• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कोविड 19 पर मोदी के वाराणसी मॉडल में कोई खास मैसेज भी है क्या

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 मई, 2021 03:31 PM
  • 22 मई, 2021 03:31 PM
offline
कोरोना कंट्रोल में वाराणसी मॉडल (Varanasi Model) की तारीफ करने के बीच ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को भावुक भी देखा गया - क्या मोदी का भावुक (Modi Emotional) होना लोगों के जख्मों पर मरहम लगा पाएगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए नया मंत्र दिया है - 'जहां बीमार, वहीं उपचार'. ये मंत्र प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के डॉक्टरों और कोरोना संकट से पैदा हालात को संभालने में लगे अफसरों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान दिया. पहले इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी 'दो गज की दूरी' और 'दवाई भी कड़ाई भी' जैसे मंत्र दे चुके हैं.

बनारस के डॉक्टरों से संवाद से पहले जब प्रधानमंत्री मोदी तूफान प्रभावित गुजरात के दौरे पर गये थे तो वहां भी वाराणसी मॉडल (Varanasi Model) का जिक्र किया था. प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद में मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, उनके मंत्रियों और सीनियर अफसरों से तूफान और कोरोना को लेकर मीटिंग - और उसी दौरान बताया कि वाराणसी मॉडल कोरोना से निबटने में कितना सक्षम है और उससे सीखने की जरूरत है.

बनारस में कोरोना कंट्रोल में जूझ रही टीम से बात करते हुए प्रधानमंत्री कुछ पल के लिए भावुक भी हो गये - मोदी ने कहा, हमने इस महामारी में कई अपनों को खोया है... मेरी उन सभी को श्रद्धांजलि.

प्रधानमंत्री को भावुक होते पहली बार तो नहीं देखा गया, लेकिन ऐसे वक्त जब पूरे देश में कोरोना से मुकाबले में सरकार के रवैये की आलोचना हो रही है - मोदी का भावुक (Modi Emotional) होना भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

ये तो नहीं कहा जा सकता कि प्रधानमंत्री ने लोगों से कनेक्ट होने के लिए बॉडी लैंग्वेज में कोई पॉलिटिकली करेक्ट बयान देने की कोशिश की है, लेकिन ट्विटर पर जब #CrocodileTears ट्रेंड होने लगे तो ऐसी चीजों को भी राजनीति के हिसाब से सोचना और समझना जरूरी हो जाता है - क्योंकि अब तो ये भी वाराणसी मॉडल का ही हिस्सा बन चुका है.

कोविड 19 कंट्रोल का वाराणसी मॉडल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात दौरे में वाराणसी मॉडल की चर्चा होने की भी खास वजह रही - और वो थी वाराणसी मॉडल का गुजरात कनेक्शन. प्रधानमंत्री हाल फिलहाल देश के कई जिलाधिकारियों से कोरोना संकट की जरूरतों को...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए नया मंत्र दिया है - 'जहां बीमार, वहीं उपचार'. ये मंत्र प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के डॉक्टरों और कोरोना संकट से पैदा हालात को संभालने में लगे अफसरों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान दिया. पहले इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी 'दो गज की दूरी' और 'दवाई भी कड़ाई भी' जैसे मंत्र दे चुके हैं.

बनारस के डॉक्टरों से संवाद से पहले जब प्रधानमंत्री मोदी तूफान प्रभावित गुजरात के दौरे पर गये थे तो वहां भी वाराणसी मॉडल (Varanasi Model) का जिक्र किया था. प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद में मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, उनके मंत्रियों और सीनियर अफसरों से तूफान और कोरोना को लेकर मीटिंग - और उसी दौरान बताया कि वाराणसी मॉडल कोरोना से निबटने में कितना सक्षम है और उससे सीखने की जरूरत है.

बनारस में कोरोना कंट्रोल में जूझ रही टीम से बात करते हुए प्रधानमंत्री कुछ पल के लिए भावुक भी हो गये - मोदी ने कहा, हमने इस महामारी में कई अपनों को खोया है... मेरी उन सभी को श्रद्धांजलि.

