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मध्य प्रदेश की सुप्रीम चुनौती: क्या निष्पक्ष चुनाव संभव है?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 19 मार्च, 2020 04:13 PM
  • 19 मार्च, 2020 04:13 PM
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मध्य प्रदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Madhya Pradesh Crisis Supreme Court order) चाहता है कि कैसे जल्द से जल्द सूबे को सियासी संकट से निजात मिले. अदालत चाहती है कि विधायकों को ऐसा माहौल जरूर मिले जिसमें वो दबावमुक्त होकर ही इस्तीफे के बारे में फैसला कर सकें - सबसे बड़ी चुनौती भी यही है.

मध्य प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Madhya Pradesh Crisis Supreme Court order) मणिपुर जैसा फैसला नहीं लेना चाहता. मणिपुर के वन मंत्री टी श्यामकुमार को सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ हटाया ही नहीं उनके विधानसभा में प्रवेश करने पर भी पाबंदी लगा दी है. जस्टिस आरएफ नरीमन की पीठ ने कोर्ट के आदेश के बावजूद अयोग्यता की याचिका पर मणिपुर के स्पीकर के फैसला न लेने से नाराज होकर ऐसा किया है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए ये कदम उठाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर बोल दिया है कि मध्य प्रदेश के मामले वो अदालत विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देगी - लेकिन कोर्ट ये जरूर चाहता है कि विधायकों को ऐसा माहौल (Free and Fair) जरूर मिले जिसमें वे स्वतंत्र होकर फैसले ले सकें - और यही सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है.

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी मांग पर अड़े हुए हैं और राज्यपाल के पास गुहार लगाने से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उनकी एक ही डिमांड है - विधानसभा में फ्लोर टेस्ट.

मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) की अपनी दलील है - कहते हैं अगर किसी को लगता है तो वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाये. कमलनाथ का दावा है कांग्रेस की सरकार को बहुमत हासिल है और न तो किसी बात की फिक्र है न कोई खतरा.

कमलनाथ का एक बड़ा इल्जाम ये जरूर है कि कांग्रेस के 16 विधायकों को कर्नाटक में बीजेपी ने बंधक बना रखा है और वो चाहते हैं कि जैसे भी हो वे आजाद हों और भोपाल पहुंचें. सुप्रीम कोर्ट पूरे मामले पर नजर रखे हुए है और छोटी से छोटी बात पर गौर करते हुए सुनवाई कर रहा है - सुप्रीम कोर्ट को एक ही बात की फिक्र है - विधायकों को अपना फैसला लेने के लिए एक निष्पक्ष माहौल निश्चित तौर पर मिलना चाहिये.

जब जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने कहा कि जोड़तोड़ को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए, जल्द फ्लोर टेस्ट हो - तो स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्पीकर को...

मध्य प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Madhya Pradesh Crisis Supreme Court order) मणिपुर जैसा फैसला नहीं लेना चाहता. मणिपुर के वन मंत्री टी श्यामकुमार को सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ हटाया ही नहीं उनके विधानसभा में प्रवेश करने पर भी पाबंदी लगा दी है. जस्टिस आरएफ नरीमन की पीठ ने कोर्ट के आदेश के बावजूद अयोग्यता की याचिका पर मणिपुर के स्पीकर के फैसला न लेने से नाराज होकर ऐसा किया है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए ये कदम उठाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर बोल दिया है कि मध्य प्रदेश के मामले वो अदालत विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देगी - लेकिन कोर्ट ये जरूर चाहता है कि विधायकों को ऐसा माहौल (Free and Fair) जरूर मिले जिसमें वे स्वतंत्र होकर फैसले ले सकें - और यही सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है.

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी मांग पर अड़े हुए हैं और राज्यपाल के पास गुहार लगाने से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उनकी एक ही डिमांड है - विधानसभा में फ्लोर टेस्ट.

मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) की अपनी दलील है - कहते हैं अगर किसी को लगता है तो वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाये. कमलनाथ का दावा है कांग्रेस की सरकार को बहुमत हासिल है और न तो किसी बात की फिक्र है न कोई खतरा.

कमलनाथ का एक बड़ा इल्जाम ये जरूर है कि कांग्रेस के 16 विधायकों को कर्नाटक में बीजेपी ने बंधक बना रखा है और वो चाहते हैं कि जैसे भी हो वे आजाद हों और भोपाल पहुंचें. सुप्रीम कोर्ट पूरे मामले पर नजर रखे हुए है और छोटी से छोटी बात पर गौर करते हुए सुनवाई कर रहा है - सुप्रीम कोर्ट को एक ही बात की फिक्र है - विधायकों को अपना फैसला लेने के लिए एक निष्पक्ष माहौल निश्चित तौर पर मिलना चाहिये.

