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Lakhimpur Kheri violence: राकेश टिकैत के 'समझौते' पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 06 अक्टूबर, 2021 01:10 PM
  • 06 अक्टूबर, 2021 01:10 PM
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किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) पर आज नहीं तो कल सवाल उठने ही थे. क्योंकि, किसान आंदोलन (Farmers Protest) को समर्थन दे रहे राजनीतिक दलों की अपनी सियासी अपेक्षाएं हैं. जिन पर राकेश टिकैत ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले (Lakhimpur Kheri violence) में पूरी तरह से पानी फेर दिया है.

उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) इस समय सूबे का सबसे बड़ा सियासी अखाड़ा बना हुआ है. 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा (Lakhimpur Kheri violence case) में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) तक ने तिकुनिया पहुंचने की तैयारी शुरू कर दी. इस दौरान योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath) ने इन सभी नेताओं को वहां पहुंचने से रोककर स्थिति को काफी हद तक संभालने की कोशिश की. लेकिन, घटना के बाद किसानों का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच चुका था. जिसके बाद उपजी बवाल की स्थिति को शांत करने में किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने बड़ी भूमिका निभाई. लखीमपुर खीरी हिंसा के महज 24 घंटे के अंदर योगी सरकार (Yogi Government) के अधिकारियों ने राकेश टिकैत के साथ मिलकर किसानों का भड़का गुस्सा शांत कर दिया. जिसके बाद सड़क पर रखे किसानों के शव हटाकर आंदोलन खत्म कर दिया गया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो किसानों और प्रशासन के बीच अहम कड़ी बनकर उभरे राकेश टिकैत द्वारा समझौते की घोषणा के बाद लखीमपुर खीरी हिंसा का मामला तकरीबन शांत हो गया.

किसान नेता राकेश टिकैत और प्रशासन की बीच हुए इस समझौते में मृतक किसानों के परिवार को 45 लाख का मुआवजा, एक सदस्य को नौकरी, हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज द्वारा पूरे मामले की जांच, घायलों को 10 लाख और किसानों की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज करने की मांगों पर सहमति बनी थी. साथ ही 10 दिनों के अंदर मुख्य अभियुक्त की गिरफ्तारी की बात सामने आई थी. लेकिन, अब राकेश टिकैत और प्रशासन के बीच हुए इस समझौते पर सवाल खड़े हो रहे हैं. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगले ही दिन यानी 5 अक्टूबर को लखनऊ दौरे पर आना था. जिसके चलते कहा जा रहा है कि योगी सरकार की सख्ती के चलते जब कोई नेता लखीमपुर खीरी नहीं पहुंच सका, तो राकेश टिकैत वहां कैसे पहुंच गए? ये भी सवाल उठाया जा रहा है कि किसानों के इस नरसंहार को जानते और समझते हुए भी राकेश टिकैत ने समझौता क्यों और कैसे कर लिया?

उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) इस समय सूबे का सबसे बड़ा सियासी अखाड़ा बना हुआ है. 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा (Lakhimpur Kheri violence case) में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) तक ने तिकुनिया पहुंचने की तैयारी शुरू कर दी. इस दौरान योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath) ने इन सभी नेताओं को वहां पहुंचने से रोककर स्थिति को काफी हद तक संभालने की कोशिश की. लेकिन, घटना के बाद किसानों का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच चुका था. जिसके बाद उपजी बवाल की स्थिति को शांत करने में किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने बड़ी भूमिका निभाई. लखीमपुर खीरी हिंसा के महज 24 घंटे के अंदर योगी सरकार (Yogi Government) के अधिकारियों ने राकेश टिकैत के साथ मिलकर किसानों का भड़का गुस्सा शांत कर दिया. जिसके बाद सड़क पर रखे किसानों के शव हटाकर आंदोलन खत्म कर दिया गया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो किसानों और प्रशासन के बीच अहम कड़ी बनकर उभरे राकेश टिकैत द्वारा समझौते की घोषणा के बाद लखीमपुर खीरी हिंसा का मामला तकरीबन शांत हो गया.

