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ईवीएम मशीन का सबसे बड़ा सच क्यों नहीं बताते केजरीवाल ?

    • मालिनी अवस्थी
    • Updated: 11 मई, 2017 06:52 PM
  • 11 मई, 2017 06:52 PM
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आप नई तरह की राजनीति करने आये थे, नई तरह की राजनीति सिखाने आये थे, लेकिन, अब बहुत हुआ! आपके भक्त भी अब हमसे आंखे चुराने लगे हैं, आप का नाम आते ही विषय बदल देते हैं.

लोकतंत्र की ताकत से सत्ता पर क़ाबिज़ दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कल विधानसभा में बैठकर भारतीय लोकतंत्र के सर्वोच्च शिखर चुनाव आयोग का जिस निर्लज्जता से अपमान किया है, और जिस तरह मीडिया ने बिना विचारे उसका सजीव प्रसारण किया है, यह जनता के मन में सरासर शक डालने का घृणित करतब है और कुछ नहीं.

यहां फेसबुक पर भी मैंने कुछ अनपढ़ों को ईवीएम मशीन की निष्पक्षता पर सवाल उठाते देखा तो मुझसे रहा नहीं जा रहा. मैं चुनाव आयोग के साथ विगत अनेक वर्षों से जुड़ी हुई हूं. ईवीएम मशीन का किस तरह वोटर प्रयोग करें, इसके प्रशिक्षण में भी मैंने भाग लिया है, और कह सकती हूं, कि ईवीएम मशीनों के द्वारा मतदान पूर्णतः निष्पक्ष है.

मैं जानना चाहती हूं कि जब निर्वाचन आयोग इन्हें ही नहीं, सभी राजनैतिक दलों को खुली चुनौती देता है, तब ये कहां अन्तर्धान हो जाते हैं? यह कौन सी मशीन से डिमोन्सट्रेशन दिया गया है? क्या यह चुनाव आयोग द्वारा प्रयुक्त अधिकृत मशीन थी? या इस नौटंकी के लिए तैयार करा गया यंत्र? निष्पक्ष चुनाव आयोग का सबसे बड़ा सच ये नहीं बताते, और शायद हमारे उन विद्वान मित्रों को भी नहीं पता, जो कल फिर वैसे ही बहके, जैसे चार साल पहले बहके थे.

वह सच यह है कि, मतदान से पहले, सभी दलों के प्रतिनिधियों यानी बूथ एजेंट्स के सामने अनिवार्यतः एक ‘डेमो वोटिंग’ होती है. डेमो वोटिंग में अपने-अपने दल वाले वोट डालकर तसल्ली स्वयं करते हैं. यदि गड़बड़ी पहले से होगी, तो वह डेमो वोटिंग मे भी दिखेगी. आरोप लगाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री यह क्यों नही बताते कि डेमो वोटिंग और मतदान चालू होने के बीच किस समय मशीन हैक हो सकती है. क्योंकि डेमो वोटिंग के तत्काल बाद मतदान शुरू हो जाता है.

देश को अपने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और कार्यकुशलता पर गर्व है. संभवतः आप में से बहुतों को न मालूम...

लोकतंत्र की ताकत से सत्ता पर क़ाबिज़ दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कल विधानसभा में बैठकर भारतीय लोकतंत्र के सर्वोच्च शिखर चुनाव आयोग का जिस निर्लज्जता से अपमान किया है, और जिस तरह मीडिया ने बिना विचारे उसका सजीव प्रसारण किया है, यह जनता के मन में सरासर शक डालने का घृणित करतब है और कुछ नहीं.

यहां फेसबुक पर भी मैंने कुछ अनपढ़ों को ईवीएम मशीन की निष्पक्षता पर सवाल उठाते देखा तो मुझसे रहा नहीं जा रहा. मैं चुनाव आयोग के साथ विगत अनेक वर्षों से जुड़ी हुई हूं. ईवीएम मशीन का किस तरह वोटर प्रयोग करें, इसके प्रशिक्षण में भी मैंने भाग लिया है, और कह सकती हूं, कि ईवीएम मशीनों के द्वारा मतदान पूर्णतः निष्पक्ष है.

मैं जानना चाहती हूं कि जब निर्वाचन आयोग इन्हें ही नहीं, सभी राजनैतिक दलों को खुली चुनौती देता है, तब ये कहां अन्तर्धान हो जाते हैं? यह कौन सी मशीन से डिमोन्सट्रेशन दिया गया है? क्या यह चुनाव आयोग द्वारा प्रयुक्त अधिकृत मशीन थी? या इस नौटंकी के लिए तैयार करा गया यंत्र? निष्पक्ष चुनाव आयोग का सबसे बड़ा सच ये नहीं बताते, और शायद हमारे उन विद्वान मित्रों को भी नहीं पता, जो कल फिर वैसे ही बहके, जैसे चार साल पहले बहके थे.

वह सच यह है कि, मतदान से पहले, सभी दलों के प्रतिनिधियों यानी बूथ एजेंट्स के सामने अनिवार्यतः एक ‘डेमो वोटिंग’ होती है. डेमो वोटिंग में अपने-अपने दल वाले वोट डालकर तसल्ली स्वयं करते हैं. यदि गड़बड़ी पहले से होगी, तो वह डेमो वोटिंग मे भी दिखेगी. आरोप लगाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री यह क्यों नही बताते कि डेमो वोटिंग और मतदान चालू होने के बीच किस समय मशीन हैक हो सकती है. क्योंकि डेमो वोटिंग के तत्काल बाद मतदान शुरू हो जाता है.

देश को अपने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और कार्यकुशलता पर गर्व है. संभवतः आप में से बहुतों को न मालूम हो, कि विश्व के अनेक देशों में हमारे चुनाव अधिकारी प्रशिक्षण देने एवं चुनाव सम्पन्न कराने के लिए आमंत्रित किये जाते हैं.

आप नई तरह की राजनीति करने आये थे, नई तरह की राजनीति सिखाने आये थे, लेकिन, अब बहुत हुआ! आपके भक्त भी अब हमसे आंखे चुराने लगे हैं, आप का नाम आते ही विषय बदल देते हैं. कितना समझाया था हमने, लेकिन आपके क्रांतिकारी झूठों ने तो इन सबकी आंखों पर पट्टी बांध रखी थी. आप अनर्गल प्रलाप करते रहे, झूठ बोलते रहे, आरोप लगाते रहे, नाकारा भी साबित हुए, लेकिन आपके भक्त क्रांति के ख्वाब में ही खोए हुए थे. आज जब वो अरविंद केजरीवाल नाम सुनते ही बात बदल देते हैं या उदास सी हंसी देते हैं तो सच कहूं तरस आता है आपके समर्थकों की दशा देखकर.

आम आदमी पार्टी के समर्थकों को यदि वास्तव में सत्य का साथ देना है, क्रांति करनी है, राजनीति में शुचिता लानी है, और अभी भी आग बची है तो आपको कपिल मिश्रा के सत्याग्रह में उनका साथ देना चाहिए.

रामलीला मैदान से राजघाट तक के बहुत अनशन आंदोलन हम सब देख चुके, लेकिन आप सब यदि आज अपने नेता के भ्रष्टाचार पर प्रश्न नहीं उठाते, आंदोलन नहीं करते, तो मेरे लिए आप सभी खोटे सिक्के हैं, खोखले, अर्थहीन!

( ये पोस्‍ट सबसे लेखक के फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुई है. )

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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