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कुमारस्वामी को BJP से नीतीश कुमार जैसा मौका मिले तो वे Congress की परवाह क्यों करें!

    • आईचौक
    • Updated: 12 जुलाई, 2019 04:28 PM
  • 12 जुलाई, 2019 04:28 PM
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भले ही मुसीबत से जूझते नजर आ रहे हों, पर ऐसा नहीं है. जेडीएस नेता ने विश्वासमत की चाल भी चल दी है. आखिर बीजेपी से नीतीश जैसा ऑफर तो मिल ही चुका है.

कर्नाटक में मौका ही मौका है. जितना मौका बीजेपी के पास है, उतना ही कांग्रेस के पास - लेकिन सबसे ज्यादा मौका तो जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के पास ही लग रहा है.

कर्नाटक के राजनीति हालात ऐसे हो चले हैं कि कुमारस्वामी के दोनों हाथों में लड्डू देखे जा सकते हैं. कुमारस्वामी मुख्यमंत्री तो बने हुए हैं ही. कांग्रेस भी कुमारस्वामी सरकार बचाने में जुटी है - ताकि बीजेपी कहीं मौके का फायदा न उठा ले. एक बार तो कुमारस्वामी ने भी लगभग कह डाला था कि अगर कांग्रेस का मुख्यमंत्री बनता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी.

अब नहीं लगता कि कुमारस्वामी के मन में ऐसी कोई भावना बची हुई होगी. खासकर बीजेपी महासचिव मुरलीधर राव से उस मुलाकात के बाद जिसे गैरराजनीतिक बताने की कोशिश हो रही है.

जिस तरह बिहार में महागठबंधन छोड़ कर नीतीश कुमार ने पाला बदलते हुए बीजेपी के सपोर्ट से दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी - कुमारस्वामी के सामने भी बिलकुल वैसा ही दृश्य नजर आने लगा है. सवाल है कि क्या कुमारस्वामी भी नीतीश कुमार जैसा कदम उठाने को तैयार हैं?

कोई ऑफर है क्या?

ऑफर की भरमार तो तब भी थी जब 2018 में कर्नाटक विधान सभा चुनाव के नतीजे आये थे. कुमारस्वामी के पास तब भी कांग्रेस और बीजेपी दोनों तरफ से ऑफर थे, कांग्रेस वाला ज्यादा फायदेमंद लगा इसलिए जेडीएस नेता मुख्यमंत्री बन गये. तब बीजेपी को गठबंधन से ऐतराज तो नहीं था, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी तो बीएस येदियुरप्पा के लिए रिजर्व ही थी - क्योंकि उनके कुर्सी पर बैठने का मन था, लेकिन हालात खिलाफ होने के चलते छोड़कर भागना पड़ा था.

बीजेपी का ताजा ऑफर काफी अपग्रेड हो चुका है. बीजेपी की ओर से जिस ऑफर की चर्चा है उसमें कुमारस्वामी को कोई तकनीकी नुकसान नहीं होने वाला है. फर्क बस इतना ही आएगा कि सत्ता में गठबंधन पार्टनर कांग्रेस की जगह बीजेपी हो जाएगी. इस बदलाव के प्रभाव अलग जरूर होंगे, समझा जा सकता है. बिहार में भी तो यही हुआ था. नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद का साथ छोड़ कर बीजेपी से...

कर्नाटक में मौका ही मौका है. जितना मौका बीजेपी के पास है, उतना ही कांग्रेस के पास - लेकिन सबसे ज्यादा मौका तो जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के पास ही लग रहा है.

कर्नाटक के राजनीति हालात ऐसे हो चले हैं कि कुमारस्वामी के दोनों हाथों में लड्डू देखे जा सकते हैं. कुमारस्वामी मुख्यमंत्री तो बने हुए हैं ही. कांग्रेस भी कुमारस्वामी सरकार बचाने में जुटी है - ताकि बीजेपी कहीं मौके का फायदा न उठा ले. एक बार तो कुमारस्वामी ने भी लगभग कह डाला था कि अगर कांग्रेस का मुख्यमंत्री बनता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी.

अब नहीं लगता कि कुमारस्वामी के मन में ऐसी कोई भावना बची हुई होगी. खासकर बीजेपी महासचिव मुरलीधर राव से उस मुलाकात के बाद जिसे गैरराजनीतिक बताने की कोशिश हो रही है.