किसान नेता राकेश टिकैत और प्रशासन की बीच हुए इस समझौते में मृतक किसानों के परिवार को 45 लाख का मुआवजा, एक सदस्य को नौकरी, हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज द्वारा पूरे मामले की जांच, घायलों को 10 लाख और किसानों की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज करने की मांगों पर सहमति बनी थी. साथ ही 10 दिनों के अंदर मुख्य अभियुक्त की गिरफ्तारी की बात सामने आई थी. लेकिन, अब राकेश टिकैत और प्रशासन के बीच हुए इस समझौते पर सवाल खड़े हो रहे हैं. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगले ही दिन यानी 5 अक्टूबर को लखनऊ दौरे पर आना था. जिसके चलते कहा जा रहा है कि योगी सरकार की सख्ती के चलते जब कोई नेता लखीमपुर खीरी नहीं पहुंच सका, तो राकेश टिकैत वहां कैसे पहुंच गए? ये भी सवाल उठाया जा रहा है कि किसानों के इस नरसंहार को जानते और समझते हुए भी राकेश टिकैत ने समझौता क्यों और कैसे कर लिया?

सवाल उठाया जा रहा है कि किसानों के इस नरसंहार को जानते और समझते हुए भी राकेश टिकैत ने समझौता क्यों और कैसे कर लिया?

एक्टिव हुए बुद्धिजीवी वर्ग के 'बाउंटी हंटर्स'

दरअसल, किसानों के साथ हुए समझौते के बाद 4 अक्टूबर की रात को कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. जिसके बाद एक नई तरह से राजनीति शुरू हो गई है. इन वीडियो के आधार पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को लेकर तरह-तरह के दावों से सोशल मीडिया पटा पड़ा है. एक वीडियो में आशीष मिश्रा के काफिले की गाड़ी किसानों को कुचलती हुई दिखाई पड़ रही है. इस वीडियो के सामने आने के बाद लोगों ने आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी की मांग उठानी शुरू कर दी है. लेकिन, इस मामले में पुलिस की ओर से कोई भी पुख्ता जानकारी अभी तक सामने नहीं आ पाई है. अभी तक जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार, आशीष मिश्रा समेत 14 लोगों के खिलाफ इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई है.

लेकिन, इस बीच कथित बुद्धिजीवी वर्ग का एक ऐसा समूह सामने आया है, जो लगातार सामने आ रहे वायरल वीडियो को लेकर भ्रामक दावे कर रहा है. इतना ही नहीं, ये समूह किसान नेता राकेश टिकैत को भी कटघरे में खड़े करने की कोशिश कर रहा है. ये तमाम लोग अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के आगे मजबूर होकर लखीमपुर खीरी में किसानों और प्रशासन के बीच समझौता होने के बाद स्थिर हो चुके हालातों को फिर से बिगाड़ने के हर संभव प्रयास कर रहे हैं.

कहना गलत नहीं होगा कि कानून के हिसाब से देखा जाए, तो राकेश टिकैत ने एक समझदार इंसान की तरह फैसला लेते हुए मामले को न सिर्फ बिगड़ने से बचा लिया. बल्कि, इस पर हो सकने वाली तमाम राजनीति को पूरी तरह से खत्म कर दिया. समझौते से पहले जो नेता वहां पहुंचकर अपना राजनीतिक हित साधने के लिए माहौल बिगाड़ने और लोगों को भड़काने की कोशिश कर सकते थे, उन्हें योगी सरकार ने वहां पहुंचने नहीं दिया. लेकिन, राकेश टिकैत के वहां पहुंचने पर किसानों के साथ बातचीत कर मामले को काफी हद तक शांत कर दिया गया. लेकिन, अब राकेश टिकैत द्वारा कराए गए इस समझौते पर सवाल उठाकर फिर से भ्रामकता फैलाने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं.

