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हिटलर के आतंक की इस अंतिम तस्‍वीर का अंतिम हिस्‍सा नहीं रहा

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 05 जुलाई, 2016 09:12 PM
  • 05 जुलाई, 2016 09:12 PM
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एली वीसेल अभी तक अंतिम जीवित ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें होलोकॉस्ट की अधिकृत आवाज़ कहा जाता था. बुख़ेनवॉल्ड कंसंट्रेशन कैम्प की यातना के मर्म को वीसेल ने दुनिया के सामने रख अब अपनी 'अंतिम मृत्यु' को प्राप्त हो चुके हैं.

होलोकॉस्ट सर्वाइवर एली वीसेल नहीं रहे. इसी के साथ हमेशा के लिए अप्रासंगिक हो गया बुख़ेनवॉल्ड कंसंट्रेशन कैम्प में उन्हें दिया गया "A-7713" नंबर का बिल्ला.

16 अप्रैल 1945 : यह होलोकॉस्ट की प्रतिनिधि‍ तस्वीर है. डी-ह्यूमनाइज़ेशन और डिस्ग्रेस की. अमेरिकी फ़ौजियों ने जब बुख़ेनवॉल्ड में क़ैदियों को मुक्त कराया, तब उन्हें इस हालत में पाया गया था. मानवीय अस्मिबता से सर्वथा वंचित, लज्जित, एम्बैरेस्ड, दयनीय, कातर, उम्मीद के हाशि‍यों तक से बेदख़ल. दड़बों सरीखे कैम्प में बैरकों के भीतर मवेशि‍यों की तरह ठसे हुए इंसान.

 बुख़ेनवॉल्ड कंसंट्रेशन कैम्प की वह तस्वीर जिसमें मौजूद हैं एली वीसेल

इस तस्वीर में क़ैदियों के भाव इसलिए भी ग़ौर करने लायक़ हैं कि जब अमरीकी फ़ौजी घुसे तो उन्हें लगा कि जर्मन सैनिक उन्हें मारने के लिए आए हैं. उनकी तस्वीरें उतरवाई गईं और वे भय से कैमरे की आंख में देखते रहे. एक ने ख़ुद की नग्नता छुपाने का भी उद्यम किया. बाद में उन्हें पता चला कि वास्तव में उन्हें यहां से मुक्त कराया जा रहा है.

अपनी कटोरी को तकिया बनाए, जो कि उनकी इकलौती संपत्तिक हुआ करती थी. छायाकार की इस एकउ निर्मम क्लिक ने उन्हें हमेशा के लिए अपनी नियतिहीनता के दायरों में क़ैद कर दिया था.

एली वीसेल इस तस्वीर में बीच के बैरक में बाएं से सातवें क्रम पर हैं: खंभे के पास आधा छुपा चेहरा लिए, अवमानित और उत्पीड़ि‍त और लज्जिमत. इस अंधकार से निकलकर फिर वीसेल ने शांति का नोबेल पुरस्कार जीता.

होलोकॉस्ट सर्वाइवर एली वीसेल नहीं रहे. इसी के साथ हमेशा के लिए अप्रासंगिक हो गया बुख़ेनवॉल्ड कंसंट्रेशन कैम्प में उन्हें दिया गया "A-7713" नंबर का बिल्ला.

16 अप्रैल 1945 : यह होलोकॉस्ट की प्रतिनिधि‍ तस्वीर है. डी-ह्यूमनाइज़ेशन और डिस्ग्रेस की. अमेरिकी फ़ौजियों ने जब बुख़ेनवॉल्ड में क़ैदियों को मुक्त कराया, तब उन्हें इस हालत में पाया गया था. मानवीय अस्मिबता से सर्वथा वंचित, लज्जित, एम्बैरेस्ड, दयनीय, कातर, उम्मीद के हाशि‍यों तक से बेदख़ल. दड़बों सरीखे कैम्प में बैरकों के भीतर मवेशि‍यों की तरह ठसे हुए इंसान.

 बुख़ेनवॉल्ड कंसंट्रेशन कैम्प की वह तस्वीर जिसमें मौजूद हैं एली वीसेल

इस तस्वीर में क़ैदियों के भाव इसलिए भी ग़ौर करने लायक़ हैं कि जब अमरीकी फ़ौजी घुसे तो उन्हें लगा कि जर्मन सैनिक उन्हें मारने के लिए आए हैं. उनकी तस्वीरें उतरवाई गईं और वे भय से कैमरे की आंख में देखते रहे. एक ने ख़ुद की नग्नता छुपाने का भी उद्यम किया. बाद में उन्हें पता चला कि वास्तव में उन्हें यहां से मुक्त कराया जा रहा है.

अपनी कटोरी को तकिया बनाए, जो कि उनकी इकलौती संपत्तिक हुआ करती थी. छायाकार की इस एकउ निर्मम क्लिक ने उन्हें हमेशा के लिए अपनी नियतिहीनता के दायरों में क़ैद कर दिया था.

एली वीसेल इस तस्वीर में बीच के बैरक में बाएं से सातवें क्रम पर हैं: खंभे के पास आधा छुपा चेहरा लिए, अवमानित और उत्पीड़ि‍त और लज्जिमत. इस अंधकार से निकलकर फिर वीसेल ने शांति का नोबेल पुरस्कार जीता.

 बराक ओबामा और एंजेला मर्केल से मुलाकात करते एली

अचरज की बात है कि बुख़ेनवॉल्ड कैम्प से निकलकर नोबेल पुरस्कार पाने वाले दो हंगारियन यहूदी कुछ माह के फ़ासले पर चल बसे. इससे पहले मार्च में इमरे कर्तेश की मृत्यु हो चुकी थी. वास्तव में एली वीसेल अभी तक अंतिम जीवित ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें "होलोकॉस्ट की अधिकृत आवाज़" कहा जाता था : उनसे पहले ज्यां अमेरी, ताद्युश बोरोव्स्की, पॉल चेलान, प्राइमो लेवी, इमरे कर्तेश सभी एक-एक कर जाते रहे थे.

 एली वीसेल और उनकी किताब "नाइट"

एली वीसेल की किताब "नाइट" आज भी होलोकॉस्ट पर लिखी सबसे मार्मिक किताबों में से एक गिनी जाती है : प्राइमो लेवी की "इफ़ दिस इज़ अ मैन" और इमरे कर्तेश की "फ़ेटलेसनेस" के समकक्ष.

"Never shall I forget that smoke. Never shall I forget the little faces of the children, whose bodies I saw turned into wreaths of smoke beneath a silent blue sky. Never shall I forget that nocturnal silence which deprived me, for all eternity, of the desire to live. Never shall I forget those moments which murdered my God and turned my dreams to dust. Even if I am condemned to live as long as God Himself. Never." : एली वीसेल ने "नाइट" में लिखा था.

कोई भी नहीं भूलेगा, एली वीसेल. लेकिन तुम अपनी अंतिम मृत्यु के भीतर अब निश्चल होकर सोना.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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