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हिमंत को मालूम होना चाहिये आफताब असम में भी हो सकते हैं, गुजरात में अब्बास भी होते हैं!

    • आईचौक
    • Updated: 20 नवम्बर, 2022 08:45 PM
  • 20 नवम्बर, 2022 08:45 PM
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हिमंत बिस्वा सरमा (Himanata Biswa Sarma) का आफताब कार्ड (Aftab Amin Poonawala) असम और देश के बाकी हिस्सों में भले चल जाये, लेकिन गुजरात में नहीं चलेगा - क्योंकि जो लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से अब्बास भाई (Abbas Bhai of Gujarat) के किस्से सुन चुके हैं, वे तो उनके झांसे में आने से रहे.

हिमंत बिस्वा सरमा (Himanata Biswa Sarma) अपनेआप में एक बेहतरीन सक्सेस स्टोरी हैं - और बहुतों के लिए केस स्टडी मैटीरियल भी. जब तक कांग्रेस में रहे तरुण गोगोई के कामयाबी के किस्से लिखे जाते रहे. बीजेपी में आये तो आते ही जादू दिखा दिया - और पांच साल में ही ऐसा करिश्मा किया कि बाहर से आकर बीजेपी में सफलता हासिल करने के मामले में मील का पत्थर बन चुके हैं.

नॉर्थ ईस्ट में तो बीजेपी हिमंत बिस्वा सरमा पर ही निर्भर है, धीरे धीरे उत्तर भारत में भी उनको आजमाया जाने लगा है. वैसे तो वो पश्चिम बंगाल के मोर्चे पर भी लगाये गये थे, लेकिन जहां बड़े बड़े चित्त हो जा रहे हों, वहां हिमंत की क्या बिसात.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को अब गुजरात के कुछ मोर्चों पर लगाया गया है. और मैदान में उतरते ही वो तमाम रंग दिखाने लगे हैं - राहुल गांधी उनके निशाने पर तो स्वाभाविक तौर पर होते हैं, लिहाजा कांग्रेस नेता के गुजरात पहुंचने से पहले ही हिमंत बिस्वा सरमा उनका जिक्र छेड़ चुके हैं.

जब भी राहुल गांधी को टारगेट करना होता है और मामला संबित पात्रा के वश के बाहर का होता है, बीजेपी दो नेताओं को आगे कर देती है. एक, हिमंत बिस्वा सरमा और दो, स्मृति ईरानी. स्मृति ईरानी तो गुजरात से ही आती है, जबकि हिमंत बिस्वा सरमा भी पहुंच चुके हैं - बताने की जरूरत नहीं कि दोनों नेताओं की रैलियों का टॉपिक क्या होगा.

हिमंत बिस्वा सरमा की राहुल गांधी को लेकर विशेषज्ञता तभी से समझी जाने लगी थी जब से वो दुनिया को बताने लगे कि कैसे कांग्रेस नेता मुलाकातों के दौरान कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से ज्यादा अपने पालतू पिडि से ज्यादा बात करते थे और बचे चाव से बिस्किट खिलाया करते थे.

स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के खिलाफ हथियार तो 2014 में ही उठा लिये थे, लेकिन अमेठी में शिकस्त देने के बाद तो वो जैसे उनके सीने पर तान कर ही बैठ गयीं - और अब तो वो मौका देख कर वायनाड तक पहुंच जाती हैं.

राहुल गांधी 22 नवंबर को गुजरात दौरे पर जाने वाले हैं और उससे पहले...

हिमंत बिस्वा सरमा (Himanata Biswa Sarma) अपनेआप में एक बेहतरीन सक्सेस स्टोरी हैं - और बहुतों के लिए केस स्टडी मैटीरियल भी. जब तक कांग्रेस में रहे तरुण गोगोई के कामयाबी के किस्से लिखे जाते रहे. बीजेपी में आये तो आते ही जादू दिखा दिया - और पांच साल में ही ऐसा करिश्मा किया कि बाहर से आकर बीजेपी में सफलता हासिल करने के मामले में मील का पत्थर बन चुके हैं.

