• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

'कट मनी वापसी' ममता बनर्जी की एक सोची समझी राजनीतिक मुहीम है

    • अरिंदम डे
    • Updated: 01 जुलाई, 2019 06:07 PM
  • 01 जुलाई, 2019 06:07 PM
offline
'कट मनी' वापस करने को कहके मुख्यमंत्री ने 'तोलबाजी' पर सरकारी मोहर लगा दिया. वैसे सबको पता ही था पर अब यह 'ऑफिशियल' है. क्या यह एक सोची समझी राजनीतिक योजना है? अगर है तो यह सरकार के लिए बड़ा जोखिम साबित हो सकता है.

'जय श्री राम' के बढ़ते हुई असर को रोकने के लिए बंगाल की मुख्यमंत्री ने शायद 'कट मनी वापसी' की मुहिम छेड़ दी है. क्या यह तृणमूल के नवीनतम राजनैतिक सलाहकार प्रशांत किशोर जी की सलाह से हुआ? फ़िलहाल नहीं मालूम. लेकिन यह जरूर मालूम है कि बंगाल में सरकारी योजनाओं में सुविधा से जातिगत प्रमाणपत्र तक के लिए 'कट मनी' देनी ही पड़ती है. अगर आपको घर बनवाना हो या नौकरी लगनी हो या लोन लेना हो तो यह चढ़ावा चढ़वाना ही पढता है. लोगों का कहना है कि आजकल काफी सारी जेबें गरम करना पड़ता है- खर्च बढ़ गया है, और लोभ भी.

ऐसा नहीं है कि ममता दीदी को इन सब हरकतों का पता नहीं, लेकिन अब तक यह उनके राजनीतिक उत्थान में कोई खलल नहीं डाल रहा था. तो मामला जस के तस चल रहा था. फिर 2019 के लोक सभा चुनाव आए और सारे गणित को उल्टा पुल्टा कर दिया. पार्टी के बाकि नेताओं को भी पता नहीं लगा कि यह कैसे हो गया. उनकी प्रतिकिया भी अजीबो गरीब रही. कभी जय श्रीराम के नारा लगाते हुए लोगों की तरफ दौड़ना, गिरफ़्तारी की धमकी देना, फिर यह कहना कि 'जो गाय दूध देती है उसकी लात भी खानी पढती है'. फिर अपने पार्टी को साफ करने के लिए उन्होंने कड़ा रुख अपनाया. कहा कि 'कट मनी' वापस करो. इस बयान ने तो जैसे आग में घी का काम किया. भाजपा को बैठे बिठाये मुद्दा मिल गया. सिंडिकेट और तोलबाजी के खिलाफ जनता में पहले से ही गुस्सा था, अब भाजपा ने उस गुस्से को इस्तेमाल करना शुरू किया. पंचायत और नगर निगम के कार्यकर्ताओं के घर और ऑफिस के सामने प्रदर्शन शुरू हो गए.

राज्य स्तर पे ममता का कट मनी वाला मामला काफी बड़ा हो चुका है

वैसे 'कट मनी' वापस करने को कहके मुख्यमंत्री ने 'तोलबाजी' पे सरकारी मोहर लगा दिया. वैसे सबको पता ही था पर अब यह 'ऑफिशियल' है. क्या यह एक सोची समझी राजनितिक योजना है? अगर है तो...

'जय श्री राम' के बढ़ते हुई असर को रोकने के लिए बंगाल की मुख्यमंत्री ने शायद 'कट मनी वापसी' की मुहिम छेड़ दी है. क्या यह तृणमूल के नवीनतम राजनैतिक सलाहकार प्रशांत किशोर जी की सलाह से हुआ? फ़िलहाल नहीं मालूम. लेकिन यह जरूर मालूम है कि बंगाल में सरकारी योजनाओं में सुविधा से जातिगत प्रमाणपत्र तक के लिए 'कट मनी' देनी ही पड़ती है. अगर आपको घर बनवाना हो या नौकरी लगनी हो या लोन लेना हो तो यह चढ़ावा चढ़वाना ही पढता है. लोगों का कहना है कि आजकल काफी सारी जेबें गरम करना पड़ता है- खर्च बढ़ गया है, और लोभ भी.

