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महाराष्ट्र में 'ऑपरेशन कमल' नहीं, उलटी गंगा बह रही है

    • आईचौक
    • Updated: 08 दिसम्बर, 2019 01:53 PM
  • 08 दिसम्बर, 2019 01:53 PM
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महाराष्ट्र में तो उलटी ही गंगा बहने लगी है - कहां कर्नाटक की तरह ऑपरेशन कमल की आशंका जतायी जा रही थी और कहां वैसी ही मुहिम बीजेपी के ही खिलाफ चल पड़ी है - करीब दर्जन भर विधायक पाला बदलने को आतुर हैं.

महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे को तो बीजेपी ने मना लिया, लेकिन कतार में अभी और भी कई हैं. खबर आ रही है कि करीब एक दर्जन विधायक बीजेपी को चकमा देते हुए महाराष्ट्र में सत्ताधारी महाविकास अघाड़ी का हिस्सा बनने को आतुर हैं.

ऐसा भी नहीं कि बीजेपी छोड़ने को तैयार बैठे इन विधायकों की कोई खास पसंदीदा पार्टी है - बल्कि, सत्ताधारी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस किसी भी पार्टी में शामिल होने को तैयार लगते हैं. बताते हैं कि ऐसे विधायक गठबंधन में शामिल पार्टियों में अपने अपने संपर्कों के जरिये बातचीत चला रहे हैं.

दिलचस्प बात ये है कि सब के सब वही फॉर्मूला अपनाने को तैयार हैं जो अब तक बीजेपी दूसरे दलों के विधायकों पर आजमाती आयी है - और इस दौरान ज्यादातर के निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हैं.

ये तो एंटी-ऑपरेशन-कमल है!

पंकजा मुंडे को मनाने के लिए बीजेपी नेतृत्व ने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के साथ साथ विनोद तावड़े को भी तैनात किया था. दरअसल, विनोद तावड़े भी ओबीसी समुदाय से ही आते हैं. माना जाता है कि गोपीनाथ मुंडे, विनोद तावड़े और एकनाथ खड़से की वजह से ही बीजेपी ओबीसी समुदाय में पैठ बना पायी. 2014 में हादसे में गोपीनाथ मुंडे की मौत के बाद उनकी उत्तराधिकारी पंकजा मुंडे के साथ साथ एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े भी मंत्री बने थे.

देवेंद्र फडणवीस से खफा नेताओं में शुमार तो विनोद तावड़े भी रहे लेकिन पंकजा मुंडे और एकनाथ खड़से ही खुल कर सामने आये और उसकी खास वजह रही. पंकजा मुंडे परली से खुद चुनाव हार गयी थीं और एकनाथ खड़से की बेटी रोहिणी खड़से जलगांव से. पंकजा और एकनाथ खड़से हार की एक ही वजह बतार रहे हैं. पंकजा तो अब मामला रफा दफा कर चुकी हैं, लेकिन एकनाथ खड़से का आरोप है कि बीजेपी नेताओं की वजह से ही उनकी बेटी चुनाव हार गयी. पंकजा मुंडे तो अपने चचरे भाई और एनसीपी उम्मीदवार धनंजय मुंडे से हार गयीं, लेकिन बीजेपी के ही नेताओं का कहना है कि रोहिणी खड़से इसलिए हार गयीं क्योंकि उनके खिलाफ शिवसेना का मजबूत...

महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे को तो बीजेपी ने मना लिया, लेकिन कतार में अभी और भी कई हैं. खबर आ रही है कि करीब एक दर्जन विधायक बीजेपी को चकमा देते हुए महाराष्ट्र में सत्ताधारी महाविकास अघाड़ी का हिस्सा बनने को आतुर हैं.

ऐसा भी नहीं कि बीजेपी छोड़ने को तैयार बैठे इन विधायकों की कोई खास पसंदीदा पार्टी है - बल्कि, सत्ताधारी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस किसी भी पार्टी में शामिल होने को तैयार लगते हैं. बताते हैं कि ऐसे विधायक गठबंधन में शामिल पार्टियों में अपने अपने संपर्कों के जरिये बातचीत चला रहे हैं.

दिलचस्प बात ये है कि सब के सब वही फॉर्मूला अपनाने को तैयार हैं जो अब तक बीजेपी दूसरे दलों के विधायकों पर आजमाती आयी है - और इस दौरान ज्यादातर के निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हैं.

ये तो एंटी-ऑपरेशन-कमल है!

पंकजा मुंडे को मनाने के लिए बीजेपी नेतृत्व ने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल के साथ साथ विनोद तावड़े को भी तैनात किया था. दरअसल, विनोद तावड़े भी ओबीसी समुदाय से ही आते हैं. माना जाता है कि गोपीनाथ मुंडे, विनोद तावड़े और एकनाथ खड़से की वजह से ही बीजेपी ओबीसी समुदाय में पैठ बना पायी. 2014 में हादसे में गोपीनाथ मुंडे की मौत के बाद उनकी उत्तराधिकारी पंकजा मुंडे के साथ साथ एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े भी मंत्री बने थे.

