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मुन्ना बजरंगी का मामला मर्डर का है या एनकाउंटर 2.0 ?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 11 जुलाई, 2018 09:00 PM
  • 11 जुलाई, 2018 09:00 PM
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क्या मुन्ना बजरंगी मर्डर केस शुद्ध आपराधिक केस है? क्या अपराध के इस खेल में राजनीति का भी कोई रोल है? अगर राजनीति की भी भूमिका है तो किस लेवल की - लोकल या उसे काफी ऊपर?

जान जोखिम में लगे तो डर स्वाभाविक है. कोई कितना ही बड़ा माफिया डॉन क्यों न हो. मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी के बारे में यही खबर आ रही है. अतीक अहमद को लेकर भी वैसी ही रिपोर्ट है, जो देवरिया जेल में बंद है. एहतियातन मुख्तार के साथ साथ उसके जानी दुश्मन बृजेश सिंह की भी सुरक्षा बढा दी गयी है. ये हाल हुआ है बागपत में मु्न्ना बजरंगी की जेल के भीतर हुई हत्या के बाद.

यूपी पुलिस के दावे के हिसाब से देखें तो सूबे के अपराधी पहले से ही थर्र थर्र कांप रहे थे. अपराधियों में इस खौफ की वजह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीठ ठोकने के बाद यूपी पुलिस का ताबड़तोड़ एनकाउंटर है - जब जहां जो भी मिले अगर रिकॉर्ड में अपराधी है तो ठोक दो. पुलिस ने तो बदमाशों के सड़क पर माफी मार्च की तस्वीरें भी ट्विटर पर शेयर की थी.

मुन्ना बजरंगी मर्डर केस में दो बातें कई सवालों को जन्म दे रही हैं - एक, मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद की वायरल दो तस्वीरों में बड़े फर्क. दूसरा, हत्या के बाद से सूबे के अपराधियों खासकर मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद का दहशत में होना.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अपराध के इस खेल में राजनीति का भी कोई रोल है? अगर राजनीति की भी भूमिका है तो किस स्तर की - लोकल लेवल पर या लखनऊ से दिल्ली तक.

मुन्ना बजरंगी मर्डर केस

ये एक कॉनट्रैक्ट किलर द्वारा दूसरे कॉन्ट्रैक्ट किलर का कत्ल है. सीधे सीधे समझें तो बस इतनी सी बात है. मगर, ये कत्म कहीं सरेआम या घात लगाकर यूपी के किसी इलाके में नहीं हुआ है, बल्कि अति सुरक्षित जेल के भीतर हुआ है. हत्या भी गला घोंट कर या जैसे अफवाहों के चलते बाहर भीड़ द्वारा पीट पीट कर हो रही है, वैसे भी नहीं हुआ है. फिर सवाल तो स्वाभाविक हैं. सवाल उठेंगे ही. सवाले उठेंगे तो पूछे भी जाएंगे. सवालों के जवाब भी देर सबेर देने ही होंगे. आज नहीं तो कल. मीडिया या पब्लिक में नहीं तो कोर्ट में तो देने ही पड़ेंगे.

जान जोखिम में लगे तो डर स्वाभाविक है. कोई कितना ही बड़ा माफिया डॉन क्यों न हो. मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी के बारे में यही खबर आ रही है. अतीक अहमद को लेकर भी वैसी ही रिपोर्ट है, जो देवरिया जेल में बंद है. एहतियातन मुख्तार के साथ साथ उसके जानी दुश्मन बृजेश सिंह की भी सुरक्षा बढा दी गयी है. ये हाल हुआ है बागपत में मु्न्ना बजरंगी की जेल के भीतर हुई हत्या के बाद.

यूपी पुलिस के दावे के हिसाब से देखें तो सूबे के अपराधी पहले से ही थर्र थर्र कांप रहे थे. अपराधियों में इस खौफ की वजह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीठ ठोकने के बाद यूपी पुलिस का ताबड़तोड़ एनकाउंटर है - जब जहां जो भी मिले अगर रिकॉर्ड में अपराधी है तो ठोक दो. पुलिस ने तो बदमाशों के सड़क पर माफी मार्च की तस्वीरें भी ट्विटर पर शेयर की थी.

मुन्ना बजरंगी मर्डर केस में दो बातें कई सवालों को जन्म दे रही हैं - एक, मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद की वायरल दो तस्वीरों में बड़े फर्क. दूसरा, हत्या के बाद से सूबे के अपराधियों खासकर मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद का दहशत में होना.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अपराध के इस खेल में राजनीति का भी कोई रोल है? अगर राजनीति की भी भूमिका है तो किस स्तर की - लोकल लेवल पर या लखनऊ से दिल्ली तक.

