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वोटरों के 'कन्‍फ्यूजन' ने मप्र में बीजेपी से छीन लीं 11 सीटें

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 13 दिसम्बर, 2018 03:58 PM
  • 13 दिसम्बर, 2018 03:58 PM
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मध्यप्रदेश में भाजपा की हार के पीछे 11 सीटें जिम्मेदार हैं. ये वो सीट हैं जहां नोटा ने भाजपा को हरवा दिया है.

मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 15 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा को बेदखल कर दिया. लेकिन कांग्रेस को भाजपा से मात्र पांच सीटें ज्यादा हासिल हुई हैं. 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में जहां कांग्रेस को 114 सीटें मिली वहीं भाजपा को 109 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. यानी कांग्रेस को महज पांच सीटें भाजपा से अधिक, लेकिन भाजपा की इस हार के पीछे नोटा है. 2015 से देश में लागू हुए नोटा ने इस प्रदेश में भाजपा को चौथी बार सत्ता में आने से रोक दिया.

नोटा का मतलब है- NOTA - None of the Above यानी इनमें से कोई नहीं. मतलब वोटरों को किसी भी उम्मीदवार पर भरोसा नहीं है. भाजपा को सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की आवश्यकता थी. लेकिन नोटा ने कम से कम सात विधान सभा सीटों पर इसका खेल बिगाड़ दिया. यहां हार का अंतर 1000 मतों से भी कम रहा. भाजपा को प्राप्त 109 सीटों में इन सात सीटों को अगर जोड़ दें तो आंकड़ा सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ों को छू जाता लेकिन नोटा ने यह नहीं होने दिया.

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार बनने से रोकने में नोटा का अहम योगदान है.

अब जानते हैं उन सात विधानसभा सीटों के बारे में जहां जीत का मार्जिन हजार से भी कम था-

ब्यावरा: इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी गोवर्धन दांगी ने भाजपा के उम्मीदवार नारायण सिंह पंवार को 826 वोटों से हराया. लेकिन यहां पर 1481 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया. यानी भाजपा उम्मीदवार को नोटा ने हराया.

दमोहः कांग्रेस के राहुल सिंह ने भाजपा के जयंत मलैया को 798 वोटों से हराया. नोटा को यहां 1,299 वोट मिले.

ग्वालियर दक्षिण: यहां कांग्रेस के प्रवीण पाठक ने भाजपा के नारायण सिंह कुश्वा को मात्र 121 वोटों से...

मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 15 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा को बेदखल कर दिया. लेकिन कांग्रेस को भाजपा से मात्र पांच सीटें ज्यादा हासिल हुई हैं. 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में जहां कांग्रेस को 114 सीटें मिली वहीं भाजपा को 109 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. यानी कांग्रेस को महज पांच सीटें भाजपा से अधिक, लेकिन भाजपा की इस हार के पीछे नोटा है. 2015 से देश में लागू हुए नोटा ने इस प्रदेश में भाजपा को चौथी बार सत्ता में आने से रोक दिया.

नोटा का मतलब है- NOTA - None of the Above यानी इनमें से कोई नहीं. मतलब वोटरों को किसी भी उम्मीदवार पर भरोसा नहीं है. भाजपा को सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की आवश्यकता थी. लेकिन नोटा ने कम से कम सात विधान सभा सीटों पर इसका खेल बिगाड़ दिया. यहां हार का अंतर 1000 मतों से भी कम रहा. भाजपा को प्राप्त 109 सीटों में इन सात सीटों को अगर जोड़ दें तो आंकड़ा सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ों को छू जाता लेकिन नोटा ने यह नहीं होने दिया.

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार बनने से रोकने में नोटा का अहम योगदान है.

अब जानते हैं उन सात विधानसभा सीटों के बारे में जहां जीत का मार्जिन हजार से भी कम था-

ब्यावरा: इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी गोवर्धन दांगी ने भाजपा के उम्मीदवार नारायण सिंह पंवार को 826 वोटों से हराया. लेकिन यहां पर 1481 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया. यानी भाजपा उम्मीदवार को नोटा ने हराया.

दमोहः कांग्रेस के राहुल सिंह ने भाजपा के जयंत मलैया को 798 वोटों से हराया. नोटा को यहां 1,299 वोट मिले.

ग्वालियर दक्षिण: यहां कांग्रेस के प्रवीण पाठक ने भाजपा के नारायण सिंह कुश्वा को मात्र 121 वोटों से हराया. यहां 1550 लोगों ने नोटा का उपयोग किया.

जबलपुर उत्तर: कांग्रेस के उम्मीदवार विनय सक्सेना ने यहां भाजपा के शरद जैन को 578 वोटों से शिकस्त दी जबकि नोटा पर 1209 लोगों ने भरोसा दिखाया.

राजनगर: यहां कांग्रेस नेता विक्रम सिंह ने भाजपा के अरविंद पटेरिया को 732 वोटों से मात दी. यहां के 2485 लोगों ने नोटा को अपनाया.

राजपुरः इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी बाला बच्चन ने भाजपा के अंतरसिंह देवीसिंह पटेल को 932 वोटों के अंतर से हराया. यहां नोटा को 3,358 लोगों ने पसंद किया.

सुवासराः सुवासरा विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार डांग हरदीप सिंह ने भाजपा के राधेश्याम नंदलाल पाटीदार को मात्र 350 मतों के अंतर से हराया. यहां नोटा पर उंगली दबाने वालों की संख्या 2,976 रही.

मध्य प्रदेश में 1.4 प्रतिशत यानी 542295 मतदाताओं ने नोटा को विकल्प के रूप में चुना. हालांकि, इसका खामियाज़ा दूसरे दलों को भी उठाना पड़ा लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हुआ जिसके कारण इसे प्रदेश की सत्ता पर चौका लगाने का मौका नहीं मिल सका. अब सवाल ये कि क्या राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों को टिकट देने से पहले उनके छवि पर विचार नहीं करना चाहिए? क्योंकि जनता का इतना ज्यादा नोटा का प्रयोग करना, इन उम्मीदवारों की विश्वस्नीयता पर सवाल उठाता है.

मध्य प्रदेश चुनाव में यूं तो 11 सीटें ऐसी हैं, जहां हार-जीत के अंतर से ज्‍यादा बड़ा है नोटा

ये थी वो सीटें जिन्होंने भाजपा को सत्ता का चौका मारने नहीं दिया

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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