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मौर्य, मुगल और मोदी: क्यों कोई नहीं जीत पाया दक्षिण की लड़ाई, जानिए

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    • Updated: 26 मई, 2019 12:53 PM
  • 26 मई, 2019 12:53 PM
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लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी की जीत का पैटर्न लगभग मौर्य और मुगल साम्राज्य वाला ही है. चौंकाने वाली बात ये है कि तीनों ही दक्षिण पर विजय नहीं कर पाए थे.

Lok Sabha Election 2019 Results| जीत के बाद Narendra Modi victory speech में अंदाज काफी बदल गए थे. अब वो चौकीदार नहीं बल्कि स्टेट्समैन के रूप में सामने थे जो हर समय देश के लिए काम करते रहेंगे. Rahul Gandhi की हार के बाद जिस तरह से मोदी सूनामी सामने आई है वो भारत में पिछले कई बड़े साम्राज्यों की तरह ही दिखती है. मौर्या साम्राज्य, मुगल साम्राज्य और मोदी साम्राज्य तीनों में कई समानताएं हैं. एक सबसे बड़ी समानता है दक्षिण को न जीत पाने की. तीनों ही साम्राज्यों में परम वीर योद्धा रहे हैं और युद्ध स्तर की तैयारी, कूटनीति और शक्ति के लिए जाने जाते हैं. पर फिर भी तमिलनाडु और केरल को जीत पाने में असमर्थ रहे हैं.

ये सोचने वाली बात है कि तीनों के काल में भारत के नक्शे ने एक ही रंग दिखाया है. उत्तर भारत से लेकर बंगाल तक सभी राज्यों (मौर्य और मुगल के समय रियासतों) पर राज किया था. जिस तरह मोदी ने एक-एक कर सभी राज्यों में रैली की, चुनाव प्रचार किया यहां तक कि अपने दुश्मनों पर वार भी किया वो बेहद निर्णायक रहा उनकी 2019 लोकसभा चुनाव की जीत में.

जैसे चंद्र गुप्त मौर्य और चाणक्य प्रसिद्ध हैं, अकबर और बीरबल प्रसिद्ध हैं ऐसे ही मोदी और शाह की जोड़ी भी प्रसिद्ध है. पर तीनों के साथ दक्षिण को जीतने की समस्या रही है. उत्तर भारत और पश्चिम भारत पर सबसे पहले कब्जा हुआ है. नरेंद्र मोदी के मामले में भी यही हुआ, पहले गुजरात से ही शुरुआत हुई और धीरे-धीरे उत्तर भारत मोदी लहर का हिस्सा बन गया.

मौर्य, मुगल और मोदी की जीत का पैमाना लगभग एक जैसा ही है.

तीनों साम्राज्यों में थी कई समानताएं-

- तीनों साम्राज्य में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर में कश्मीर तक विजय मिली है. - एक लोकप्रीय नेता की बदौलत आधे से ज्यादा हिंदुस्तान...

Lok Sabha Election 2019 Results| जीत के बाद Narendra Modi victory speech में अंदाज काफी बदल गए थे. अब वो चौकीदार नहीं बल्कि स्टेट्समैन के रूप में सामने थे जो हर समय देश के लिए काम करते रहेंगे. Rahul Gandhi की हार के बाद जिस तरह से मोदी सूनामी सामने आई है वो भारत में पिछले कई बड़े साम्राज्यों की तरह ही दिखती है. मौर्या साम्राज्य, मुगल साम्राज्य और मोदी साम्राज्य तीनों में कई समानताएं हैं. एक सबसे बड़ी समानता है दक्षिण को न जीत पाने की. तीनों ही साम्राज्यों में परम वीर योद्धा रहे हैं और युद्ध स्तर की तैयारी, कूटनीति और शक्ति के लिए जाने जाते हैं. पर फिर भी तमिलनाडु और केरल को जीत पाने में असमर्थ रहे हैं.

ये सोचने वाली बात है कि तीनों के काल में भारत के नक्शे ने एक ही रंग दिखाया है. उत्तर भारत से लेकर बंगाल तक सभी राज्यों (मौर्य और मुगल के समय रियासतों) पर राज किया था. जिस तरह मोदी ने एक-एक कर सभी राज्यों में रैली की, चुनाव प्रचार किया यहां तक कि अपने दुश्मनों पर वार भी किया वो बेहद निर्णायक रहा उनकी 2019 लोकसभा चुनाव की जीत में.

जैसे चंद्र गुप्त मौर्य और चाणक्य प्रसिद्ध हैं, अकबर और बीरबल प्रसिद्ध हैं ऐसे ही मोदी और शाह की जोड़ी भी प्रसिद्ध है. पर तीनों के साथ दक्षिण को जीतने की समस्या रही है. उत्तर भारत और पश्चिम भारत पर सबसे पहले कब्जा हुआ है. नरेंद्र मोदी के मामले में भी यही हुआ, पहले गुजरात से ही शुरुआत हुई और धीरे-धीरे उत्तर भारत मोदी लहर का हिस्सा बन गया.