प्रधानमंत्री को भावुक होते पहली बार तो नहीं देखा गया, लेकिन ऐसे वक्त जब पूरे देश में कोरोना से मुकाबले में सरकार के रवैये की आलोचना हो रही है - मोदी का भावुक (Modi Emotional) होना भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

ये तो नहीं कहा जा सकता कि प्रधानमंत्री ने लोगों से कनेक्ट होने के लिए बॉडी लैंग्वेज में कोई पॉलिटिकली करेक्ट बयान देने की कोशिश की है, लेकिन ट्विटर पर जब #CrocodileTears ट्रेंड होने लगे तो ऐसी चीजों को भी राजनीति के हिसाब से सोचना और समझना जरूरी हो जाता है - क्योंकि अब तो ये भी वाराणसी मॉडल का ही हिस्सा बन चुका है.

कोविड 19 कंट्रोल का वाराणसी मॉडल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात दौरे में वाराणसी मॉडल की चर्चा होने की भी खास वजह रही - और वो थी वाराणसी मॉडल का गुजरात कनेक्शन. प्रधानमंत्री हाल फिलहाल देश के कई जिलाधिकारियों से कोरोना संकट की जरूरतों को लेकर बातचीत कर चुके हैं. हर बातचीत में कुछ न कुछ ऐसी नयी चीज सामने आयी है. इस संवाद पर विवाद भी हुआ है क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे देश के संघीय ढांचे में केंद्र की दखल मानती है.

देश कोरोना के चलते बेकाबू होते हालात में वाराणसी की भी हालत बुरी होने लगी थी. कोविड 19 संक्रमण के मामले बढ़ने के साथ साथ रोजाना होने वाली मौतों की संख्या भी बढ़ने लगी थी - और तभी गंगा में उतराये शवों को देख कर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी बेहद आक्रामक ट्वीट किया था.

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन वाराणसी को लेकर राजनीतिक विरोधियों के ऐसे हमले प्रधानमंत्री मोदी क्या किसी के लिए भी परेशान करने वाले हो सकते हैं.

पहले से ही लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों के साथ साथ वाराणसी में भी लोग ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए भागते नजर आये. वाराणसी से तो एक मां-बेटे की तस्वीर भी वायरल हुई थी, जिसमें जौनपुर से वाराणसी जाकर अस्पताल में एडमिट कराने के लिए ई-रिक्शा पर भटकती एक महिला को बेटे के शव के साथ घर लौटना पड़ा था. उसके बेटे ने रिक्शे पर ही दम तोड़ दिया था.

तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बरसों पुराने आदमी को बनारस की जिम्मेदारी संभालने का काम सौंपा. गुजरात काडर के नौकरशाह रहे अरविंद शर्मा अब बीजेपी के एमएलसी हैं और फिलहाल वाराणसी में डेरा डाले हुए हैं. मऊ के रहने वाले अरविंद शर्मा को पिछले चुनाव में ही बीजेपी ने विधान परिषद भेजा था.

कोरोना कंट्रोल का वाराणसी मॉडल बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से भी फायदेमंद हो सकता है क्या?

बहरहाल, अरविंद शर्मा वाराणसी के मोर्चे पर डट गये और जल्द ही स्थिति को काबू में भी कर लिया - और प्रधानमंत्री मोदी ने तारीफ भी की. बोले, बनारस ने जिस गति से कम समय में आइसीयू बेड बढ़ाया और डीआरडीओ अस्‍पताल को स्‍थापित किया... बनारस का कोविड कमांड सेंटर बढिया काम कर रहा है... जो योजनाएं बनी जो अभियान चले उसने कोरोना से लड़ने में मदद की.

बनारस में इंतजामों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'यहां के हेल्‍थ सिस्‍टम पर सात सालों में जो काम हुआ उसने हमारा बहुत साथ दिया... फ‍िर भी ये असाधारण हालात रहे... एक एक के लिए दिन रात काम किया... खुद की तकलीफ से ऊपर उठ कर जी जान से काम करते रहे... आपकी तपस्‍या से बनारस ने जिस तरह कम समय में खुद को संभाला है, आज पूरे देश में उसकी चर्चा हो रही है.'

दो दिन पहले ही बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा ने बनारस की कामयाबी का क्रेडिट प्रधानमंत्री मोदी को देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रति भी आभार जताया था.

प्रधानमंत्री का भावुक हो जाना क्या कहलाता है?

