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मध्यप्रदेश में बंपर वोटिंग: 'कमल' या कमलनाथ?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 29 नवम्बर, 2018 04:41 PM
  • 29 नवम्बर, 2018 04:41 PM
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मध्यप्रदेश में इस बार रिकॉर्ड वोटिंग हुई है. 75% लोग अपना वोट डालने गए, लेकिन इतिहास कहता है कि मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड वोटिंग सत्ता विरोधी लहर को दर्शाती है. क्या इस बार भी यही हो रहा है?

मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों के लिए मतदान के दौरान बंपर वोटिंग हुई और इसके साथ ही लोगों की पसंद ईवीएम में कैद हो गई! चुनाव आयोग के मुताबिक यहां रिकॉर्ड 75 फीसदी मतदान हुआ है. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा कयास लगाए जाने लगे हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में जहां 72 फीसद मतदान हुआ था वहीं इस बार 75 फीसद मतदान किस तरफ इशारे कर रहे हैं?

क्या भाजपा जो 15 सालों से सत्ता पर काबिज़ है फिर से कमल खिला पाएगी या फिर कांग्रेस के कमलनाथ 'हाथ' को मज़बूत करने में सफल हो पाएंगे? 2008 के विधानसभा चुनाव में यहां 69.28 फीसद तथा 2003 में 67.25 फीसद वोट पड़े थे और भाजपा को बंपर जीत हासिल हुई थी, तो क्या इस बार भी मध्यप्रदेश में बंपर वोटिंग पिछले 15 सालों के रिकॉर्ड को आगे ही बढ़ाएगी या फिर इसे सत्ता विरोधी लहर माना जाए?

मध्यप्रदेश चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग को सत्ता विरोधी लहर माना जाए या फिर भाजपा के कर्मों का फल?

वैसे मध्यप्रदेश के इतिहास में जाएं तो 2003 में 10 साल से सत्ता पर काबिज़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को जनता उखड फेंका था. तब 2003 में 1998 के मुकाबले करीब सात फीसद ज़्यादा वोट पड़े थे यानी 1998 में जहां 60.22 फीसद मतदान हुआ था वहीं 2003 में 67.25 फीसद. और इस तरह प्रदेश में भाजपा की जोरदार वापसी हुई थी और तब से भाजपा का कमल यहां खिला ही हुआ है, लेकिन उस समय बम्पर वोटिंग को सत्ता विरोधी लहर माना गया था. यानी वक़्त के बदलाव से जोड़कर देखा गया था. इस बार भी पिछली विधानसभा के मुकाबले करीब 3 से 4 फीसदी ज़्यादा वोट पड़े तो क्या इसे सत्ता विरोधी लहर माना जाए?

वैसे तो बम्पर मतदान को सत्ता पक्ष अपने किए अच्छे कार्यों का नतीजा बता रहा है, वहीं विपक्षी पार्टियां इसे सत्ता विरोधी लहर बता रही हैं. ठीक इसी तरह यहां भी भाजपा और इसके...

मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों के लिए मतदान के दौरान बंपर वोटिंग हुई और इसके साथ ही लोगों की पसंद ईवीएम में कैद हो गई! चुनाव आयोग के मुताबिक यहां रिकॉर्ड 75 फीसदी मतदान हुआ है. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा कयास लगाए जाने लगे हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में जहां 72 फीसद मतदान हुआ था वहीं इस बार 75 फीसद मतदान किस तरफ इशारे कर रहे हैं?

क्या भाजपा जो 15 सालों से सत्ता पर काबिज़ है फिर से कमल खिला पाएगी या फिर कांग्रेस के कमलनाथ 'हाथ' को मज़बूत करने में सफल हो पाएंगे? 2008 के विधानसभा चुनाव में यहां 69.28 फीसद तथा 2003 में 67.25 फीसद वोट पड़े थे और भाजपा को बंपर जीत हासिल हुई थी, तो क्या इस बार भी मध्यप्रदेश में बंपर वोटिंग पिछले 15 सालों के रिकॉर्ड को आगे ही बढ़ाएगी या फिर इसे सत्ता विरोधी लहर माना जाए?

मध्यप्रदेश चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग को सत्ता विरोधी लहर माना जाए या फिर भाजपा के कर्मों का फल?

वैसे मध्यप्रदेश के इतिहास में जाएं तो 2003 में 10 साल से सत्ता पर काबिज़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को जनता उखड फेंका था. तब 2003 में 1998 के मुकाबले करीब सात फीसद ज़्यादा वोट पड़े थे यानी 1998 में जहां 60.22 फीसद मतदान हुआ था वहीं 2003 में 67.25 फीसद. और इस तरह प्रदेश में भाजपा की जोरदार वापसी हुई थी और तब से भाजपा का कमल यहां खिला ही हुआ है, लेकिन उस समय बम्पर वोटिंग को सत्ता विरोधी लहर माना गया था. यानी वक़्त के बदलाव से जोड़कर देखा गया था. इस बार भी पिछली विधानसभा के मुकाबले करीब 3 से 4 फीसदी ज़्यादा वोट पड़े तो क्या इसे सत्ता विरोधी लहर माना जाए?

वैसे तो बम्पर मतदान को सत्ता पक्ष अपने किए अच्छे कार्यों का नतीजा बता रहा है, वहीं विपक्षी पार्टियां इसे सत्ता विरोधी लहर बता रही हैं. ठीक इसी तरह यहां भी भाजपा और इसके मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस का भी विचार है.

लेकिन समय बदला और अब करीब-करीब हर विधानसभा चुनावों में वोटिंग बढ़ती जा रही है. कारण जनता में जागरूकता और चुनाव आयोग का ज़्यादा से ज़्यादा मतदान में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना भी है. और तो और अब तो सरकार की नीतियों पर विश्वास करने वाले भी बड़े उत्साह से वोट डालने निकलते हैं. ठीक उसी प्रकार सरकार से परेशान व्यक्ति भी बड़े जोश के साथ चुनाव प्रक्रिया में भाग लेता है. इसलिए अब मतदान के कम या ज्यादा होने को किसी ट्रेंड से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. खैर, मध्यप्रदेश में इस बार का बम्पर वोटिंग किसको फायदा पहुंचाएगी इसकी तस्वीर 11 दिसंबर को साफ़ हो पाएगी जब जनता का फैसला ईवीएम से बाहर आएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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