• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

केजरीवाल एक आंदोलन के कातिल साबित होकर ना रह जाएं !

    • श्रीधर राव
    • Updated: 07 मई, 2017 09:54 PM
  • 07 मई, 2017 09:54 PM
offline
लोकतंत्र पर शोध करने वालों के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार से वो सूत्र निकलते हैं जिससे सत्ता हथियाने के सारे शॉर्टकट मौजूद हैं.

मुझे लगता है भारत के राजनीतिक इतिहास में केजरीवाल एक ऐसा नाम होंगे जिसमें ना तो उनके शौर्य का वर्णन होगा, ना उनकी असफलता का, बल्कि उन्हें जाना जाएगा सत्ता हासिल करने के लिए अपनाए उनके मैकेनिज्म के लिए. लोकतंत्र पर शोध करने वालों के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार से वो सूत्र निकलते हैं जिससे सत्ता हथियाने के सारे शॉर्टकट मौजूद हैं. अन्ना और केजरीवाल के आंदोलन से एक बात तो साफ हो गई थी इस देश के लोग राजनीति में ईमानदारी चाहते थे. प्रशासन में पारदर्शिता चाहते थे. जिस आदर्श को अब तक लोगों ने किस्से कहानियों में पढ़ा था उस आदर्श को सच में बदलते हुए देखने का लोगों में जुनून पैदा हो गया था.

अन्ना और केजरीवाल आंदोलन से एक बात और साफ हो गई थी कि भारत की राजनीति में शुचिता स्कोप अभी बाकी था. बिना धन बल के, बिना बाहुबल के भी आप सरकार बना सकते हैं. बस एक बार लोगों को आपने यकीन दिला दिया कि आप सच्चे हो और इस सच्चाई को आपने स्वयं के साथ प्रमाणित कर दिया तो लोगों को तख्ता पलटते देर नहीं लगेगी. अरविंद केजरीवाल की सरकार लोकतंत्र की ताकत का प्रतीक बन कर उभरी थी.

आज केजरीवाल की सरकार लोकपाल की बात भी नहीं करती, लेकिन जनता के दिल में जगह लोकपाल ने ही बनाई थी. लोग लोकपाल की टोपी पहन कर सड़क पर उतरे थे. बच्चे, बूढ़े, जवान, नवयुवतियां, घरेलू और कामकाजी महिलाए, पहली बार दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर का आदमी, नौकरीपेशा लोग, ऑटो रिक्शा, रेहड़ी चलाने वाले लोग, जाति-पाति को पीछे छोड़ कर सड़क पर उतर गये थे. मानो शुचिता की बारात सजी हो. ऐसा लगा कि स्थापित राजनीतिक दलों की सोशल इंजीनियरिंग वाली राजनीति का युग पीछे छूट जाएगा.

मुझे लगता है भारत के राजनीतिक इतिहास में केजरीवाल एक ऐसा नाम होंगे जिसमें ना तो उनके शौर्य का वर्णन होगा, ना उनकी असफलता का, बल्कि उन्हें जाना जाएगा सत्ता हासिल करने के लिए अपनाए उनके मैकेनिज्म के लिए. लोकतंत्र पर शोध करने वालों के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार से वो सूत्र निकलते हैं जिससे सत्ता हथियाने के सारे शॉर्टकट मौजूद हैं. अन्ना और केजरीवाल के आंदोलन से एक बात तो साफ हो गई थी इस देश के लोग राजनीति में ईमानदारी चाहते थे. प्रशासन में पारदर्शिता चाहते थे. जिस आदर्श को अब तक लोगों ने किस्से कहानियों में पढ़ा था उस आदर्श को सच में बदलते हुए देखने का लोगों में जुनून पैदा हो गया था.

अन्ना और केजरीवाल आंदोलन से एक बात और साफ हो गई थी कि भारत की राजनीति में शुचिता स्कोप अभी बाकी था. बिना धन बल के, बिना बाहुबल के भी आप सरकार बना सकते हैं. बस एक बार लोगों को आपने यकीन दिला दिया कि आप सच्चे हो और इस सच्चाई को आपने स्वयं के साथ प्रमाणित कर दिया तो लोगों को तख्ता पलटते देर नहीं लगेगी. अरविंद केजरीवाल की सरकार लोकतंत्र की ताकत का प्रतीक बन कर उभरी थी.

आज केजरीवाल की सरकार लोकपाल की बात भी नहीं करती, लेकिन जनता के दिल में जगह लोकपाल ने ही बनाई थी. लोग लोकपाल की टोपी पहन कर सड़क पर उतरे थे. बच्चे, बूढ़े, जवान, नवयुवतियां, घरेलू और कामकाजी महिलाए, पहली बार दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर का आदमी, नौकरीपेशा लोग, ऑटो रिक्शा, रेहड़ी चलाने वाले लोग, जाति-पाति को पीछे छोड़ कर सड़क पर उतर गये थे. मानो शुचिता की बारात सजी हो. ऐसा लगा कि स्थापित राजनीतिक दलों की सोशल इंजीनियरिंग वाली राजनीति का युग पीछे छूट जाएगा.

