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EVM और चुनाव आयोग पर भेजी गई लानतों के भरोसे होतीं मायावती

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 17 अप्रिल, 2019 04:59 PM
  • 17 अप्रिल, 2019 04:59 PM
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चुनाव आयोग की कार्रवाई को भी मायावती ने वही राजनीतिक रंग देना शुरू किया है जो उनकी बचाव की स्टाइल रही है. लगातार चुनावी हार के बाद लगता है मायावती ध्यान भटका कर राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश कर रही हैं.

मायावती अपने खिलाफ एक्शन के बाद चुनाव आयोग पर टूट पड़ीं. आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के लिए चुनाव आयोग ने मायावती को 48 घंटे के लिए चुप रहने की हिदायत दी है.

कार्रवाई से आपे से बाहर हुईं मायावती ने चुनाव आयोग पर जातिवादी भेदभाव का इल्जाम लगाया है. अब तक मायावती EVM के पीछे पड़ी थीं - अब चुनाव आयोग पर ही बरस पड़ी हैं.

वैसे मायावती दावे के साथ ऐसा कैसे कह सकती हैं - क्योंकि चुनाव आयोग ने अकेले मायावती के खिलाफ एक्शन तो लिया नहीं है.

जातिवादी कैसे हो गया चुनाव आयोग?

हाल ही में चुनाव आयोग ने राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और नीति आयोग के सीईओ राजीव कुमार को आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया था. कल्याण सिंह के खिलाफ आयोग ने अपनी सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दिया था. योगी आदित्यनाथ और राजीव कुमार को चेतावनी देकर छोड़ दिया था. टीएन शेषन के कार्यकाल से पहले और बाद में चुनाव आयोग का वो तेवर देखने को नहीं मिला था.

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा था कि वो सिर्फ नोटिस क्यों भेज रहा है - सख्त एक्शन क्यों नहीं ले रहा? तब कहीं जाकर चुनाव आयोग हरकत में आया और एक्शन लेना शुरू किया.

फिर चुनाव आयोग ने बीएसपी नेता मायावती को 48 घंटे और योगी आदित्यनाथ को 72 घंटे चुप रहने के लिए फरमान जारी किया. योगी आदित्यनाथ तो हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए अयोध्या की तैयारी में जुट गये लेकिन मायावती को ये सब बिलकुल नागवार गुजरा. चुनाव आयोग ने ये कार्रवाई मायावती के देवबंद में दिये भाषण को लेकर की है. देवबंद में सपा-बसपा गठबंधन की संयुक्त रैली में मायावती ने मुस्लिम समुदाय से अपना वोट किसी भी सूरत में बंटने न देने की सलाह दी थी. मायावती के बयान को लेकर खूब विवाद भी हो रहा था.

चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ मायावती सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचीं, लेकिन अदालत ने उनकी अर्जी पर सुनवाई से इंकार कर दिया. कोर्ट का कहना रहा कि चुनाव आयोग ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया है और वो सिर्फ...

मायावती अपने खिलाफ एक्शन के बाद चुनाव आयोग पर टूट पड़ीं. आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के लिए चुनाव आयोग ने मायावती को 48 घंटे के लिए चुप रहने की हिदायत दी है.

कार्रवाई से आपे से बाहर हुईं मायावती ने चुनाव आयोग पर जातिवादी भेदभाव का इल्जाम लगाया है. अब तक मायावती EVM के पीछे पड़ी थीं - अब चुनाव आयोग पर ही बरस पड़ी हैं.

वैसे मायावती दावे के साथ ऐसा कैसे कह सकती हैं - क्योंकि चुनाव आयोग ने अकेले मायावती के खिलाफ एक्शन तो लिया नहीं है.

जातिवादी कैसे हो गया चुनाव आयोग?

हाल ही में चुनाव आयोग ने राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और नीति आयोग के सीईओ राजीव कुमार को आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया था. कल्याण सिंह के खिलाफ आयोग ने अपनी सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दिया था. योगी आदित्यनाथ और राजीव कुमार को चेतावनी देकर छोड़ दिया था. टीएन शेषन के कार्यकाल से पहले और बाद में चुनाव आयोग का वो तेवर देखने को नहीं मिला था.

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा था कि वो सिर्फ नोटिस क्यों भेज रहा है - सख्त एक्शन क्यों नहीं ले रहा? तब कहीं जाकर चुनाव आयोग हरकत में आया और एक्शन लेना शुरू किया.

फिर चुनाव आयोग ने बीएसपी नेता मायावती को 48 घंटे और योगी आदित्यनाथ को 72 घंटे चुप रहने के लिए फरमान जारी किया. योगी आदित्यनाथ तो हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए अयोध्या की तैयारी में जुट गये लेकिन मायावती को ये सब बिलकुल नागवार गुजरा. चुनाव आयोग ने ये कार्रवाई मायावती के देवबंद में दिये भाषण को लेकर की है. देवबंद में सपा-बसपा गठबंधन की संयुक्त रैली में मायावती ने मुस्लिम समुदाय से अपना वोट किसी भी सूरत में बंटने न देने की सलाह दी थी. मायावती के बयान को लेकर खूब विवाद भी हो रहा था.

चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ मायावती सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचीं, लेकिन अदालत ने उनकी अर्जी पर सुनवाई से इंकार कर दिया. कोर्ट का कहना रहा कि चुनाव आयोग ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया है और वो सिर्फ आचार संहिता तोड़ने वालों पर कार्रवाई कर रहा है.

