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मोदी-शाह मिल कर 2019 नहीं 2022 के लिए टीम तैयार कर रहे हैं!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 सितम्बर, 2017 03:46 PM
  • 01 सितम्बर, 2017 03:46 PM
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टीम का हर सदस्य ऑल राउंडर तो हो ही, उसमें डिफेंडिंग चैंपियन बनने के सारे गुण भी होने चाहिये, जैसे, गोरखपुर में सिद्धार्थनाथ सिंह ने बिलकुल नयी थ्योरी दी - अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं.

हाल फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर गौर करें तो लगता है जैसे अभी अभी कुर्सी संभाले हों - और वो अगले पांच साल का रोड मैप पेश कर रहे हों. विपक्ष 2019 की तैयारी कर रहा है, लेकिन मोदी को इन सब बातों की जरा भी परवाह नहीं. वो तो अभी से लेकर 2022 तक की बात करते हैं जिसे वो ‘संकल्प से सिद्धि’ के साल बता रहे हैं. फिर तो मोदी सरकार और बीजेपी में जो भी तैयारियां चल रही हैं, उन सभी को उसी हिसाब से देखना और वैसे ही पैमाने में तौलना होगा.

फेरबदल चाहे सरकार में होने वाला हो, या फिर संगठन में - सब के सब अगले पांच साल के लिए होंगे. जो लोग सरकार और संगठन में नहीं फिट हो पाएंगे उनके लिए आलीशान राजभवन का ऑप्शन तो है ही. ये बात अलग है कि इसी बीच 2019 आएगा और गुजर जाएगा.

टीम में कौन टिक सकता है

मध्य प्रदेश में अमित शाह ने ये तो साफ कर ही दिया था कि सत्ता की स्वर्ण जयंती मनाने का ख्वाब देख रही बीजेपी को कभी किसी की प्लैटिनम जुबली से ऐतराज नहीं रहा. शाह ने ये तो साफ किया ही कि बीजेपी में 75 की उम्र सीमा जैसा कोई बंधन कभी नहीं रहा. लगे हाथ उन्होंने शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें भी बढ़ा दीं - जिन्होंने इसी पैरामीटर के तहत बाबूलाल गौर से इस्तीफा ले लिया था.

टारगेट - 2022

खैर, सबसे बड़ा सवाल ये है कि नयी टीम कैसी हो? मंत्रियों के ताजा इस्तीफों को मुख्य तौर पर दो तरह के तराजुओं में तौला जा रहा है. एक, नॉन-परफॉर्मेंस और दूसरा, ऐडजस्टमेंट, जो बिहार में जेडीयू के साथ आने के बाद करना पड़ रहा है. राजीव प्रताप रूडी इसी कैटेगरी में आ रहे हैं. फिर सवाल ये है कि कौन बनेगा मंत्री और कौन महामंत्री, यानी - कौन सरकार में काम करेगा और कौन संगठन में. काम तो करना ही होगा. ये तो बीजेपी नेताओं को मोदी ने उसी दिन...

हाल फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर गौर करें तो लगता है जैसे अभी अभी कुर्सी संभाले हों - और वो अगले पांच साल का रोड मैप पेश कर रहे हों. विपक्ष 2019 की तैयारी कर रहा है, लेकिन मोदी को इन सब बातों की जरा भी परवाह नहीं. वो तो अभी से लेकर 2022 तक की बात करते हैं जिसे वो ‘संकल्प से सिद्धि’ के साल बता रहे हैं. फिर तो मोदी सरकार और बीजेपी में जो भी तैयारियां चल रही हैं, उन सभी को उसी हिसाब से देखना और वैसे ही पैमाने में तौलना होगा.

फेरबदल चाहे सरकार में होने वाला हो, या फिर संगठन में - सब के सब अगले पांच साल के लिए होंगे. जो लोग सरकार और संगठन में नहीं फिट हो पाएंगे उनके लिए आलीशान राजभवन का ऑप्शन तो है ही. ये बात अलग है कि इसी बीच 2019 आएगा और गुजर जाएगा.

