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केजरीवाल और मोदी-शाह की राजनीति में अब सिर्फ 'रेवड़ी' भर फर्क बचा है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 01 दिसम्बर, 2022 07:41 PM
  • 01 दिसम्बर, 2022 07:41 PM
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को रोकने की बीजेपी की तरफ से तमाम तरह की कोशिशें हुई हैं, लेकिन गुजरात पहुंच कर वो सीधे मोदी-शाह (Modi-Shah) को चैलेंज करने लगे हैं. अब तो कह रहे हैं - हिंदू होकर वो हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) नहीं करेंगे तो क्या करेंगे?

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने चुनावों में हार-जीत की तरह लिख दावा तो नहीं किया है, लेकिन एक बात अपनी तरफ से पूरी तरह साफ कर दिया है - आम आदमी पार्टी हिंदुत्व की ही राजनीति करेगी.

और ये ऐसा लगता है जैसे कोई सॉफ्ट हिंदुत्व नहीं. हालांकि, अभी कट्टर हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) जैसा कोई दावा पेश नहीं किया गया है. कट्टर शब्द का इस्तेमाल अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने अभी सिर्फ ईमानदारी तक ही सीमित रखा है. आगे मौका देख कर कभी भी संशोधन किया जा सकता है, ऐसा अरविंद केजरीवाल के अब तक बदलते स्टैंड और ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए आप चाहें तो अनुमान लगा सकते हैं.

केजरीवाल भला वो एक्सपेरिमेंट क्यों करें जो फेल हो चुका है. जैसे सॉफ्ट हिंदुत्व. पहले राहुल गांधी और बाद में थोड़ी बहुत ममता बनर्जी भी सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग करते पाये गये हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल ये सब अपने ट्विटर बॉयो तक ही बनाये रखना चाहते हैं. उसके आगे नहीं.

ट्विटर प्रोफाइल पर अरविंद केजरीवाल ने लिखा है, "सब इंसान बराबर हैं... चाहे वो किसी धर्म या जाति के हों... हमें ऐसा भारत बनाना है जहां सभी धर्म और जाति के लोगों में भाईचारा और मोहब्बत हो... न कि नफरत और बैर हो!"

हिंदुत्व की राजनीति को लेकर तो सवाल केजरीवाल का पीछा तभी से करने लगे थे जब वो दिल्ली चुनाव में जीत के लिए हनुमान जी को थैंक यू बोले और फिर टीवी विज्ञापनों में 'जय श्रीराम' के नारे लगाने लगे, लेकिन गुजरात चुनाव के दौरान नोटों की कीमत बढ़ाने के लिए लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें लगाने के सुझाव के बाद ये सब ज्यादा ही गंभीर लगने लगा.

एक इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल से हिंदुत्व की राजनीति को लेकर सवाल पूछा गया तो तपाक से बोल पड़े, 'हिंदू होकर मैं हिंदुत्व नहीं करूंगा... तो और क्या करूंगा…'

अब सवाल है कि बीजेपी और AAP की हिंदुत्व की राजनीति में क्या फर्क है? या आगे चल कर भी कितना फर्क आएगा? अगर केजरीवाल और मोदी-शाह (Modi-Shah) की बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति...

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने चुनावों में हार-जीत की तरह लिख दावा तो नहीं किया है, लेकिन एक बात अपनी तरफ से पूरी तरह साफ कर दिया है - आम आदमी पार्टी हिंदुत्व की ही राजनीति करेगी.

और ये ऐसा लगता है जैसे कोई सॉफ्ट हिंदुत्व नहीं. हालांकि, अभी कट्टर हिंदुत्व की राजनीति (Hindutva Politics) जैसा कोई दावा पेश नहीं किया गया है. कट्टर शब्द का इस्तेमाल अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने अभी सिर्फ ईमानदारी तक ही सीमित रखा है. आगे मौका देख कर कभी भी संशोधन किया जा सकता है, ऐसा अरविंद केजरीवाल के अब तक बदलते स्टैंड और ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए आप चाहें तो अनुमान लगा सकते हैं.

