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Hijab case: कर्नाटक हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में सामने आई 9 'मुद्दे की बात'

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 15 फरवरी, 2022 02:04 PM
  • 15 फरवरी, 2022 02:04 PM
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हिजाब विवाद (Hijab Row) पर कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) में चल रही सुनवाई में याचिकाकर्ता छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने अदालत के सामने कुरान की आयत का हवाला देते हुए हिजाब को आवश्यक धार्मिक प्रथा बताया. आइए जानते हैं सुनवाई के दौरान सामने आईं 9 मुद्दे की बात...

हिजाब विवाद कर्नाटक के उडुपी से देशभर के कई हिस्सों में फैल चुका है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में मुस्लिम महिलाएं हिजाब और बुर्का पहनकर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा मामले की सुनवाई पूरी होने तक स्कूल-कॉलेजों में किसी भी तरह की धार्मिक पोशाक (हिजाब और भगवा गमछा) पहनने पर लगाई गई रोक के बाद राज्य सरकार ने 10वीं तक के स्कूल फिर से खोल दिए हैं. लेकिन, इस दौरान भी कर्नाटक के कई हिस्सों से मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहन कर स्कूल आने के वीडियो सामने आए हैं. इन सबके बीच कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब विवाद पर चल रही सुनवाई में याचिकाकर्ता छात्राओं की ओर से पेश हुए वकील देवदत्त कामत ने राज्य सरकार की ओर से हिजाब पर लगी रोक को संविधान के आर्टिकल 25 के खिलाफ बताया. कर्नाटक हाईकोर्ट में देवदत्त कामत ने कुरान की आयत का हवाला देते हुए हिजाब और बुर्का को जरूरी बताया. आइए जानते हैं, कर्नाटक हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में सामने आई 10 'मुद्दे की बात'...

कर्नाटक में स्कूल खोलने के पहले ही दिन कई लड़कियां हिजाब पहनकर स्कूल में एंट्री करने पहुंची.

'विषय के अधीन' शब्द से शुरू होता है आर्टिकल 25!

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने जिरह करते हुए कहा कि 'हिजाब पर रोक को लेकर दिया गया सरकारी आदेश आर्टिकल 25 के तहत संरक्षित नहीं है, पूरी तरह से गलत है. 'हिजाब की अनुमति है या नहीं' तय करने का अधिकार कॉलेज कमेटी के प्रतिनिधिमंडल को देना पूरी तरह से अवैध है. आर्टिकल 25 को प्रतिबंधित करने के लिए राज्य के पास केवल 'लोक व्यवस्था' ही विकल्प है. और, 'लोक व्यवस्था' राज्य की जिम्मेदारी है. क्या विधायक और उनके अधीनस्थों की एक कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी यह तय कर सकती है कि यह अधिकार दिया जा सकता है या नहीं?' इस पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कामत से पूछा कि सवाल यह है कि क्या अनुच्छेद 25 के तहत दिया गया यह अधिकार पूर्ण अधिकार है या कुछ प्रतिबंधों के सापेक्ष व्यक्तिपरक है? जिस पर कामत ने कहा कि आर्टिकल 19 के तहत...

हिजाब विवाद कर्नाटक के उडुपी से देशभर के कई हिस्सों में फैल चुका है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में मुस्लिम महिलाएं हिजाब और बुर्का पहनकर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा मामले की सुनवाई पूरी होने तक स्कूल-कॉलेजों में किसी भी तरह की धार्मिक पोशाक (हिजाब और भगवा गमछा) पहनने पर लगाई गई रोक के बाद राज्य सरकार ने 10वीं तक के स्कूल फिर से खोल दिए हैं. लेकिन, इस दौरान भी कर्नाटक के कई हिस्सों से मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहन कर स्कूल आने के वीडियो सामने आए हैं. इन सबके बीच कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब विवाद पर चल रही सुनवाई में याचिकाकर्ता छात्राओं की ओर से पेश हुए वकील देवदत्त कामत ने राज्य सरकार की ओर से हिजाब पर लगी रोक को संविधान के आर्टिकल 25 के खिलाफ बताया. कर्नाटक हाईकोर्ट में देवदत्त कामत ने कुरान की आयत का हवाला देते हुए हिजाब और बुर्का को जरूरी बताया. आइए जानते हैं, कर्नाटक हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में सामने आई 10 'मुद्दे की बात'...

