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मजाक-मजाक में पूर्वोत्तर के बहुत से मुद्दों का हिसाब कर गए नागालैंड भाजपाध्यक्ष अलांग!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 11 जुलाई, 2022 05:21 PM
  • 11 जुलाई, 2022 05:21 PM
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नागालैंड के मंत्री तेमजेन इमना अलांग (Temjen Imna Along) अपने मजाकिया अंदाज को लेकर चर्चा में हैं. लेकिन, दिल्ली में आयोजित 'हुल दिवस' के कार्यक्रम में कही गईं तेमजेन इमना अलांग की बातें पूर्वोत्तर (North East) के लोगों की छोटी आंखों से कहीं आगे तक की बात करती हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो तेमजेन इमना अलांग ने मजाक-मजाक में बहुत सी चीजों का हिसाब भी कर दिया.

नागालैंड के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री तेमजेन इमना अलांग (Temjen Imna Along) इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों की सुर्खियों में बने हुए हैं. हर तरफ इस बात की ही चर्चा है कि मजाकिया अंदाज में तेमजेन इमना अलांग ने छोटी आंखों के फायदे बताए. या फिर तेमजेन की हिंदी और सेंस ऑफ ह्यूमर से लोगों का दिल जीत लिया. लेकिन, तेमजेन ने दिल्ली में आयोजित 'हुल दिवस' पर केवल अपने मजाकिया अंदाज या सेंस ऑफ ह्यूमर का ही प्रदर्शन नहीं किया. तेमजेन इमना अलांग ने मजाक-मजाक में बहुत सी चीजों का हिसाब भी कर दिया.  

नस्लभेद की सोच पर खरी-खरी चोट

तेमजेन इमना अलांग ने ताजमहल जाने का एक किस्सा शेयर किया था. तेमजेन ने कहा था कि '1999 में वह एक बार ताजमहल देखने गए थे. और, टिकट काउंटर पर बैठे लोगों ने उन्हें विदेशियों की लाइन में जाने को कहा था.' हालांकि, तेमजेन इमना अलांग ने ये भी कहा कि अब भारत में माहौल बदल गया है. लेकिन, पूर्वोत्तर के लोगों के साथ पूरे देश में होने वाले भेदभाव का दर्द उन्होंने बहुत ही सरल शब्दों में बयान कर दिया. ये ठीक वैसा है, जैसे कुछ दिनों पहले समाजवादी पार्टी के सोशल मीडिया कोऑर्डिनेटर ने मणिपुर की एक पर्यावरण एक्टिविस्ट बच्ची लिकप्रिया कंगजुम को विदेशी बता दिया था. जिसके बाद बच्ची ने खुद को 'गर्वित भारतीय' बताते हुए सपा नेता को आईना दिखाया था. हालांकि, मामला भूल और गफलत का था. लेकिन, भारत की एक बड़ी आबादी में पूर्वोत्तर के लोगों को लेकर सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह उन्हें विदेशी समझने की भूल कर देते हैं. 

तेमजेन इमना अलांग ने कहा कि 'मेरे लिए दिल्ली में इस मंच पर आना पहली बार हो रहा है. यही अगर 1947 के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों से आने...

नागालैंड के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री तेमजेन इमना अलांग (Temjen Imna Along) इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों की सुर्खियों में बने हुए हैं. हर तरफ इस बात की ही चर्चा है कि मजाकिया अंदाज में तेमजेन इमना अलांग ने छोटी आंखों के फायदे बताए. या फिर तेमजेन की हिंदी और सेंस ऑफ ह्यूमर से लोगों का दिल जीत लिया. लेकिन, तेमजेन ने दिल्ली में आयोजित 'हुल दिवस' पर केवल अपने मजाकिया अंदाज या सेंस ऑफ ह्यूमर का ही प्रदर्शन नहीं किया. तेमजेन इमना अलांग ने मजाक-मजाक में बहुत सी चीजों का हिसाब भी कर दिया.  

नस्लभेद की सोच पर खरी-खरी चोट

तेमजेन इमना अलांग ने ताजमहल जाने का एक किस्सा शेयर किया था. तेमजेन ने कहा था कि '1999 में वह एक बार ताजमहल देखने गए थे. और, टिकट काउंटर पर बैठे लोगों ने उन्हें विदेशियों की लाइन में जाने को कहा था.' हालांकि, तेमजेन इमना अलांग ने ये भी कहा कि अब भारत में माहौल बदल गया है. लेकिन, पूर्वोत्तर के लोगों के साथ पूरे देश में होने वाले भेदभाव का दर्द उन्होंने बहुत ही सरल शब्दों में बयान कर दिया. ये ठीक वैसा है, जैसे कुछ दिनों पहले समाजवादी पार्टी के सोशल मीडिया कोऑर्डिनेटर ने मणिपुर की एक पर्यावरण एक्टिविस्ट बच्ची लिकप्रिया कंगजुम को विदेशी बता दिया था. जिसके बाद बच्ची ने खुद को 'गर्वित भारतीय' बताते हुए सपा नेता को आईना दिखाया था. हालांकि, मामला भूल और गफलत का था. लेकिन, भारत की एक बड़ी आबादी में पूर्वोत्तर के लोगों को लेकर सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह उन्हें विदेशी समझने की भूल कर देते हैं. 