केजरीवाल भला वो एक्सपेरिमेंट क्यों करें जो फेल हो चुका है. जैसे सॉफ्ट हिंदुत्व. पहले राहुल गांधी और बाद में थोड़ी बहुत ममता बनर्जी भी सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग करते पाये गये हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल ये सब अपने ट्विटर बॉयो तक ही बनाये रखना चाहते हैं. उसके आगे नहीं.

ट्विटर प्रोफाइल पर अरविंद केजरीवाल ने लिखा है, "सब इंसान बराबर हैं... चाहे वो किसी धर्म या जाति के हों... हमें ऐसा भारत बनाना है जहां सभी धर्म और जाति के लोगों में भाईचारा और मोहब्बत हो... न कि नफरत और बैर हो!"

हिंदुत्व की राजनीति को लेकर तो सवाल केजरीवाल का पीछा तभी से करने लगे थे जब वो दिल्ली चुनाव में जीत के लिए हनुमान जी को थैंक यू बोले और फिर टीवी विज्ञापनों में 'जय श्रीराम' के नारे लगाने लगे, लेकिन गुजरात चुनाव के दौरान नोटों की कीमत बढ़ाने के लिए लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें लगाने के सुझाव के बाद ये सब ज्यादा ही गंभीर लगने लगा.

एक इंटरव्यू में अरविंद केजरीवाल से हिंदुत्व की राजनीति को लेकर सवाल पूछा गया तो तपाक से बोल पड़े, 'हिंदू होकर मैं हिंदुत्व नहीं करूंगा... तो और क्या करूंगा…'

अब सवाल है कि बीजेपी और AAP की हिंदुत्व की राजनीति में क्या फर्क है? या आगे चल कर भी कितना फर्क आएगा? अगर केजरीवाल और मोदी-शाह (Modi-Shah) की बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति में कोई फर्क नहीं होगा तो क्या लोग कन्फ्यूज नहीं होंगे? और अगर लोग कन्फ्यूज हो गये बीजेपी की जगह केजरीवाल को क्यों आजमाएंगे?

अरविंद केजरीवाल हड़बड़ी में तो हैं, लेकिन रास्ते के खतरे को जरूर भांप लिया है. वो बीजेपी की जगह लेना तो चाहते हैं, लेकिन अभी नहीं. धीरे धीरे. जैसे कांग्रेस की जगह कब्जा करते गये. जैसे पंजाब में. गुजरात में भी ऐसा ही माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी उन इलाकों पर ही ज्यादा जोर दे रही है जहां वो आसानी से कांग्रेस की जगह ले सके.

दावा तो अरविंद केजरीवाल गुजरात में सरकार बनाने को लेकर भी कर चुके हैं. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में लिख कर भी दे चुके हैं, 'मेरी राजनीतिक भविष्यवाणी सच हुई है... फिर से लिख कर भविष्यवाणी कर रहा हूं कि गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है.'

दलील तो दमदार है, दावे का क्या होगा: गुजरात विधानसभा में 182 सीटें हैं और बहुमत के लिए 92 विधायकों की जरूरत होती है. अभी जो स्थिति है उसमें बीजेपी के पास 110 विधायक हैं और कांग्रेस के 60 विधायक.

निश्चित तौर पर चुनाव लड़ने वाली हर राजनीतिक पार्टी की कोशिश 92 से ज्यादा सीटें हासिल करने पर होंगी, लेकिन ये भी तो माना ही जाता है कि तोप का लाइसेंस चाहिये तो पहले पिस्तौल के लिए अप्लाई करना होता है. 2017 में पंजाब में अरविंद केजरीवाल ऐसा कर चुके हैं - और 2022 में तो उसका रिजल्ट भी आ चुका है.

और अपनी तरह से यकीन दिलाने के लिए अरविंद केजरीवाल कहते हैं, ‘जब हमारी 67 सीटें आई थीं, तब भी लोगों को यकीन नहीं हुआ था... जब पंजाब में 92 सीटें आईं, तब भी लोगों को भरोसा नहीं हुआ...' वो याद दिलाते हैं कि जब आम आदमी पार्टी बनने के बाद पहले साल में ही 28 सीटें आई थीं, तो भी नतीजे आने से पहले कोई मानने को तैयार न था.

