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कुमार विश्वास भी राज्यसभा पहुंच जाते, लेकिन न ठीक से सेकुलर हो पाए न संघी

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 31 मई, 2022 05:57 PM
  • 31 मई, 2022 05:57 PM
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कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी (Imran Pratapgarhi) और कुमार विश्वास (Kumar Vishwas) के बीच कई समानताएं हैं. लेकिन, राज्यसभा (Rajya Sabha) की टिकट पाने के लिए जो 'काबिलियत' इमरान प्रतापगढ़ी में हैं. वह कुमार विश्वास में नजर नहीं आती है.

कांग्रेस ने कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया. तो, पूर्व अभिनेत्री नगमा ने सोनिया गांधी का किया गया वादा याद दिलाते हुए इमरान प्रतापगढ़ी की 'काबिलियत' की बात कर दी. वैसे, नगमा का दु:ख समझ में आता है. लेकिन, कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवारों की लिस्ट में शामिल कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी की 'काबिलियत' का अंदाजा शायद नगमा को नहीं है. अगर काबिलियत की बात की जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी और कवि कुमार विश्वास का मामला राज्यसभा की उम्मीदवारी को लेकर एक रोचक केस स्टडी कहा जा सकता है. 

राजनीतिक तौर पर देखा जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी मुस्लिम युवाओं के बीच अपनी शेरो-शायरी के साथ दी जाने वाली मजहबी तकरीरों के लिए काफी मशहूर हैं. और, उससे भी बड़ी बात ये है कि इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस पार्टी के हिसाब वाली ही 'सेकुलर' विचारधारा रखते हैं. तो, इमरान प्रतापगढ़ी का राज्यसभा पहुंचने का सपना कांग्रेस को पूरा करना ही था. वहीं, अन्ना आंदोलन के जरिये अरविंद केजरीवाल के साथ आम आदमी पार्टी को खड़ा करने वाले कुमार विश्वास सार्वजनिक तौर पर राज्यसभा जाने की इच्छा जताने के बाद भी राज्यसभा तो नहीं पहुंचे. लेकिन, आम आदमी पार्टी से बाहर जरूर हो गए.

कवि सम्मेलनों और मुशायरों की मंचों के हिसाब से भी कुमार विश्वास हर मामले में इमरान प्रतापगढ़ी पर इक्कीस ही साबित होते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी ने जब मंचों पर चढ़ना शुरू किया था. तब तक कुमार विश्वास की कविता 'कोई दीवाना कहता है' लोगों के दिलो-दिमाग पर छा गई थी. वहीं, इमरान प्रतापगढ़ी की फिलिस्तीन और मदरसे को लेकर लिखी गई गजल या नज्म को पढ़ेंगे, तो साफ हो जाएगा कि उनका झुकाव पूरी तरह से एकतरफा है.

वैसे, कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी और कुमार विश्वास के बीच एक समानता ये भी है कि दोनों ही लोकसभा चुनावों में हार का...

कांग्रेस ने कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया. तो, पूर्व अभिनेत्री नगमा ने सोनिया गांधी का किया गया वादा याद दिलाते हुए इमरान प्रतापगढ़ी की 'काबिलियत' की बात कर दी. वैसे, नगमा का दु:ख समझ में आता है. लेकिन, कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवारों की लिस्ट में शामिल कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी की 'काबिलियत' का अंदाजा शायद नगमा को नहीं है. अगर काबिलियत की बात की जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी और कवि कुमार विश्वास का मामला राज्यसभा की उम्मीदवारी को लेकर एक रोचक केस स्टडी कहा जा सकता है. 

राजनीतिक तौर पर देखा जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी मुस्लिम युवाओं के बीच अपनी शेरो-शायरी के साथ दी जाने वाली मजहबी तकरीरों के लिए काफी मशहूर हैं. और, उससे भी बड़ी बात ये है कि इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस पार्टी के हिसाब वाली ही 'सेकुलर' विचारधारा रखते हैं. तो, इमरान प्रतापगढ़ी का राज्यसभा पहुंचने का सपना कांग्रेस को पूरा करना ही था. वहीं, अन्ना आंदोलन के जरिये अरविंद केजरीवाल के साथ आम आदमी पार्टी को खड़ा करने वाले कुमार विश्वास सार्वजनिक तौर पर राज्यसभा जाने की इच्छा जताने के बाद भी राज्यसभा तो नहीं पहुंचे. लेकिन, आम आदमी पार्टी से बाहर जरूर हो गए.

कवि सम्मेलनों और मुशायरों की मंचों के हिसाब से भी कुमार विश्वास हर मामले में इमरान प्रतापगढ़ी पर इक्कीस ही साबित होते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी ने जब मंचों पर चढ़ना शुरू किया था. तब तक कुमार विश्वास की कविता 'कोई दीवाना कहता है' लोगों के दिलो-दिमाग पर छा गई थी. वहीं, इमरान प्रतापगढ़ी की फिलिस्तीन और मदरसे को लेकर लिखी गई गजल या नज्म को पढ़ेंगे, तो साफ हो जाएगा कि उनका झुकाव पूरी तरह से एकतरफा है.

वैसे, कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी और कुमार विश्वास के बीच एक समानता ये भी है कि दोनों ही लोकसभा चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं. कुमार विश्वास की 2014 के, तो इमरान प्रतापगढ़ी को 2019 के लोकसभा चुनाव में जमानत तक बचानी मुश्किल हो गई थी. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर क्या वजह है कि कुमार विश्वास का सपना अभी तक पूरा नहीं हो सका? और, इमरान प्रतापगढ़ी को राज्यसभा पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने महाराष्ट्र से पर्चा भरवा दिया.