क्या आंदोलन था, अन्ना गांधी जैसे लगने लगे थे, केजरीवाल नेहरू जैसे. आजादी के बाद गांधी कांग्रेस का पैकअप चाहते थे क्योंकि आजादी मकसद पूरा हो गया था. लेकिन, नेहरूजी और उनके साथियों ने ऐसा होने नहीं दिया. उसी तरह अन्ना देश में शुचिता के आने तक आंदोलन की राजनीति को आगे रखना चाहते थे लेकिन केजरीवाल और उनके समर्थकों ने ऐसा होने नहीं दिया. आंदोलन का लोहा गर्म था केजरीवाल ने मार दिया हथौड़ा. लोकपाल को पीछे छोड़ा और एक सत्याग्रही से रातोंरात सरकार बन बैठे. अब तक हमने देखा था कि कैसे भोगवादी दुनिया में, बाजारवादी दुनिया में सपने बेचें जाते है. लेकिन पहली बार लोकतंत्र में ईमानदारी, शुचिता, पारदर्शिता और लोकपाल का सपना दिखाया गया और सपने का विज्ञापन सुपरहिट साबित हुआ.

"ना पैसा लगा ना कौड़ी, केजरीवाल और उनके साथ चढ़ गये सत्ता की घोड़ी" लेकिन दो साल में वो सब हो गया जिसके लिए राजनीति जानी जाती है. कलंक भी लगा... कद भी घटा... विश्वसनीयता चली गई, अपने पराये हो गये. पद, प्रतिष्ठा और अहंकार बड़े हो गए जिसने भी टांग अड़ाने की कोशिश की उसे ही रास्ते से उड़ा दिया गया. ये भी नहीं देखा कि कभी ये आपके सपनों का हिस्सा था. सपनों के प्लानर थे. सपने को सच करने के मैकेनिज्म में आपके भागीदार थे. भागीदार बिखरने लगे तो वो बिलबिलाने लगे. वो बिलबिलाने लगे तो 'आप' की पोल खुलने लगी. पोल खुलने लगी तो 'आप' की साख पे पलीता लगने लगा. पलीता लगने लगा तो पब्लिक को आप से ज्यादा खुद पर गुस्सा आने लगा. गुस्सा आया तो दिल्ली के एमसीडी के नतीजे आये और आपको 'आप' की हैसितत बता दी.

लोगों समझ गये कि सादगी से भरा आपका पहनावा, शालीनता से भरा आपका आचरण, पारदर्शिता की ताल ठोंकने वाली आपकी बातें सब एक टूल थे. वो सब एक दिखावा था. लोग अब कहने लगे है कि सच्चाई का, ईमानदारी का, शुचिता का मायाजाल बुना गया था. सिर्फ मतदाताओं को झांसा देने के लिए.

अगर आपका लक्ष्य नेक होता, एक होता तो साथियों में मतभेद की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. अगर जनता की भलाई ही सर्वोपरि होती तो सुप्रीमो बनने का गुरूर परिलक्षित ही नहीं होता. केजरीवाल सरकार को दो साल हो गये और दो साल में आप वो छाप नहीं छोड़ सके जो अन्ना के साथ रहकर आपने स्थापित किया था. जी जान से काम करने की बजाय आप कमियां गिनाते रह गये.

आप सिर्फ शिकायत खोजने में लगे रहे. उंगलिया उठाते रह गये. सारी उर्जा आपने दिल्ली की जनता की भलाई के बजाय अपने राजनीति कद को बड़ा बनाने में लगा दिया. वो भी सामनेवाले को नीचा दिखाकर. कभी ममता के साथ, तो कभी लालू के साथ, कभी पंजाब का चक्कर और कभी गोवा की सैर. ना खुदा मिला ना बिसाले सनम. लगता है अब 'आप' हो गये खत्म

ठीक है आपने जो किया सो किया अपने संस्कारों के हिसाब से किया. लेकिन, इतना जरूर बता दिया कि देश में ईमानदारी का स्कोप अभी बाकी है. लोग राजनीति में शुचिता चाहते हैं. लोग सत्य, प्रेम और न्याय को प्रमाणित होते देखना चाहते हैं.

'आप' ने भले ही उस जनआंदोलन का गला घोंट दिया हो, उस परिवर्तन की आंधी का कत्ल कर दिया हो. लेकिन, उम्मीद अभी बाकी है क्योंकि भारत की जनता को अभी भी उसका इंतजार है जिसकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं होगा और वो भारत के लोकतंत्र में एक दिन लोकपाल को साकार जरूर करेगा.

ये भी पढ़ें-

4 घंटे 300 कमेंट्स: ये है केजरीवाल के लिए जनादेश....

झाडू लेकर सियासत में सफाई करने आये केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार के लपेटे में

आम आदमी पार्टी के लिए संजीवनी हो सकती हैं ये 10 बातें!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