• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

भागवत ने कराया 'घर वापसी' का संकल्प, जो योगी आदित्यनाथ को भी पसंद है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 16 दिसम्बर, 2021 06:11 PM
  • 16 दिसम्बर, 2021 06:11 PM
offline
योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के राजनीति में धाक जमाने में 'घर वापसी' (Ghar Wapsi) कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. यूपी चुनाव से पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने घर वापसी को लेकर नये सिरे से संकल्प लिया है - क्या इसके मूल में सिर्फ योगी ही हैं?

चित्रकूट में हो रहे हिंदू एकता महाकुंभ (Hindu Ekta Mahakumbh) में मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने जो संकल्प किया और कराया है, उसमें योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को भी शामिल होना है - ध्यान देने वाली बात ये है कि महाकुंभ में योगी आदित्यनाथ एक संत के रूप में शामिल होगें, न कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तो महाकुंभ में हिस्सा ले रहे लोगों को घर वापसी (Ghar Wapsi) को लेकर जो शपथ दिलायी है, वो तो योगी आदित्यनाथ का शुरू से ही पसंदीदा शगल रहा है - और जिन गंभीर मुद्दों पर हिंदू एकता कुंभ में चर्चा हुई है - उनमें 'लव जिहाद' भी प्रमुख है.

सिर्फ इतना ही कौन कहे, महाकुंभ में मथुरा का भी मुद्दा बड़े दिलचस्प तरीके से उठाया गया. आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने यही समझाने की कोशिश की कि जो ईश्वर का भक्त नहीं होगा वो देशभक्त भी नहीं हो सकता. भले ही महाकुंभ के गैर राजनीतिक होने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन लब्बोलुआब तो यही नजर आया जैसे हिंदुत्व के साथ राष्ट्रवाद को प्रमोट किया जा रहा है - और यही तो संघ और बीजेपी का चुनावी एजेंडा है.

वैसे योगी आदित्यनाथ के महाकुंभ में शामिल होने से पहले ही बीजेपी सांसद और भोजपुरी सिंगर मनोज तिवारी ने भक्ति भाव से सराबोर राजनीतिक भजनों पर खूब ताली बजवा डाली है - और अपने राजनीतिक भजनों से महाकुंभ के गैर राजनीतिक बनाये रखने के दावों की धज्जियां उड़ा डाली.

योगी को पसंद है भागवत हिंदू संकल्प

राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, लेकिन तेजस्वी यादव ने तो अभी अभी वैसा ही किया है जिसके लिए मोहन भागवत महाकुंभ में लोगों को शपथ दिला रहे हैं. तेजस्वी यादव से शादी के लिए राशेल से राजश्री बन जाना भी तो मोहन भागवत के हिसाब से घर वापसी के दायरे में ही आना चाहिये - ये भी तो जरूरी नहीं कि हर मामला वसीम रिजवी के जितेंद्र त्यागी या

चित्रकूट में हो रहे हिंदू एकता महाकुंभ (Hindu Ekta Mahakumbh) में मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने जो संकल्प किया और कराया है, उसमें योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को भी शामिल होना है - ध्यान देने वाली बात ये है कि महाकुंभ में योगी आदित्यनाथ एक संत के रूप में शामिल होगें, न कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तो महाकुंभ में हिस्सा ले रहे लोगों को घर वापसी (Ghar Wapsi) को लेकर जो शपथ दिलायी है, वो तो योगी आदित्यनाथ का शुरू से ही पसंदीदा शगल रहा है - और जिन गंभीर मुद्दों पर हिंदू एकता कुंभ में चर्चा हुई है - उनमें 'लव जिहाद' भी प्रमुख है.

सिर्फ इतना ही कौन कहे, महाकुंभ में मथुरा का भी मुद्दा बड़े दिलचस्प तरीके से उठाया गया. आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने यही समझाने की कोशिश की कि जो ईश्वर का भक्त नहीं होगा वो देशभक्त भी नहीं हो सकता. भले ही महाकुंभ के गैर राजनीतिक होने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन लब्बोलुआब तो यही नजर आया जैसे हिंदुत्व के साथ राष्ट्रवाद को प्रमोट किया जा रहा है - और यही तो संघ और बीजेपी का चुनावी एजेंडा है.

