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उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार बताएं जींस और टीशर्ट पहनना असभ्य कैसे है?

    • मशाहिद अब्बास
    • Updated: 15 दिसम्बर, 2020 11:01 PM
  • 15 दिसम्बर, 2020 11:01 PM
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आधुनिक दौर में किसी सभ्य पोशाक पर महज इसलिए प्रतिबंध लगा देना कि वह पश्चिमी संस्कृति से गोद ली गई है और थोड़ा आधुनिकता के फैशन को दर्शाता है तो गलत है. आधुनिकता के दौर में भी इस पोशाक को एक सभ्य पोशाक माना गया है जिसे कहीं भी कोई किसी भी जगह पहन कर आ जा सकता है तो फिर सरकारी संस्थानों में क्यों नहीं.

पोशाक एक ऐसी चीज है जिससे हर कोई जुड़ाव रखता है. यह सबका मौलिक अधिकार है जिसे कोई भी देश या कोई भी सरकार छीन नहीं सकती है. पोशाक की कई किस्मे हैं, अपनी सभ्यता, अपने कल्चर, अपने संस्कृति, अपने फैशन या अपने विचारों के हिसाब से पोशाक को पहना जा सकता है. आज दुनिया में जितने भी विकसित देश हैं सबके माहौल पर अगर नज़र डाली जाए तो एक बात तो तय हो जाती है कि ये सिर्फ विकास के ज़रिए ही महान नहीं बने हैं बल्कि उन देशों में व्यक्तित्व की आज़ादी का बहुत ख्याल रखा जाता है इसलिए वह देश महान बनते चले जा रहे हैं. कोई भी देश हो वह मौलिक अधिकारों से छेड़़छाड़ करना पसंद नहीं करता है. खाना-पानी और कपड़ा पहनने की आज़ादी दुनिया के हर नागरिक का अधिकार है. भारत में समय समय पर ये मुद्दा खूब गर्म होता है कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए, क्या नहीं पहनना चाहिए. फ्रीडम आफ च्वाइस पर खूब बहसें होती हैं लेकिन वह सारी बहस बेनतीजा साबित हो जाती है जब हम अपनी दृढ़वादी सोच को किसी के अधिकार पर हावी कर देते हैं. अक्सर देखने में आता है कि किसी के कपड़े को लेकर कोई आधुनिकता पर ही सवाल दाग देता है.

क्या उद्धव ठाकरे क्या नितीश कुमार इन्होंने कपड़ों को लेकर एक नयी बहस का आगाज़ कर दिया है

सबसे महत्वपूर्ण बात तो यही है कि हम क्या पहनेंगें और क्या नहीं पहनेंगें ये तय करेगा कौन? कोई भी नागरिक जिस कपड़े में सहज महसूस करता है वैसा ही कपड़ा पहनता है. भारत के कानून ने हर किसी को कपड़ा पहनने की आज़ादी दे रखी है, अब ये उसपर निर्भर है कि वह किस तरह के कपड़े पहनता है. वह चाहे तो जींस पहने चाहे धोती, चाहे कुर्ता पहने चाहे टीशर्ट, यही बात महिलाओं पर भी लागू होती है कि वह चाहें तो छोटे कपड़े पहनें या चाहें तो नकाब पहन लें. ये सबकी आज़ादी है जो जिसमें सहज महसूस करे जिसमें...

पोशाक एक ऐसी चीज है जिससे हर कोई जुड़ाव रखता है. यह सबका मौलिक अधिकार है जिसे कोई भी देश या कोई भी सरकार छीन नहीं सकती है. पोशाक की कई किस्मे हैं, अपनी सभ्यता, अपने कल्चर, अपने संस्कृति, अपने फैशन या अपने विचारों के हिसाब से पोशाक को पहना जा सकता है. आज दुनिया में जितने भी विकसित देश हैं सबके माहौल पर अगर नज़र डाली जाए तो एक बात तो तय हो जाती है कि ये सिर्फ विकास के ज़रिए ही महान नहीं बने हैं बल्कि उन देशों में व्यक्तित्व की आज़ादी का बहुत ख्याल रखा जाता है इसलिए वह देश महान बनते चले जा रहे हैं. कोई भी देश हो वह मौलिक अधिकारों से छेड़़छाड़ करना पसंद नहीं करता है. खाना-पानी और कपड़ा पहनने की आज़ादी दुनिया के हर नागरिक का अधिकार है. भारत में समय समय पर ये मुद्दा खूब गर्म होता है कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए, क्या नहीं पहनना चाहिए. फ्रीडम आफ च्वाइस पर खूब बहसें होती हैं लेकिन वह सारी बहस बेनतीजा साबित हो जाती है जब हम अपनी दृढ़वादी सोच को किसी के अधिकार पर हावी कर देते हैं. अक्सर देखने में आता है कि किसी के कपड़े को लेकर कोई आधुनिकता पर ही सवाल दाग देता है.

