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ममता बनर्जी को लगी चोट का मामला साफ होना टीएमसी के लिए खतरे की घंटी!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 15 मार्च, 2021 06:40 PM
  • 15 मार्च, 2021 06:40 PM
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पश्चिम बंगाल के भद्रलोक और जनता के बीच अपनी साफ-सुथरी छवि के सहारे राजनीति के शीर्ष पर पहुंचने वाली ममता बनर्जी का ये दांव उनके लिए उल्टा पड़ता दिख रहा है. ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर बैठकर सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इस राजनीतिक चाल ने उन्हें काफी गहरी 'चोट' पहुंचाई है.

पश्चिम बंगाल की राजनीतिक बिसात पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद आगे बढ़कर 'सहानुभूति' की एक चाल चली थी. चुनाव आयोग की रिपोर्ट ने इसे एक 'हादसा' बताकर तृणमूल कांग्रेस की मुखिया को एक कदम पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है. चुनाव आयोग ने कहा कि ममता बनर्जी पर हमले के कोई सबूत नही मिले हैं और उन्हें अचानक हुए हादसे में चोट लगी है. हालांकि, आयोग ने कार्रवाई करते हुए ममता के सुरक्षा निदेशक को पद से हटा दिया है व डीएम और एसपी पर भी गाज गिराई है. ममता बनर्जी ने इस 'हादसे' को 'हमले' के तौर पर पेश किया था. ममता बनर्जी का ये 'छल' अब पश्चिम बंगाल की जनता के सामने आ चुका है.

ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर बैठकर सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इस राजनीतिक चाल ने उन्हें काफी गहरी 'चोट' पहुंचाई है.

दीदी की इमेज पर लगी है 'चोट'

पश्चिम बंगाल के भद्रलोक और जनता के बीच अपनी साफ-सुथरी छवि के सहारे राजनीति के शीर्ष पर पहुंचने वाली ममता बनर्जी का ये दांव उनके लिए उल्टा पड़ता दिख रहा है. ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर बैठकर सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इस राजनीतिक चाल ने उन्हें काफी गहरी 'चोट' पहुंचाई है. चुनाव आयोग के फैसले के बाद ममता ने ट्वीट किया था कि हम निर्भीकता के साथ लड़ते रहेंगे. मैं अभी भी बहुत दर्द में हूं, लेकिन उससे ज्यादा मैं अपने लोगों का दर्द महसूस कर रही हूं. अपने राज्य की रक्षा की लड़ाई में हमें बहुत नुकसान हुआ है और आगे भी हम तकलीफ उठाने को तैयार हैं, लेकिन हम किसी के सामने झुकेंगे नहीं.

ममता बनर्जी ने खुद पर हुए मौखिक हमलों को हमेशा से ही बंगाली अस्मिता और...

पश्चिम बंगाल की राजनीतिक बिसात पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद आगे बढ़कर 'सहानुभूति' की एक चाल चली थी. चुनाव आयोग की रिपोर्ट ने इसे एक 'हादसा' बताकर तृणमूल कांग्रेस की मुखिया को एक कदम पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है. चुनाव आयोग ने कहा कि ममता बनर्जी पर हमले के कोई सबूत नही मिले हैं और उन्हें अचानक हुए हादसे में चोट लगी है. हालांकि, आयोग ने कार्रवाई करते हुए ममता के सुरक्षा निदेशक को पद से हटा दिया है व डीएम और एसपी पर भी गाज गिराई है. ममता बनर्जी ने इस 'हादसे' को 'हमले' के तौर पर पेश किया था. ममता बनर्जी का ये 'छल' अब पश्चिम बंगाल की जनता के सामने आ चुका है.

ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर बैठकर सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इस राजनीतिक चाल ने उन्हें काफी गहरी 'चोट' पहुंचाई है.

दीदी की इमेज पर लगी है 'चोट'

पश्चिम बंगाल के भद्रलोक और जनता के बीच अपनी साफ-सुथरी छवि के सहारे राजनीति के शीर्ष पर पहुंचने वाली ममता बनर्जी का ये दांव उनके लिए उल्टा पड़ता दिख रहा है. ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर बैठकर सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इस राजनीतिक चाल ने उन्हें काफी गहरी 'चोट' पहुंचाई है. चुनाव आयोग के फैसले के बाद ममता ने ट्वीट किया था कि हम निर्भीकता के साथ लड़ते रहेंगे. मैं अभी भी बहुत दर्द में हूं, लेकिन उससे ज्यादा मैं अपने लोगों का दर्द महसूस कर रही हूं. अपने राज्य की रक्षा की लड़ाई में हमें बहुत नुकसान हुआ है और आगे भी हम तकलीफ उठाने को तैयार हैं, लेकिन हम किसी के सामने झुकेंगे नहीं.

