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यदि चुनाव आयोग नेताओं को 'अयोग्‍य' घोषित करने लगेगा, तो मंजूर होगा?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 15 अप्रिल, 2019 10:20 PM
  • 15 अप्रिल, 2019 10:20 PM
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हमारे नेताओं द्वारा धर्म, जाति, लिंग को लेकर लगातार की जा रही बेबुनियाद बातों और आरोप प्रत्यारोपों के बाद कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग को इस पर सख्त होना चाहिए. मगर सवाल जस का तस है कि यदि ऐसा हो गया तो क्या हम इस बात को स्वीकृति दे पाएंगे? जवाब है नहीं.

चुनाव से पहले नेताओं के द्वारा आचार संहिता का उल्‍लंघन या फिर ऊल जलूल बयान देना कोई नई बात नहीं है. अभी कुछ दिन पहले की ही बात है. उत्तर प्रदेश के देवबंद में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की रैली में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एक ऐसा बयान दे दिया था जिससे सियासी गलियारों में घमासान मच गया. रैली को संबोधित करने हुए मायावती ने कहा था कि मुस्लिम मतदाताओं को भावनाओं में बहकर अपने मतों को बंटने नहीं देना है. मायावती के इस बयान को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आड़े हाथों लिया था और बजरंग बली और अली' का जिक्र कर मायावती पर तीखे हमले किये थे.

योगी आदित्यनाथ और मायावती को सजा देकर चुनाव आयोग ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है

तमाम आलोचनाओं को झेलने के बाद आखिरकार चुनाव आयोग मामले को लेकर सख्त हुआ है. आयोग ने दोनों ही नेताओं पर कड़ा रुख अपनाया है. चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर 72 घंटे और बसपा सुप्रीमो मायावती पर 48 घंटे के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. इस तरह से यह दोनों बड़े नेता अपने दल के लिए प्रतिबंध के दौरान चुनाव प्रचार नहीं कर पाएंगे.

ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बसपा सुप्रीमो मायावती की इन्हीं बयानबाजियों को लेकर अभी कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि दोनों ही नेताओं पर सख्त एक्शन लिया जाए और इन पर बैन लगा दिया जाए. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आदर्श आचार संहिता का उल्‍लंघन करने वाले इन बयानों के मद्देनजर उसने अब तक क्‍या कार्रवाई की है?

कोर्ट के इस सवाल पर चुनाव आयोग ने अपनी मजबूरियां जताते हुए कहा कि आचार संहिता के उल्‍लंघन पर नेताओं...

चुनाव से पहले नेताओं के द्वारा आचार संहिता का उल्‍लंघन या फिर ऊल जलूल बयान देना कोई नई बात नहीं है. अभी कुछ दिन पहले की ही बात है. उत्तर प्रदेश के देवबंद में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की रैली में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एक ऐसा बयान दे दिया था जिससे सियासी गलियारों में घमासान मच गया. रैली को संबोधित करने हुए मायावती ने कहा था कि मुस्लिम मतदाताओं को भावनाओं में बहकर अपने मतों को बंटने नहीं देना है. मायावती के इस बयान को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आड़े हाथों लिया था और बजरंग बली और अली' का जिक्र कर मायावती पर तीखे हमले किये थे.

योगी आदित्यनाथ और मायावती को सजा देकर चुनाव आयोग ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है

तमाम आलोचनाओं को झेलने के बाद आखिरकार चुनाव आयोग मामले को लेकर सख्त हुआ है. आयोग ने दोनों ही नेताओं पर कड़ा रुख अपनाया है. चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर 72 घंटे और बसपा सुप्रीमो मायावती पर 48 घंटे के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. इस तरह से यह दोनों बड़े नेता अपने दल के लिए प्रतिबंध के दौरान चुनाव प्रचार नहीं कर पाएंगे.

ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बसपा सुप्रीमो मायावती की इन्हीं बयानबाजियों को लेकर अभी कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि दोनों ही नेताओं पर सख्त एक्शन लिया जाए और इन पर बैन लगा दिया जाए. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आदर्श आचार संहिता का उल्‍लंघन करने वाले इन बयानों के मद्देनजर उसने अब तक क्‍या कार्रवाई की है?