क्या उद्धव ठाकरे क्या नितीश कुमार इन्होंने कपड़ों को लेकर एक नयी बहस का आगाज़ कर दिया है

सबसे महत्वपूर्ण बात तो यही है कि हम क्या पहनेंगें और क्या नहीं पहनेंगें ये तय करेगा कौन? कोई भी नागरिक जिस कपड़े में सहज महसूस करता है वैसा ही कपड़ा पहनता है. भारत के कानून ने हर किसी को कपड़ा पहनने की आज़ादी दे रखी है, अब ये उसपर निर्भर है कि वह किस तरह के कपड़े पहनता है. वह चाहे तो जींस पहने चाहे धोती, चाहे कुर्ता पहने चाहे टीशर्ट, यही बात महिलाओं पर भी लागू होती है कि वह चाहें तो छोटे कपड़े पहनें या चाहें तो नकाब पहन लें. ये सबकी आज़ादी है जो जिसमें सहज महसूस करे जिसमें आकर्षित लगे वह कपड़े वह पहन सकता है. 

अब सवाल उठता है कि क्या सरकारी संस्थानों में भी हर तरह के कपड़े पहन कर जाया जा सकता है. हरगिज़ नहीं, सरकारी संस्थान एक सभ्य जगह है जहां जाने के लिए कुछ ड्रेस कोर्ड निर्धारित किए जाते हैं. इसी ड्रेस कोड का पालन करना होता है. महाराष्ट्र सरकार ने भी वही किया है इससे पहले भी कई राज्यों के मुख्यमंत्री ऐसा फैसला सुना चुके हैं. हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में तो यह कबसे चल रहा है.

इसके पीछे हर राज्य ने तर्क यही दिए कि सरकारी कर्मियों की छवि खराब होती जा रही है इसलिए सभी सरकारी कर्मचारी को साफ एंव अच्छे कपड़े पहन कर ही आफिस में इंट्री करनी चाहिए. ये पुरूष और महिला दोनों पर लागू होता है. महाराष्ट्र सरकार ने जो फैसला लिया है उसके अनुसार पुरूष या महिला चप्पल पहनकर आफिस नहीं आ सकेंगे जोकि एक अच्छा फैसला है, इसके साथ ही कहा गया कि पुरूष हो या महिला दोनों को ही जींस और टीशर्ट नहीं पहनना है फार्मल ड्रेस में ही आफिस में आना है.

गहरा रंग और कढ़ाई या तस्वीर छपे हुए कपड़े भी नहीं पहनना है. ये तो आदेश है महाराष्ट्र सरकार का, साथ ही एक आदेश और है जिसमें सरकार की ओर से कहा गया है कि शुक्रवार के दिन सभी सरकारी कर्मचारियों को खादी पहनना चाहिए ताकि खादी का काम करने वालों को भी फायदा हो सके. ये तो रही बात नए ड्रेस कोड की जो अधिकतर राज्यों में चलन में है लेकिन आधुनिकता के इस दौर में सरकारी कर्मचारियों पर जींस की रोक लगाना क्या सही है.

जींस आज के दौर में एक सामान्य सा पोशाक है जिसे कहीं भी सभ्य जगहों पर पहनकर जाया जा सकता है, हां कटी-फटी जींस पर ज़रूर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए लेकिन आधुनिक पोशाकों को बिल्कुल से नज़रअंदाज़ कर देना हमारी सोच को दर्शाता है. सरकारी संस्थान में या तो एक ड्रेस ही लागू कर देना चाहिए वरना जींस या टीशर्ट पर प्रतिबंध लगाने के लिए कुछ शर्तें होनी चाहिए.

देश में किसी भी नागरिक को एक सभ्य कपड़ा पहनने से सिर्फ इसलिए रोक देना कि वह पश्चिमी कल्चर से लिया गया है तो सही नहीं है. अटपटे फैशन पर ज़रूर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए लेकिन इस ड्रेस कोड में एक बार फिर से राज्यों को पुर्नविचार करने की आवश्यकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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