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भारतीय अर्थव्यवस्था में मूडीज रेटिंग के मायने

    • राहुल लाल
    • Updated: 19 नवम्बर, 2017 03:31 PM
  • 19 नवम्बर, 2017 03:31 PM
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मूडीज की रेटिंग बढ़ने से अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारत की तरफ आकर्षित होंगे, जिससे अंततः रुपया मजबूत होगा. रुपये के मजबूत होने से हमारे निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

ईज ऑफ डूइंग बिजनस में बड़ी छलांग के 2 हफ्ते के अंदर ही अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेंटिंग एजेंसी मूडीज ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को हरी झंडी दे दी है. नोटबंदी और जीएसटी रेटिंग एजेंसियों को बहुत पसंद आ रहे हैं. इन दोनों कदमों और बैंकों में फंसे कर्ज का बोझ कम करने की सरकारी कवायद के कारण रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की रेटिंग बढ़ा दी. मूडीज ने भारत की रेटिंग में 13 वर्षों के बाद सुधार किया है. उसने रेटिंग बीएए-3 से सुधार कर बीएए-2 कर दी है. आउटलुक भी सकारात्मक से बदलकर स्थिर किया है.

रेटिंग में सुधार के साथ भारत को उन देशों की सूची में रखा गया है, जहाँ निवेशकों के हित सुरक्षित होंगे. लेकिन इन सब के बावजूद मूडीज ने भारत को ऋण और सकल घरेलू उत्पाद के ऊंचे अनुपात पर चेताया है. उसने यह भी कहा कि भूमि और श्रम सुधारों का एजेंडा अभी पूरा नहीं हुआ है. इन सुधारों के लिए केंद्र को राज्यों के सहयोग की जरुरत है.

मूडीज की यह रिपोर्ट बेहद सकारात्मक कही जा सकती है क्योंकि दुनिया की इस प्रख्यात रेटिंग एजेंसी ने सरकार की तरफ नोटबंदी, जीएसटी, आधार से सरकारी सेवाओं को जोड़ने जैसे तमाम कदमों की तारीफ करते हुए इन्हें दीर्घकालिक तौर पर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाला बताया. वैसे पिछले 3 वर्षों में मूडीज ने भी कई बार मोदी सरकारी की नीतियों की आलोचना की है. 2015 में तो इसने कथित कट्टरपंथी ताकतों को लेकर केंद्र को चेतावनी तक दे दी थी.

कह सकते हैं कि मूडीज की रेटिंग बढ़ने से अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारत की तरफ आकर्षित होंगे

आखिर पुरानी व नई रेटिंग के मायने क्या हैं?

मूडीज ने भारत की रेटिंग बीएए-3 से बीएए-2 की है. बीएए-3 के अंतर्गत निवेश की संभावनाएँ कमजोर मानी जाती हैं, लेकिन आर्थिक विकास की उम्मीदें सकारात्मक रहती हैं. वहीं बीएए-2 में...

ईज ऑफ डूइंग बिजनस में बड़ी छलांग के 2 हफ्ते के अंदर ही अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेंटिंग एजेंसी मूडीज ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को हरी झंडी दे दी है. नोटबंदी और जीएसटी रेटिंग एजेंसियों को बहुत पसंद आ रहे हैं. इन दोनों कदमों और बैंकों में फंसे कर्ज का बोझ कम करने की सरकारी कवायद के कारण रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की रेटिंग बढ़ा दी. मूडीज ने भारत की रेटिंग में 13 वर्षों के बाद सुधार किया है. उसने रेटिंग बीएए-3 से सुधार कर बीएए-2 कर दी है. आउटलुक भी सकारात्मक से बदलकर स्थिर किया है.

रेटिंग में सुधार के साथ भारत को उन देशों की सूची में रखा गया है, जहाँ निवेशकों के हित सुरक्षित होंगे. लेकिन इन सब के बावजूद मूडीज ने भारत को ऋण और सकल घरेलू उत्पाद के ऊंचे अनुपात पर चेताया है. उसने यह भी कहा कि भूमि और श्रम सुधारों का एजेंडा अभी पूरा नहीं हुआ है. इन सुधारों के लिए केंद्र को राज्यों के सहयोग की जरुरत है.

मूडीज की यह रिपोर्ट बेहद सकारात्मक कही जा सकती है क्योंकि दुनिया की इस प्रख्यात रेटिंग एजेंसी ने सरकार की तरफ नोटबंदी, जीएसटी, आधार से सरकारी सेवाओं को जोड़ने जैसे तमाम कदमों की तारीफ करते हुए इन्हें दीर्घकालिक तौर पर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाला बताया. वैसे पिछले 3 वर्षों में मूडीज ने भी कई बार मोदी सरकारी की नीतियों की आलोचना की है. 2015 में तो इसने कथित कट्टरपंथी ताकतों को लेकर केंद्र को चेतावनी तक दे दी थी.