कर्नाटक में स्कूल खोलने के पहले ही दिन कई लड़कियां हिजाब पहनकर स्कूल में एंट्री करने पहुंची.

'विषय के अधीन' शब्द से शुरू होता है आर्टिकल 25!

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने जिरह करते हुए कहा कि 'हिजाब पर रोक को लेकर दिया गया सरकारी आदेश आर्टिकल 25 के तहत संरक्षित नहीं है, पूरी तरह से गलत है. 'हिजाब की अनुमति है या नहीं' तय करने का अधिकार कॉलेज कमेटी के प्रतिनिधिमंडल को देना पूरी तरह से अवैध है. आर्टिकल 25 को प्रतिबंधित करने के लिए राज्य के पास केवल 'लोक व्यवस्था' ही विकल्प है. और, 'लोक व्यवस्था' राज्य की जिम्मेदारी है. क्या विधायक और उनके अधीनस्थों की एक कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी यह तय कर सकती है कि यह अधिकार दिया जा सकता है या नहीं?' इस पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कामत से पूछा कि सवाल यह है कि क्या अनुच्छेद 25 के तहत दिया गया यह अधिकार पूर्ण अधिकार है या कुछ प्रतिबंधों के सापेक्ष व्यक्तिपरक है? जिस पर कामत ने कहा कि आर्टिकल 19 के तहत आर्टिकल 25 पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है. कामत की इस दलील पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने पूछा कि आर्टिकल 25 'विषय के अधीन' शब्द से शुरू होता है. इसका क्या मतलब हुआ? 

कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी तय कर सकती है ड्रेस कोड?

हिजाब विवाद को लेकर हो रही सुनवाई में याचिककर्ता छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने कहा कि कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी को हिजाब पहनने की अनुमति तय करने का अधिकार नही है. इस पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने आर्टिकल 25 में आने वाले शब्द 'कानून' को आर्टिकल 13(3) के जरिये (जो अध्यादेश, नियम, अधिसूचना आदि) समझने को कहा. जिससे यह स्पष्ट हो गया कि कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी को हिजाब पर बैन लगाने का अधिकार है. देवदत्त कामत भी कर्नाटक हाईकोर्ट की बात से सहमत हुए. 

हिजाब पहनने की जिद, स्कूल यूनिफॉर्म के साथ हुई 'मैच'

याचिकाकर्ता छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने कर्नाटक हाईकोर्ट की बेंच के सामने कहा कि 'याचिकाकर्ता किसी अलग ड्रेस की मांग नहीं कर रहे हैं. वे केवल इतना कह रहे हैं कि वे सिर को उसी रंग के हिजाब से ढंकेंगे, जिस रंग की यूनिफॉर्म है.' कामत ने हाईकोर्ट से कहा कि 'केंद्रीय विद्यालय द्वारा यूनिफॉर्म के रंग का ही हिजाब पहनने की अनुमति देता है. सिख छात्रों को पगड़ी पहनने की छूट दी जाती है.' 

क्या मलेशिया एक सेकुलर देश है या इस्लामिक?

देवदत्त कामत ने कहा कि 'मद्रास हाईकोर्ट ने कई स्त्रोतों और अंतरराष्ट्रीय फैसलों का अवलोकन कर हिजाब को अनिवार्य माना है.' देवदत्त कामत ने जिरह के दौरान मलेशिया की एक अदालत का फैसला कोट किया. कामत के मलेशिया की अदालत के फैसला को कोट करने पर जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने पूछा कि 'मलेशिया एक सेकुलर देश है या इस्लामिक देश है?' जिस पर देवदत्त कामत ने कहा कि 'मलेशिया इस्लामिक देश है. हमारे सिद्धांत कहीं अधिक व्यापक हैं. हमारे सिद्धांतों की तुलना इस्लामी संविधानों से नहीं की जा सकती है.' कर्नाटक हाईकोर्ट ने उनसे पूछा कि 'आपने एक हाईकोर्ट के फैसले को बताया है, जो इस्लामिक देश की एक अदालत के फैसले पर आधारित है कि हिजाब पहनना जरूरी है? क्या आपके पास किसी अन्य इस्लामिक देश या सेकुलर देश के फैसले की जानकारी है, जो इस पर अलग विचार रखता हो?' इस पर कामत ने असहमति जताई. 