टीम में कौन टिक सकता है

मध्य प्रदेश में अमित शाह ने ये तो साफ कर ही दिया था कि सत्ता की स्वर्ण जयंती मनाने का ख्वाब देख रही बीजेपी को कभी किसी की प्लैटिनम जुबली से ऐतराज नहीं रहा. शाह ने ये तो साफ किया ही कि बीजेपी में 75 की उम्र सीमा जैसा कोई बंधन कभी नहीं रहा. लगे हाथ उन्होंने शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें भी बढ़ा दीं - जिन्होंने इसी पैरामीटर के तहत बाबूलाल गौर से इस्तीफा ले लिया था.

टारगेट - 2022

खैर, सबसे बड़ा सवाल ये है कि नयी टीम कैसी हो? मंत्रियों के ताजा इस्तीफों को मुख्य तौर पर दो तरह के तराजुओं में तौला जा रहा है. एक, नॉन-परफॉर्मेंस और दूसरा, ऐडजस्टमेंट, जो बिहार में जेडीयू के साथ आने के बाद करना पड़ रहा है. राजीव प्रताप रूडी इसी कैटेगरी में आ रहे हैं. फिर सवाल ये है कि कौन बनेगा मंत्री और कौन महामंत्री, यानी - कौन सरकार में काम करेगा और कौन संगठन में. काम तो करना ही होगा. ये तो बीजेपी नेताओं को मोदी ने उसी दिन साफ कर दिया कि अमित शाह राज्य सभा पहुंच गये हैं और उनके मस्ती भरे दिन जाने वाले हैं.

संगठन में पार्टी पदों पर वही रहेगा जो बूथ मैनेजमेंट में कुशल होगा - और सरकार में वही टिकेंगे जिनमें गंजे को कंघी बेच देने टाइप कौशल होगा. ऐसे खास दायरे में देखें तो महेंद्र नाथ पांडेय और राजीव प्रताप रूडी में वो तमाम खूबियां और कमियां खोजी जा सकती हैं जो चयन प्रक्रिया के लिए फिलहाल जरूरी और गैर जरूरी हैं.

ब्राह्मण वोट पर नजर...

महेंद्र नाथ पांडेय को यूपी बीजेपी की कमान सौंपी गयी है. महेंद्र नाथ पांडेय की योग्यता में मोदी का करीबी होना और संगठन का आदमी तो बताया ही जा रहा है, असल बात ये है कि वो इमरजेंसी में पांच महीने जेल भी काट चुके हैं और राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं. योगी के आने के बाद यूपी के 12 फीसदी ब्राह्मण वोटों को लेकर बीजेपी की चिंता भी खत्म कर देते हैं. ऐसा ऑल इन वन लीडर भला कहां मिलेगा?

कौशल काम न आया...

टीम का हर सदस्य ऑल राउंडर तो हो ही, उसमें डिफेंडिंग चैंपियन बनने के सारे गुण भी होने चाहिये, जैसे, गोरखपुर में सिद्धार्थनाथ सिंह ने बिलकुल नयी थ्योरी दी - अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं. अब राजीव प्रताप रूडी को देखिये. उनके पास मंत्रालय तो था कौशल विकास का लेकिन जो कौशल जरूरी रहा उसमें वो फिसड्डी रहे. कौशल विकास तो ये होता है कि मौके के हिसाब से किसी भी मामले में यू-टर्न लेकर सरकार को सही साबित करने में जान लड़ा दी जाये. बिहार के ही होकर रूडी ने रविशंकर प्रसाद से कुछ भी नहीं सीखा. जैसे ही निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, फौरन रविशंकर प्रसाद मीडिया के सामने हाजिर हो गये और डंके की चोट पर बताने लगे कि कोर्ट ने तो तो सरकार की बात पर ही मुहर लगायी है. अब पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का प्रतिनिधित्व किया था, अपना ही माथा पीट पीट कर समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार गलत कर रही है. कोई सुने तब तो!