कह सकते हैं कि मूडीज की रेटिंग बढ़ने से अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारत की तरफ आकर्षित होंगे

आखिर पुरानी व नई रेटिंग के मायने क्या हैं?

मूडीज ने भारत की रेटिंग बीएए-3 से बीएए-2 की है. बीएए-3 के अंतर्गत निवेश की संभावनाएँ कमजोर मानी जाती हैं, लेकिन आर्थिक विकास की उम्मीदें सकारात्मक रहती हैं. वहीं बीएए-2 में निवेश की संभावनाएँ अधिक होने के साथ अर्थव्यवस्था को स्थिर माना जाता है. मात्र एक पायदान रेटिंग सुधरने से भारत, फिलीपींस और इटली जैसे ज्यादा निवेश वाले देशों में सुमार हो गया है. नई रेटिंग का परिदृश्य स्थिर है. इसका मतलब है कि भारत की रेटिंग को सुधारने और बिगाड़ने वाले कारक अभी लगातार बराबर हैं. इससे पहले रेटिंग परिदृश सकारात्मक था, लेकिन रेटिंग कम थी, जिसका अर्थ था कि रेटिंग में सुधार के बजाए गिरावट की आशंका अधिक थी. इससे 6 माह पूर्व ही मूडीज ने चीन की सॉवरिन रेटिंग एक पायदान घटाई थी. तब भी चीन को मिली रेटिंग भारत से 2 पायदान ज्यादा थी.

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में होगी बढ़ोतरी

मूडीज द्वारा भारत की रेटिंग में सुधार किए जाने से भारतीय शेयर बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को (एफपीआई) का निवेश प्रवाह बढ़ने की उम्मीद है. हो सकता है कि इसमें मामूली वृद्धि दिखे, लेकिन भारतीय बॉन्ड की माँग में तेजी जरुर आएगी. ऋण बाजार में आगे चलकर प्रतिफल में नरमी से मौजूदा एफपीआई निवेशकों को फायदा होगा. विदेशी पॉर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय ऋण बाजार में इस साल 22 अरब से अधिक का निवेश किया है, जबकि इक्विटी बाजार में एफपीआई का कुल निवेश करीब 8 अरब डॉलर रहा है. एफपीआई निवेश प्रवाह में ताइवान, मैक्सिको, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों की हिस्सेदारी भारत के मुकाबले कहीं अधिक है.

कम लागत पर पूँजी जुटा सकेंगी भारतीय कम्पनियां

भारतीय कम्पनियां मूडीज के रेटिंग बढ़ाने के बाद जश्न मना रही है, क्योंकि इस वजह से विदेशों में रकम जुटाने की उनकी लागत औसत 100 आधार अंक तक घट जाएगी. कैलेंडर वर्ष 2017 में मूडीज की तरफ से रेटिंग को ऐसे समय उन्नत बनाया गया है, जब भारतीय कंपनियों की निवेश बाजार की उधारी 40% तक कम हो गई है. फलत: कई कंपनियाँ अपने उच्च कर्ज और काफी कम क्षमता प्रबंधन के लिए संघर्ष कर रही हैं. वर्ष 2014 से भारत विदेशी मुद्रा वाले कर्ज की मात्रा और संख्या दोनों लिहाज से गिरावट देख रहा है. वर्ष 2017 में सौदे की संख्या घटकर 41 रही और इसमें 37% गिरावट आई, जबकि 2016 में 65 सौदे हुए. लेकिन 2018 में इसमें रेटिंग वृद्धि के कारण बदलाव हो सकते हैं.

देश में निवेशकों के नए वर्ग का आगमन

मूडीज के कदम से देश में निवेशकों के एक नए वर्ग का आगमन होगा, जो अभी तक किसी खास सीमा से कम रेटिंग वाले देशों में निवेश न करने के उनकी अनिवार्यता तक सीमित था और इससे रुपया स्वाभाविक तौर पर मजबूत होगा, पर यह केंद्रीय बैंक के लिए वांछनीय नहीं होगा. देश की प्रतिस्पर्धी क्षमता बनाए रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अभी शायद देखना चाहेगा कि निर्यात प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले रुपया थोड़ा कमजोर रहे और इसका मतलब होगा केंद्रीय बैंक की तरफ से मुद्रा बाजार में सक्रिय हस्तक्षेप.