कवि सम्मेलनों और मुशायरों की मंचों के हिसाब से भी कुमार विश्वास हर मामले में इमरान प्रतापगढ़ी पर इक्कीस ही साबित होते हैं.

कुमार विश्वास से गलती कहां हुई?

पिछले कुछ समय में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर जाने वाले नेताओं की लिस्ट पर नजर डालेंगे. तो, काफी हद तक मामला इसी से साफ हो जाएगा. हिमंत बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेताओं का कांग्रेस से जाना केवल इस वजह से ही हुआ कि ये सभी धारा 370, सीएए, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मामलों पर कांग्रेस की विचारधारा से अलग राय रखते थे. और, इन्हें पता था कि ऐसे विचारों के साथ कांग्रेस जैसी पार्टी में उनके लिए ज्यादा संभावनाएं नहीं बचेंगी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो खुद को 'सेकुलर' कहने वाली कांग्रेस में राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों पर पार्टी की विचारधारा से इतर विचार वालों के लिए जगह नहीं है. लेकिन, लंबे समय तक आम आदमी पार्टी में रहने के बावजूद कुमार विश्वास समझ नहीं सके कि सेकुलर विचारों के साथ राष्ट्रवादी विचारों का कॉकटेल बेमेल जोड़ी हो जाता है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आजकल का राजनीतिक अवतार सबकुछ बयान करने के लिए काफी है. केजरीवाल खुद को रामभक्त घोषित नहीं कर सकते थे, तो हनुमान भक्त बन गए. यानी सीधे प्रभु श्रीराम के चरणों में न जाकर उनके परमभक्त हनुमान के सहारे 'राम' को साधने की कोशिश करने लगे. कुछ सालों पहले तक मुस्लिम समुदाय के लिए सियासी मंचों से खुलकर अपनी बात रखने वाले अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली के स्कूलों में बच्चों को देशभक्ति का पाठ्यक्रम पढ़वा रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो तेजी से बदलती राजनीति को देखते हुए अरविंद केजरीवाल ने भी खुद को पॉलिटिकली करेक्ट बनाने की हरसंभव कोशिश की है. लेकिन, कुमार विश्वास राष्ट्रवाद की भावना से गुंथा हुआ अपना 'सेकुलर' रूप छोड़ नहीं सके.

अगर कुमार विश्वास खुद को राजनेता मानते हैं, तो उनके सामने अरविंद केजरीवाल पाला बदलने के मामले में सबसे बेहतरीन उदाहरण हैं. अगर कुमार विश्वास को लगता है कि अरविंद केजरीवाल पर आरोपों की झड़ी लगाकर, कविताएं लिखकर और रामकथा कहकर वह राज्यसभा का टिकट पा लेंगे. तो, यह उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक भूल होगी. देश का शायद ही कोई सियासी दल कुमार विश्वास को राज्यसभा भेजेगा. क्योंकि, केवल अब्दुल कलाम के बारे में अच्छी बातें कहने से कोई पार्टी राज्यसभा का टिकट नहीं देती है. उसके लिए ओसामा बिन लादेन के आगे 'जी' भी लगाना पड़ता है. और, हिंदू आतंकवाद की 'थ्योरी' भी देनी पड़ती है. इतना ही नहीं, पार्टी में अगर कोई अमानतुल्लाह खान जैसा नेता है, तो उसका भी बचाव केवल 'मुस्लिम' होने की वजह से ही करना पड़ता है.

न ठीक से सेकुलर हो पाए न संघी

आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल कुमार विश्वास को लगा था कि अरविंद केजरीवाल के साथ की गई उनकी मेहनत रंग लाएगी. लेकिन, दिल्ली का मुख्यमंत्री बनते ही अरविंद केजरीवाल ने धीरे-धीरे पार्टी से जुड़े प्रशांत किशोर, योगेंद्र यादव जैसे लोगों को किनारे लगाना शुरू कर दिया. और, कुमार विश्वास ऐसे मौके पर आम आदमी पार्टी के साथ ही अरविंद केजरीवाल को भी डिफेंड करते नजर आते थे. वैसे, पेशे से कवि कुमार विश्वास कविता के मंचों और मुशायरों में महफिल के हिसाब से भाजपा और कांग्रेस दोनों पर तंज कसते रहे. हालांकि, कुमार विश्वास के तंज रोचक होते थे. लेकिन, इमरान प्रतापगढ़ी की तरह उनमें मुस्लिम समाज की बात को खुलकर और बिना डरे कहने की हिम्मत नहीं रही.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर दर्जनों शेरो-शायरी लिखकर उन्हें खूनी दरिंदा और पत्नी को छोड़ने वाला तक कह दिया. लेकिन, कुमार विश्वास खुद को शब्दों की मर्यादा में बंधा मानते हुए एक कवि की हैसियत से भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ केवल तंज ही कसते रह गए. जिन महाकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' को कुमार विश्वास अपना पुरखा बताकर सत्ता की कुर्सी को लात मारने वाले के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश करते हैं. कुमार विश्वास उन्हीं 'दिनकर' की पंक्तियों को भूल जाते हैं. जिसमें रामधारी सिंह 'दिनकर' ने कहा था कि 'समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध...जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध.' दरअसल, कुमार विश्वास भी राज्यसभा पहुंच जाते, लेकिन न ठीक से सेकुलर हो पाए न संघी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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