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मोदी के 'मास्टरस्ट्रोक' से किसान आंदोलन और ज्यादा सिमट जाएगा!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 09 सितम्बर, 2021 05:55 PM
  • 09 सितम्बर, 2021 05:55 PM
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित किसान आंदोलन पर मोदी सरकार के इस फैसले का भी बड़ा असर पड़ेगा. रबी की फसलों पर एमएसपी को बढ़ाकर मोदी सरकार ने किसान आंदोलन को पूरी तरह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का आंदोलन बना दिया है. वहीं, इस फैसले पश्चिमी यूपी के किसान भी भीतरी तौर पर अपनी निष्ठा बदल सकते हैं.

अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव 2022 समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के मद्देनजर संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत में किसानों के शक्ति प्रदर्शन के बाद मंच से 'मिशन यूपी' का बिगुल फूंक दिया गया था. किसान महापंचायत के दो दिन बाद केंद्र की मोदी सरकार ने गेहूं और सरसों समेत 6 रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 35 से 400 रुपये के इजाफे का ऐलान कर दिया है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार के इस फैसले से गेंहू और सरसों की फसल पर अनुमानित मुनाफा 100 फीसदी पहुंच गया है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि किसान आंदोलन में आई तेजी को देखते हुए ही मोदी सरकार ने किसानों को साधने के लिए ये फैसला लिया है. लेकिन, मोदी सरकार के इस मास्टरस्ट्रोक के बाद बहुत हद तक संभव है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित हो चुका किसान आंदोलन अब और ज्यादा सिमट सकता है.

मोदी सरकार के इस फैसले से गेंहू और सरसों की फसल पर अनुमानित मुनाफा 100 फीसदी पहुंच गया है.

यूपी में किसान आंदोलन क्यों नजर आता है राजनीतिक?

किसी जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री व बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की एक आवाज पर यूपी ही नहीं कई राज्यों के किसान दिल्ली की ओर कूच कर देते थे. लेकिन, न्यूजलॉन्ड्री में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, किसान आंदोलनों का गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान बीते साल शुरू हुए किसान आंदोलन में काफी समय बाद जुड़े थे. दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान गन्ने की खेती पर निर्भर हैं. मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों का गन्ने की खेती से कोई सीधा जुड़ाव नहीं है. जिसकी वजह से लंबे समय तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान निश्चिंत होकर बैठे हुए थे. लेकिन, जब किसान आंदोलन पूरी तरह से पक गया, तो भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इसमें संभावनाएं खोजनी शुरू कर दीं. बीते साल 1 दिसंबर को हुई केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई बैठक में जब राकेश...

अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव 2022 समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के मद्देनजर संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत में किसानों के शक्ति प्रदर्शन के बाद मंच से 'मिशन यूपी' का बिगुल फूंक दिया गया था. किसान महापंचायत के दो दिन बाद केंद्र की मोदी सरकार ने गेहूं और सरसों समेत 6 रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 35 से 400 रुपये के इजाफे का ऐलान कर दिया है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार के इस फैसले से गेंहू और सरसों की फसल पर अनुमानित मुनाफा 100 फीसदी पहुंच गया है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि किसान आंदोलन में आई तेजी को देखते हुए ही मोदी सरकार ने किसानों को साधने के लिए ये फैसला लिया है. लेकिन, मोदी सरकार के इस मास्टरस्ट्रोक के बाद बहुत हद तक संभव है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित हो चुका किसान आंदोलन अब और ज्यादा सिमट सकता है.

मोदी सरकार के इस फैसले से गेंहू और सरसों की फसल पर अनुमानित मुनाफा 100 फीसदी पहुंच गया है.

यूपी में किसान आंदोलन क्यों नजर आता है राजनीतिक?

किसी जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री व बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की एक आवाज पर यूपी ही नहीं कई राज्यों के किसान दिल्ली की ओर कूच कर देते थे. लेकिन, न्यूजलॉन्ड्री में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, किसान आंदोलनों का गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान बीते साल शुरू हुए किसान आंदोलन में काफी समय बाद जुड़े थे. दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान गन्ने की खेती पर निर्भर हैं. मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों का गन्ने की खेती से कोई सीधा जुड़ाव नहीं है. जिसकी वजह से लंबे समय तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान निश्चिंत होकर बैठे हुए थे. लेकिन, जब किसान आंदोलन पूरी तरह से पक गया, तो भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इसमें संभावनाएं खोजनी शुरू कर दीं. बीते साल 1 दिसंबर को हुई केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई बैठक में जब राकेश टिकैत को शामिल नहीं किया गया, तो उन्होंने इस आंदोलन में ताकत दिखाने के लिए किसान संगठनों को इकट्ठा करना शुरू किया. इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि किसान अब राजनीतिक पार्टियों में बंट गए हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान किसी न किसी पार्टी से संबंध रखते हैं.

इस रिपोर्ट से इतर बात करें, तो साफ नजर आता है कि यूपी के गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहा किसान आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक था. किसान नेता राकेश टिकैत के गाजीपुर पहुंचने के बाद कुछ ही दिनों में तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं का किसान आंदोलन में आना-जाना बढ़ गया था. संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल होने के बाद राकेश टिकैत अपने बयानों के जरिये किसान आंदोलन का स्टार चेहरा बन गए. वहीं, गणतंतत्र दिवस के मौके पर लाल किले पर फैली अराजकता के बाद भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत ने किसान आंदोलन को खत्म करने की बात कह दी थी. लेकिन, राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर अड़े रहे. किसान आंदोलन के आखिरी दिन राकेश टिकैत के 'आंसुओं' ने लगभग खत्म हो चुके इस आंदोलन में नई जान फूंक दी. जिसके बाद इस आंदोलन को बढ़ाने के लिए किसान पंचायत की जगह खाप पंचायतों का सहारा लिया गया.

