• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

लिंगायत धर्म वाले क्यों कर्नाटक चुनाव में निर्णायक हैं..

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 27 मार्च, 2018 03:19 PM
  • 27 मार्च, 2018 03:19 PM
offline
कर्नाटक का एक ऐसा समुदाय है जो वर्षों से यह तर्क देता आया है कि इनके रीति-रिवाज हिंदुओं से अलग हैं. अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है.

कर्नाटक चुनाव की तारीख तय कर दी गई है और 12 मई को कांग्रेस बनाम भाजपा का संग्राम भी शुरू हो जाएगा और 15 मई को चुनाव का परिणाम भी आ जाएगा. इस समय चुनावी घमासान में लिंगायतों की अहम भूमिका रहने वाली है. वही लिंगायत समुदाय जिसे धर्म बनाने की कोशिश चुनाव के पहले तेज हो गई है.

जिन्हें इसके बारे में बिलकुल भी नहीं पता उन्हें बता दूं कि ये कर्नाटक का एक ऐसा समुदाय है जो वर्षों से यह तर्क देता आया है कि इनके रीति-रिवाज हिंदुओं से अलग हैं. अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है. 

कौन हैं लिंगायत?

12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था. बासवन्ना ने वेदों को खारिज किया. वे मूर्ति पूजा के भी खिलाफ थे. ये धर्म मूर्ति पूजा नहीं करता और इसमें कर्म के आधार पर लोगों की अहमियत और उनकी जाति आधारित होती है. इस धर्म में किसी को मारने वाला या किसी के अधिकारों का हनन करने वाला सबसे नीचा माना जाता है.

यह हिंदू धर्म से कैसे अलग ?

लिंगायत सम्प्रदाय के लोगों के अनुसार यह धर्म भी मुस्लिम, हिन्दू, क्रिश्चियन आदि की तरह ही एक अलग धर्म है. वे वेदों में विश्वास नहीं रखते हैं. मूर्ति पूजा नहीं की जाती. देवपूजा, सतीप्रथा, जातिवाद, महिलाओं के अधिकारों का हनन गलत माना जाता है. इसके अलावा, पुनर्जन्म का कॉन्सेप्ट भी लिंगायत सिरे से नकारते हैं और इसीलिए अपने समाज को हिन्दू धर्म से भी अलग मानते हैं. लिंगायत संप्रदाय के लोग पूरी तरह शाकाहारी होते हैं.

शिव-पूजक नहीं, लेकिन शिव-भक्त...

लिंगायत समुदाय के लोगों का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते हैं. लेकिन प्रतीक स्‍वरूप शरीर पर...

कर्नाटक चुनाव की तारीख तय कर दी गई है और 12 मई को कांग्रेस बनाम भाजपा का संग्राम भी शुरू हो जाएगा और 15 मई को चुनाव का परिणाम भी आ जाएगा. इस समय चुनावी घमासान में लिंगायतों की अहम भूमिका रहने वाली है. वही लिंगायत समुदाय जिसे धर्म बनाने की कोशिश चुनाव के पहले तेज हो गई है.

जिन्हें इसके बारे में बिलकुल भी नहीं पता उन्हें बता दूं कि ये कर्नाटक का एक ऐसा समुदाय है जो वर्षों से यह तर्क देता आया है कि इनके रीति-रिवाज हिंदुओं से अलग हैं. अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है. 

कौन हैं लिंगायत?

12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था. बासवन्ना ने वेदों को खारिज किया. वे मूर्ति पूजा के भी खिलाफ थे. ये धर्म मूर्ति पूजा नहीं करता और इसमें कर्म के आधार पर लोगों की अहमियत और उनकी जाति आधारित होती है. इस धर्म में किसी को मारने वाला या किसी के अधिकारों का हनन करने वाला सबसे नीचा माना जाता है.

यह हिंदू धर्म से कैसे अलग ?

लिंगायत सम्प्रदाय के लोगों के अनुसार यह धर्म भी मुस्लिम, हिन्दू, क्रिश्चियन आदि की तरह ही एक अलग धर्म है. वे वेदों में विश्वास नहीं रखते हैं. मूर्ति पूजा नहीं की जाती. देवपूजा, सतीप्रथा, जातिवाद, महिलाओं के अधिकारों का हनन गलत माना जाता है. इसके अलावा, पुनर्जन्म का कॉन्सेप्ट भी लिंगायत सिरे से नकारते हैं और इसीलिए अपने समाज को हिन्दू धर्म से भी अलग मानते हैं. लिंगायत संप्रदाय के लोग पूरी तरह शाकाहारी होते हैं.

शिव-पूजक नहीं, लेकिन शिव-भक्त...

लिंगायत समुदाय के लोगों का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते हैं. लेकिन प्रतीक स्‍वरूप शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं. यह एक पत्‍थर की बनी पिंडी जैसी आकृति होती है. लिंगायत इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं.