जब जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने कहा कि जोड़तोड़ को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए, जल्द फ्लोर टेस्ट हो - तो स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्पीकर को फैसले लेने के लिए दो हफ्ते का वक्त चाहिये होगा.

जो भी हो निष्पक्ष हो, निष्पक्ष के सिवा कुछ भी न हो!

मध्य प्रदेश में सियासी संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट भले ही ज्यादा दखल देने के मूड में न हो, लेकिन वो ये कतई नहीं चाहता कि मामला ज्यादा खिंचे और जिसे मौका मिले वो पूरा फायदा उठा ले. कोर्ट ने स्पीकर के वकील से हर तरीके से जानने की कोशिश की कि विधायकों के इस्तीफे पर फैसले के लिए उनको कितना वक्त चाहिये. कोर्ट ने पर्यवेक्षक की मौजूदगी में वीडियो कांफ्रेंसिंग का भी ऑफर दिया, लेकिन स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी नहीं माने.

कमलनाथ के खिलाफ पूरे एक्शन में हैं शिवरजा सिंह चौहान

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ पैरामीटर भी तय किये हैं -

1. MP संकट राष्ट्रीय समस्या है: मध्य प्रदेश जैसा मामला आम हो चला है. सिर्फ राज्य और दूसरे किरदारों के नाम बदल जाते हैं और पूरी कहनी बिलकुल एक जैसी होती है. जब भी ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं एसआर बोम्मई केस का जिक्र आये बगैर बात आगे बढ़ती ही नहीं.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भले ही मौजूदा मामला मध्य प्रदेश का हो, लेकिन ये महज एक राज्य की नहीं बल्कि ये राष्ट्रीय समस्या बन चुका है. वैसे कोर्ट के ऐसा मानने के पीछे वजह भी है.

2018 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हुए कर्नाटक और कुछ ही महीने बाद मध्य प्रदेश विधानसभा के. मध्य प्रदेश का केस तो सुप्रीम कोर्ट पहुंचा ही है, कर्नाटक के मामले की दो-दो बार सुनवाई हो चुकी है - और इसी अवधि में सरकार भी बदल चुकी है. मध्य प्रदेश का सियासी संकट भी उसी राह पर चल पड़ा है.

2. अगर स्पीकर राजी नहीं तो राज्यपाल केंद्र को रिपोर्ट दें: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत जो उभरता है, उसमें विश्वास मत पर कोई पाबंदी नहीं है - क्योंकि स्पीकर के समक्ष विधायकों के इस्तीफे या अयोग्यता का मुद्दा लंबित है.

कोर्ट ने मौजूदा हालात में राज्यपाल के रोल पर भी गौर किया. कोर्ट ने कहा कि सवाल है कि अगर स्पीकर राज्यपाल की सलाह को स्वीकार नहीं करता है तो राज्यपाल को क्या करना चाहिए? एक विकल्प है कि राज्यपाल अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को दें.

3. इस्तीफा तो बस एक लाइन का ही हो: विधायकों के इस्तीफे को लेकर चली बहस में एक खास वाकया भी दर्ज हुआ. स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस्तीफा स्वीकार करने को लेकर नियम और प्रक्रिया पढ़ी. चूंकि ये हिंदी में रहा इसलिए लगे हाथ पूछ भी लिया - हिंदी में पढ़े जाने से कोई दिक्कत तो नहीं है?

ये सुनते ही जस्टिस चंद्रचूड़ तपाक से बोले - नहीं-नहीं, बिलकुल भी नहीं. ये सुंदर भाषा है (No-No... It's beautiful language).

फिर कोर्ट ने कहा - नियम के मुताबिक इस्तीफा एक लाइन का होना चाहिये.

वैसे दो हफ्ते में क्या क्या होगा?

स्पीकर के वकील ने दो हफ्ते की जो मोहलत मांगी है वो विधायकों के इस्तीफे पर फैसले के लिए है, न कि फ्लोर टेस्ट के लिए. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस पक्ष का जोर इस बात पर ज्यादा है कि विधायकों को भोपाल लाये जाने का को रास्ता निकाला जाये.

बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान तो सुप्रीम कोर्ट गये ही इसलिए हैं कि अदालत फ्लोर टेस्ट का आदेश दे, लेकिन स्पीकर और कमलनाथ के वकील संवैधानिक व्यवस्था की दुहाई देकर बचने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही ले रहे हैं. मुद्दे की बात ये है कि जब तक विधायकों के इस्तीफे पर फैसला हो नहीं जाता बात आगे बढ़ने वाली नहीं है.

