• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

'सिंगापुर स्ट्रेन' पर बड़ी भूल केजरीवाल से हुई - या विदेश मंत्री जयशंकर ने की?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 20 मई, 2021 11:02 PM
  • 20 मई, 2021 11:02 PM
offline
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के 'सिंगापुर स्ट्रेन' (Singapur Strain) वाले ट्वीट के बाद विदेश मंत्री का दखल देना जरूरी हो गया था, लेकिन जिस तरीके से एस. जयशंकर ने रिएक्ट किया है - वो भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई भारती की अच्छी छवि नहीं पेश करता.

टूल किट पर उठी सियासी लहर के लपेटे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी आ गये हैं. अव्वल तो टूल किट पर हो रही राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने हैं - और एक दूसरे पर राजनीतिक हमले के बाद मामला दिल्ली पुलिस और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता ने अरविंद केजरीवाल के 'सिंगापुर स्ट्रेन' (Singapur Strain) वाले बयान को भी टूल किट ही करार दिया है.

बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया का इल्जाम है कि अरविंद केजरीवाल का बयान भ्रम और अराजकता फैलाने वाले टूल किट का हिस्सा था. बीजेपी ने पहले कांग्रेस पर पर टूल किट के जरिये देश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने का आरोप लगाया. बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस टूल किट के जरिये कोविड 19 के के बीच 'भारतीय स्ट्रेन', 'मोदी स्ट्रेन' और 'सुपर स्प्रेडर कुंभ' जैसी चीजों के इस्तेमाल के जरिये देश की छवि धूमिल करने और मोदी सरकार को बदनाम करने का प्रयास कर रही है. कांग्रेस बीजेपी के आरोपों को खारिज करते हुए दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और तुगलक रोड थाने में बीजेपी नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज कराने को लेकर तहरीर दी है. कांग्रेस ने पुलिस में जिन नेताओं की शिकायत की है, वे हैं - बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा, बीएल संतोष और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी.

साथ ही, सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका के जरिये मांग की गयी है कि टूल किट मामले की केंद्र सरकार से जांच करायी जाये और अगर जांच में कांग्रेस को जिम्मेदार पाया जाता है जिसमें वो लोगों के जीवन को खतरे में डालते पायी जाये और एंटी नेशनल हरकत करते पायी जाये तो उसका रजिस्ट्रेशन रद्द कराया जाये.

अरविंद केजरीवाल के साथ तो बीजेपी की तरफ से या उसके किसी समर्थक की तरफ से ऐसी कोई डिमांड नहीं है, लेकिन जिस तरीके से विदेश मंत्री एस. जयशंकर (S. Jaishankar) ने रिएक्ट किया है, वो तरीका भी सही नहीं लगता.

अरविंद केजरीवाल के सिंगापुर स्ट्रेन वाले ट्वीट पर सिंगापुर के प्रतिक्रिया देने के...

टूल किट पर उठी सियासी लहर के लपेटे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी आ गये हैं. अव्वल तो टूल किट पर हो रही राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने हैं - और एक दूसरे पर राजनीतिक हमले के बाद मामला दिल्ली पुलिस और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता ने अरविंद केजरीवाल के 'सिंगापुर स्ट्रेन' (Singapur Strain) वाले बयान को भी टूल किट ही करार दिया है.

बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया का इल्जाम है कि अरविंद केजरीवाल का बयान भ्रम और अराजकता फैलाने वाले टूल किट का हिस्सा था. बीजेपी ने पहले कांग्रेस पर पर टूल किट के जरिये देश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने का आरोप लगाया. बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस टूल किट के जरिये कोविड 19 के के बीच 'भारतीय स्ट्रेन', 'मोदी स्ट्रेन' और 'सुपर स्प्रेडर कुंभ' जैसी चीजों के इस्तेमाल के जरिये देश की छवि धूमिल करने और मोदी सरकार को बदनाम करने का प्रयास कर रही है. कांग्रेस बीजेपी के आरोपों को खारिज करते हुए दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और तुगलक रोड थाने में बीजेपी नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज कराने को लेकर तहरीर दी है. कांग्रेस ने पुलिस में जिन नेताओं की शिकायत की है, वे हैं - बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा, बीएल संतोष और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी.

साथ ही, सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका के जरिये मांग की गयी है कि टूल किट मामले की केंद्र सरकार से जांच करायी जाये और अगर जांच में कांग्रेस को जिम्मेदार पाया जाता है जिसमें वो लोगों के जीवन को खतरे में डालते पायी जाये और एंटी नेशनल हरकत करते पायी जाये तो उसका रजिस्ट्रेशन रद्द कराया जाये.

अरविंद केजरीवाल के साथ तो बीजेपी की तरफ से या उसके किसी समर्थक की तरफ से ऐसी कोई डिमांड नहीं है, लेकिन जिस तरीके से विदेश मंत्री एस. जयशंकर (S. Jaishankar) ने रिएक्ट किया है, वो तरीका भी सही नहीं लगता.

