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लिंगायतों की राजनीति करके कर्नाटक में कांग्रेस में सेल्फ गोल तो नहीं कर लिया?

    • आईचौक
    • Updated: 22 मार्च, 2018 02:55 PM
  • 22 मार्च, 2018 02:55 PM
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लिंगायतों का वोट कमोबेश भाजपा की ही झोली गिरता रहा है. इसलिए उन्हें पिछड़ा वर्ग की श्रेणी का लालच देकर सिद्धारमैया ने उनकी क्षमता को कमतर ही आंका है. लेकिन क्या ये तरीका काम करेगा?

विधानसभा चुनावों के ठीक दो महीने पहले कांग्रेस ने सोमवार 19 मार्च को कर्नाटक में भाजपा पर सबसे बड़ा पलटवार किया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाले राज्य कैबिनेट ने जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ कमिटि की सिफारिश पर मुहर लगाने का फैसला किया. कमिटि ने कर्नाटक अल्पसंख्यक एक्ट के सेक्शन 2(डी) के तहत बासाव तत्व के अनुयायियों "लिंगायत और वीरशैव लिंगायत" समुदाय को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखने की सिफारिश की थी.

कानून मंत्री टीबी जयचंद्र ने कहा है कि अब ये सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी जाएगी ताकि केंद्रीय अल्पसंख्यक कमीशन एक्ट के तहत इसे शामिल किया जाए.

- संविधान और जाति

इस आदेश का मतलब क्या है? इसका मतलब है कि कर्नाटक के प्रमुख समुदाय माने जाने वाले लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को संविधान के सेक्शन 25, 28, 29 और 30 के तहत विशेषाधिकार मिलेगा. इसके तहत अब उन्हें उनके धर्म का प्रचार करने, विशेष धार्मिक शिक्षा और पूजा करने, अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को चलाने और प्रबंधित करने की स्वतंत्रता मिल जाएगी. इससे पूरे राज्य में मौजूद कई लिंगायत शैक्षिक ट्रस्टों को जरुर लाभ पहुंचेगा. लेकिन विशेष रूप से उत्तर कर्नाटक में इन ट्रस्टों को पनपने का भी खुब मौका मिलेगा.

हालांकि इन्हें इसका तत्काल रुप से कोई फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि लिंगायत समाज को पहले ही 2ए और 3बी के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में उन्हें पहले से ही 15 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है. संयोगवश इनमें से कुछ आरक्षण उन्हें 2009 में येदुरप्पा सरकार द्वारा प्रदान किए गए थे जो खुद लिंगायत हैं. राज्य में हिंदुओं के दो प्रमुख समुदाय- लिंगायत (14 प्रतिशत) और वोक्कालीगा या गौड़ा (11 प्रतिशत) जनसंख्या है. दोनों को ही पिछड़ा वर्ग में रखा गया है और इसके तहत आरक्षण का लाभ भी ये समुदाय उठाते हैं. दोनों ही समुदायों के बीच में प्रत्यक्ष रुप से कोई झगड़ा नहीं है.

विधानसभा चुनावों के ठीक दो महीने पहले कांग्रेस ने सोमवार 19 मार्च को कर्नाटक में भाजपा पर सबसे बड़ा पलटवार किया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाले राज्य कैबिनेट ने जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ कमिटि की सिफारिश पर मुहर लगाने का फैसला किया. कमिटि ने कर्नाटक अल्पसंख्यक एक्ट के सेक्शन 2(डी) के तहत बासाव तत्व के अनुयायियों "लिंगायत और वीरशैव लिंगायत" समुदाय को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखने की सिफारिश की थी.

कानून मंत्री टीबी जयचंद्र ने कहा है कि अब ये सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी जाएगी ताकि केंद्रीय अल्पसंख्यक कमीशन एक्ट के तहत इसे शामिल किया जाए.

- संविधान और जाति

इस आदेश का मतलब क्या है? इसका मतलब है कि कर्नाटक के प्रमुख समुदाय माने जाने वाले लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को संविधान के सेक्शन 25, 28, 29 और 30 के तहत विशेषाधिकार मिलेगा. इसके तहत अब उन्हें उनके धर्म का प्रचार करने, विशेष धार्मिक शिक्षा और पूजा करने, अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को चलाने और प्रबंधित करने की स्वतंत्रता मिल जाएगी. इससे पूरे राज्य में मौजूद कई लिंगायत शैक्षिक ट्रस्टों को जरुर लाभ पहुंचेगा. लेकिन विशेष रूप से उत्तर कर्नाटक में इन ट्रस्टों को पनपने का भी खुब मौका मिलेगा.

हालांकि इन्हें इसका तत्काल रुप से कोई फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि लिंगायत समाज को पहले ही 2ए और 3बी के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में उन्हें पहले से ही 15 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है. संयोगवश इनमें से कुछ आरक्षण उन्हें 2009 में येदुरप्पा सरकार द्वारा प्रदान किए गए थे जो खुद लिंगायत हैं. राज्य में हिंदुओं के दो प्रमुख समुदाय- लिंगायत (14 प्रतिशत) और वोक्कालीगा या गौड़ा (11 प्रतिशत) जनसंख्या है. दोनों को ही पिछड़ा वर्ग में रखा गया है और इसके तहत आरक्षण का लाभ भी ये समुदाय उठाते हैं. दोनों ही समुदायों के बीच में प्रत्यक्ष रुप से कोई झगड़ा नहीं है.