मुन्ना बजरंगी मर्डर केस

ये एक कॉनट्रैक्ट किलर द्वारा दूसरे कॉन्ट्रैक्ट किलर का कत्ल है. सीधे सीधे समझें तो बस इतनी सी बात है. मगर, ये कत्म कहीं सरेआम या घात लगाकर यूपी के किसी इलाके में नहीं हुआ है, बल्कि अति सुरक्षित जेल के भीतर हुआ है. हत्या भी गला घोंट कर या जैसे अफवाहों के चलते बाहर भीड़ द्वारा पीट पीट कर हो रही है, वैसे भी नहीं हुआ है. फिर सवाल तो स्वाभाविक हैं. सवाल उठेंगे ही. सवाले उठेंगे तो पूछे भी जाएंगे. सवालों के जवाब भी देर सबेर देने ही होंगे. आज नहीं तो कल. मीडिया या पब्लिक में नहीं तो कोर्ट में तो देने ही पड़ेंगे.

क्या जेल में भी मारे जाएंगे अपराधी?

पुलिस सूत्रों के हवाले से आई खबरों के मुताबिक पोस्टमार्टम में मुन्ना बजरंगी के सीने से सिर्फ एक गोली निकली है जिसे फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया है. रिपोर्ट से ही पता चलेगा कि वो वही गोली तो नहीं जो दिल्ली पुलिस के साथ एनकाउंटर में लगी थी और सीने में फंसी हुई थी? प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी के खिलाफ भी तकरीबन उतने ही मामले दर्ज थे जितने उसके आका मुख्तार अंसारी और मुख्तार के विरोधी गैंगस्टर बृजेश सिंह - लगभग 40.

मुन्ना बजरंगी के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास और हफ्ता वसूली के मामले तो थे ही, सबसे अहम था बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की हत्या. कृष्णानंद राय मर्डर केस में मुन्ना बजरंगी के साथ ही मुख्तार पर भी साजिश का मामला चल रहा है.

पुलिस के मुताबिक बिजनेस इंटरेस्ट और उसकी के चलते हुई निजी दुश्मनी के कारण मुख्तार ने ही मुन्ना बजरंगी से कृष्णानंद राय की हत्या करायी थी. मुख्तार अंसारी गाजीपुर के मऊ से विधायक है जबकि बृजेश सिंह बीजेपी के समर्थन से एमएलसी बना हुआ है.

मुन्ना बजरंगी अभी अपराध से राजनीति में शिफ्ट होने की कोशिश में था. वो जौनपुर से चुनाव भी लड़ा था लेकिन हार गया था. मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह भी चुनाव लड़ चुकी है. गौर करने वाली बात ये भी है कि सीमा ने मुन्ना की हत्या का शक हफ्ते भर पहले ही जताया था.

पिस्टल के पीछे कौन?

सीमा सिंह ने मुन्ना की हत्या में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और एक रिटायर्ड डिप्टी एसपी का रोल बताया है. सीमा के इल्जाम के चश्मे से देखें तो मुन्ना की हत्या स्थानीय राजनीति का नतीजा लगती है. लेकिन क्या वे दोनों जिनकी ओर सीमा ने इशारा किया है, इतने सक्षम हैं भी कि जेल के भीतर हत्या को अंजाम दे सकें? यूं ही यकीन तो नहीं बिलकुल नहीं होता.

यूपी में सख्त कानून व्यवस्था लागू करने को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार बार कहते रहे हैं - 'अपराधी या तो जेल जाएंगे या फिर मारे जाएंगे.' मुख्यमंत्री के मजबूत सपोर्ट चल रही यूपी पुलिस की मुठभेड़ मुहिम को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं - और कई मामलों में फर्जी मुठभेड़ के भी आरोप लगे हैं.

जेले भेजे जाने तक तो ठीक है, लेकिन अपराधी जेल में भी ढेर कर दिये जाएंगे - ये तो कोई बात न हुई. कस्टडी में किसी भी अपराधी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार और पुलिस की बनती है. पेशी पर लाय गये आरोपियों के मामले में तो बुरा हाल है. अक्सर ही कोर्ट के पास अपराधियों के गैंगवार की घटनाएं भी होती ही रहती हैं. एक बात समझ में नहीं आती - जब पुलिस किसी अपराधी के सरेंडर करने की स्थिति में घात लगा कर पहले ही पकड़ लेती तो उसे हमलावरों की भनक क्यों नहीं लग पाती? या ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि पुलिस चाहती क्या है?

मुन्ना बजरंगी केस में योगी सरकार खुद योगी सरकार ही कठघरे में खड़ी नजर आ रही है. बड़े बड़े दावों के बीच मैगजीन के साथ पिस्टल जेल के भीतर पहुंची कैसे?