अपने सर्वे के आधार पर एमसीडी चुनाव में AAP की बहुमत का दावा करते हुए, अरविंद केजरीवाल कहते हैं - 'गुजरात में सरकार बननी चाहिये, गुजरात में 92 पार होना चाहिये.’

'राह पकड़ तू एक चला चल पा जाएगा मधुशाला!'

अपनी लिखित गारंटी के पक्ष में अरविंद केजरीवाल एक और दलील देते हैं, ‘...हर चुनाव अलग होता है... न ये गोवा जैसा चुनाव है, न ही उत्तराखंड जैसा... गुजरात का चुनाव गुजरात की तरह है... लोगों का कल्चर अलग है, लेकिन समस्या देश भर में वही है... लोगों को भरोसा है कि आम आदमी पार्टी समाधान निकाल सकती है.’

केजरीवाल की हिंदुत्व-पॉलिटिक्स!

गुजरात चुनाव के बीच 2002 के गुजरात दंगे की याद दिला कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया है कि बीजेपी आगे भी हिंदुत्व के एजेंडे के साथ ही राजनीति करेगी. 'दंगाइयों को सबक सिखाने' वाली बात तो बिलकुल सही है. संविधान ने इसी के लिए कानून के राज की व्यवस्था दी है. लेकिन इसके जरिये बीजेपी के वोटर तक वही मैसेज पहुंचता है जो कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिये की बहस से निकलता है. ईद पर बिजली दी जाती है तो होली और दिवाली पर भी दी जानी चाहिये.

तो क्या अरविंद केजरीवाल भी ऐसी ही राजनीति करने जा रहे हैं? आखिर हिंदुत्व की राजनीति में अरविंद केजरीवाल के पास क्या क्या है?

जैसे यूपी के मुख्यमंत्री अयोध्या में दिवाली मनाते हैं, तो अरविंद केजरीवाल ऐसा नहीं कर पाते. अरविंद केजरीवाल दिल्ली में ही अपना इंतजाम कर लेते हैं - वो अक्षरधाम मंदिर में ही दिवाली मना लेते हैं.

अरविंद केजरीवाल ने बड़ी होशियारी से हिंदुत्व पॉलिटिक्स का अपना रास्ता निकाल लिया है - बीजेपी अयोध्या में मंदिर बनवाएगी, तो अरविंद केजरीवाल लोगों को मंदिर तक यात्रा कराएंगे और ये सिलसिला चलता रहेगा. गुजरात चुनाव में लोगों को ये समझा भी चुके हैं कि दिल्ली की तरह ही वो वहां के लोगों को भी अयोध्या भेजेंगे और वापसी में स्टेशन पहुंच कर खुद रिसीव भी करेंगे.

ये तो अब साफ हो ही चुका है कि वो हिंदुत्व की राजनीति के रास्ते ही आगे बढ़ने जा रहे हैं. फैसला फाइनल कर चुके हैं. अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी आतंकवाद से लेकर भ्रष्टाचार तक के गंभीर इल्जाम लगा चुकी है - तो क्या ये हिंदुत्व की ही राजनीति है जिसकी बदौलत अरविंद केजरीवाल तीखे और धारदार हमलों से बच बचा कर जंग जीत ले रहे हैं?

केजरीवाल का प्लान क्या है: अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि एक सवाल बार बार उनसे पूछा जाएगा कि उनका हिंदुत्व बीजेपी से कैसे अलग है? तभी तो वो पहले से ही जवाब तैयार कर बैठे हैं - वो स्कूल बनवाएंगे, अस्पताल बनवाएंगे और मुफ्त में बिजली पानी देंगे.

अरविंद केजरीवाल के मुफ्त के बिजली पानी को ही अब बीजेपी रेवड़ी कहने लगी है. पहली बार ये बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से एक एक्सप्रेस वे के उद्घाटन के मौके पर आयी थी. तब मोदी ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि जो लोग रेवड़ी कल्चर की राजनीति में यकीन रखते हैं, वे कभी ऐसे एक्सप्रेस वे और बड़े बड़े पुल नहीं बनवा सकते.