नॉर्थ ईस्ट में तो बीजेपी हिमंत बिस्वा सरमा पर ही निर्भर है, धीरे धीरे उत्तर भारत में भी उनको आजमाया जाने लगा है. वैसे तो वो पश्चिम बंगाल के मोर्चे पर भी लगाये गये थे, लेकिन जहां बड़े बड़े चित्त हो जा रहे हों, वहां हिमंत की क्या बिसात.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को अब गुजरात के कुछ मोर्चों पर लगाया गया है. और मैदान में उतरते ही वो तमाम रंग दिखाने लगे हैं - राहुल गांधी उनके निशाने पर तो स्वाभाविक तौर पर होते हैं, लिहाजा कांग्रेस नेता के गुजरात पहुंचने से पहले ही हिमंत बिस्वा सरमा उनका जिक्र छेड़ चुके हैं.

जब भी राहुल गांधी को टारगेट करना होता है और मामला संबित पात्रा के वश के बाहर का होता है, बीजेपी दो नेताओं को आगे कर देती है. एक, हिमंत बिस्वा सरमा और दो, स्मृति ईरानी. स्मृति ईरानी तो गुजरात से ही आती है, जबकि हिमंत बिस्वा सरमा भी पहुंच चुके हैं - बताने की जरूरत नहीं कि दोनों नेताओं की रैलियों का टॉपिक क्या होगा.

हिमंत बिस्वा सरमा की राहुल गांधी को लेकर विशेषज्ञता तभी से समझी जाने लगी थी जब से वो दुनिया को बताने लगे कि कैसे कांग्रेस नेता मुलाकातों के दौरान कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से ज्यादा अपने पालतू पिडि से ज्यादा बात करते थे और बचे चाव से बिस्किट खिलाया करते थे.

स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के खिलाफ हथियार तो 2014 में ही उठा लिये थे, लेकिन अमेठी में शिकस्त देने के बाद तो वो जैसे उनके सीने पर तान कर ही बैठ गयीं - और अब तो वो मौका देख कर वायनाड तक पहुंच जाती हैं.

राहुल गांधी 22 नवंबर को गुजरात दौरे पर जाने वाले हैं और उससे पहले ही बीजेपी ने उनके खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया है. हिमंत बिस्वा सरमा ने तो राहुल गांधी पर लोगों के बीच बहस भी शुरू करा दी है.

हाल ही में व्हाट्सऐप पर एक फोटोशॉप तस्वीर शेयर की जा रही थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्र नाथ टैगोर से और राहुल गांधी की ईराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन से करते हुए पेश की गयी है - सभी तस्वीरों में कॉमन फैक्टर दाढ़ी है.

व्हाट्सऐप तस्वीर को लेकर हिमंत सरमा गुजरात की रैली में मजे ले लेकर कहते हैं, 'राहुल जी... आपका चेहरा ऐसा होना चाहिये, जिसमें लोगों को महात्मा गांधी दिखाई दें... सरदार पटेल दिखाई दें - लेकिन ऐसा नहीं जिसमें सद्दाम हुसैन दिखाई दे.'

ये तो हिमंत बिस्वा सरमा को भी मालूम होगा ही कि भारत जोड़ो यात्रा की वजह से राहुल गांधी में लोग किसकी छवि देखने लगे हैं - और ऐसा कौन है जो राहुल गांधी की तस्वीर को सद्दाम हुसैन से जोड़ कर पेश कर रहा है? जो लोग भी ऐसा देख रहे हैं, वे खुद तो ऐसा कर नहीं रहे हैं. बल्कि, उनको जो दिखाने की कोशिश हो रही है, देख रहे हैं. मुद्दे की बात ये है कि कितने लोगों की उस तस्वीर में दिलचस्पी होती है.

बहरहाल, गुजरात में हिमंत बिस्वा सरमा घूम घूम कर समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो काम शुरू किया, शांति से पूरा किया. कहते हैं, 'कश्मीर से धारा 370 हटाई, तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया... सब कुछ सुचारु रूप से चला... कहीं कोई हंगामा नहीं हुआ.'

मोदी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के चक्कर में हिमंत बिस्वा सरमा भूल जाते हैं कि बीच में CAA भी बना था, लेकिन आज तक लागू नहीं हुआ - और तीन कृषि कानून भी लाये गये थे, जिन्हें किसानों के आंदोलन के दबाव में 'तपस्या में कमी रह जाने' का बहाना बना कर विधानसभा चुनावों से पहले वापस लेना पड़ा था.