ट्विटर पर घड़ियाली आंसू भले ट्रेंड करे, लेकिन प्रधानमंत्री ने तो घड़ियाली आंसू बहाये भी नहीं. हां, कंट्रोल नहीं करते तो शायद आंसू निकल आते, लेकिन कुछ पल के लिए रुक कर खुद को संभाल लिया और आंसुओं को बाहर आने से भी प्रधानमंत्री मोदी ने रोक लिया.

प्रधानमंत्री मोदी की आवाज जरूर बदल गयी थी. गला रूंधा हुआ लग रहा था - और दुख-दर्द चेहरे पर साफ दिखायी दे रहा था. रूंधे गले से ही प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से जान गवां चुके लोगों को श्रद्धांजलि भी दी.

समझने वाली बात ये भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की कट्टर विरोधी कांग्रेस भी नहीं कह रही है कि उन्होंने घड़ियाली आंसू बहाये - क्योंकि कांग्रेस की नजर में ये प्रधानमंत्री का अपराधबोध हो सकता है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला की प्रतिक्रिया तो ऐसी ही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक मजबूत नेता की रही है - और अपनी छवि के मुताबिक मोदी को न तो अब भावुक होने की जरूरत थी और न ही आंसू बहाने की - क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी भले ही अब भावुक हो जायें, लेकिन जिनके अपने ऑक्सीजन न मिलने की वजह से, अस्पताल में एडमिशन न होने के चलते और जरूरी दवाइयों के अभाव में दम तोड़ दिये - उनके भी आंसू सूख चुके हैं.

अपनों को गंवा चुके लोगों की भावनाओं को जो ठेस पहुंची है, उस पर एक ही चीज मरहम लगा सकती है - आगे से किसी के साथ वैसा न हो. ऐसा अक्सर देखा गया है कि अपनों को किसी भी वजह से गवां चुके लोग बाकियों की सेवा में लग जाते हैं और उनको वैसी परिस्थितियों से बचाने की कोशिश करते हैं जिनकी वजह से उनके अपनों को जान गंवानी पड़ी.

सुबह का भूला अगर शाम को भी घर न पहुंच पाये तो न सही, लेकिन जब भी पहुंचे और उसे भूल का एहसास हो तो भी बर्दाश्त हो जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह कोरोना की पिछली लहर में बार बार टीवी पर आकर लोगों की हौसलाअफजाई करते रहे, ऐसा इस बार जो किया वो औपचारिक सा लगा. कोरोना का पहला दौर सड़क पर निकल पड़े दिहाड़ी मजदूरों के लिए जरूरी पीड़ादायक रहा, लेकिन ये दौर तो हर किसी के लिए हृदयविदारक रहा है - और वैसी हालत में प्रधानमंत्री की खामोशी सबको खल रही होगी.

प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति लोगों की नाराजगी पंचायत चुनाव के नतीजों में भी देखने को मिली है. यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोक सभा क्षेत्र वाराणसी में भी बीजेपी को बहुत बुरी शिकस्त फेस करनी पड़ी है, अयोध्या और मथुरा सहित यूपी के बाकी हिस्सों का तो जो हाल रहा वो अलग ही है.

सबको मालूम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों की चिंता खास तौर पर सताने लगी होगी. लेकिन लोगों का जो लुट चुका है उसकी भरभायी न भावुक होकर की जा सकती है और न ही आंसू बहाकर - गलतियों को स्वीकार कर अगर आगे से भूल सुधार दिखायी देने लगे तो भी प्रधानमंत्री बीजेपी को होने वाले नुकसान की आशंका से उबार सकते हैं.

मान लेते हैं कि अरविंद शर्मा ने ब्यूरोक्रेसी के अपने बीते अनुभवों की बदौलत वाराणसी में स्थिति को संभाल लिया, लेकिन बाकी जगहों का क्या होगा - ये भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही सोचना होगा.

इन्हें भी पढ़ें :

मोदी के करीबी IAS अफसर रहे अरविंद शर्मा का BJP ज्वाइन करना खास तो है ही

कोविड 19 से होने वाली मौतों का आंकड़ा छुपाना भी मरने वालों का अपमान है

यूपी सरकार 3 मरे या 1621 ये मत बताइये, बस ये बताइये क्यों मरे?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