ऐसा नहीं है कि ममता दीदी को इन सब हरकतों का पता नहीं, लेकिन अब तक यह उनके राजनीतिक उत्थान में कोई खलल नहीं डाल रहा था. तो मामला जस के तस चल रहा था. फिर 2019 के लोक सभा चुनाव आए और सारे गणित को उल्टा पुल्टा कर दिया. पार्टी के बाकि नेताओं को भी पता नहीं लगा कि यह कैसे हो गया. उनकी प्रतिकिया भी अजीबो गरीब रही. कभी जय श्रीराम के नारा लगाते हुए लोगों की तरफ दौड़ना, गिरफ़्तारी की धमकी देना, फिर यह कहना कि 'जो गाय दूध देती है उसकी लात भी खानी पढती है'. फिर अपने पार्टी को साफ करने के लिए उन्होंने कड़ा रुख अपनाया. कहा कि 'कट मनी' वापस करो. इस बयान ने तो जैसे आग में घी का काम किया. भाजपा को बैठे बिठाये मुद्दा मिल गया. सिंडिकेट और तोलबाजी के खिलाफ जनता में पहले से ही गुस्सा था, अब भाजपा ने उस गुस्से को इस्तेमाल करना शुरू किया. पंचायत और नगर निगम के कार्यकर्ताओं के घर और ऑफिस के सामने प्रदर्शन शुरू हो गए.

राज्य स्तर पे ममता का कट मनी वाला मामला काफी बड़ा हो चुका है

वैसे 'कट मनी' वापस करने को कहके मुख्यमंत्री ने 'तोलबाजी' पे सरकारी मोहर लगा दिया. वैसे सबको पता ही था पर अब यह 'ऑफिशियल' है. क्या यह एक सोची समझी राजनितिक योजना है? अगर है तो यह सरकार के लिए बड़ा जोखिम साबित हो सकता है. राज्य स्तर पे यह मामला काफी बड़ा हो चुका है. चारों तरफ 'कट मनी' लौटाओ के नारे गूंज रहे हैं. भाजपा मुद्दे को जोर शोर से उठा रही है, तृणमूल के निचले स्तर के कार्यकर्ता जनरोष की तपिश महसूस कर रहे है.

हालांकि यह आग खुद मुख्यमंत्री जी ने ही लगायी है और इनके पीछे उनकी कोई तो सोची समझी रणनीति होगी. उन्होंने 'ग्रीवांस सेल' गठन करने की बात की है, जिलों में 'ग्रीवांस दिवस' की बात की जा रही है. मुख्यमंत्री जी को यह तो पता ही होगा कि इस आग की चिंगारी उनकी पार्टी की तरफ ही आएगी. लेकिन परिस्थिति भी तो विकट है.

बीते लोक सभा चुनाव में तृणमूल के खिलाफ था 'तोलबाजी' से परेशान लोगों का गुस्सा, जातीय ध्रुवीकरण और कुछ तृणमूल नेता/ कर्मियों का अंतरघात. अगर वो यह 'कट मनी वापसी' मुहीम को ठीक से संभाल पाते हैं तो पार्टी पर लगा 'तोलबाज', 'सिंडिकेट' जैसे तमगा खत्म हो जायेगा. इससे उनको यह भी पता लग जायेगा कि जनता की निशाने पर कहां-कहां के कैन-कौन नेता हैं. और इस विवाद को भड़का कर उन्होंने हर दिन तृणमूल से भाजपा में जाने वालों का तांता और उससे मची खलबली को कहीं न कहीं दबाने की कोशिश की है.

रणनीति कठिन तो है पर ठीक है. अब देखना है कि वह कैसे इस मुहीम को आगे ले जाते हैं, कैसे मैनेज करते हैं. वैसे भी भारत में, त्रेता युग हो या कलि, 'श्री राम' से जीतना नामुमकिन है, लेकिन 'कट मनी' और 'तोलबाजी' से शायद जीता जा सकता है.

ये भी पढ़ें-

ममता बनर्जी: सफाई करते-करते TMC ही ना साफ हो जाए!

राहुल गांधी के बाद ममता बनर्जी को भी समझ आ गयी हिंदुत्व की चुनावी ताकत

सॉफ्ट हिंदुत्व के मुकाबले बीजेपी का सियासी ब्रह्मास्त्र है सॉफ्ट सेक्युलरिज्म


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