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बनना तो हमें शांघाई-लंदन जैसा भी था, लेकिन मिला क्या !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 24 अप्रिल, 2018 08:18 PM
  • 24 अप्रिल, 2018 08:18 PM
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भारत के शहरों की विदेशी शहरों से तुलना की जो तस्वीर लोगों के दिलो-दिमाग में बनाकर नेता वोट मांग लिया करते हैं, वो तस्वीर कभी हकीकत की जमीन पर अपने पांव नहीं रख पाती है.

हम भले ही भारत के किसी शहर में रहते हों या फिर गांव में, लेकिन विदेश के शहर हर किसी को आकर्षक लगते ही हैं. लोगों की इस चाहत का फायदा नेता उठाते हैं, ताकि अपनी झोली वोटों से भर सकें. भारत के शहरों को अक्सर ही किसी विदेशी शहर जैसा बनाने के बयान सुनने को मिलते ही हैं. भले ही बात बनारस को क्योटो बनाने की हो, दिल्ली को लंदन बनाने की या फिर अमेठी को सिंगापुर-कैलिफोर्निया जैसा बनाने की हो. इन शहरों की जो तस्वीर लोगों के दिलो-दिमाग में बनाकर नेता वोट मांग लिया करते हैं, वो तस्वीर कभी हकीकत की जमीन पर अपने पांव नहीं रख पाती है. बावजूद इसके, इस तरह के बयान दिए ही जाते हैं. चलिए जानते हैं भारत के किस शहर को कौन सा नेता विदेश के किस शहर जैसा बनाने का दावा करता है.

1- अमेठी को सिंगापुर-कैलिफोर्निया जैसा बना देंगे

अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में एक स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचने राहुल गांधी ने हाल ही में अमेठी के लोगों के एक ऐसा सपना दिखाया है, जो हकीकत बनेगा या नहीं, कुछ कह नहीं सकते. राहुल गांधी ने कहा है कि 10-15 साल में वह अमेठी को ऐसा बना देंगे कि जब भी कभी कैलिफोर्निया और सिंगापुर का नाम लिया जाएगा, तो साथ ही अमेठी का नाम भी लोगों की जुबां पर जरूर आएगा. मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए राहुल ने कहा कि चाहे ये फूड पार्क छीन लें, ट्रिपल आईटी छीन लें, हिंदुस्तान पेपर मिल छीन लें, कोई उन्हें कितना भी रोकने की कोशिश करे, लेकिन वह ऐसा करके रहेंगे.

2- मुंबई को शांघाई में बदलने का था इरादा

बात अभी की नहीं, बल्कि करीब 12-13 साल पुरानी है, जब महाराष्ट्र के...

हम भले ही भारत के किसी शहर में रहते हों या फिर गांव में, लेकिन विदेश के शहर हर किसी को आकर्षक लगते ही हैं. लोगों की इस चाहत का फायदा नेता उठाते हैं, ताकि अपनी झोली वोटों से भर सकें. भारत के शहरों को अक्सर ही किसी विदेशी शहर जैसा बनाने के बयान सुनने को मिलते ही हैं. भले ही बात बनारस को क्योटो बनाने की हो, दिल्ली को लंदन बनाने की या फिर अमेठी को सिंगापुर-कैलिफोर्निया जैसा बनाने की हो. इन शहरों की जो तस्वीर लोगों के दिलो-दिमाग में बनाकर नेता वोट मांग लिया करते हैं, वो तस्वीर कभी हकीकत की जमीन पर अपने पांव नहीं रख पाती है. बावजूद इसके, इस तरह के बयान दिए ही जाते हैं. चलिए जानते हैं भारत के किस शहर को कौन सा नेता विदेश के किस शहर जैसा बनाने का दावा करता है.

1- अमेठी को सिंगापुर-कैलिफोर्निया जैसा बना देंगे

अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में एक स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचने राहुल गांधी ने हाल ही में अमेठी के लोगों के एक ऐसा सपना दिखाया है, जो हकीकत बनेगा या नहीं, कुछ कह नहीं सकते. राहुल गांधी ने कहा है कि 10-15 साल में वह अमेठी को ऐसा बना देंगे कि जब भी कभी कैलिफोर्निया और सिंगापुर का नाम लिया जाएगा, तो साथ ही अमेठी का नाम भी लोगों की जुबां पर जरूर आएगा. मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए राहुल ने कहा कि चाहे ये फूड पार्क छीन लें, ट्रिपल आईटी छीन लें, हिंदुस्तान पेपर मिल छीन लें, कोई उन्हें कितना भी रोकने की कोशिश करे, लेकिन वह ऐसा करके रहेंगे.