अरविंद केजरीवाल के सिंगापुर स्ट्रेन वाले ट्वीट पर सिंगापुर के प्रतिक्रिया देने के बाद विदेश मंत्रालय का दखल बेहद जरूरी था, लेकिन वो दखल एक दायरे में भी हो सकती थी या उस पर संवैधानिक तरीके से एक्शन भी सही ही होता, लेकिन अरविंद केजरीवाल को लेकर जो बयान एस. जयशंकर ने दिया है वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई अच्छा संदेश नहीं दे रहा है - अब सवाल ये पैदा होता है कि सिंगापुर स्ट्रे्न पर बड़ी गलती दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से हुई है या फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर से?

दिल्ली के मुख्यमंत्री के अधिकार!

जब से केंद्र सरकार ने संसद से एक कानून संशोधन के जरिये दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अधिकार समेट कर उप राज्यपाल को असल सरकार बना दिया है, आम आदमी पार्टी के नेता काफी परेशान लगते हैं. स्वाभाविक भी है, बीजेपी ने तो जैसे उनके राजनीतिक कॅरियर को ही कानूनी बाड़ बनाकर कर घेर दिया है.

जिन चुनावी वादों के साथ अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में वापसी की है, अगर उन पर अमल नहीं कर पाये तो क्या मुंह लेकर जनता के बीच फिर से जाएंगे - फिर तो दिल्ली के लोग भी बिहार या बीजेपी के शासन वाले राज्यों की तरह डबल इंजिन की सरकार के बारे में सोचने को मजबूर होंगे. अगर वो अरविंद केजरीवाल को पसंद भी करें तो उनको वोट देने से फायदा क्या होगा - हर काम में रोड़े अटकाये जाएंगे और काम का क्रेडिट लेने की होड़ में कुछ भी हो पाना संभव ही नहीं होगा.

अरविंद केजरीवाल की राजनीति अभी अभी ऑक्सीजन के मामले में देखने को मिली है. पहले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मीटिंग में केजरीवाल ने अपना भाषण लाइव करके केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की और बाद में मामला जब कोर्ट पहुंचा तो वहां भी वैसी ही पैंतरेबाजी शुरू कर दी. पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगायी, लेकिन जब केजरीवाल सरकार की हरकत समझ में आयी तो बोल दिया कि अगर संभाल नहीं सकते तो केंद्र के अधिकारियों के हवाले कर दिया जाये?

अरविंद केजरीवाल को सिंगापुर स्ट्रेन पर आधा जवाब हरदीप सिंह पुरी ने दे दिया था और आधा विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने - एस. जयशंकर को तो इतना तूल देने की जरूरत ही नहीं रही!

वैसे अंत भला तो सब भला - सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद दिल्ली को जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन मिलने लगी और फिर ऐसा भी हो गया कि अरविंद केजरीवाल की सरकार की तरफ से बोल दिया गया कि उनकी जरूरत अब उतनी नहीं रही, लिहाजा उनके हिस्से की ऑक्सीजन जो भी जरूरतमंद हो उसे दे दी जाये.

कोविड 19 को लेकर ही अरविंद केजरीवाल के एक ट्वीट पर सिंगापुर सरकार की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया हुई. अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट में सिंगापुर स्ट्रेन को बच्चों के लिए खतरनाक बताते हुए, सिंगापुर के साथ हवाई सेवाओं को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की. अरविंद केजरीवाल के ट्वीट पर सिंगापुर ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसी बातों में कोई सच्चाई नहीं है.

अरविंद केजरीवाल की मांग को लेकर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी की प्रतिक्रिया आयी जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए मैसेज था कि कोई भी ट्वीट करने से पहले उनको फैक्ट चेक कर लेने चाहिये. केंद्रीय मंत्री ने केजरीवाल के ट्वीट पर अपडेट किया कि अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें तो मार्च, 2020 से ही बंद हैं.

केंद्रीय मंत्री के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट करके बताया कि 'सिंगापुर वेरिएंट' वाले अरविंद केजरीवाल के बयान पर सिंगापुर सरकार ने भारतीय हाई कमिश्नर को तलब किया था. अरिंदम बागची ने ये भी साफ कर दिया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास कोविड वेरिएंट या सिविल एविएशन पॉलिसी पर कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है.

देश के एक CM को नीचा दिखाने की कोशिश क्यों?

अब जबकि सिंगापुर सरकार ने भारतीय उच्चायुक्त को तलब कर लिया, फिर तो विदेश मंत्रालय को भी आगे आकर स्थिति को संभालना जरूरी हो गया था. विदेश मंत्रालय ने जहां अधिकारों की बात की थी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी साफ कर दिया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री का बयान भारत सरकार का बयान नहीं है - यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसके आगे एस. जयशंकर ने जो कहा उसके बगैर भी काम चल सकता था, लेकिन जिस तरह से विदेश मंत्री ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को दुनिया के सामने गैर जिम्मेदार बताया वो कहीं से भी अच्छा नहीं लगता.

बेशक दिल्ली के मुख्यमंत्री का बयान भारत सरकार का बयान नहीं हो सकता - लेकिन बात जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रही हो तो क्या जनता के चुने हुए देश के किसी मुख्यमंत्री को एक गैर-जिम्मेदार बयान देने वाला नेता बता देने से सिंगापुर अगर नाराज हुआ है तो खुश हो जाएगा?