क्या राज्य सरकार लगा सकती है जरूरी धार्मिक प्रथाओं पर 'रोक'?

जिरह के दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता छात्राओं के वकील देवदत्त से पूछा कि 'क्या आवश्यक धार्मिक प्रथा कानून द्वारा राज्य द्वारा नियमन के लिए पूर्ण या अतिसंवेदनशील है?' जिस पर कामत ने कहा कि 'जहां तक ​आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का संबंध है, वही सिद्धांत बताता है कि यह आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधि से संबंधित नहीं है.' जिस पर हाईकोर्ट ने पूछा कि 'आर्टिकल 25(2) क्या है?' कामत ने हाईकोर्ट के सामने कहा कि 'आर्टिकल 25(2) राज्य को धर्म से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधि पर रोक लगाने का अधिकार देता है. इसके तहत धर्म की मूल धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती है. अगर यह लोक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है.' चीफ जस्टिस ने कहा कि 'आर्टिकल 25(1) और 25(2) को एक साथ ही पढ़ा जा सकता है.' 

क्या कुरान की सभी बातों को धार्मिक प्रथा माना जा सकता है?

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कामत से पूछा कि 'क्या कुरान में जो कुछ कहा गया है, वह जरूरी धार्मिक प्रथा है?' इस पर कामत ने कहा कि 'मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं.' हाईकोर्ट ने कामत से पूछा कि 'क्या कुरान के सभी आदेशों का उल्लंघन किया जा सकता है?' जिस पर कामत ने दलील दी कि 'मैं बड़े मुद्दों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा कि क्या पवित्र कुरान में कहा गया हर सिद्धांत आवश्यक धार्मिक प्रथा है. इस मामले में हिजाब पहनना इस्लामी आस्था का एक अनिवार्य अभ्यास है.' 

'इस्लाम कुरान विरोधी नहीं हो सकता'?

देवदत्त कामत तीन तलाक के मामले पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कोट करते हुए कहा कि 'इस्लाम कुरान विरोधी नही हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक मामले में कहा- कुरान में जो चीज खराब है, वो शरीयत में सही नहीं हो सकती.' 

सरकारी आदेश में 'पब्लिक ऑर्डर' का मतलब 'सार्वजनिक व्यवस्था' है?

सुनवाई के दौरान ये बात भी सामने आई कि जिस सरकारी आदेश के 'पब्लिक ऑर्डर' को लेकर बहस हो रही है, उसका अनुवाद एक मानवीय त्रुटि है. सरकारी आदेश के कन्नड़ भाषा के वर्जन को देखने के बाद साफ हुआ कि 'पब्लिक ऑर्डर' का मतलब लोक व्यवस्था न होकर सार्वजनिक व्यवस्था है. हाईकोर्ट ने इस पर कहा कि 'सरकारी आदेश को एक कानून की तरह नहीं देखा जा सकता है. शब्दों का कोई स्थिर अर्थ नहीं होता है. हमें कॉमन सेंस का इस्तेमाल करना होगा.' 

चुनावों के मद्देनजर मीडिया पर लगे रोक

एक वकील ने सुनवाई के दौरान हिजाब विवाद पर मीडिया और सोशल मीडिया की टिप्पणियों को प्रतिबंधित करने का आवेदन किया. वकील ने कहा कि 'अन्य राज्यों में चुनाव चल रहे हैं. ऐसे में मामले को चुनाव के बाद तक स्थगित कर दिया जाए.' इस पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि 'अगर चुनाव आयोग या प्राधिकरण यह अनुरोध करता है, तो हम इस पर विचार कर सकते हैं.' 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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