वैसे योगी आदित्यनाथ के महाकुंभ में शामिल होने से पहले ही बीजेपी सांसद और भोजपुरी सिंगर मनोज तिवारी ने भक्ति भाव से सराबोर राजनीतिक भजनों पर खूब ताली बजवा डाली है - और अपने राजनीतिक भजनों से महाकुंभ के गैर राजनीतिक बनाये रखने के दावों की धज्जियां उड़ा डाली.

योगी को पसंद है भागवत हिंदू संकल्प

राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, लेकिन तेजस्वी यादव ने तो अभी अभी वैसा ही किया है जिसके लिए मोहन भागवत महाकुंभ में लोगों को शपथ दिला रहे हैं. तेजस्वी यादव से शादी के लिए राशेल से राजश्री बन जाना भी तो मोहन भागवत के हिसाब से घर वापसी के दायरे में ही आना चाहिये - ये भी तो जरूरी नहीं कि हर मामला वसीम रिजवी के जितेंद्र त्यागी या अली अकबर के 'रामसिम्हन' बनने जैसा तो हो नहीं सकता.

योगी आदित्यनाथ को चुनाव जिताने के लिए मोहन भागवत ने घर वापसी का संकल्प लिया - अब लव जिहाद की बारी है

संघ के सामने वाली छोर पर जो हो रहा है: घर वापसी के लिए मोहन भागवत ने जो भी मानक तय कर रखा हो, लेकिन नाम बदलने के हिसाब से देखा जाये तो राजीव गांधी से लेकर तेजस्वी यादव तक प्रेम कहानी तो एक ही जैसी सुनने में आती है. सोनिया गांधी का नाम भी तो पहले अन्तोनिया माइनो ही था - नाम में भले ही कुछ न रखा हो, लेकिन नाम बदलने की अपनी अहमियत तो होती ही है. वैसे भी भारतीय परंपरा में पति का फेमिली नाम अपनाने की परंपरा तो चली ही आ रही है. सोशल मीडिया पर ये जरूर देखने को मिलता है कि सारे लोग शादी के बाद भी अपनी टाइटल यूं ही रहने देते हैं.

गांधी परिवार से लेकर लालू परिवार तक वही रस्म निभाते देखा गया है. अपने मामले में भले ही लालू यादव को बेटे के फैसले पर थोड़ी बहुत आपत्ति रही हो, लेकिन सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के मुद्दे पर तो वो खुल कर सपोर्ट कर चुके हैं - बिहार में हुए हाल के उपचुनावों के दौरान आरजेडी-कांग्रेस तकरार के बावजूद लालू यादव ने फोन पर सोनिया गांधी से बात कर सब रफा दफा करने की कोशिश की है. भले ही इसे भी राजनीतिक विरोधियों को चकमा देने की रणनीति समझी गयी हो.

योगी को संघ का भी सर्टिफिकेट मिल गया: माना तो ये भी जाता रहा है कि घर वापसी कार्यक्रम और लव जिहाद मुहिम ने ही गोरक्षपीठ के महंत को मौजूदा राजनीति में योगी आदित्यनाथ बनाया है - गोरखपुर से बीजेपी सांसद से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में भी हिंदू युवा वाहिनी के अलावा इन दोनों कार्यक्रमों की ही अहम भूमिका रही है.

अब योगी आदित्यनाथ की उसी पसंद को मोहन भागवत भी आगे बढ़ाने का संकल्प ले चुके हैं - क्या योगी आदित्यनाथ के साथ ऐसा करके मोहन भागवत भी वही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं जो अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह करते देखे जाते रहे हैं?

फिर तो ये भी मान कर चलना होगा कि योगी आदित्यनाथ के नाम पर संघ ने नये सिरे से मुहर लगा दी है. ये भी समझा जा सकता है कि मोदी-शाह अगर योगी आदित्यनाथ को चुनावों में बीजेपी के चेहरे के तौर पर पेश कर रहे हों, तो मोहन भागवत ने आगे भी योगी आदित्यनाथ के ही यूपी के मुख्यमंत्री बने रहने का पहले से ही सर्टिफिकेट जारी कर रहे हैं.