अरविंद केजरीवाल ने तत्काल प्रभाव से मोदी के बयान का काउंटर किया था. तब भी वो बोले थे और गुजरात चुनाव से लेकर एमसीडी चुनाव तक हर जगह कह रहे हैं कि वो लोगों को रेवड़ी बांटेंगे ही - और ये रेवड़ी वो हिंदुत्व की राजनीति करते हुए बांटना चाहते हैं.

देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल और मोदी-शाह की बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति में सबसे बड़ा फर्क यही है - चाहें तो इसे रेवड़ी जैसे फर्क के तौर पर भी समझने की कोशिश कर सकते हैं.

राम मंदिर का क्रेडिट तो बीजेपी ले रही है या कहें कि ले चुकी है, लिहाजा अरविंद केजरीवाल नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें लगाने की मांग कर रहे हैं. दलील ये है कि जब मुस्लिम बहुल मुल्क इंडोनेशिया ऐसा कर सकता है, तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?

नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर के पीछे अरविंद केजरीवाल अपना तर्क भी देते हैं, 'अगर नोट के ऊपर लक्ष्मी गणेश की तस्वीर आ जाएगी, तो ऊपर वाले का आशीर्वाद मिलेगा.'

और फिर बीजेपी पर बरस पड़ते हैं, मैं लक्ष्मी गणेश की बात करूं, तो इनको तकलीफ होती है… अयोध्या जाता हूं, तो इनको तकलीफ होती है...'

लेकिन वो इस बात से इनकार करते हैं कि नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर लगाने से हिंदू वोट बैंक किसी के साथ हो सकता है. बीजेपी को ही चैलेंज भी करते हैं अगर वास्तव में ऐसा ही है तो ये लोग नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर क्यों नहीं छाप देते.

हिंदुत्व में 'रेवड़ी कल्चर' - और सॉफ्ट हिंदुत्व!

आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा तो गुजरात के लोगों को ये भी समझाने की कोशिश कर चुके हैं कि कैसे उनकी पार्टी सत्ता में आयी तो हर परिवार को अरविंद केजरीवाल की तरफ से 30 हजार रुपये की हर महीने सौगात मिला करेगी.

पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट राघव चड्ढा इसे विस्तार से समझाते भी हैं. हर परिवार की बिजली मुफ्त हो जाएगी 4000 रुपये बचेंगे. घर में दो बच्चे हैं तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सरकारी स्कूलों में 10 हजार रुपये बचेंगे. मोहल्ला क्लीनिक और अस्पतालों के जरिये हर महीने 7000 रुपये बचेंगे. घर में अगर दो युवा हैं, तो नौकरी मिलने तक 3000 रुपये बेरोजगारी भत्ता मिलेगा, 6000 रुपये मिलेंगे. हर महिला को 1000 रुपये मिलेंगे और अगर तीन महिलाएं हैं, तो 3000 रुपये की सौगात केजरीवाल सरकार देगी.

AAP नेता केजरीवाल से पहले राहुल गांधी ने भी हिंदुत्व की राह पकड़ी थी, लेकिन वो सॉफ्ट हिंदुत्व से आगे नहीं बढ़ सके. ये प्रयोग भी गुजरात से ही शुरू किया था, कर्नाटक तक पहुंचते पहुंचते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही हिंदुत्व ज्ञान पर सवाल उठा दिये थे. फिर लगा जैसे सॉफ्ट हिंदुत्व से तौबा कर लिया - और हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी की बहस कराने लगे.

कहने की जरूरत नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों ने जनमानस में राजनीति के प्रति धारणा तो बदल ही डाली है. संघ की कोशिशों का बीजेपी को भरपूर फायदा मिल रहा है. हिंदुत्व की राजनीति को स्किप कर आगे बढ़ना किसी भी राजनीतिक दल के लिए नामुमकिन हो चला है. नीतीश कुमार की राजनीति तो पूरी तरह शिकार हो चुकी है, राहुल गांधी ये सब झेल ही रहे हैं और पश्चिम बंगाल से बाहर ममता बनर्जी की दाल तक नहीं गल पा रही है - ऐसे में अरविंद केजरीवाल समझ चुके हैं, चुनावी वैतरणी कौन पार लगा सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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