जिस संजय राठी के गुनाह कबूल कर लेने की बात कही जा रही है, उसमें भी पुलिस की थ्योरी अजीब लगती है. राठी ने पुलिस को बताया है कि उसने आत्मरक्षा में मुन्ना बजरंगी को गोली मारी. राठी कहता है कि बातों बातों में बहस होने लगी और मुन्ना बजरंगी ने पिस्टल तान दी. फिर राठी ने छीन कर पूरी मैगजीन उसके शरीर में खाली कर दी. क्या ये सब इतना आसान है. मु्न्ना बजरंगी जैसा पेशेवर अपराधी किसी दूसरे पेशेवर अपराधी को पिस्टल दिखाये और वो एक झटके में छीन कर उसे ताबड़तोड़ गोली मार कर हत्या कर दे - अपनेआप में अजीब लगता है. जो मुन्ना बजरंगी पुलिस मुठभेड़ में कई गोलियां लगने के बाद बच गया, वो अचानक एक निहत्थे अपराधी द्वारा ऐसे ही मार डाला जाएगा. ये सब इतना आसान है.

अगर राठी का दावा सही है तो सवाल है कि पिस्टल मु्न्ना बजरंगी के हाथ कैसे लगी? क्योंकि मु्न्ना बजरंगी को एक दिन पहले ही तो जेल लाया गया था.

तो क्या पिस्टल मुन्ना के जेल पहुंचने के पहले ही दाखिल हो चुकी थी. या फिर मु्न्ना खुद पिस्टल लेकर जेल पहुंचा था. या रास्ते में उसके किसी आदमी ने पिस्टल दी थी? ऐसा कैसे हो सकता है? एक जेल से दूसरे जेल मुन्ना बजरंगी अपनेआप चल कर तो गया नहीं था.

दो तस्वीरें और कई सवाल

मुन्ना बजरंगी की हत्या से जुड़ी दो तस्वीरें वायरल हुई हैं. दोनों तस्वीरों की गोलियों के निशान में फर्क है. दोनों तस्वीरें एक साथ देखने पर मालूम होता है कि एक तस्वीर लेने के बाद मुन्ना बजरंगी को फिर से गोली मारी गयी.

दो तस्वीरें, दो और गोलियां

अधिकारियों ने जेल से लाश की कोई अधिकृत तस्वीर जारी होने की बात से इंकार किया है. मतलब ये कि गोली मारने के बाद तथाकथित हत्यारे राठी ने ही तस्वीरें भी लीं. एक नहीं बल्कि दो दो तस्वीरें लीं. मतलब उसके पास मोबाइल भी था. या हो सकता है उसने मोबाइल भी मु्न्ना बजरंगी का ही लिया हो. जिसके पास पिस्टल हो उसके पास मोबाइल नहीं होगा, ये कौन बात हुई. मतलब राठी हत्या के बाद इतना बेफिक्र था कि उसने वहां से भागने या बैरक में चुपचाप जाकर छुप जाने की जगह मोबाइल से फोटो लेता रहा - और फिर उसे सोशल मीडिया पर शेयर भी कर दिया ताकि जल्द से जल्द वायरल हो जाय. गजब!

...और ये एनकाउंटर 2.0!

ऐसा तो नहीं कि तस्वीर कोई और ले रहा था? अगर तस्वीर लेने वाला कोई और था तो वो कौन था? क्या दोनों तस्वीरें एक ही शख्स ने ली या दोनों अलग अलग रहे होंगे?

अगर मु्न्ना बजरंगी को दो बार गोली मारी गयी तो सारी गोलियां राठी ने ही मारीं या फिर किसी और ने? सवाल तो ये भी उठता है.

ऐसा तो नहीं कि गोली मारने के बाद फोटो किसी को बतौर सबूत दिखाने के लिए लिया गया? तो क्या इस हत्या के पीछे मास्टरमाइंड कोई और है?

दहशत में डॉन

एक ऐसा मास्टरमाइंड जिसने कांटे से कांटा निकाल लिया और खुद पहुच से बाहर रहने का इंतजाम कर चुका है - सबूत तो कोई है नहीं, सिवा राठी के इकबाले जुर्म के. ऐसा इकबालिया बयान जिससे वो बड़े आराम से कोर्ट में पलट सकता है. हत्या के बाद वो पिस्टल भी नाली में फेंक देता है और बचे हुए कारतूस भी. मतलब, पिस्टल पर फिंगर प्रिंट भी नहीं मिलेंगे. चाहे वे राठी के हों या फिर मु्न्ना बजरंगी के.

जहां तक मुख्तार के डरे होने की बात है तो ऐसा क्यों है? क्या उसे ऐसा लगता है कि राठी झूठ बोल रहा है? क्या उसे ऐसा लगता है कि कोई राठी उसे भी फॉलो कर रहा है? और ये फॉलो करने वाले का नाम बृजेश सिंह भी नहीं है? अगर नहीं है तो वो कौन है? क्या वास्तव में ये यूपी में चल रहे एनकाउंटर के सिलसिले का नया वर्जन है - एनकाउंटर 2.0?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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