तेमजेन इमना अलांग ने कहा कि 'मेरे लिए दिल्ली में इस मंच पर आना पहली बार हो रहा है. यही अगर 1947 के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों से आने वाले लोगों के लिए होने लगता, तो जनजातियों के साथ चलने में इतनी मुश्किल नहीं होती.' कहना गलत नहीं होगा कि आज भले ही तेमजेन इमना अलांग एक हॉट टॉपिक बने हुए हैं. लेकिन, तमाम विविधताओं वाले देश भारत के दिल्ली जैसे महानगरों में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है? ये किसी से छिपा नहीं है. नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा देने वाले शब्दों से पूर्वोत्तर के लोगों को नवाजने वाले शायद ही उनके इस दर्द को समझेंगे. तेमजेन इमना अलांग ने भले ही अपनी छोटी आंखों को लेकर मजाकिया अंदाज में उसके फायदे गिनाए हों. लेकिन, इसमें छिपे दर्द को पहचानना बहुत जरूरी है.

तेमजेन इमना अलांग ने पूर्वोत्तर से जुड़ी समस्याओं की ओर भी इशारा किया है. छोटी आंख के मजाक में उसे मत भूलिए.

केवल आंखें छोटी होने से पूर्वोत्तर के लोगों को विदेशी कहने की सोच यानी रेसिज्म की बातें एक भारतीय के तौर पर उन राज्यों के निवासियों के लिए किसी तंज से कम नहीं होती हैं. तेमजेन इमना अलांग ने कहा कि 'मैं ताजमहल जाने वाली घटना को नहीं भूला और आज दिल्ली में मिले इस सम्मान को भी नहीं भूलूंगा.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो तेमजेन ने लोगों को इस रेसिज्म की सोच को खत्म करने का रास्ता दिखाया है. अगर पूर्वोत्तर के लोग दशकों के बाद दिल्ली जैसे महानगरों में आ रहे हैं, तो खुले नजरिये से उनका स्वागत कीजिए. क्योंकि, उन्हें अपने ही देश से जुड़ने का मौका नहीं मिला. और, रेसिज्म की इसी सोच की वजह से वह अपने ही राज्य तक सीमित रहने को मजबूर हुए. आसान शब्दों में कहा जाए, तो तेमजेन इमना अलांग ने मजाकिया अंदाज में ही सही यही कहने की कोशिश की है कि आंखें छोटी होने से कुछ नहीं होता, बस नजरिया सही और साफ रखना चाहिए.

नैरेटिव बनाने वाली सोच को खत्म करने की कोशिशों में कमी

तेमजेन इमना अलांग ने कहा कि 'पूर्वोत्तर के राज्यों ने भी आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. लेकिन, वो लोगों के सामने नहीं आया. सुभाष चंद्र बोस की सेना में पूर्वोत्तर के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए. अंग्रेजों ने इतिहास को बदलने का नैरेटिव सेट किया. जो आज तक जारी है.' तेमजेन इमना अलांग के अनुसार, यही वजह है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में कई जगहों पर 'भारत माता की जय' का नारा लगाने पर लोग चुप्पी साध जाते हैं. और, तिरंगा फहराने की इच्छा रखने वाले लोग अकेले पड़ जाते हैं. क्योंकि, पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर लोगों के बीच एक अलग ही नैरेटिव सेट कर दिया गया. हाल ही में एक फिल्म आई थी 'अनेक'. इस फिल्म में पूर्वोत्‍तर में व्‍याप्‍त उग्रवाद, हिंसा, अनुच्‍छेद 371, देश के बाकी राज्‍यों की इन राज्यों के प्रति सोच को दिखाया गया था. दरअसल, भारत की आबादी का एक हिस्सा पूर्वोत्तर की जनजातियों को उग्रवादियों के तौर पर देखता है.

जबकि, पूर्वोत्तर राज्य की जनजातियां सांस्कृतिक से लेकर सार्वजनिक तौर पर कई मामलों में भारत के अन्य हिस्सों से अलग हैं. जिन्हें समझना देश के लोगों की वरीयता होनी चाहिए. क्योंकि, देश की एक बड़ी आबादी ने कभी पूर्वोत्तर राज्य से आने वाले लोगों से खुद को जोड़ने की कोशिश ही नहीं की.  तेमजेन इमना अलांग ने कहा कि 'पूर्वोत्तर के बच्चों को बाहर बहुत डर-डर के भेजा जाता है. क्योंकि, किसी तकलीफ में कौन उनका साथ देगा? फिर भी पढ़ाई से लेकर नौकरी के मिलने वाले मौकों के चलते वो यहां आते हैं. ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप उनका साथ दीजिए. क्योंकि, खान-पान और पहनावे में वे भले अलग हों. लेकिन, वह मन से भारतीय ही हैं.' आसान शब्दों में कहा जाए, पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों को अलग मानने वाले नैरेटिव को जब तक तोड़ा नहीं जाएगा. तब तक एक देश के तौर पर भारत के लिए मुश्किलें खत्म नही होंगी. 

पूर्वोत्तर को समझने में चूके 'नीति नियंता'

तेमजेन इमना अलांग ने कहा कि 'पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए योजनाएं बनाने वाले नीति नियंता वहां को समझते ही नही हैं. 25000 की आबादी के लिहाज से विकास योजनाएं बनाने वालों को पता ही नहीं है कि नागालैंड में इतनी आबादी केवल 2-3 जगहों पर ही रहती है. कई जगहों पर 2000 तक की आबादी वाले ब्लॉक हैं. नीतियां बनाने के समय पूर्वोत्तर के राज्यों की इन बातों को ध्यान रखना चाहिए. बड़े राज्यों से पूर्वोत्तर के राज्यों की तुलना नहीं की जा सकती है. क्योंकि, पूर्वोत्तर के राज्यों से आने वाले लोगों को तो दिल्ली आने का अनुभव अभी हो रहा है.'


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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