कांग्रेस ने अपना असली चेहरा दिखा ही दिया

लेकिन हर स्तर पर सत्ता के लिए दोनों की भिड़ंत हमेशा होती है. फिर चाहे विधायक/सांसद के टिकटों की संख्या की बात हो या फिर राज्य के मुख्यमंत्री की गद्दी की बात. दोनों के ही खुब सारे उपसमुदाय और गुट हैं. लिंगायत के 92 और गौड़ा के 116. खुद राज्य के वर्तमान मु्ख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरुबा गौड़ा समुदाय से आते हैं. कुरुबा समुदाय चरवाहों का समुदाय है जिसे उत्तर भारत में यादव और अहिर के समकक्ष रखा जा सकता है. कुरुबा समुदाय को भी ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है और इन्हें 7 प्रतिशत आरक्षण भी मिलता है.

आखिर ये आंकड़े महत्वपूर्ण क्यों हैं या फिर इसमें आश्चर्य की क्या बात है? तो इसका कारण है कि ये आंकड़े राज्य की पहली जाति जनगणना से लीक हुए हैं. ये बीजेपी के खिलाफ मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या की दूसरी मिसाइल में से एक थी जिसने उनको ही घायल कर दिया. विभिन्न मीडिया रिपोर्ट में ये आंकड़े सामने आए हैं लेकिन अभी तक आधिकारिक तौर पर इसे जारी नहीं किया गया है. ये आंकड़े दिखाते हैं कि सालों से राज्य की राजनीति को प्रभावित करने वाले लिंगायत और गौड़ा दोनों की अनुमानित संख्या, पहले के संख्या से थोड़ी ही कम है.

राज्य के दो सबसे बड़े समुदायों में- अनुसूचित जाति (19.5 प्रतिशत) और मुसलमान (16 प्रतिशत) आते हैं. लेकिन कांग्रेस इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि आखिर इन दोनों का चुनाव पर क्या प्रभाव होगा. और इसलिए उन्हें "सेफ कस्टडी" में रख दिया है.

- तुष्टीकरण की राजनीति

लिंगायतों का वोट कमोबेश भाजपा की ही झोली गिरता रहा है. इसलिए उन्हें पिछड़ा वर्ग की श्रेणी का लालच देकर सिद्धारमैया ने उनकी क्षमता को कमतर ही आंका है. लेकिन क्या ये तरीका काम करेगा? राजनीति में कुछ भी तय नहीं होता, किसी को पता नहीं होता कि उंट आखिर किस करवट बैठेगा. अब राज्य और केंद्र दोनों में ही गेंद भाजपा के पाले में है और उन्हें अपनी चाल चलनी है. लगभग 100 सीटों पर लिंगायत वोट जरुरी होता है, इसलिए दोनों में से कोई भी पार्टी इस समुदाय को हल्के में लेने का रिस्क नहीं उठा सकती.

हालांकि अब चुनावी जोड़-घटाव, गुणा-भाग चाहे जो हो, लेकिन एक चीज शीशे की तरह साफ हो गई है. सिद्धारमैया और कांग्रेस दोनों का ही चेहरा साफ हो गया कि इनकी मंशा समाज को जोड़ने के बजाए तोड़ने की है. हिंदुओं को बांटने की उनकी ये चाल भले उल्टी न पड़े लेकिन फेल होगी इतना तय है.

उनकी कानूनी स्थिति या उनसे मिलने वाले लाभ चाहे जो भी हों, छोटे और कुछ हिंदू विरोधी लॉबी को छोड़कर, लिंगायत और वीरशैव दोनों ही कट्टर हिंदू हैं. वास्तव में दोनों ही शब्द शैव समुदाय को ही दर्शाते हैं, जिनकी परंपराओं और प्रथाओं को उनके 12 वीं सदी के सुधारक-गुरु, बसावा मानते थे.

- अल्पसंख्यक का तमगा

अगर कर्नाटक की विशेषज्ञ समिति का तर्क मानें, तो लगभग हर हिंदू संप्रदाय या समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए. क्योंकि प्रत्येक का अपना अनूठा सिद्धांत है और अपनी प्रथा है. वर्तमान संवैधानिक प्रावधानों को देखते हुए, कौन बहुमत वाला हिन्दू बने रहना चाहेगा? सभी राज्य से कुछ लाभ प्राप्त करने के लिए अल्पसंख्यक होना पसंद करेंगे. या जिन लोगों के पास मांगने लिए कुछ नहीं था कम से कम वो 'अल्पसंख्यक' का तमगा लगने के बाद सरकारी हस्तक्षेप से बच पाएंगे.

अभी भाजपा को सिद्धारमैया के बिखरे हुए वोट बैंक पॉलिटिक्स पर हमला करने तत्काल जरुरत है. उन्हें पद से उखाड़ फेंकना और कर्नाटक से कांग्रेस को बाहर करने की जरुरत है.

(यह लेख मकरंद परांजपे ने DailyO के लिए अंग्रेजी में लिखा है)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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