ये कोई बच्चों का खेल थोड़े ही है कि उधर सॉरी बोल दिया और इधर फटकार लगा दी? और सिर्फ फटकार क्यों अगर अरविंद केजरीवाल के एक बयान से किसी देश के साथ चली आ रही लंबी भागीदारी से द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचता है तो उसके खिलाफ संवैधानिक तरीके से एक्शन होना चाहिये.

हो सकता है, देश के लोगों को राजनीतिक वजहों से बीजेपी की तरफ से एस. जयशंकर ने आगाह किया हो कि एक गैर-जिम्मेदाराना बयान किस हद तक खतरनाक हो सकता है. पहले भी राहुल गांधी के आरोपों को लेकर भी विदेश मंत्री जयशंकर ने कई ट्वीट कर जवाब दिये हैं, लेकिन उन सभी में ज्यादातर स्पष्टीकरण ही होता था.

अगर ऐसी बातें वो राहुल गांधी के लिए भी कहते तो भी बहुत दिक्कत वाली बात नहीं होती, लेकिन संवैधानिक पदों के हिसाब से देखा जाये तो राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल में बहुत बड़ा फर्क है. राहुल गांधी देश के सबसे बड़े विपक्षी दल के अध्यक्ष रहे हैं, लेकिन फिलहाल महज एक सांसद हैं - लेकिन अरविंद केजरीवाल एक राज्य की जनता के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं. पद और गोपनीयता को लेकर अरविंद केजरीवाल को संवैधानिक तरीके से शपथ दिलायी गयी है.

देश में महामारी पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्रियों की मीटिंग करते हैं तो उसमें अरविंद केजरीवाल को भी शामिल किया जाता है, राहुल गांधी को नहीं. राहुल गांधी अभी तक किसी ऐसे पद पर नहीं हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को उनके कुछ ऐसा वैसा करने पर अरविंद केजरीवाल की तरह प्रोटोकॉल को लेकर नसीहत देनी पड़े. प्रधानमंत्री सर्वदलीय बैठक भी बुलाते हैं तो उसमें राहुल गांधी नहीं बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी ही हिस्सा लेती हैं.

विदेश नीति बेहद अहम होती है और वो घरेलू राजनीति से काफी ऊपर होती है. अगर अरविंद केजरीवाल के बयान से कोई बड़ा नुकसान हुआ है तो बगैर वक्त गंवाये उनके खिलाफ नियमों के तहत कार्यवाही शुरू की जानी चाहिये. फौरन ही केंद्र सरकार को उप राज्यपाल अनिल बैजल के जरिये रिपोर्ट तलब की जानी चाहिये. संविधान विशेषज्ञों या अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता की राय लेकर केंद्र सरकार को आगे बढ़ना चाहिये. अगर लगता है कि अरविंद केजरीवाल के बयान से सिंगापुर के साथ रिश्तों को लेकर देश को नुकसान उठाना पड़ सकता है तो संवैधानिक तरीके से केंद्र सरकार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से तत्काल सिफारिश करनी चाहिये.

और अगर मामला गंभीर प्रकृति का नहीं था तो ऐसी बातों से बचने की कोशिश करनी चाहिये - क्योंकि एस. जयशंकर ने जो कुछ कहा वो सिर्फ देश के लोग ही नहीं पूरी दुनिया के लिए विदेश मंत्री का बयान था. वो बेहद जरूरी था.

अगर अरविंद केजरीवाल की तरफ से इतना बड़ा गुनाह हुआ है तो मोदी सरकार को तत्काल प्रभाव से अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर बर्खास्त कर देना चाहिये, लेकिन देश के एक मुख्यमंत्री को दुनिया के सामने नीचा दिखाने की जरूरत क्यों होनी चाहिये?

किसी मुख्यमंत्री को ऐसे सरेआम जलील करने का क्या मकसद हो सकता है और उसका हासिल क्या होगा? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चिल्ला चिल्ला कर बता रही हैं कि केंद्र सरकार कैसे उनके साथ पेश आ रही है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कई बार कह चुके हैं कि अगर उनकी सरकार गिरानी है तो गिरा दो. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी ऐसे ही आरोप लगा चुके हैं. मध्य प्रदेश और कर्नाटक में तख्ता पटल के आरोप भी जयशंकर की ही पार्टी बीजेपी के हिस्से आया है - घरेलू राजनीति में जो भी हो, चलेगा - लेकिन देश के बाहर ऐसा मैसेज क्यों जाना चाहिये कि केंद्र की सरकार देश के मुख्यमंत्रियों को लेकर क्या विचार रखती है - और ऐसे विचार हैं तो क्यों हैं?

इन्हें भी पढ़ें :

केजरीवाल का फोकस लोगों की जान बचाने से ज्यादा ऑक्सीजन संकट की राजनीति पर क्यों है?

ऑक्सीजन के मामले में प्याज वाली पॉलिटिक्स की गंध क्यों आने लगी है?

कोविड पर मची अफरातफरी अगर सिस्टम के फेल होने का नतीजा है - तो जिम्मेदार कौन है?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