जिस तरह बिहार में महागठबंधन छोड़ कर नीतीश कुमार ने पाला बदलते हुए बीजेपी के सपोर्ट से दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी - कुमारस्वामी के सामने भी बिलकुल वैसा ही दृश्य नजर आने लगा है. सवाल है कि क्या कुमारस्वामी भी नीतीश कुमार जैसा कदम उठाने को तैयार हैं?

कोई ऑफर है क्या?

ऑफर की भरमार तो तब भी थी जब 2018 में कर्नाटक विधान सभा चुनाव के नतीजे आये थे. कुमारस्वामी के पास तब भी कांग्रेस और बीजेपी दोनों तरफ से ऑफर थे, कांग्रेस वाला ज्यादा फायदेमंद लगा इसलिए जेडीएस नेता मुख्यमंत्री बन गये. तब बीजेपी को गठबंधन से ऐतराज तो नहीं था, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी तो बीएस येदियुरप्पा के लिए रिजर्व ही थी - क्योंकि उनके कुर्सी पर बैठने का मन था, लेकिन हालात खिलाफ होने के चलते छोड़कर भागना पड़ा था.

बीजेपी का ताजा ऑफर काफी अपग्रेड हो चुका है. बीजेपी की ओर से जिस ऑफर की चर्चा है उसमें कुमारस्वामी को कोई तकनीकी नुकसान नहीं होने वाला है. फर्क बस इतना ही आएगा कि सत्ता में गठबंधन पार्टनर कांग्रेस की जगह बीजेपी हो जाएगी. इस बदलाव के प्रभाव अलग जरूर होंगे, समझा जा सकता है. बिहार में भी तो यही हुआ था. नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद का साथ छोड़ कर बीजेपी से हाथ मिला लिया और सारी चीजें देखते ही देखते बदल गयीं. हो सकता है, नीतीश कुमार को महागठबंधन में ज्यादा मनमानी का मौका मिला हो, बीजेपी के साथ वो आजादी तो छिन सी ही गयी है. जाहिर है बदलाव के बाद कुमारस्वामी के साथ भी वही सब होगा, जो पहले से नीतीश कुमार के साथ होता आ रहा है.

कुमारस्वामी के दोनों हाथों में लड्डू है और अपनी चाल भी चल दी है.

सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक बीजेपी ने जेडीएस नेता को इस बार मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया है. कुछ मीडिया रिपोर्ट में बीजेपी महासचिव मुरलीधर राव और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के करीबी आर महेश की एक गेस्ट हाउस में मुलाकात हुई है. कुछ मीडिया रिपोर्ट में कर्नाटक के पर्यटन मंत्री आर महेश की बीजेपी के सीनियर नेता केएस ईश्वरप्पा से भी मिलने की खबर है. हालांकि, मुरलीधर राव ने जेडीएस नेता से मुलाकात को महज संयोग बताया है जब दोनों लोग एक ही जगह साथ में देखे गये.

नेताओें की इन मुलाकातों में क्या खिचड़ी तैयार हो रही है और अंत में वो कितना पक पाती है या अधपकी रह जाती है - थोड़े धैर्य के साथ सही वक्त के इंतजार की जरूरत है.

कर्नाटक संकट पर स्पीकर और सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के 10 बागी विधायकों की याचिका पर फैसले के लिए कर्नाटक के स्पीकर केआर रमेश को 11 जुलाई का वक्त दिया था. स्पीकर ने विधायकों से मुलाकात तो की लेकिन कोई फैसला नहीं लिया - और अपना पक्ष रखने के लिए मीडिया के सामने आये.

स्पीकर ने कहा कि हड़बड़ी में कोई फैसला नहीं लेगें और अंतरात्मा की आवाज सुनेंगे. स्पीकर बार बार एक ही बात कह रहे हैं कि वो फैसले से पहले ये जानना जरूर चाहेंगे कि इस्तीफा कहीं किसी दबाव में तो नहीं दिया जा रहा है. स्पीकर ने ये भी बताया है कि कांग्रेस की ओर से भी विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की अर्जी दी गयी है.

सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक से जुड़ी तीन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई. एक याचिका तो 10 बागी विधायकों की रही, जबकि उसके खिलाफ अपना पक्ष रखने के लिए स्पीकर की ओर से भी एक याचिका दायर की गयी थी. एक अन्य याचिका यूथ कांग्रेस के नेता और वकील अनिल चाको जोसेफ की तरफ से डाली गई जिसमें सुप्रीम कोर्ट से दखल देने की मांग की गयी थी.

बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी की दलील है - अगर स्पीकर तय समय में इस्तीफे पर फैसला नहीं लेते तो यह सीधे-सीधे अदालत की अवमानना है.

अपने प्रतिवाद में स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी का कहना रहा कि विधायकों के इस्तीफे का मकसद अयोग्य करार दिये जाने की कार्रवाई से बचना भर है. सिंघवी ने ये भी कहा कि 1974 के संशोधित कानून के तहत विधायकों के इस्तीफों को तब तक मंजूर नहीं किया जा सकता जब तक जांच में ये साबित नहीं हो जाता कि इस्तीफा सही है या नहीं?

स्पीकर के वकील की इस दलील पर CJI रंजन गोगोई बोले - आपकी दलील है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सुनवाई का अधिकार नहीं है. क्या आप कोर्ट के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं?

सिंघवी का कहना रहा, 'नहीं, ऐसा नहीं है.' फिर कुमारस्वामी के वकील राजीव धवन की दलील शुरू हुई - 'किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने को कहा गया... वहां सरकार अल्पमत में है या वहां पर कुशासन है?'

CJI का अगला सवाल रहा - 'क्या आपका ये कहना है कि इस्तीफे से पहले अयोग्यता तय करने के लिए आप संवैधानिक रूप से बाध्य हैं?'

सवाल के जवाब में सिंघवी ने कहा - 'आपने बिल्कुल सही समझा.' उसके बाद विस्तार से समझाने की कोशिश की, 'दो विधायकों ने अयोग्यता प्रक्रिया शुरू होने के बाद इस्तीफा दिया. 8 विधायकों ने ये प्रक्रिया शुरू होने से पहले इस्तीफा दिया. लेकिन उन्होंने इस्तीफा खुद आकर नहीं दिया.'

कुमारस्वामी के वकील राजीव धवन को आपत्ति इस बात पर रही कि याचिका में स्पीकर पर दुर्भावना का आरोप लगाया गया है.

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को विधायकों के इस्तीफे पर फैसले के लिए 16 जुलाई तक का वक्त दे दिया है. पेंच ये फंसा दिया है कि तब तक यथास्थिति नबनी रहेगी यानी स्पीकर इस्तीफा न मंजूर कर विधायकों को अयोग्य भी नहीं ठहरा सकते.

कर्नाटक विधानसभा का सत्र शुरू हो चुका है. कांग्रेस, जेडीएस और बीजेपी सभी दलों ने अपने अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी किया है. विधायक जहां कहीं भी हैं उनसे संपर्क कर व्हिप की जानकारी दे दी गयी. कुछ विधायकों से संपर्क नहीं हुआ तो उनके दरवाजे पर व्हिप का नोटिस चिपका दिया गया.

कुमारस्वामी सबसे बड़ी अदालत में तो पैरवी कर ही रहे हैं, विधानसभा स्पीकर से भी विश्वास मत कराने का फैसला किया है. विधानसभा में स्पीकर से मुखातिब होकर कुमारस्वामी बोले - कृपया इसके लिए समय तय करें... मैं हर चीज के लिए तैयार हूं. सत्ता से चिपके रहने के लिए यहां नहीं हूं.' दरअसल, कुमारस्वामी को भी पता है कि जब तक विधायकों का इस्तीफा स्वीकार नहीं होता तब तक नंबर वही रहेगा - 224. जब तक ये नंबर कायम रहेगा जितनी बेफिक्र जेडीएस है, उतनी ही कांग्रेस भी रहेगी.

अगर स्पीकर विश्वासमत के लिए वक्त 16 जुलाई से पहले दे देते हैं तो वैसे भी नंबर पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला - और अगर इस खेल में कुमारस्वामी चूक जाते हैं तो बीजेपी की ओर से ऑफर तो है ही. सबसे ज्यादा नुकसान में तो कांग्रेस ही रहने वाली है, बीजेपी को भले भी फिलहाल फायदे के लिए वेटिंग मोड में थोड़े दिन और क्यों न रहना पड़े.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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