यूपीए की सरकार में वकीलों की जरूरत थी और उसकी खास वजह भी थी, लेकिन एनडीए को लगता है मार्केटिंग और सेल्स मैनेजरों की जरूरत है जो नोटबंदी जैसी बड़ी गलतियों को भी खूबी के रूप में समझा सके. याद कीजिए राहुल गांधी ने भी कहा था कि वो चुनाव इसलिए हार गये क्योंकि मनमोहन सरकार के कामों को लोगों के बीच समझाया नहीं जा सका. भला मोदी सरकार ये रिस्क क्यों ले? ऐसे तो स्वर्णिम काल का सपना, सपना ही रह जाएगा. वैसे खबरें बताती हैं कि मोदी राज में मंत्रियों के जिम्मे काम तो यही होता है कि सरकार की उपलब्धियों को लोगों के बीच जाकर बताएं. काम करने के लिए बाबुओं की फौज मोर्चे पर तैनात तो है ही. अगर ऐसा न होता तो लोग अपने मन का ओएसडी रखने को तरसते थोड़े न रहते.

नोटबंदी का असर...

रूडी के कौशल विकास में बाकी जो भी सबसे बड़ी कमी तो यही लगती है कि वो नोटबंदी को वैसे डिफेंड नहीं कर सके जैसे बाकियों ने किया. नीति आयोग के वाइस प्रेसिडेंट सबसे बड़े उदाहरण हैं. सिर्फ राजनीति का नाम नहीं लेते लेकिन मोदी सरकार की नीतियों को संबित पात्रा से भी बेहतर तरीके से बचाव कर रहे हैं.

अभी तो और भी अच्छे दिन आने वाले हैं, जाहिर है आगे चल कर ऐसे और भी सर्जिकल स्ट्राइक होंगे जिनके लिए आगे बढ़कर डिफेंड करना होगा.

जो पूरे घर को बदल डालने में काम आये

अभी 9 अगस्त को ही प्रधानमंत्री मोदी ने समझाया था कि जो भी टारगेट तय करेंगे उसे हर हाल में पूरा करेंगे. 1942 में महात्मा गांधी के 'करेंगे या मरेंगे' आह्वान का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि अब 'करेंगे और कर के रहेंगे'.

टीम मोदी भी उसी राह पर आगे बढ़ रही है. जैसे योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग बनाया गया उसी तरह अभी और भी कतार में हैं. नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का कहना है कि 19वीं सदी के संस्थानों के साथ 21वीं सदी में आगे नहीं बढ़ सकते - और उसके लिए संस्थागत पुनर्गठन जरूरी है. अमिताभ कांत के मुताबिक एमसीआई यानी भारतीय चिकित्सा परिषद, यूजीसी विविद्यालय अनुदान आयोग और एआईसीटीई यानी अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद जैसे संस्थानों के पुनर्गठन की दिशा में सरकार काम कर रही है.

और नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला भी तो कुछ ऐसा ही था जिसे करना था और करके रहे भी. नतीजे देश के हित में रहे पूरा अमला समझा ही रहा है. सत्ता पक्ष ऐसे समझा रहा है कि विपक्ष को यही नहीं समझ आ रहा है कि सरकार को घेरे तो कैसे? ऐसा भी नहीं है कि जिस तरह गुरमीत राम रहीम को हुई सजा पर चुप्पी साध लिये थे, नोटबंदी पर बयानाबाजी बिलकुल वैसे ही हुई है जैसे तीन तलाक और निजता के अधिकार को लेकर हुई. विपक्षी दल अभी प्लान ही बना रहे होंगे कि सरकार को घेरेंगे तब तक पूरे देश का ध्यान कैबिनेट फेरबदल पर शिफ्ट हो चुका होगा. तब न तो किसी को गुरमीत राम रहीम का ख्याल रहेगा, न नोटबंदी का. मुमकिन है तब तक मथुरा से भी कुछ मसाला बांट दिया जाये - और लोग उसी में उलझे रहें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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