संघ का ये सपोर्ट योगी आदित्यनाथ के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि कभी अरविंद शर्मा तो कभी केशव मौर्य और कभी बेबी रानी मौर्या किसी न किसी तरीके से इम्प्रेशन देने लगते हैं जिससे लगता है कि चुनावों के बाद योगी आदित्यनाथ पर खतरे की तलवार लटकी हुई है.

भागवत का ताजा संकल्प: हाल ही में बीजेपी के दो सांसदों ने संसद में धर्मांतरण का मुद्दा उठाया था. बीजेपी सांसदों का कहना रहा कि सोची-समझी साजिश के तहत धर्मांतरण की मुहिम चल रही है. लगे हाथ सांसदों ने ये डिमांड रख दी कि धर्म बदलने वाले SC/ST समुदाय के लोगों की आरक्षण की सुविधा खत्‍म हो. आरक्षण को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी बयान दे चुके हैं, लेकिन बिहार चुनाव के दौरान मचे बवाल के बाद से वो साफ तौर कुछ ऐसा वैसा बोलने से बचते रहे हैं.

हिंदू एकता महाकुंभ में मोहन भागवत ने खुद तो संकल्प लिया ही, मौके पर मौजूद लोगों को भी संकल्प दिलाया -

1. मैं हिंदू संस्कृति के धर्मयोद्धा मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की संकल्पस्थली पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि मैं अपने पवित्र हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज के संरक्षण संवर्धन और सुरक्षा के लिए आजीवन कार्य करूंगा.

2. मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि किसी भी हिंदू भाई को हिंदू धर्म से विमुख नहीं होने दूंगा. जो भाई धर्म छोड़ कर चले गये हैं, उनकी भी घर वापसी के लिए कार्य करूंगा. परिवार का हिस्सा बनाऊंगा.

3. मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि हिंदू बहनों की अस्मिता, सम्मान और शील की रक्षा के लिए सर्वस्व अर्पण करूंगा. जाति, वर्ग, भाषा, पंथ के भेद से ऊपर उठ कर हिंदू समाज को समरस सशक्त अभेद्य बनाने के लिए पूरी शक्ति से कार्य करूंगा.'

उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण कानून बने भी करीब साल भर हो चुके हैं - और जून, 2021 तक ही 50 से ज्यादा मामले भी दर्ज किये जा चुके हैं. यूपी में धर्मांतरण कानून लागू होने के बाद से अगर सिर्फ शादी के लिए लड़की का धर्म बदला गया तो शादी तो अमान्य घोषित की जाएगी ही, धर्म परिवर्तन कराने वालों को 10 साल तक की कैद की सजा भी हो सकती है.

अब तो लगता है कि संघ के लिए धर्मांतरण रोकना मुश्किल टास्क हो गया है, लिहाजा घर वापसी जैसा थोड़े कम मुश्किल रास्ते पर चलने का संकल्प लिया जा रहा है. यूपी चुनाव के हिसाब से तो फायदेमंद है ही.

महाकुंभ या चुनावी रैली

किसान आंदोलन की ही तरह हिंदू एकता महाकुंभ को भी गैर राजनीतिक आयोजन होने का दावा किया जाता रहा. अगर ये भागीदारी संघ प्रमुख मोहन भागवत तक ही सिमटी रहती तो भी एक बार ऐसा माना जा सकता था, लेकिन बीजेपी के कई नेताओं के पहुंचने और दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी की राजनीतिक प्रस्तुति के बाद तो कुछ कहने को बचा ही नहीं.

आयोजकों की तरफ से बीजेपी नेताओं के बचाव में भी योगी आदित्यनाथ की ही तरह तर्क पेश किये गये, ‘वे भाजपा कार्यकर्ता नहीं बल्कि धर्म के पैरोकार होने के नाते आयोजन में शामिल हुए हैं.’

शानदार - और पॉलिटिकली करेक्ट जवाब तो कह ही सकते हैं. वैसे भी चुनावी सीजन में ये सब कहने सुनने का कोई मतलब तो रह भी नहीं जाता. प्यार और जंग की तरह चुनाव में सब जायज है.