लिंगायत वेदों को तो नहीं मानते, लेकिन वचन-साहित्‍य उनके लिए पवित्र किताब की तरह है. इसमें उनके गुरू बासवन्‍ना की कही गई बातें दर्ज हैं. 'वचन साहित्य' को कर्नाटक में लिंगायतों के धर्म ग्रंथ की मान्‍यता है. इस ग्रंथ में लिखा गया है कि सदाशिव नामक लिंग है, उस पर विश्वास करो. बस यही कारण है कि लिंगायत समुदाय अपने शरीर पर शिवलिंग की स्थापना करता है. वे शिव को आदिदेव की तरह मानते हैं. लिंगायत मूर्तिपूजक तो नहीं है, लेकिन बासवन्ना की मूर्ति काफी जगह देखी जा सकती है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में लंदन स्थित बासवन्‍ना की एक मूर्ति का अनावरण किया है.

लिंगायत और वीरशैव ?

लिंगायत समुदाय से जुड़ा सबसे बड़ा पक्ष है वीरशैव. आम मान्यता यह है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं. वहीं लिंगायतों का मनना है कि वीरशैव समुदाय का अस्तित्व बासवन्ना से भी पहले का है और वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं. उनकी मान्यताएं वीरशैव से अलग हैं, इस बात को लेकर भी काफी समय से विवाद चल रहा है. शुरू से ही वीरशैव समुदाय और बासवन्ना समुदाय को एक ही माना जाता रहा है और दोनों ही शिवभक्त भी हैं.

लिंगायत और कर्नाटक की राजनीति ?

इस मुद्दे का सबसे जरूरी पहलू यही है. लिंगायत को धर्म का दर्जा दिए जाने की एक बड़ी वजह राजनीतिक ही है. कर्नाटक की करीब 18 से 20 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय की है. तो इसका अंदाजा लगा लीजिए ये कितना बड़ा वोट बैंक है. सबसे पहले बासप्पा जानप्पा जत्ती 1958-62 के बीच लिंगायत समुदाय के कर्नाटक के पहले सीएम बने थे. राज्‍य के 22 में से 9 मुख्‍यमंत्रियों का ताल्‍लुक लिंगायत समुदाय से रहा है.

लिंगायत को धर्म की मान्‍यता और टाइमिंग?

कर्नाटक में जल्‍द ही चुनाव होने वाले हैं. यहां बड़ी लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस की है. लिंगायत को भाजपा का पारंपरिक वोटबैंक माना जाता है. 2008 में लिंगायत समुदाय और इसके नेता बीएस येदियुरप्‍पा की बदौलत भाजपा को पहली बार किसी दक्षिणी राज्‍य में सरकार बनाने का मौका मिला था. लेकिन 2013 में येदियुरप्‍पा भाजपा से अलग हो गए और पार्टी हार गई. अब वे दोबारा भाजपा में हैं. फिलहाल कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और वह किसी भी हालत में लिंगायत वोटों को भाजपा की ओर जाने से रोकना चाहती है. लिंगायत समुदाय को धर्म की मान्‍यता देकर कांग्रेस ने इस समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश की है.

धर्म बन जाने से क्‍या मिलेगा लिंगायतों को ?

लिंगायत समुदाय अगर एक अलग धर्म बन जाता है तो उन्हें भारतीय संविधान के सेक्शन 25, 28, 29 और 30 के तहत सभी अधिकार मिलने लगेंगे. इसमें अलग धर्म फॉलो करना, अपनी बोली बोलना, रहन-सहन और पहनावे को अपने हिसाब से ढालना और मंदिर या पूजाघर बनाने की आजादी शामिल है.

वे अपने धर्म के हिसाब से अलग शिक्षा संस्थान और ट्रस्ट बना सकते हैं, जैसे कि मदरसे हैं. इसके लिए वो सरकार से फंड भी ले सकते हैं. इसके अलावा, अल्पसंख्यकों के लिए बने डेवलपमेंट प्रोग्राम, स्कॉलरशिप स्कीम, पोस्ट मेट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम, मेट्रिक कम मीन्स स्कॉलरशिप, फ्री कोचिंग स्कीम आदि सब का फायदा मिलने लगेगा. लिंगायत समुदाय को एक धर्म के रूप में बदलने की मांग कुछ 40 साल पुरानी कही जा सकती है. लेकिन, यह कभी बहुत ज्‍यादा मुखर नहीं रही. पिछले साल बिदर में अचानक लाखों लोग जमा हुए. लिंगायत को धर्म की मान्‍यता दिलाए जाने को लेकर विशाल रैली निकाली गई. अब इस समुदाय को धर्म की मान्‍यता मिल भी सकती है. लेकिन कर्नाटक की राजनीति में दिलचस्‍पी रखने वाले मानत हैं कि इस मुद्दे का ज्‍यादा फायदा लोगों के बजाए नेताओं को मिलेगा. हां, एक बात साफ है कि ऐसा होने के बाद भारत में लिंगायत को अल्पसंख्यकों का दर्जा जरूर मिल जाएगा, जिससे राजनीतिक और अल्पसंख्यकों को मिलने वाले सारे फायदे लिंगायतों को मिलेंगे. लेकिन लोगों की जिंदगी वैसी की वैसी ही रहेगी. और हां, इससे एक बात और साफ हो जाएगी कि हिंदुस्तान में धर्म की राजनीति जो शायद सदियों से चली आ रही है आगे भी चलती रहेगी!

ये भी पढ़ें-

लिंगायतों की राजनीति करके कर्नाटक में कांग्रेस में सेल्फ गोल तो नहीं कर लिया?

कर्नाटक में कांग्रेस की लिंगायत राजनीति बांटो और राज करो का तरीका है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