किसान हित के आगे कमजोर पड़े राजनीतिक हित

इसके पीछे वजह ये है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. और, सपा, बसपा, कांग्रेस समेत हर सियासी दल योगी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है. तो लाजिमी है कि लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले पर विपक्षी दल सियासत का पूरा जोर लगाएंगे. लेकिन, लखीमपुर खीरी में हिंसा भड़कने के बाद राजनीतिक तौर पर इस मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बाजी मार ली है. दरअसल, सोनभद्र, हाथरस, उन्नाव, लखीमपुर खीरी जैसे अन्य मामलों पर योगी सरकार के खिलाफ प्रियंका गांधी ने जितना मुखर होकर विरोध प्रियंका गांधी ने किया है, वो सपा, बसपा का कोई अन्य नेता नहीं कर सका. कहने को तो भाजपा की योगी सरकार के सामने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सबसे बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. लेकिन, लखीमपुर खीरी हिंसा की घटना के बाद प्रियंका गांधी ने इन सभी दलों को पीछे छोड़ दिया है. आसान शब्दों में कहें, तो योगी सरकार से जमीन पर लोहा लेने में अखिलेश यादव और मायावती के सामने प्रियंका गांधी हर जगह अव्वल रही हैं.

खैर, वापस आते हैं, उन कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों पर जो राकेश टिकैत द्वारा किसानों और प्रशासन के बीच कराए गए समझौते पर सवाल उठा रहे हैं. इन सभी लोगों की लंबे समय तक अपनी-अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं रही हैं. तो, इनका राकेश टिकैत को कटघरे में खड़ा करना आसानी से समझ आ जाता है. बात बहुत सीधी सी है कि राकेश टिकैत अब किसान आंदोलन का अघोषित चेहरा हो चुके हैं. इस घटना के बाद राकेश टिकैत की किसानों की बीच स्वीकार्यता काफी हद तक बढ़ने की संभावना है. अगर ऐसा हो जाता है, तो कहीं न कहीं राकेश टिकैत किसान आंदोलन के उन सभी चेहरों को पीछे छोड़ देंगे, जो किसी न किसी राजनीतिक दल के समर्थन से चल रहे हैं. राकेश टिकैत की संदिग्ध छवि बनाकर उन पर आसानी से किसी राजनीतिक दल के पक्ष में आने का दबाव बनाया जा सकता है. वरना अभी तक राकेश टिकैत हर बार यही कहते नजर आए हैं कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन, इस तरह के सवालों से राकेश टिकैत का असहज होना स्वाभाविक है.

राकेश टिकैत की विश्वसनीयता पर संकट आज नहीं तो कल खड़ा होना ही था.

वैसे, राकेश टिकैत की विश्वसनीयता पर संकट आज नहीं तो कल खड़ा होना ही था. क्योंकि, उन्होंने किसान आंदोलन को खुलकर समर्थन दे रहे राजनीतिक दलों के हाथ से एक ऐसे उभरते हुए आंदोलन को छीन लिया, जो अगले यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सियासी दलों को चुनावी फायदा पहुंचा सकता था. राकेश टिकैत ने किसानों के हितों को देखते हुए समझौता कर लिया. लेकिन, इससे उन सियासी दलों के राजनीतिक हित पीछे रह गए. साथ ही उन्होंने भविष्य में लखीमपुर खीरी जैसी घटना के दोहराव पर भी एक तरह से रोक लगानी का इशारा कर दिया है, जो राजनीतिक प्रतिबद्धताओं वाले इन बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को लिए किसी झटके से कम नहीं है.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत आने वाले समय में इस आंदोलन के पार्श्व में कोई भूमिका निभाते नजर आएंगे. क्योंकि. उन्होंने किसानों और योगी सरकार के बीच समझौता कराकर विपक्षी दलों की राजनीति पर पानी फेर दिया है. जिसकी कीमत उन्हें किसी न किसी रूप में तो चुकानी ही पडे़गी. वो अलग बात है कि राकेश टिकैत सभी मांगें पूरी न होने पर 10 दिन बाद किसान महापंचायत करने का अल्टीमेटम दे चुके हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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