महाकुंभ में भी मथुरा का मुद्दा: महाकुंभ के आयोजक जगद्गुरू रामभद्राचार्य महाराज ने एकता महाकुंभ से निकाला हुआ अपना एक्रोनिम भी मौका देख कर सुना डाला - ए से अयोध्या, एम से मथुरा और के से काशी.

जिस आयोजन में मोहन भागवत भी शामिल हुए हों वहां अयोध्या के साथ मथुरा और काशी की चर्चा अनायास तो नहीं ही लगती. यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य के मथुरा में भी अयोध्या जैसा मंदिर बनने की संभावनाओं वाले ट्वीट और फिर प्रधानमंत्री मोदी से मौर्य की मुलाकात की तस्वीरों की लगता है नये सिरे से व्याख्या करनी होगी.

अयोध्या पर फैसला आने के बाद मोहन भागवत का कहना था कि संघ, विश्व हिंदू परिषद के आंदोलन से जुड़ा था और आगे से वो राष्ट्र निर्माण के काम में जुट जाएगा और ऐसे किसी आंदोलन से उसे कोई मतलब नहीं रहेगा.

अगर कुछ ही दिन पहले धर्म परिवर्तन से दूरी बनाने की बात कहने के बाद संघ प्रमुख घर वापसी का संकल्प दिलाने लगें, फिर ये कैसे मान कर चला जाये कि मथुरा में भी मंदिर बनने में संघ की कोई दिलचस्पी नहीं है.

सवाल तो ये भी है कि एक गैर राजनीतिक आयोजन में घर वापसी, लव जिहाद, धर्मांतरण पर रोक, समान नागरिक संहिता और राष्ट्रवाद पर गंभीर चर्चा हो रही हो तो कैसे उसे चुनावी माहौल से दूर रख कर समझने की कोशिश की जाये

महाकुंभ या चुनावी मंच: बीजेपी सांसद मनोज तिवारी की दिल्ली में जो भी हैसियत रह गयी हो, लेकिन चित्रकूट में जब मंच पर चढ़े और भजन सुनाना शुरू किये तो ताली रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

मनोज तिवारी पूरी तैयारी के साथ आये थे और ऐसी ऐसी जबरदस्त रचनाएं पेश कर रहे थे जो भजन तो कम चुनाव गीत ज्यादा लग रहे थे - निशाने पर जाहिर तौर पर उत्तर प्रदेश का विपक्ष रहा. खास तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव.

ऐसा भी नहीं कि भजनों में भक्ति के मूल तत्व ही गायब रहे, मनोज तिवारी ने भोजपुरी में ही स्तुतिगान भी पेश किया जो प्रधानमंत्री मोदी को समर्पित रहा - और फिर भजनों का अर्थ भी सुनाया, 'गिद्ध वे हैं जिन्होंने कश्मीरी पंडितों को नोच कर खाया... गिद्ध वही हैं जो लोग लगातार इस देश में समय-समय पर भयानक रूप से लोगों को यातनाएं देते रहे... गिद्ध वही हैं जो 370 केवल पांच साल के लिए लगाकर 70 साल तक खींच ले गये... गिद्ध वही हैं जो चुनाव में शांति के तरीके से आते हैं और चुनाव बाद गुंडागर्दी करते हैं - ऐसे लोगों को मैं गिद्ध कहता हूं.'

वैसे मनोज तिवारी के मुंह से भजनों का जो अर्थ सुनने को मिला, उसमें निहितार्थ कुछ ज्यादा ही समझ में आ रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के वाराणसी दौर पर समाजवादी पार्टी के नेता की टिप्पणी पर भी मनोज तिवारी ने अपने तरीके का भाषा-टीका प्रस्तुत किया, 'अखिलेश जी को शास्त्र पता नहीं होगा... जो दूसरे की मृत्यु की कामना करते हैं... महादेव उसकी खुद ही खोज खबर लेते हैं.'

इन्हें भी पढ़ें :

कुछ बातें उन लोगों से जो हिंदू हुए बिना खुद को हिंदू क्लेम कर रहे हैं...

हिंदुत्व के खिलाफ राहुल का दांव मास्टरस्ट्रोक है या प्री-मैच्योर शॉट?

राहुल गांधी की क्या मजबूरी थी, जो उन्होंने 'हिंदू राग' छेड़ा?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