ममता बनर्जी ने खुद पर हुए मौखिक हमलों को हमेशा से ही बंगाली अस्मिता और संस्कृति पर हुए हमले की तरह पेश किया है. लेकिन, इस कथित हमले (चुनाव आयोग के हिसाब से हादसा) को वह जनता के सामने उस तरह से नहीं दिखा पा रही हैं, जैसा वह करना चाहती थीं. हमले के हादसे में तब्दील होने के साथ ही ममता की बनी-बनाई छवि पर एक बड़ा सा धब्बा नजर आने लगा है. यह धब्बा केवल राजनीतिक दलों ही नहीं जनता को भी साफ दिख रहा है. बंगाल का भद्रलोक दीदी की इस राजनीतिक चाल के समर्थन में आता नहीं दिख रहा है. उन्होंने भद्रलोक में एंट्री के लिए तरस रही भाजपा के लिए एक बड़ा मौका बना दिया है.

भाजपा के सामने कर लिया 'सेल्फ गोल'

भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य दलों ने पहले ही इस कथित हमले को पॉलिटिकल ड्रामा करार दे दिया था. चुनाव आयोग के फैसले के बाद भाजपा ने उसे लिखे अपने पत्र में इसे 'छल' घोषित कर दिया है. भाजपा ने मांग की है कि ममता बनर्जी की मेडिकल रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए, ताकि इस घटना का इस्तेमाल जनता को छलने में न किया जा सके. पश्चिम बंगाल में चौतरफा मिल रही चुनौतियों से जूझ रहीं 'दीदी' ने हड़बड़ाहट में एक ऐसा फैसला कर लिया, जो अब उनके लिए ही घातक हो गया है. ममता ने कथित हमले के बाद सीधे तौर पर भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले का आरोप लगाया था. इस आरोप से ममता ने एक चीज तो साफ कर दी है कि राज्य में लड़ाई भाजपा और टीएमसी के बीच ही है.

भाजपा इस मौके को भुनाने में कोई कोताही नहीं बरतेगी. हादसे को भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा हमला बताने को पार्टी आचार संहिता का उल्लंघन बता रही है. इसके साथ ही भाजपा ने कथित हमले के बाद बुखार और दर्द की शिकायत करने वाली ममता बनर्जी के नंदीग्राम को छोड़कर कोलकाता में इलाज कराने पर भी सवाल उठाए हैं. राज्य का स्वास्थ्य और पुलिस विभाग ममता बनर्जी के पास ही है. इस स्थिति में उनकी यह सहानुभूति पाने की रणनीति उन पर ही भारी पड़ती नजर आ रही है. भाजपा के बैरकपुर सांसद अर्जुन सिंह ने मुख्यमंत्री के सभी अस्पतालों को सुपर स्पेशलिटी वाला बताने के दावे की भी पोल खोल दी थी. सहानुभूति की 'दोधारी तलवार' के रास्ते में अब उनकी ही गर्दन आ चुकी है.

अपनी ही चाल में उलझीं, अब अंतिम हथियार है घोषणा पत्र

राज्य में भाजपा के दमदार 'दखल' ने ममता बनर्जी को असहज कर दिया है. कांग्रेस-वाम दलों के गठबंधन में अब्बास सिद्दीकी के शामिल होने से दीदी के मुस्लिम वोटबैंक में पहले ही सेंध लग चुकी है. तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेता पहले ही पार्टी से किनारा कर भाजपा की राजनीतिक जमीन पर अपना 'महल' खड़ा करने के ख्वाब बनाने लगे हैं. उनके खास सिपेहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम में उनके ही खिलाफ ताल ठोक रहे हैं. तमाम मुश्किलों में घिरी ममता बनर्जी 'शह और मात' के इस खेल में अपनी ही चाल की वजह से बुरी तरह उलझ गई हैं.

ममता बनर्जी के तरकश में चुनावी घोषणा पत्र नाम का आखिरी तीर बचा हुआ है. वह चाहें, तो इसके सहारे बिगड़े हुए खेल में फिर से वापसी कर मजबूत स्थिति में आ सकती हैं. जो चुनावी माहौल अभी उनके विपरीत जाता नजर आ रहा है, वह टीएमसी के पक्ष में भी आ सकता है. कहा जा सकता है कि मोशा (मोदी-शाह) की जोड़ी के सामने अब सारा दारोमदार घोषणा पत्र पर ही टिका हुआ है. चुनावी राज्य में जनता को रिझाने के लिए सहानुभूति से बड़ा हथियार घोषणा पत्र ही होता है. फिलहाल तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा पत्र को जारी करने का कार्यक्रम आगे बढ़ा दिया है. देखना दिलचस्प होगा कि हादसे की 'चोट' पर घोषणा पत्र के सहारे जनता और अपने जख्म पर ममता बनर्जी कौन सा 'मलहम' लगाती हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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