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तमिलनाडु चुनाव जीतने के लिए 'मुफ्त' की रेस!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 11 मार्च, 2021 07:33 PM
  • 11 मार्च, 2021 07:33 PM
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इस बार के चुनाव में एआईएडीएमके फिर से सत्ता में आने की कोशिश में लगा है. लेकिन, विधानसभा चुनाव 2021 में राजनीति का 'चेहरा' पूरी तरह से बदल गया है. तमिलनाडु की राजनीति की धुरी एआईएडीएमके और डीएमके के इर्द-गिर्द ही घूमती है. इन दोनों ही दलों के सबसे बड़े चेहरे क्रमश: जयललिता और एम. करुणानिधि का निधन हो चुका है.

तमिलनाडु के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलता है कि यहां हर चुनाव में सत्ता बदलती रही है. लेकिन, 2016 के विधानसभा चुनाव में तीन दशकों से चली आ रही यह परंपरा टूट गई. राज्य में फिर से एआईएडीएमके (AIADMK) की सत्ता में लगातार दूसरी बार वापसी हुई. यह मुमकिन हुआ 'अम्मा' के नाम से मशहूर दिवंगत नेता जे. जयललिता की वजह से. जनता के लिए मुफ्त उपहार और लोकोपकारी योजनाएं लाने के मामले में जयललिता ने सभी को पछाड़ते हुए 'अम्मा' शब्द को ही एक ब्रांड बना दिया था.

इस बार के चुनाव में एआईएडीएमके फिर से सत्ता में आने की कोशिश में लगा है. लेकिन, विधानसभा चुनाव 2021 में राजनीति का 'चेहरा' पूरी तरह से बदल गया है. तमिलनाडु की राजनीति की धुरी एआईएडीएमके और डीएमके के इर्द-गिर्द ही घूमती है. इन दोनों ही दलों के सबसे बड़े चेहरे क्रमश: जयललिता और एम. करुणानिधि का निधन हो चुका है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी और डीएमके के नेता एमके. स्टालिन के बीच चुनावी जंग होनी है.

तमिलनाडु में राजनीतिक दल मतदाताओं के सामने ऑफर्स (योजनाओं) की भरमार लगा देते हैं.

तमिलनाडु में इस बार राजनीति का 'चेहरा' जरूर बदला, लेकिन राजनीति जयललिता करुणानिधि वाली ही चल रही है. डीएमके के नेता स्टालिन ने एक रैली के दौरान सरकार में आने पर राज्य की हर राशन कार्डधारक गृहिणी को 1,000 रुपये प्रति माह देने की बात कही. इसके जवाब में सत्तारूढ़ दल एआईएडीएमके ने हर परिवार को साल में 6 एलपीजी सिलेंडर मुफ्त देने के साथ हर गृहिणी को 1500 रुपये देने की घोषणा कर दी. सीएम पलानीस्वामी ने यह भी कहा कि जल्द पार्टी का मैनिफेस्टो (चुनावी घोषणा पत्र) जारी होगा, जो लोगों के दिलों को खुश कर देगा.

तमिलनाडु में राजनीतिक दल मतदाताओं के सामने ऑफर्स (योजनाओं) की भरमार लगा देते हैं....

तमिलनाडु के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलता है कि यहां हर चुनाव में सत्ता बदलती रही है. लेकिन, 2016 के विधानसभा चुनाव में तीन दशकों से चली आ रही यह परंपरा टूट गई. राज्य में फिर से एआईएडीएमके (AIADMK) की सत्ता में लगातार दूसरी बार वापसी हुई. यह मुमकिन हुआ 'अम्मा' के नाम से मशहूर दिवंगत नेता जे. जयललिता की वजह से. जनता के लिए मुफ्त उपहार और लोकोपकारी योजनाएं लाने के मामले में जयललिता ने सभी को पछाड़ते हुए 'अम्मा' शब्द को ही एक ब्रांड बना दिया था.

इस बार के चुनाव में एआईएडीएमके फिर से सत्ता में आने की कोशिश में लगा है. लेकिन, विधानसभा चुनाव 2021 में राजनीति का 'चेहरा' पूरी तरह से बदल गया है. तमिलनाडु की राजनीति की धुरी एआईएडीएमके और डीएमके के इर्द-गिर्द ही घूमती है. इन दोनों ही दलों के सबसे बड़े चेहरे क्रमश: जयललिता और एम. करुणानिधि का निधन हो चुका है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी और डीएमके के नेता एमके. स्टालिन के बीच चुनावी जंग होनी है.

तमिलनाडु में राजनीतिक दल मतदाताओं के सामने ऑफर्स (योजनाओं) की भरमार लगा देते हैं.

तमिलनाडु में इस बार राजनीति का 'चेहरा' जरूर बदला, लेकिन राजनीति जयललिता करुणानिधि वाली ही चल रही है. डीएमके के नेता स्टालिन ने एक रैली के दौरान सरकार में आने पर राज्य की हर राशन कार्डधारक गृहिणी को 1,000 रुपये प्रति माह देने की बात कही. इसके जवाब में सत्तारूढ़ दल एआईएडीएमके ने हर परिवार को साल में 6 एलपीजी सिलेंडर मुफ्त देने के साथ हर गृहिणी को 1500 रुपये देने की घोषणा कर दी. सीएम पलानीस्वामी ने यह भी कहा कि जल्द पार्टी का मैनिफेस्टो (चुनावी घोषणा पत्र) जारी होगा, जो लोगों के दिलों को खुश कर देगा.