फिर भी डंके की चोट पर हिमंत बिस्वा सरमा ऐलान करते हैं, 'अब सब्र रखो... कॉमन सिविल कोड भी आ जाएगा - और चार-चार शादियों से छुटकारा मिल जाएगा.'

ये सब भी चलेगा कोई बात नहीं, चुनावों में बहुत सारे जुमले गढ़े जाते हैं - लेकिन श्रद्धा मर्डर केस के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला को लेकर हिमंत बिस्वा सरमा ने जो बात कही है, क्या गुजरात के लोग आसानी से हजम कर पाएंगे?

जिस गुजरात में लोग अब्बास भाई (Abbas Bhai of Gujarat) को भी देख चुके हों. जिस अब्बास भाई के किस्से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनका परिवार सुनाते नहीं थकता हो - भला गुजरात के लोगों के आफताब (Aftab Amin Poonawala) के नाम हिमंत सरमा डरा सकते हैं क्या?

मोदी के अब्बास का किस्सा कैसे भूल गये?

ऐसा लगता है, हिमंत बिस्वा सरमा ने गुजरात के अब्बास भाई का किस्सा सुना ही नहीं है. ये भी हो सकता है कि सुनने के बाद भी अनसुना कर रहे हों, और गलती से गलत जगह सोशल मीडिया का कीवर्ड ट्रेंड देख कर चुनावी रैली में आफताब का जिक्र कर बैठे हों. जी हां, वही आफताब अमीन पूनावाला जिसे श्रद्धा वाल्कर की हत्या आरोपी बताया जा रहा है - और पुलिस सबूतों के लिए उसे लेकर जंगल जंगल खाक छानती फिर रही है. अब तो जो कुछ भी पुलिस के हाथ लगा है, उसे भला खाक नहीं तो और क्या कहेंगे?

हिमंत बिस्वा सरमा ने तो गुजरात में बीजेपी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है

हो सकता है, हिमंत बिस्वा सरमा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वो ब्लॉग याद न रहा हो, जो अपनी मां हीराबेन के 100वें जन्मदिन पर लिखा था. ये इसी साल जून की बात है - और आप लोगों में से बहुतों को ब्लॉग की एक एक बात याद होगी.

फिर तो हिमंत बिस्वा सरमा को भी मालूम होना चाहिये कि किसी जमाने में अब्बास नाम का एक बच्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घर में रहा करता था. प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से अब्बास की जानकारी दिये जाने पर खोजबिन शुरू हुई तो मालूम हुआ कि वो ऑस्ट्रेलिया में अपने छोटे बेटे के पास रह रहे हैं.

ब्लॉग के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने बताया था, उनके पिता के करीबी दोस्त के गुजर जाने के बाद वो उनके बेटे अब्‍बास को घर ले आये थे. अब्बास मोदी के घर पर ही पले-बढ़े. प्रधानमंत्री मोदी की मां हीराबेन ने अब्बास को भी अपने बच्चों जैसा ही प्यार दुलार किया - और पाला पोसा. यहां तक कि, मोदी के ही मुताबिक, ईद के मौके पर घर में अब्बास की पसंद के हिसाब से ही खास पकवान बनाये जाते थे.

मोदी का ब्लॉग वायरल होने के बाद जब खोजा गया तो पता चला अब्बास गुजरात के फूड एंड सप्लाई विभाग में क्लास 2 कर्मचारी रहे और कुछ महीने पहले ही रिटायर हुए थे. अब्बास भाई का बड़ा बेटा गुजरात के कासीम्पा गांव में रहता है, जबकि छोटा बेटा सिडनी में.

आफताब हत्या का आरोपी है या मुस्लिम?

हिमंत बिस्वा सरमा ने गुजरात में बीजेपी को फिर से उसी मोड़ पर पहुंचा दिया है, जहां से जैसे तैसे उबर कर पार्टी पसमांदा मुसलमानों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. वो ये क्यों भूल जा रहे हैं कि बीजेपी ने एमसीडी चुनाव में तीन महिलाओं सहित चार मुसलमानों को टिकट दिया है - यूपी और बिहार में युद्ध स्तर पर मुसलमानों को रिझाने में जुटी हुई है.

