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बादशाह-सेनापति बेफिक्र! वाराणसी-लखनऊ में आपस में लड़ रहे हैं प्यादे

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 20 जून, 2019 06:40 PM
  • 04 मई, 2019 01:08 PM
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लखनऊ में जिस तरह का माहौल है राजनाथ सिंह की जीत पक्की मानी जा रही है. ऐसा ही कुछ हाल वाराणसी में पीएम मोदी का है जहां उनके मुकाबले दूर-दूर तक कोई नहीं है.

सुबह-ए-बनारस, शाम-ए-अवध दुनिया में मशहूर है. उत्तर प्रदेश के इन शहरों की ऐतीहासिक लोकसभा सीटें भी चर्चा मे हैं. ये चर्चा भी बनारस की सुबह और अवध की शाम की तरह बिल्कुल अलग है. चुनाव में आम तौर से उन सीटों की चर्चा होती है जहां प्रत्याशियों के बीच मुकाबला होता है. किंतु वाराणसी में नरेंद्र मोदी को टक्कर देने वाला कोई भी प्रत्याशी नहीं खड़ा है. यही हाल लखनऊ का भी है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह की जीत एकतरफा नजर आ रही है. इन सीटों पर विपक्ष ने ना तो मजबूत प्रत्याशी उतारे और ना ही विपक्षी पार्टियां यहां लड़ने में ऊर्जा लगा रही हैं.

वाराणसी में सपा-बसपा गठबंधन ने सपा प्रत्याशी शालिनी यादव को नरेंद मोदी के खिलाफ उतारा है. जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर सपा ज्वाइन करने के दो दिन बाद पर्चा दाखिल कर दिया. जिसके कारण वाराणसी के स्थानीय नेता काफी नाराज भी हुए और पार्टी छोड़ने की चेतावनी तक दे डाली. शालिनी पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर मेयर का चुनाव लड़कर बुरी तरह हार चुकी हैं.

राजनाथ सिंह को लखनऊ से मजबूत कैंडिडेट माना जा रहा है इसलिए इनकी जीत तय मानी जा रही है 

कांग्रेस ने वाराणसी सीट स अजय राय को अपना उम्मीदवार बनाया है. पिछले लोकसभा चुनाव में अजय राय की जमानत जब्त हो गयी थी. कुल मालाकर यहां दूसरे नंबर की पोजिशन के लिए कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन की सपा प्रत्याशी के बीच मुकाबला है. नरेंद मोदी को टक्कर देने के लिए किसी भी दल ने अपना मजबूत प्रत्याशी खड़ा नहीं किया.

मजबूत प्रत्याशियों के आभाव में विपक्षी दल वाराणसी में अपना मजबूत दावेदार नहीं झोकना चाहते थे. अपने जनाधार वाले किसी नेता को गलत जगह इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे. गलत जगह का आशय है ऐसी जगह जहां पार्टी उम्मीदवार के जीतने की...

सुबह-ए-बनारस, शाम-ए-अवध दुनिया में मशहूर है. उत्तर प्रदेश के इन शहरों की ऐतीहासिक लोकसभा सीटें भी चर्चा मे हैं. ये चर्चा भी बनारस की सुबह और अवध की शाम की तरह बिल्कुल अलग है. चुनाव में आम तौर से उन सीटों की चर्चा होती है जहां प्रत्याशियों के बीच मुकाबला होता है. किंतु वाराणसी में नरेंद्र मोदी को टक्कर देने वाला कोई भी प्रत्याशी नहीं खड़ा है. यही हाल लखनऊ का भी है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह की जीत एकतरफा नजर आ रही है. इन सीटों पर विपक्ष ने ना तो मजबूत प्रत्याशी उतारे और ना ही विपक्षी पार्टियां यहां लड़ने में ऊर्जा लगा रही हैं.

वाराणसी में सपा-बसपा गठबंधन ने सपा प्रत्याशी शालिनी यादव को नरेंद मोदी के खिलाफ उतारा है. जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर सपा ज्वाइन करने के दो दिन बाद पर्चा दाखिल कर दिया. जिसके कारण वाराणसी के स्थानीय नेता काफी नाराज भी हुए और पार्टी छोड़ने की चेतावनी तक दे डाली. शालिनी पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर मेयर का चुनाव लड़कर बुरी तरह हार चुकी हैं.

राजनाथ सिंह को लखनऊ से मजबूत कैंडिडेट माना जा रहा है इसलिए इनकी जीत तय मानी जा रही है 

कांग्रेस ने वाराणसी सीट स अजय राय को अपना उम्मीदवार बनाया है. पिछले लोकसभा चुनाव में अजय राय की जमानत जब्त हो गयी थी. कुल मालाकर यहां दूसरे नंबर की पोजिशन के लिए कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन की सपा प्रत्याशी के बीच मुकाबला है. नरेंद मोदी को टक्कर देने के लिए किसी भी दल ने अपना मजबूत प्रत्याशी खड़ा नहीं किया.

मजबूत प्रत्याशियों के आभाव में विपक्षी दल वाराणसी में अपना मजबूत दावेदार नहीं झोकना चाहते थे. अपने जनाधार वाले किसी नेता को गलत जगह इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे. गलत जगह का आशय है ऐसी जगह जहां पार्टी उम्मीदवार के जीतने की उम्मीद ना के बराबर हो. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने साफ तौर पर खुद भी कहा कि वो वाराणसी में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहती हैं. किंतु वो ये साहस नहीं जुटा सकीं. और अंत में पिछले लोकसभा चुनाव में वाराणसी में ही मोदी के खिलाफ लड़कर बहुत बुरी तरह हारने वाले अजय राय को पुन: टिकट दे दिया गया.

इसी तरह लखनऊ में भी राजनाथ सिंह को टक्कर देने वाला कोई उम्मीदवार सामने नहीं है. पार्टी से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सबसे पहले शत्रुघ्न सिन्हा को पार्टी ज्वाइन कर सपा से लखनऊ लोकसभा सीट पर लड़ने का आफर किया.

बात नहीं बनी तो इसके बाद सपा अध्यक्ष ने अपने करीबी अभीषेक मिश्रा को भी लखनऊ से टिकट देने पर विचार किया. किंतु कोई भी राजनाथ सिंह को टक्कर देने का साहस नहीं कर सका. जिसके बाद समाजवादी पार्टी ने शत्रुघ्न सिन्हा के कहने पर उनकी पत्नी और गैर राजनीतिक महिला पूनम सिन्हा को लखनऊ सीट से टिकट देकर यहां प्रत्याशी खड़ा करने की औपचारिकता निभाई.

इसी तरह कांग्रेस ने भी लखनऊ में निवर्तमान सांसद राजनाथ सिंह के मुकाबले में पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं को टिकट देने का मन बनाया. बताया जाता है कि हर बड़े नेता ने अपनी इज्जत बचाने के लिए यहां से लड़ने से मना कर दिया. आखिरकार कांग्रेस को लखनऊ से आचार्य प्रमोद कृष्णम को टिकट दिया. गौरतलब है कि आचार्य पूर्व में संभल से चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें उन्हें चंद हजार वोट हासिल हुए थे और वो बुरी तरह हारे थे. इसलिए लखनऊ सीट पर राजनाथ सिंह से मुकाबले के बजाय सपा और कांग्रेस उम्मीदवार दूसरे नंबर पर आने के लिए लड़ रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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