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मध्‍य प्रदेश में शिक्षकों से बर्ताव एक राष्‍ट्रीय शर्म है !

    • आईचौक
    • Updated: 25 मई, 2017 08:06 PM
  • 25 मई, 2017 08:06 PM
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शुक्र है शिवराज सिंह चौहान की सरकार है. उनके राज में शिक्षक सिर्फ पढ़ाने से बोर ना हो जाएं, इसलिए उनसे वे‍टर से लेकर शराब बांटने तक का काम करवाया जाता है.

शिक्षक अब सामूहिक शादी समारोह की भी जिम्मेदारी उठा रहे हैं. (फोटो: हिंदुस्‍तान टाइम्‍स)

शिक्षकों का काम वैसे तो पढ़ाना होता है, लेकिन अगर वो शिक्षक मध्य प्रदेश के हैं, तो उसके पास पढ़ाने से लेकर शराब बांटने तक का काम है. जी हां, शिवराज सिंह चौहान के राज्य में शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा और भी कई गैर जरूरी काम सौंप दिए जाते हैं. जिससे एक तो शिक्षकों के पठन-पाठन के काम पर प्रभाव पड़ता है, तो दूसरा उन्हें कई प्रकार की ज़लालत भी झेलनी पड़ती है.

ये मामला तब सामने आया जब हाल ही में 400 शिक्षकों को राजधानी भोपाल से 600 किलोमीटर की दूरी पर सिंगरौली में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सामूहिक शादी में विभिन्न कामों पर लगा दिया गया. हिंदुस्‍तान टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक उनमें से 40 को तो खाना परोसने का काम दिया गया. खुद मुख्यमंत्री जी भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए आए थे. इसका मतलब ये कि इस सबके लिए उनकी भी स्वकृति होगी.

शिक्षकों का कहना था कि उन लोगों को इसके लिए बकायदा जिला कलेक्टर के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी से आदेश भी मिला था. उनका तो यहां तक कहना था कि वे खुद के लिए 'पुरीवाला' और 'सब्जीवाला' शब्द सुनकर काफी अपमानित महसूस कर रहे थे.

एक तरफ तो जहां कबीर, गुरू को भगवान से उपर का दर्जा देतें हैं, तो उसका दूसरा पहलू आज के शिक्षकों के हालात और परिस्थिति है, जो समय-समय पर समाज के सामने आते रहती है.

खैर मध्य प्रदेश में शिक्षकों के अपमान का ये पहला मौका नहीं है. इससे पहले भी सरकारी शिक्षकों को सरकारी नौकर बना चुकी है ये सरकार. मुख्यमंत्री जी ने ओंकारेशवर में शंकराचार्य की मूर्ति के निर्माण की घोषणा की. इसके लिए इन शिक्षकों को घर-घर जाकर धातू की चीजों को इकट्टठा करने का निर्देश जिला...

शिक्षक अब सामूहिक शादी समारोह की भी जिम्मेदारी उठा रहे हैं. (फोटो: हिंदुस्‍तान टाइम्‍स)

शिक्षकों का काम वैसे तो पढ़ाना होता है, लेकिन अगर वो शिक्षक मध्य प्रदेश के हैं, तो उसके पास पढ़ाने से लेकर शराब बांटने तक का काम है. जी हां, शिवराज सिंह चौहान के राज्य में शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा और भी कई गैर जरूरी काम सौंप दिए जाते हैं. जिससे एक तो शिक्षकों के पठन-पाठन के काम पर प्रभाव पड़ता है, तो दूसरा उन्हें कई प्रकार की ज़लालत भी झेलनी पड़ती है.

ये मामला तब सामने आया जब हाल ही में 400 शिक्षकों को राजधानी भोपाल से 600 किलोमीटर की दूरी पर सिंगरौली में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सामूहिक शादी में विभिन्न कामों पर लगा दिया गया. हिंदुस्‍तान टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक उनमें से 40 को तो खाना परोसने का काम दिया गया. खुद मुख्यमंत्री जी भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए आए थे. इसका मतलब ये कि इस सबके लिए उनकी भी स्वकृति होगी.

शिक्षकों का कहना था कि उन लोगों को इसके लिए बकायदा जिला कलेक्टर के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी से आदेश भी मिला था. उनका तो यहां तक कहना था कि वे खुद के लिए 'पुरीवाला' और 'सब्जीवाला' शब्द सुनकर काफी अपमानित महसूस कर रहे थे.

एक तरफ तो जहां कबीर, गुरू को भगवान से उपर का दर्जा देतें हैं, तो उसका दूसरा पहलू आज के शिक्षकों के हालात और परिस्थिति है, जो समय-समय पर समाज के सामने आते रहती है.

खैर मध्य प्रदेश में शिक्षकों के अपमान का ये पहला मौका नहीं है. इससे पहले भी सरकारी शिक्षकों को सरकारी नौकर बना चुकी है ये सरकार. मुख्यमंत्री जी ने ओंकारेशवर में शंकराचार्य की मूर्ति के निर्माण की घोषणा की. इसके लिए इन शिक्षकों को घर-घर जाकर धातू की चीजों को इकट्टठा करने का निर्देश जिला कलेक्टर के द्वारा दे दिया गया था. एक शिक्षक ने तो अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि उनको और उनके साथियों को उज्जैन में पिछले साल हुए सिंहस्थ मेले में श्रद्धालुओं के जूतों की रखवाली करने का काम मिला था.

खैर मुख्यमंत्री जी ने सोचा होगा की ये नेक काम, नेक लोग ही करें तो ज्यादा बेहतर होगा. शिक्षक हैं, समय तो बहुत होगा उनके पास. खैर वो ये भूल गए कि 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की साक्षरता दर 70.6% है. जो कि राष्ट्रीय औसत से 4% कम है.

मध्य प्रदेश शिक्षक ऐसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी आशुतोष पाण्डेय ने यहां तक कहा कि कुछ सालों पहले सरकार ने उन्हें शराब बंटवारे के काम में भी लगा दिया था.

अरे साहब, मदिरापान का भी एक इतिहास रहा है. राजाओं से लेकर इन्द्र जैसे देवता भी मदिरापान के लिए मशहुर थे. तो ये काम भी सरकार को नेक काम ही लगा होगा. तभी तो सरकार ने उसके लिए शिक्षक जैसे नेक बंदों को ढूंढ़ निकाला.

खैर सत्ता है तो साहस है. ऐसा साहस जिससे गलत को भी सही बनाया जा सकता है.

कंटेंट- श्रीधर भारद्वाज (इंटर्न, आईचौक)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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