपटने के वाराणसी मॉडल के जरिये अरविंद शर्मा ने अपनी प्रशासनिक क्षमता को साबित कर दिया है.

योगी को दिया जा रहा है संकेत

उत्तर प्रदेश में इन दिनों चल रही तमाम सियासी कवायदें इसी ओर इशारा कर रही हैं कि योगी आदित्यनाथ अभी सरकार चलाने में परिपक्व नही हुए हैं. जिसका मतलब है कि योगी को सियासत से लेकर चुनावी प्रबंधन संभालने के लिए भी अरविंद शर्मा की जरूरत पड़ेगी. कोरोना से निपटने के वाराणसी मॉडल के जरिये अरविंद शर्मा ने अपनी प्रशासनिक क्षमता को साबित कर दिया है. वहीं, योगी आदित्यनाथ यूपी के पंचायत चुनाव में भाजपा को दमदार प्रदर्शन करवाने में नाकामयाब रहे हैं. 'प्रधानमंत्री की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है' के सियासी मुहावरे से योगी आदित्यनाथ भी अछूते नही रहे हैं. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की उत्तर प्रदेश को लेकर सामने आई चिंता समझ से बाहर नहीं है.

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद अगर योगी सरकार सत्ता में आती है, तो अरविंद शर्मा एक बड़ी भूमिका निभाते दिख सकते हैं. लेकिन, यह भूमिका योगी आदित्यनाथ का साथ देने वाले की होगी. अरविंद शर्मा के जरिये भाजपा का शीर्ष नेतृत्व 2024 में योगी आदित्यनाथ के उठ सकने वाली आवाज को अभी से मैनेज करने की कोशिश में लग गया है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये है कि योगी आदित्यनाथ कभी भी भाजपा के 'यस मैन' नही रहे हैं. उनका भाजपा या संघ से कोई सीधा जुड़ाव नही है, वह गोरखपुर के गोरखनाथ मठ से संबंध रखते हैं. योगी उत्तर प्रदेश में हिंदू युवा वाहिनी नाम का एक खुद का संगठन चलाते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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