2- मुंबई को शांघाई में बदलने का था इरादा

बात अभी की नहीं, बल्कि करीब 12-13 साल पुरानी है, जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख थे. तब उन्होंने कहा था कि वह करीब 315 अरब रुपयों के प्रोजेक्ट्स के जरिए मुंबई को शांघाई में बदलने वाले हैं. हालांकि, मौजूद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक बयान में कहा है कि वह मुंबई को शांघाई में नहीं बदलना चाहते हैं, वह मुंबई को मुंबई ही बनाना चाहते हैं.

कई मामलों में एक से हैं मुंबई और शांघाई

अगर हम शांघाई और मुंबई की तुलना करें तो कई मामलों में दोनों एक जैसे हैं. दोनों ही समुद्र के किनारे बसे हैं, दोनों ही देश की आर्थिक राजधानी हैं, सिनेमा जगत की शुरुआत दोनों देशों में इन्हीं शहरों से हुई, भारत का सबसे बड़ा शेयर मार्केट बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज है और चीन में शांघाई स्टॉक एक्सचेंज. लेकिन अगर बात क्वालिटी ऑफ लाइफ की करें तो दोनों शहरों में बहुत बड़ा अंतर है. शांघाई में साफ-सफाई, बिजली-पानी और कारोबार के लिहाज से जो सुविधाएं है, उसकी बराबरी करने में मुंबई को सालों लग जाएंगे.

3- दिल्ली को लंदन जैसा बना देंगे

अरविंद केजरीवाल ने नगर निगम चुनावों के दौरान दिल्ली के उत्तम नगर में प्रचार करते हुए यह बात कही थी. उन्होंने कहा था कि अगर उनकी पार्टी चुनाव जीत जाती है तो वह एक साल में दिल्ली को लंदन जैसा बना देंगे. उन्होंने यह भी कहा था कि जितना उनकी सरकार ने दिल्ली में महज दो सालों में कर दिखाया है, उतना भाजपा की सरकार ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 10-15 सालों में भी नहीं किया है. खैर, अरविंद केजरीवाल नगर निगम चुनाव तो जीत नहीं पाए, तो अब दिल्ली लंदन बनने के बजाए दिल्ली ही रहेगा.

4- वाराणसी को क्योटो जैसा बनाना चाहते थे मोदी

प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को एक बड़ी सौगात देने की तैयारी करते हुए कहा था कि वह क्योटो की तर्ज पर काशी को विकसति करेंगे. इसके लिए उन्होंने अपनी जापान यात्रा के दौरान क्योटो-वाराणसी साझेदारी पर समझौता भी किया, जिसके तहत वाराणसी के विकास के लिए जापान हर संभव मदद करेगा. 2015 में जो वादा पीएम मोदी ने किया था, उसे दिसंबर 2017 में उन्हीं की पार्टी से वाराणसी की मेयर बनीं मृदुला जायसवाल ने तोड़ दिया. मृदुला ने साफ कहा कि वह काशी को क्योटो नहीं बनाएंगी, बल्कि काशी को काशी ही रहने देंगी और लोगों को मूल सुविधाएं मुहैया कराएंगी.

5- कोलकाता को भी लंदन बनाने का दिखाया गया था सपना

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कोलकाता को लंदन बनाने का सपना दिखाया था. वह कोलकाता की हुगली नदी को लंदन की थेम्स नदी के समतुल्य रखकर भी देख रही थीं. 2011 में ममता बनर्जी ने ये सपना दिखाया था, जिसके बाद वह एक और चुनाव जीत चुकी है, लेकिन अबी तक कोलकाता की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है. कोलकाता को लंदन बनाने की चाहत में ममता बनर्जी काफी सारा निवेश भी लाने की कोशिश में थीं. खैर, ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के चुनाव में कोलकाता के लोगों को क्या सपना दिखाकर वोट मांगे जाएंगे.

6- दार्जलिंग को स्विजटरलैंड जैसा भी बनाना चाहती थीं ममता

ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी सिर्फ कोलकाता के लिए विकास कार्य करने के दावे करती हैं. उन्होंने यह भी दावा किया था कि वह दार्जलिंग को स्विटजरलैंड जैसा बना देंगी. दार्जलिंग की खूबसूरत वादियां आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षिक करती हैं, लेकिन वो स्विटरलैंड जैसा कब बनेगा, ये कहा नहीं जा सकता.

सिर्फ चुनाव जीतने के लिए दावे तो नेता करते ही रहते हैं, लेकिन किसी भी शहर में कोई बड़ा बदलाव दिखाई नहीं देता है. शांघाई जैसी समानताओं वाला मुंबई भी आज तक शांघाई जैसी सुविधाएं मुहैया नहीं करा सका है. इन सबसे एक बात ये तो साफ हो जाती है कि ये सब सिर्फ सपने होते हैं, जो जनता को दिखाए जाते हैं, लेकिन कभी हकीकत नहीं बन पाते.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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