देवेंद्र फडणवीस से खफा नेताओं में शुमार तो विनोद तावड़े भी रहे लेकिन पंकजा मुंडे और एकनाथ खड़से ही खुल कर सामने आये और उसकी खास वजह रही. पंकजा मुंडे परली से खुद चुनाव हार गयी थीं और एकनाथ खड़से की बेटी रोहिणी खड़से जलगांव से. पंकजा और एकनाथ खड़से हार की एक ही वजह बतार रहे हैं. पंकजा तो अब मामला रफा दफा कर चुकी हैं, लेकिन एकनाथ खड़से का आरोप है कि बीजेपी नेताओं की वजह से ही उनकी बेटी चुनाव हार गयी. पंकजा मुंडे तो अपने चचरे भाई और एनसीपी उम्मीदवार धनंजय मुंडे से हार गयीं, लेकिन बीजेपी के ही नेताओं का कहना है कि रोहिणी खड़से इसलिए हार गयीं क्योंकि उनके खिलाफ शिवसेना का मजबूत उम्मीदवार रहा.

देवेंद्र फडणवीस बीजेपी विधायकों के निशाने पर तो पहले से थे, सत्ता छिन जाने के बाद विरोध बढ़ने लगा है.

इकनॉमिक टाइम्स ने एक रिपोर्ट में महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन के एक नेता के हवाले से बताया है कि करीब दर्जन भर बीजेपी विधायक और एक राज्य सभा सांसद उनके संपर्क में हैं. ये सभी उसी मॉडल पर बीजेपी छोड़ने को तैयार हैं जिसे कर्नाटक के ऑपरेशन कमल के नाम से जाना जाता है. ये विधायक और सांसद भी इस्तीफा देकर उपचुनाव लड़ना चाहते हैं, बशर्ते सत्ताधारी गठबंधन नेतृत्व की ओर से कोई ग्रीन सिग्नल मिले.

ये विधायक और एक राज्य सभा सांसद सही वक्त आने पर इस्तीफा दे देंगे और जब उपचुनाव होंगे तो उन पार्टियों के उम्मीदवार बन जाएंगे जिनके यहां इन्हें एंट्री मिलेगी.

ये कौन विधायक हैं जो पाला बदलने को उतावले हैं?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान रैलियों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कहा करते थे - अगर वो सभी के लिए दरवाजे खोल दें तो एनसीपी में शरद पवार और कांग्रेस में सिर्फ पृथ्वीराज चव्हाण बचेंगे. वैसे भी जो भगदड़ मची थी तब एनसीपी और कांग्रेस दोनों ही दलों का हाल भी तकरीबन वैसा ही हो चुका था. एनसीपी में शरद पवार अपने ज्यादातर वरिष्ठ साथियों को गंवा चुके थे. वो तो भला हो ED के FIR और सतारा की बारिश का कि सब कुछ उलट पुलट गया. सतारा लोक सभा सीट पर तो शरद पवार के उम्मीदवार ने एनसीपी छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करने वाले शिवाजी के परिवार से आने वाले उदयनराजे प्रतापसिंह भोंसले को भी हरा दिया.

अब समझना ये जरूरी है कि ये कौन से विधायक हैं जो बीजेपी छोड़ने को लेकर बेचैन हो रहे हैं. बताते हैं कि ऐसे विधायकों में ज्यादातर वे ही हैं जो एनसीपी और कांग्रेस छोड़ कर चुनावों से पहले बीजेपी ज्वाइन किये थे. चुनाव नतीजे आने तक भी ये बड़े खुश थे. खुशी इनकी तब तक कायम थी जब देवेंद्र फडणवीस ने दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली - लेकिन तीन दिन बाद ही उनके इस्तीफा देते ही इनकी दुनिया भी बदरंग सी नजर आने लगी. अब इससे बुरा क्या हो सकता है कि कोई अपनी पार्टी छोड़ कर जाये और उलट-पलट कर वही पार्टी सत्ता में आ जाये. इन विधायकों के साथ यही हुआ है. बीजेपी के टिकट पर इन विधायकों ने अपने चुनाव क्षेत्रों में या तो कांग्रेस या एनसीपी उम्मीदवारों को हराकर जीत हासिल की थी. शिवसेना का बीजेपी के साथ गठबंधन था इसलिए शिवसेना के भी वोट इन्हीं विधायकों के हिस्से में आये होंगे. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद पाला बदलने के इंतजार में बैठे विधायकों का मामला असली रंग दिखा सकता है.

अब ये विधायक चाहते हैं कि आश्वासन मिले तो इस्तीफे पर फैसला लें. आश्वासन में भी ऐसा कि उपचुनाव होने की स्थिति में ये जहां से भी लड़ें सत्ताधारी मोर्चे के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में उतरें ताकि जीत सुनिश्चित हो सके. ये मान कर चल रहे हैं कि ऐसा हुआ तो ये आराम से उपचुनाव जीत जाएंगे.

इनमें से कुछ विधायक बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व के रवैये से असंतुष्ट बताये जा रहे हैं. कुछ विधायक ऐसे हैं जो बीजेपी के सत्ता में होने और दोबारा लौटने की उम्मीद में पार्टी में शामिल हुए थे. ऐसे विधायकों की महाराष्ट्र में या तो चीनी मिलें हैं या फिर ये शिक्षा के कारोबार से जुड़े हुए हैं. देवेंद्र फडणवीस सरकार की सख्ती के चलते ही ये बीजेपी ज्वाइन किये थे - लेकिन दांव उलटा पड़ गया. यही वजह है कि ये जल्द से जल्द भूल सुधार का मौका चाहते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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