विधायकों के इस्तीफे के मुद्दे पर खुद कमलनाथ भी घिर जा रहे हैं. इंडिया टुडे टीवी पर जब राजदीप सरदेसाई ने पूछा कि जब इस्तीफा 22 विधायकों ने दिये तो सिर्फ 6 का स्वीकार कर लिया गया और 16 को छोड़ क्यों दिया गया?

कमलनाथ को जब कोई जवाब नहीं सूझा तो वो मामला स्पीकर पर डाल दिये - बोले, वही बताएंगे. फिर कमलनाथ ने बताया कि छह विधायक मंत्री थे और बतौर मुख्यमंत्री वो उनको बर्खास्त कर चुके हैं. बाकी बातें स्पीकर ही बताएंगे.

रही बात दो हफ्ते की मोहलत की तो उसके पीछे भी रणनीति लगती है. ठीक एक हफ्ते बाद 26 मार्च को राज्य सभा के लिए चुनाव होने हैं और स्पीकर ने तभी तक विधानसभा की कार्यवाही स्थगित कर रखी है. 16 मार्च से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला था, लेकिन कोरोना के नाम पर ये टाल दिया गया. राज्य सभा चुनाव के केंद्र में ही ये सारा बवाल शुरू हुआ था - और कमलनाथ एंड कंपनी देखना चाहती है कि राज्य सभा के लिए वोटिंग कैसे होती है और उसके बाद क्या माहौल रहता है. सिंघवी ने अपने क्लाइंट स्पीकर के लिए राज्य सभा चुनाव के बाद एक और हफ्ते का वक्त मांग लिया है. सिंघवी ने ये बताने के लिए भी एक दिन का वक्त लिया था कि अगर विधायक स्पीकर के सामने पेश हो जायें तो क्या स्पीकर एक दिन में फैसला ले लेंगे.

स्पीकर के लिए मोहलत मांगे जाने की बात पर शिवराज सिंह ने अलग से हमला बोला है - काहे के लिए? वे हॉर्स ट्रेडिंग करना चाहते हैं क्या?

अब तक तो ऐसा इल्जाम कांग्रेस ही बीजेपी पर लगाती रही है, लेकिन शिवराज सिंह के इस पूछने के बाद सवाल तो उठता ही है कि कहीं कांग्रेस खेमे में भी तो ऐसी कोई चाल नहीं चली जा रही है.

कमलनाथ ने इंटरव्यू में बेंगलुरू गये कांग्रेस के कुछ विधायकों के संपर्क में होने की बात तो कही ही, बीजेपी विधायकों के संपर्क में होने पर टाल गये - मैं आपको क्यों बताऊं?

कमलनाथ भले ही सवाल टाल गये लेकिन भोपाल में कांग्रेस विधायकों की बैठक में उनके कैबिनेट साथी ने पोल खोल दी. मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री पीसी शर्मा का दावा है कि बीजेपी के दो विधायक कांग्रेस के साथ हैं और कुछ अन्य विधायक भी संपर्क में बने हुए हैं. विधायकों की इस बैठक में बेंगुलरू में दिग्विजय सिंह को बागी विधायकों से न मिलने देने को लेकर निंदा प्रस्ताव भी पास किया गया. पीसी शर्मा ने ये भी बताया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ भी बागी विधायकों से मिलने बेंगलुरू जा सकते हैं.

बीजेपी की तरफ से दिग्विजय सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी गयी है. भोपाल में बीजेपी की तरफ से चुनाव आयोग से शिकायत की गयी है कि कांग्रेस नेता राज्य सभा चुनाव से पहले विधायकों को डराने की कोशिश कर रहे हैं.

फ्लोर टेस्ट न कराने पर अड़े कमलनाथ की दलील है कि जब उनकी सरकार के पास बहुमत है तो वो भला फ्लोर टेस्ट क्यों करायें? कमलनाथ कहते हैं कि अगर किसी को लगता है कि कांग्रेस सरकार के पास बहुमत नहीं है तो वो अविश्वास प्रस्ताव लाता क्यों नहीं? कमलनाथ कहते हैं कि बीजेपी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है तो शिवराज सिंह चौहान अविश्वास प्रस्ताव लायें फिर हम सदन के अंदर बहुमत साबित करके दिखाएंगे - कमलनाथ ने एक ऐसा संकेत दिया कि बीजेपी जानबूझ कर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाना चाहती. कमलनाथ ने ये भी दावा किया कि उनको पता चला है कि पहले वो अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहते थे, लेकिन फिर पीछे हट गये. क्या वाकई ऐसा है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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