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मध्यप्रदेश में कमलनाथ के सीएम बनने के बाद नई चुनौती है मंत्रिमंडल...

    • अमित जैन
    • Updated: 13 दिसम्बर, 2018 11:32 PM
  • 13 दिसम्बर, 2018 08:47 PM
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सरकार बनते ही कांग्रेस की दबी हुई गुटबाजी भी सामने आ गई है. बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री-मंत्रियों का नाम तय होने के बीच दिग्गज नेताओं ने अपने अपने हिस्से को लेकर दावेदारी भी शुरू कर दी है.

मध्यप्रदेश में जिस तरह 20-20 मैच की तरह कांग्रेस को सत्ता मिली है उसी तरह मुख्यमंत्री पद के नाम को तय करने में सियासी रस्साकशी चल रही है. बहुमत से केवल 2 सीट कम मिलने के बाद सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते पार्टी अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने मंगलवार की देर रात ही राज्यपाल को पत्र भेजकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था. पार्टी ने तत्काल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को बहुमत मैनेज करने का जिम्मा सौंपा था. बुधवार की शाम को विधायक दल की बैठक के दौरान सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय के समर्थकों ने अपने नेताओं के लिए नारेबाजी की. और बैठक में पर्यवेक्षक के रूप में पहुंचे एके एंटनी ने एक एक विधायक से बात की और मामला राहुल दरबार तक पहुंचा दिया. हालांकि विरोध के बावजूद कमलनाथ पर सहमति बनी और आलाकमान राहुल गांधी की मुहर लगना बाकी है.

मध्य प्रदेश चुनाव के परिणाम के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री कौन होगा

सरकार बनते ही कांग्रेस की दबी हुई गुटबाजी भी सामने आ गई है. बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री-मंत्रियों का नाम तय होने के बीच दिग्गज नेताओं ने अपने अपने हिस्से को लेकर दावेदारी भी शुरू कर दी है. कमलनाथ का मुख्यमंत्री बनना तय है क्योंकि कुछ विधायकों के साथ साथ दिग्विजय सिंह का भी उनको पूरा समर्थन है. कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा कमलनाथ के प्रभाव वाले इलाके महाकौशल में हुआ है, तो जाहिर है 8 से 10 मंत्री भी उनकी पसंद के होंगे. सज्ज़न सिंह वर्मा, एन पी प्रजापति, हुकुम सिंह कराड़ा, दीपक सक्सेना, तरूण भनौट समेत कई विधायक हैं, कमलनाथ के कट्टर समर्थक हैं. कमलनाथ के सिर पर ताज होगा तो उन पर सिंधिया, दिग्विजय, अरूण यादव, अजय सिंह के समर्थक विधायकों को मंत्रि‍मंडल में शामिल करने का दबाव भी कम नहीं होगा.

पूर्व...

मध्यप्रदेश में जिस तरह 20-20 मैच की तरह कांग्रेस को सत्ता मिली है उसी तरह मुख्यमंत्री पद के नाम को तय करने में सियासी रस्साकशी चल रही है. बहुमत से केवल 2 सीट कम मिलने के बाद सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते पार्टी अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने मंगलवार की देर रात ही राज्यपाल को पत्र भेजकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था. पार्टी ने तत्काल पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को बहुमत मैनेज करने का जिम्मा सौंपा था. बुधवार की शाम को विधायक दल की बैठक के दौरान सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय के समर्थकों ने अपने नेताओं के लिए नारेबाजी की. और बैठक में पर्यवेक्षक के रूप में पहुंचे एके एंटनी ने एक एक विधायक से बात की और मामला राहुल दरबार तक पहुंचा दिया. हालांकि विरोध के बावजूद कमलनाथ पर सहमति बनी और आलाकमान राहुल गांधी की मुहर लगना बाकी है.

मध्य प्रदेश चुनाव के परिणाम के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री कौन होगा

सरकार बनते ही कांग्रेस की दबी हुई गुटबाजी भी सामने आ गई है. बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री-मंत्रियों का नाम तय होने के बीच दिग्गज नेताओं ने अपने अपने हिस्से को लेकर दावेदारी भी शुरू कर दी है. कमलनाथ का मुख्यमंत्री बनना तय है क्योंकि कुछ विधायकों के साथ साथ दिग्विजय सिंह का भी उनको पूरा समर्थन है. कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा कमलनाथ के प्रभाव वाले इलाके महाकौशल में हुआ है, तो जाहिर है 8 से 10 मंत्री भी उनकी पसंद के होंगे. सज्ज़न सिंह वर्मा, एन पी प्रजापति, हुकुम सिंह कराड़ा, दीपक सक्सेना, तरूण भनौट समेत कई विधायक हैं, कमलनाथ के कट्टर समर्थक हैं. कमलनाथ के सिर पर ताज होगा तो उन पर सिंधिया, दिग्विजय, अरूण यादव, अजय सिंह के समर्थक विधायकों को मंत्रि‍मंडल में शामिल करने का दबाव भी कम नहीं होगा.

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के चाणक्य दिग्विजय सिंह ने बहुमत के लिए चारों निर्दलीय विधायकों से कुछ घंटो में समर्थन हासिल कर अपनी अहमि‍यत साबित कर दी है. कांग्रेस के करीब 30 विधायक ऐसे जीते हैं, जिन्हें  दिग्विजय सिंह समर्थन करने पर टिकट मिला था. और उनका बेटा जयवर्धन सिंह भी दूसरी बार चुन कर आया है. मंत्रि‍मंडल में 7 से 8 मंत्री दिग्विजय सिंह के कोटे से होना तय हैं. जयवर्धन के अलावा पीसी शर्मा, ब्रजेंद्र राठोर, बिसाहू लाल सिंह, आलोक चतुर्वेदी दिग्विजय गुट के विधायक इस बार जीत कर आए हैं. इस बार दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भी मंत्रि‍मंडल में जगह बनाने की कोशिश करेंगे.

चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया यदि मुख्यमंत्री पद की दावेदारी आलाकमान के कहने पर छोड़ेंगे तो वे भी 6 से 7 मंत्री अपनी पसंद के बनवाने चाहेंगे. भोपाल में विधायक दल की बैठक अटेंड करने के बाद सिंधिया दिल्ली आ गए हैं. यहां उन्होनें राहुल-सोनिया से मुलाकात कर अपनी बात रख दी है. सिंधिया समर्थक विधायकों में तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह, लाखन सिंह समेत कई नाम हैं.

दिग्गज नेता अजय सिंह, सुरेश पचौरी और अरूण यादव हार जरूर गए हैं लेकिन उनकी पकड़ प्रदेश में कम नहीं है और उनके समर्थक विधायकों को भी मंत्रि‍मंडल में शामिल करने का फार्मूला भी कमलनाथ को बनाना पड़ेगा, जिससे भविष्य में समन्वय बनाया जा सके.

मध्यमप्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में औसत 34 सदस्यस रहते आए हैं. शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में 32 सदस्यड थे. कांग्रेस नेतृत्वय को 34 मंत्री बनाना है, जिनमें दिग्गज नेताओं के समर्थकों के अलावा अल्पसंख्यक और क्षेत्रवार समन्वय बैठाना होगा. मंत्रि‍मंडल का मसला जैसे ही सुलझेगा, फिर पोर्टफोलियो आवंटन की चुनौती खड़ी हो जाएगी. 15 साल बाद सत्ता मिलने के बाद अब कौन कितना कंप्रोमाइज़ करेगा और उसका फार्मूला क्या होगा ये तय करने में आलाकमाल को भी पसीना आ जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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