अब मुस्लिम समुदाय से भेदभाव को लेकर खौफ कहें या आने वाले चुनावों में मुस्लिम वोटों की फिक्र, मामला जो भी हो - लेकिन असल बात तो ये है कि नुपुर शर्मा के मामले में बीजेपी का जो स्टैंड देखने को मिला वो तो पहले के मुकाबले काफी अजीब था. नुपुर शर्मा को तो अब तक बीजेपी सार्वजनिक तौर पर अपना नहीं ही सकी है.

लेकिन जिस गुजरात में प्रधानमंत्री मोदी के अब्बास भाई का किस्सा घर घर मशहूर है, हिमंत बिस्वा सरमा आफताब के नाम पर डराने की कोशिश कर रहे हैं. असम की हकीकत हिमंत बिस्वा सरमा को निश्चित तौर पर मालूम होगी, और आफताब जैसे किसी और का डर दिखा कर, मुमकिन है वो अपने लिए और बीजेपी के लिए वोट जुटा लेते होंगे - लेकिन गुजरात को भी ऐसी कोई जरूरत है क्या? अगर प्रधानमंत्री मोदी के भाषण वाले लहजे में सवाल करें कि गुजरात के लोगों को किसी आफताब से डरने की जरूरत है क्या?

गुजरात विधानसभा के चुनाव कैंपेन में गये हिमंत बिस्वा सरमा लोगों से नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं, न कि भूपेंद्र पटेल को आगे भी गुजरात का मुख्यमंत्री बनाये रखने के लिए या चुनाव बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी के लिए. वैसे वोट मांगने का ये तरीका यूपी चुनाव में भी देखा गया था, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चुनावी रैलियों में लोगों से कहा करते थे कि वे योगी आदित्यनाथ को फिर से मुख्यमंत्री इसलिए बनायें ताकि 2024 में मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन सकें.

अब जरा हिमंत बिस्वा सरमा के चुनावी भाषण का वो महत्वपूर्ण हिस्सा भी सुन लीजिये, 'अगर देश में कोई मजबूत नेता नहीं होगा तो हम अपने समाज की रक्षा नहीं कर पाएंगे... मोदी को जिताना बहुत जरूरी है, अगर वे नहीं जीते तो हर शहर में आफताब पैदा होगा...'

लगता है तमाम सर्वे में मोदी की लोकप्रियता की आने वाली रेटिंग से भी हिमंत बिस्वा सरमा वाकिफ नहीं हैं. मोदी की लोकप्रियता अब भी उनके सारे संभावित प्रतिद्वंद्वियों से बहुत आगे है - यहां तक कि योगी आदित्यनाथ और अमित शाह से भी. राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार की कौन कहे.

अपनी पॉलिटिकल लाइन के पुराने एजेंडे लव-जिहाद के खतरनाक रूप की तरफ इशारा करते हुए हिमंत बिस्वा सरमा याद दिलाते हैं, आफताब बहला-फुसलाकर श्रद्धा को मुंबई से दिल्ली ले आया... और उसके 35 टुकड़े कर दिये... एक लड़की की लाश फ्रिज में रखी थी... उसके बावजूद दूसरी लड़की को घर लाकर डेट करने लगा.

हिमंत बिस्वा सरमा तो अपनी ही सरकार पर सवालिया निशान लगा रहे हैं. वो खुद बता रहे हैं कि आफताब ने श्रद्धा को मुंबई से दिल्ली लाया. तो मुंबई में भी तो बीजेपी की ही गठबंधन सरकार है, जिसमें एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं और देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम. रही बात दिल्ली की तो दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती है यानी गृह मंत्री अमित शाह को. ये तो ऐसा लग रहा है कि जैसे हिमंत बिस्वा सरमा पूरी बीजेपी नेतृत्व की फजीहत कराने में जी जान से जुट गये हों.

रही बात आफताब के मुस्लिम होने की, तो क्या ऐसे अपराधी का कोई खास मजहब होता है. निठारी वाला सुरेंद्र कोली, राजा कोलंदर और चंद्रकांत झा भी धर्म विशेष के कारण नरपिशाच बने थे क्या - आफताब भी वैसा ही एक कसाई है, किसी को ये नहीं भूलना चाहिये. हिमंत बिस्वा सरमा को भी नहीं - और हां, अच्छा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वक्त रहते देश के लोगों और गुजरात के जिन लोगों को नहीं पता था - अब्बास भाई का किस्सा सुना दिये.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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