मूडीज के रेटिंग को बढ़ाने से भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है?

मूडीज की तरफ से रेटिंग को उन्नत किए जाने से सरकार खुश है, लेकिन इससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है. मूडीज की रेटिंग बढ़ाने से अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का भारत के प्रति भरोसा बढ़ सकता है और इस तरह से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि हो सकती है. इस कदम से रुपया मजबूत होगा, लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के चलते पहले से ही परेशानी का सामना कर रहे निर्यात क्षेत्र को अब और मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. कम कीमत वाली मुद्रा सामान्य तौर पर किसी देश के निर्यात क्षेत्र को लाभ पहुँचाता है. 2016-17 में भारत का व्यापार घाटा 108.5 अरब डॉलर रहा, जो इससे पूर्व के 118.71 अरब डॉलर के मुकाबले थोड़ा कम है.

इस साल अब तक रुपये में 5.1%की बढ़ोतरी दर्ज हुई है. वैश्विक परिस्थितियों के चलते रुपये में सतत बढ़ोतरी का अनुमान भी शामिल है. इसमें यह अनुमान भी शामिल है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व अगली बैठक में ब्याज दरें बढ़ाएगा, लिहाजा पूंजी की निकासी हो सकती है. इस कैलैंडर वर्ष में कुल आयात की सबसे कम रफ्तार के बावजूद अक्टूबर में व्यापार घाटा बढ़कर 35 महीने के उच्चतम 14 अरब डॉलर पर पहुँच गया है. निर्यात में गिरावट को रोकने के लिए तत्काल उपचारात्मक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है.

रेटिंग कंपनियों की सीमाए

प्राय: रेटिंग एजंसियां कई पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर या कुछ रेटिंग उनके अधिकारियों के व्यक्तिगत विवेक पर निर्भर हो जाते हैं. कई बार यह पूर्वाग्रह देश के लिए नुकसानदायक साबित होते हैं. उदाहरण के लिए भारत को हमेशा विनिर्माण अनुमतियों के लिए बहुत कमजोर रेटिंग प्रदान की जाती है. लेकिन एक बहुराष्ट्रीय कंपनी को अमेरिका के मेनहट्टन में विनिर्माण अनुमति लेने में भी 5 वर्ष से ज्यादा का समय लगा था. उभरते बाजारों को प्राय: कमजोर रेटिंग का सामना करना पड़ता है, क्योंकि धारणा ऐसी रहती है कि वहाँ भ्रष्टाचार अधिक होता होगा. परंतु जर्मनी की रैंकिंग में उस समय सुधार हुआ, जबकि फॉक्स वैगन ने व्यापक, संगठित और पूरे कंपनी के स्तर पर धोखाधड़ी की बात स्वीकार की.

इस तरह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विकसित और विकासशील देशों में रेटिंग एजेंसियों के भेदभाव को देखा जा सकता है. मूडीज इंडिया रेटिंग का इतिहास उसकी कहानी खुद कहता है. 1980 के दशक के आखिर में रेटिंग अपने उच्चतम स्तर पर थी. उस वक्त देश को ए-टू की उच्च मध्य ग्रेड दी गई थी,जो उच्च ग्रेड से ठीक नीचे थी.1990 में विदेशी मुद्रा संकट उत्पन्न होने के बाद इसमें गिरावट आई, और इससे पहले बीएए-1 और 6 माह बाद बीएए-3 का रेटिंग दिया गया. जून 1991 में मूडीज ने देश की निवेश रैकिंग को निवेश ग्रेड से नीचे बीए-2 का दिया.

शायद ऐसा चुनाव के दौरान राजीव गाँधी की हत्या से उपजी राजनीतिक अनिश्चतताओं और भुगतान संकट के चलते हुआ. इसके बाद तीन साल तक उसने देश की रैंकिंग में कोई सुधार नहीं किया, जबकि देश की अर्थव्यवस्था में तमाम मानकों पर सुधार देखने को मिल रहा था. यही कारण है कि भारत ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर भेदभाव-रहित रेटिंग एजेंसी बनाने पर हमेशा जोर देता रहा है.

कहने का तात्पर्य यह है कि  रेटिंग किसी चीज पर अंतिम निर्णय नहीं है, बल्कि कई बार तो गलत भी होती है और कई अन्य मौकों पर वे भ्रमित करती है. इस संदर्भ में 2008 के आर्थिक मंदी में कई उच्चतर रैटिंग को ध्वस्त होते दुनिया ने देखा था. रैटिंग में भारत की बेहतर स्थिति को हमें देश की सुधरी हुई वृहत आर्थिक स्थिति और चरणबद्ध सुधारों का नतीजा मानना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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