मौर्य, मुगल और मोदी की जीत का पैमाना लगभग एक जैसा ही है.

तीनों साम्राज्यों में थी कई समानताएं-

- तीनों साम्राज्य में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर में कश्मीर तक विजय मिली है. - एक लोकप्रीय नेता की बदौलत आधे से ज्यादा हिंदुस्तान जीता है (चंद्रगुप्त मौर्य, अकबर और नरेंद्र मोदी).

- कूटनीति और ताकत के स्तर पर तीनों ही सबसे आगे रहे हैं. मौर्य के पास चाणक्य थे, अकबर के पास नवरतन थे और मोदी के पास अमित शाह-अरुण जेटली हैं.

- सैन्य शक्ति तीनों के पास ही बहुत थी, मौर्य और मुगल सेनाओं के मुकाबले मोदी समर्थकों की फौज भी कुछ कम नहीं है.

- राज्य दर राज्य जीतने के लिए खुद राजाओं ने एक-एक कर लड़ाई लड़ी. चंद्र गुप्त मौर्य और अकबर भी छोटे से छोटे युद्ध में जाते थे और मोदी भी चुनाव प्रचार के तौर पर हर राज्य गए.

उत्तर भारत की बात तो हो गई, लेकिन इनकी जीत में सबसे बड़ी बात ये है कि दक्षिण की विजय तीनों ही नहीं कर पाए.

क्यों नहीं जीते मौर्य, मुगल और मोदी?

मौर्य साम्राज्य के समय दक्षिण से कूटनीति के सहारे बात करना आसान नहीं था. दरअसल, इसमें भारत का विशाल इलाका भी शामिल था. भारत में रहते हुए शायद हम ये नहीं समझ पाते हैं कि ये कितना बड़ा है, लेकिन तिरुवनंतपुरम और दिल्ली के बीच में जितनी दूरी है उतनी लंदन और मॉस्को के बीच है यानी यूरोप की चौड़ाई जितनी. उस समय दक्षिण में एक तरफ से तो समुद्र और दूसरी तरफ से केरल के घने जंगल और तमिलनाडु के सुदूर इलाके शामिल थे. ऐसे में दक्षिण जाना आसान नहीं था. साथ ही, दक्षिण राजाओं के साथ कूटनीतिक संबंध भी थे. वहां कम लोग थे, इलाका भेदना मुश्किल था और भाषा की समस्या भी थी.

मुगल साम्राज्य में अकबर ने जब उत्तर भारत को जीता उसके बाद उन सीमाओं की रक्षा करने में ही काफी समय और खर्च लगता था. सीमाओं को औरंगजेब ने भी बढ़ाया जब डेक्कन पठार को जीता गया, लेकिन औरंगजेब के आने तक मुगल सल्तनत का खजाना खत्म होता गया. यही नहीं तब भी दक्षिण में अपने राजा को ही महत्व दिया जाता था. दक्षिण में हमेशा रीजनल राजनीति स्थापित रही है और एक कारण ये भी है कि वहां के लोगों को जीतना इतना आसान नहीं है. युद्ध करने के लिए भी यहां की भूगोलिक स्थिति सही नहीं थी. यहां भी दक्षिण के साथ कूटनीति के रिश्ते स्थापित किए गए. औरंगजेब की मृत्यु के बाद सबसे पहले हैदराबाद के निजाम पीछे हटे थे और तब भी दक्षिण अभेद्य ही रह गया. तब भी तमिलनाडु और केरल पर मुगल राज्य नहीं स्थापित हो पाया था.

अब Lok Sabha Election 2019 में नरेंद्र मोदी के साथ भी यही हुआ है. मोदी भी दक्षिण को जीत पाने में नाकाम रहे हैं. केरल में सबरीमला का मामला पीछे रह गया और मोदी का हिंदुत्व भी जीतने में नाकाम रहा.

मौर्य और मुगल साम्राज्य की तरह दक्षिण में 2019 में उत्तर भारत के मुकाबले कई असमानताएं हैं. सबसे पहले तो यहां हिंदुत्व का उतना बड़ा मुद्दा नहीं है, दूसरा यहां स्थानीय पार्टियों का दबदबा बहुत ज्यादा है. मोदी और शाह की जोड़ी के लिए अभी भी दक्षिण भेदना आसान साबित नहीं हुआ. खास तौर पर केरल और तमिलनाडु जो इतिहास बताता है कि सदियों से ही अभेद्य ही रहे हैं.

कुल मिलाकर समानताओं की गिनती तो बहुत है और इतिहास बताता है कि इतनी बड़ी विजय के बाद भारत में किसी न किसी स्तर पर विकास हुआ ही है. चाहें वो मौर्य हों, मुगल हों या मोदी वो लोकप्रिय राजाओं में गिने गए हैं. अब मोदी से भी यही उम्मीद है कि विकास की गति को और बढ़ाया जाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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