आगरा रैली में मायावती का संदेश पढ़ने वाले आकाश आनंद बैठे भी मायावती की ही कुर्सी पर थे...

कार्रवाई ने नाराज मायावती ने चुनाव आयोग पर जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त होने का आरोप लगाया है. चुनाव आयोग पर बरसते हुए मायावती ने कहा कि बगैर मेरा पक्ष सुने ही मुझ पर पाबंदी लगा दी गयी - और मोदी-शाह को खुली छूट है. मायावती ने आयोग की कार्रवाई को क्रूरतापूर्ण और इतिहास का काला आदेश तक बता डाला. बीएसपी नेता का कहना है कि अपनी सरकार बनने पर वो ब्याज सहित भरपाई कर देंगी और सबसे पहले आगरा और फतेहपुर आऊंगी.

ये ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार से पहले चुनाव आयोग नोटिस भेजने और जवाब मिलने पर भी सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दे रहा था. ऐसा वो सभी के साथ कर रहा था. जब चुनाव आयोग ने एक्शन लिया तो आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले सभी नेताओं के खिलाफ ले रहा है. चुनाव आयोग ने मायावती के साथ साथ योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और समाजवादी पार्टी नेता मोहम्मद आजम खां के भी चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी है.

सवाल उठता है कि जब मायावती सहित चार लोगों के खिलाफ एक जैसी कार्रवाई हुई है तो चुनाव आयोग पर सवाल उठाने का क्या तुक है?

आयोग पर ये इल्जाम लगाने से पहले मायावती EVM को लेकर भी सवाल उठाती रही हैं. 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मायावती ने भी सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाये थे. 2014 के लोक सभा चुनाव के बाद मायावती यूपी विधानसभा चुनाव दोबारा हार गयी थीं.

मायावती का ये स्टैंड इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी उम्मीदवारों की जीत और उससे पहले कर्नाटक चुनाव में एक सीट पर जीत के बाद मायावती ने ईवीएक की कोई चर्चा नहीं की. यहां तक की जनवरी में जब सपा-बसपा गठबंधन का ऐलान हो रहा था तब भी मायावती ने ऐसी ही बात कही थी - अगर ईवीएम में या कोई और गड़बड़ी नहीं की गयी तो गठबंधन की जीत निश्चित है.

वैसे ये क्या बात हुई जब चुनाव आयोग ने देश के राजनीतिक दलों को ईवीएम हैक करने के लिए चैलेंज किया था तो सभी भाग खड़े हुए. जब जीतते हैं तो कोई सवाल नहीं होता और जब चुनाव हार जाते हैं तो बवाल शुरू कर देते हैं.

क्या मायावती ईवीएम और चुनाव आयोग पर हमला बोलकर अपने समर्थकों का ध्यान बंटाना चाहती हैं - या फिर नतीजों को लेकर सशंकित होने के कारण पहले से ही ठीकरे का इंतजाम कर रही हैं?

आयोग के एक्शन से फर्क ही क्या पड़ा है?

जाति के नाम पर अपमान की राजनीति बीएसपी लंबे समय से करती आयी है. दलितों के कल्याण के नाम पर मायावती की राजनीति 'दलित की बेटी के सम्मान' के इर्द गिर्द ही घूमती रही है. जब भी ऐसा वैसा कुछ होता है तो बीएसपी के कुछ नेता सड़कों पर उतर कर मायावती के नाम पर विक्टिम-कार्ड खेलने लगते हैं. राज्य सभा से भी मायावती ने इस्तीफा देते वक्त भी यही तरीका अपनाया था - 'जब दलितों का मुद्दा नहीं उठा सकते तो संसद में रहने का क्या तुक बनता है.'

मायावती चाहे जो रणनीति बनाकर चल रही हों, लेकिन हकीकत ये है कि दलित समुदाय का एक हिस्सा मायावती से कटने लगा है. ये हिस्सा कोई और नहीं बल्कि दलित समुदाय की नयी पीढ़ी है. दलित समुदाय की नयी पीढ़ी को जोड़े रखने के मकसद से ही मायावती अपने छोटे भाई आनंद कुमार को पार्टी में लाने और बाहर करने के बाद अब उनके बेटे आकाश आनंद को लायी हैं.

पाबंदी के कारण मायावती गठबंधन की आगरा रैली में नहीं गयी थीं. हाल के दिनों में तकरीबन हर वक्त साथ नजर आने वाले भतीजे आकाश आनंद मायावती के प्रतिनिधि बन कर आगरा पहुंचे थे. आकाश आनंद ने रैली में अच्छा खासा भाषण भी दिया. तरीका भी बिलकुल वही था जो मायावती का हुआ करता है.

रैली में आकाश आनंद ने एक लिखा हुआ नोट पढ़ा जिसे उन्होंने बुआ का संदेश बताया. संदेश के नाम पर जो कुछ भी आकाश आनंद ने पढ़ कर सुनाया वो था तो वही जो मायावती मौजूद होती तो खुद पढ़ी होतीं. ये तो वही हुआ कि जो लिखी बातें मायावती के पढ़ने पर उनका भाषण कहलाता. वही आकाश आनंद के पढ़ने पर बीएसपी नेता का संदेश कहलाया. देखा जाये तो मायावती की राजनीतिक सेहत पर कोई फर्क पड़ा हो ऐसा तो नहीं लगता - बल्कि ये तो डबल फायदा वाला रहा - लगे हाथ आकाश आनंद की भी औपचारिक एंट्री हो गयी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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