तमिलनाडु में राजनीतिक दल मतदाताओं के सामने ऑफर्स (योजनाओं) की भरमार लगा देते हैं. ऐसा लगता है कि जिस राजनीतिक दल के ऑफर सबसे अच्छे होंगे, सत्ता उसी के हाथ में आएगी. दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार पर भी टैक्सपेयर्स का पैसा ऐसी योजनाओं पर खर्च करने के आरोप लगते रहे हैं. ये मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाएं हैं या कल्याणकारी योजनाएं हैं. इसे जानना सबसे जरूरी है. सबसे पहले तो हम ये समझ लें कि सरकार का सबसे बड़ा और पहला काम होता है, जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना. अगर सरकार जनता को इन योजनाओं के जरिये मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करा रही है, तो ये लोकोपकारी योजनाएं हो जाती हैं.

सत्ता हासिल करने के ये चुनावी तरीके तब तक ही सही हैं, जब तक सरकार कर्ज में न लदे. अगर सरकार भारी राजस्व के साथ राजकोष के स्तर को बनाए रख रही है, तो ऐसी योजनाएं चलाई जा सकती हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों की योजनाएं जनता को राहत पहुंचाती हैं. सरकार अगर योजनाओं में धर्म, जाति, वर्ग आदि का सामंजस्य बिठाते हुए सभी के लिए ऐसी योजनाएं चलाती है, तो इसे मुफ्त कहना गलता होगा.

तमिलनाडु की बात करें, तो यह देश का दूसरा सबसे ज़्यादा जीडीपी वाला राज्य है. 2018-19 में तमिलनाडु का ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी जीएसडीपी 229.7 अरब रहा था. इस सीधी गणित से आप समझ सकते हैं कि यह राज्य ऐसी लोकोपकारी योजनाएं चला सकता है. वैसे तमिलनाडु में मुफ्त उपहारों को बढ़ावा देने का श्रेय करुणानिधि को जाता है. जयललिता ने उनसे दो कदम आगे जाकर कुछ ऐसी योजनाएं लागू कीं, जिसने 'अम्मा' को ब्रांड बना दिया.

तमिलनाडु में मुफ्त उपहारों को बढ़ावा देने का श्रेय करुणानिधि को जाता है.

जयललिता की इन योजनाओं से गरीब और मजदूर वर्ग को काफी लाभ मिला. 'अम्मा कैंटीन' जैसी योजनाओं को विभिन्न राज्यों ने कॉपी करते हुए अपने यहां लागू भी किया है. कहा जा सकता है कि जयललिता की योजनाओं ने 'आधी आबादी' को अपने पक्ष में कर लिया था. तमिलनाडु में महिलाओं के लिए सर्वाधिक योजनाएं हैं. 'अम्मा' बेबी किट से लेकर गोल्ड फॉर मैरिज स्कीम तक इसकी लंबी फेहरिस्त है. ये योजनाएं मुफ्त हैं या भारी सब्सिडी देकर चलाई जाती हैं. ऐसी सब्सिडी वाली स्कीमें सरकारी खजाने से चलाई जा रही हैं.

अम्मा ब्रांड की कुछ योजनाओं के नाम इस प्रकार हैं- अम्मा कैंटीन, अम्मा मिनरल वॉटर, अम्मा नमक, अम्मा सीमेंट, अम्मा लैपटॉप, अम्मा बेबी केयर किट, अम्मा सीमेंट, अम्मा ग्राइन्डर, मिक्सी, टेबल फैन, अम्मा बीज, अम्मा कॉल सेंटर, अम्मा मोबाइल, अम्मा फार्मेसी, अम्मा माइक्रो लोन स्कीम, अम्मा आरोग्य थित्तम, अम्मा थिएटर प्रोजेक्ट, अम्मा जिम, मुफ्त उत्सव उपहार पैक, दो पहिया वाहन खरीदने के लिए महिलाओं को 50 फीसदी सब्सिडी की अम्मा स्कूटर स्कीम. 

सरकार किसी की भी आए, इन योजनाओं को चालू रख सकती है. हालांकि, कोरोना महामारी की वजह से तमिलनाडु को भी भारी राजस्व हानि हुई है. लेकिन, तमिलनाडु के राजनीतिक दलों एआईएडीएमके और डीएमके के हालिया वादे इन लोकोपकारी योजनाओं के चालू रहने के साथ और बढ़ने की ओर ही इशारा करते हैं. राज्य के अच्छी जीएसडीपी के चलते तमिलनाडु की राजनीति में लोगों को खुश कर सत्ता पाने की परंपरा बन गई है. इसे सीधे शब्दों में कहें, तो तमिलनाडु में सत्ता का रास्ता 'मुफ्त' या लोकोपकारी योजनाओं से होकर गुजरता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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