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत ने किसान आंदोलन को खत्म करने की बात कह दी थी.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खाप पंचायतों का असर किसी से छिपा नहीं है. दर्जनों छोटी-बड़ी खापों के जरिये किसानों को यहां लाया जाने लगा. कई खाप पंचायतों ने किसान आंदोलन में शामिल न होने वाले लोगों का हुक्का-पानी बंद करने का आदेश तक निकाल दिया. खाप पंचायतों का दबदबा ऐसा है कि उनके लिए गए फैसलों को सर्वसम्मति से माना जाता है. जिसकी वजह से बड़ी संख्या में किसान न चाहते हुए भी किसान आंदोलन में जाने को मजबूर हुए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चल रहा किसान आंदोलन बहुत पहले ही जाति विशेष का आंदोलन बन चुका है. वहीं, तीन कृषि कानूनों को लेकर शुरू हुआ किसान आंदोलन राकेश टिकैत के चेहरे के साथ राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया है. इस आंदोलन का अब एक ही उद्देश्य बन गया है कि केंद्र की मोदी सरकार के साथ ही राज्यों में भी भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बनाना है.

वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित किसान आंदोलन पर मोदी सरकार के इस फैसले का भी बड़ा असर पड़ेगा. रबी की फसलों पर एमएसपी को बढ़ाकर मोदी सरकार ने किसान आंदोलन को पूरी तरह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का आंदोलन बना दिया है. वहीं, इस फैसले पश्चिमी यूपी के किसान भी भीतरी तौर पर अपनी निष्ठा बदल सकते हैं. वहीं, यूपी विधानसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचा हुआ है, तो हो सकता है कि सीएम योगी आदित्यनाथ भी गन्ने के एमएसपी को लेकर कोई फैसला कर दें. जिसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन पूरी तरह से केवल राकेश टिकैत का आंदोलन ही बनकर रह जाएगा.

पंजाब में खातों में MSP के बाद सरसों खरीद

इसी साल अप्रैल में मोदी सरकार के सख्त रुख अपनाए रखने के बाद पंजाब सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP का भुगतान, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के जरिये सीधे किसानों के खाते में करना मंजूर कर लिया था. दरअसल, मोदी सरकार ने पंजाब की कांग्रेस सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर बिचौलियों (आढ़तियों) को किसान से खाद्यान्न की खरीद के बीच से नहीं हटाया गया, तो सरकार खरीद बंद कर देगी. पंजाब में कई हजार बिचौलिये हैं, जो एपीएमसी (APMC) एक्ट के तहत खाद्यान्न की हैंडलिंग पर ढाई फीसदी कमीशन वसूल करते थे. लेकिन, मोदी सरकार के कड़े फैसले से बिचौलियों का खेल खत्म हो गया. पूरे देश में सबसे ज्यादा पंजाब में ही गेंहू की खरीद एमएसपी पर की जाती है. पंजाब में सरसों का उत्पादन आगामी फसल में 10.5 लाख टन होने का अनुमान लगाया गया है. इस स्थिति में मोदी सरकार के इस फैसले के बाद किसान आंदोलन में शामिल किसानों से इतर अन्य किसानों का गुस्सा काफी हद तक शांत होने की संभावना है. वैसे, पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर देखा जाए, तो भाजपा के लिए ये फैसला कोई खास महत्व नहीं रखता है. दरअसल, पंजाब में भाजपा का अकाली दल के साथ गठबंधन था, जो टूट चुका है. इस स्थिति में भाजपा के लिए पंजाब में बेहतरीन प्रदर्शन कर पाना टेढ़ी खीर नजर आता है. लेकिन, राजनीति में कुछ भी संभव है. हो सकता है कि इस फैसले के सहारे भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले कुछ बेहतर प्रदर्शन कर जाए.

पिछले रिकॉर्ड को देखें, तो रबी की 6 फसलों पर बढ़े एमएसपी से हरियाणा के किसानों का फायदा होना तय माना जा सकता है.

हरियाणा के भी किसानों का क्या फायदा होगा?

मोदी सरकार के इस फैसले से हरियाणा के किसानों को भी पंजाब और पश्चिमी यूपी की तरह ही फायदा मिलता दिख रहा है. पिछले रिकॉर्ड को देखें, तो रबी की 6 फसलों पर बढ़े एमएसपी से हरियाणा के किसानों का फायदा होना तय माना जा सकता है. इसी साल जनवरी में सरसों की खरीद में हरियाणा ने रिकॉर्ड बनाया था. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, हरियाणा सरकार पिछले तीन साल से अपने कुल उत्पादन की 20 फीसदी से अधिक सरसों की सरकारी खरीद कर रही है. इस साल ये खरीद 24.6 फीसदी से ज्यादा रही थी. कुल मिलाकर आसान शब्दों में कहा जाए, तो मोदी सरकार के हालिया मास्टरस्ट्रोक के बाद किसान आंदोलन के और ज्यादा सिमटने की संभावना बढ़ गई है. क्योंकि, किसान एमएसपी पर खरीद और सुविधाएं चाहता है. आंदोलन नहीं. वहीं, अगर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे भाजपा के पक्ष में गए, तो किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश से पूरी तरह खत्म ही हो जाएगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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