कोर्ट के इस सवाल पर चुनाव आयोग ने अपनी मजबूरियां जताते हुए कहा कि आचार संहिता के उल्‍लंघन पर नेताओं और दलों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उसकी शक्तियां सीमित सीमित हैं. चुनाव आयोग के इस उत्तर पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कार्रवाई करने की बाबत निर्वाचन आयोग के अधिकारों का परीक्षण करेगा.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनाव आयोग भी बेबस नजर आया

इसके अलावा सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से ये भी पूछा कि मायावती के धार्मिक आधार पर वोट मांगने वाले बयान पर आपकी ओर से क्‍या कार्रवाई की गई. चुनाव आयोग के वकील ने अदालत को बताया कि इस मामले में पहले ही बसपा सुप्रीमो से जवाब मांगा गया है. मायावती को 12 अप्रैल तक जवाब देना था लेकिन चुनाव आयोग को अभी उनका जवाब नहीं मिला है.

मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई की अध्‍यक्षता वाली पीठ ने चुनाव आयोग से पूछा कि बताइये अब आप क्‍या करने वाले हैं. निर्वाचन आयोग की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि सांविधानिक निकाय ऐसे मामलों में नोटिस और उसके बाद एडवाइजरी जारी कर सकता है.इसके बाद भी यदि कोई नेता ऐसी बायानबाजी जारी रखता है तो उसके खिलाफ कानून के उल्‍लंघन को लेकर शिकायत दर्ज करा सकता है. उसके पास किसी नेता को अयोग्‍य ठहराने की शक्ति नहीं है.

मांग की जा रही है कि जाया प्रदा पर दिए बयान के बाद आजम खान को सख्त से सख्त सजा दी जाए

अभी मायावती-योगी विवाद ठंडा भी नहीं हुआ है कि जया प्रदा को लेकर दिए गए आज़म खान के बयान ने तूल पकड़ लिया है. मांग की जा रही है कि आज़म के इस बयान पर कार्रवाई करते हुए चुनाव आयोग उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दे. अभी चुनाव आयोग मायावती-योगी के बाद आज़म खान पर कार्रवाई करता इससे पहले ही जो कुछ शिव सेना नेता संजय राउत  ने कहा है उसने हमें ये साफ बता दिया कि देश में चुनाव आयोग की जरूरत बस खानापूर्ति के लिए है. राउत ने कहा है कि हम ऐसे लोग हैं, भाड़ में गया कानून, आचार संहिता भी हम देख लेंगे. जो बात हमारे मन में है, वो अगर मह मन से बाहर नहीं निकालें तो घुटन सी होती है.

राउत के इस बयान के अलावा हमें हिमाचल प्रदेश से भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती के उस बयान का भी अवलोकन करना चाहिए जिसमें वो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को साफ साफ गाली देते नजर आ रहे हैं.

उपरोक्त बातें पढ़कर सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा ? कब वो दिन आएगा जब चुनाव आयोग इस चीज को लेकर वाकई सख्त होगा और बदजुबानी कर रहे नेताओं पर नकेल कसेगा? जवाब इस प्रश्न में ही छिपा है. ऐसा संभव नहीं है.

बात शीशे की तरह साफ है यदि चुनाव आयोग नेताओं को 'अयोग्‍य' घोषित करने लगेगा, तो इसे हम खुद कभी स्वीकृति नहीं देंगे. इसके अलावा ये चीज खुद चुनाव आयोग के लिए भी किसी टेढ़ी से कम नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि बात जब किसी नेता पर एक्शन लेने या फिर उसे चुनावों से बैन करने की होगी, तो ये चीज यूं ही हवाहवाई नहीं होगी.

ये के लम्बी प्रक्रिया है.इसके लिए पर्याप्त सबूत लगेंगे. दोनों पक्षों को अपने अपने वकील लाने होंगे. पूरी जांच प्रक्रिया लम्बी चलेगी और जैसा कानून का रवैया है और विलंभ के चलते पूरी प्रक्रिया निश्चित तौर पर ठंडे बसते में चली जाएगी और बात घूम फिरकर फिर वहीं अदालतों में पहुंच जाएगी. अदालतों में न्याय किसे और कितनी देर में मिलता है ये भी हमसे छुपा नहीं है.

ध्यान रहे कि अब जबकि खुद चुनाव आयोग अपने को बेबस मान चुका है और ये खबर हमारे अलावा नेताओं के बीच आ चुकी है. तो हमारे लिए भी ये देखना दिलचस्प रहेगा कि हमारे नेता अपने विवेक का परिचय देते हुए खुद अपनी जुबान को नियंत्रण में रखते हैं. या फिर ये आरोप प्रत्यारोप यूं ही लगते रहेंगे और इन आरोपों को लगाने वाले नेताइस बात को लेकर बिल्कुल बेफिक्र रहेंगे कि वो किसी को भी कुछ भी कह सकते हैं कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर पाएगा. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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