• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कश्मीर को LoC पार के जहन्नुम को पहचानना होगा

    • डॉ नीलम महेंन्द्र
    • Updated: 26 अगस्त, 2019 05:55 PM
  • 26 अगस्त, 2019 05:55 PM
offline
विगत 70 सालों ने यह साबित किया है कि धारा 370 वो लौ थी जो कश्मीर के गिने चुने राजनैतिक रसूख़ वाले परिवारों के घरों के चिरागों को तो रोशन कर रही थी लेकिन आम कश्मीरी के घरों को आतंकवाद अशिक्षा और गरीबी की आग से जला रही थी.

कश्मीर के राजनैतिक दलों के रहनुमा महबूबा मुफ्ती फ़ारूख़ अब्दुल्ला सरीखे नेता और कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष जो कल तक यह कहता था कि कश्मीर समस्या का हल सैन्य कार्रवाई नहीं है बल्कि राजनैतिक है, वो धारा 370 खत्‍म करने के मोदी सरकार के फैसले को क्यों नहीं पचा पा रहे हैं. शायद इसलिए कि मोदी सरकार के इस कदम से कश्मीर में अब इनकी राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं बची है. लेकिन क्या यह सब इतना आसान था? घरेलू मोर्चे पर भले ही मोदी सरकार ने इसके संवैधानिक कानूनी राजनैतिक आंतरिक सुरक्षा और विपक्ष समेत लागभग हर पक्ष को साधकर अपनी कूटनीतिक सफलता का परिचय दिया है लेकिन अभी इम्तिहान और भी हैं.

क्योंकि पाक की घरेलू राजनीति, उसके चुनाव सब कश्मीर के इर्दगिर्द ही घूमते हैं, तो नापाक पाक इतनी आसानी से हार नहीं मानेगा. चूंकि भारत सरकार के इस कदम से अब कश्मीर पर स्थानीय राजनीति का अंत हो चुका है और प्रशासन की बागडोर पूर्ण रूप से केंद्र के पास है, पाक के लिए अब करो या मरो की स्थिति उत्पन्न हो गई है. शायद इसलिए उसने अपनी प्रतिक्रिया शुरू कर दी है और वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इस ओर आकर्षित करने भी लगा है. हालांकि वैश्विक पटल पर भारत की मौजूदा स्थिति को देखते हुए इसकी संभावना कम ही है कि भारत के आंतरिक मामलों में कोई भी देश दखल दे और पाकिस्तान का साथ दे. बालाकोट स्ट्राइक पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया इसका प्रमाण है.

370 पर मोदी सरकार ने अपनी कूटनीतिक सफलता का परिचय दिया है लेकिन अभी इम्तिहान और भी हैं

इसलिए जो लोग इस समय घाटी में सुरक्षा के लिहाज से केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों जैसे अतिरिक्त सैन्य बल की तैनाती, कर्फ़्यू, धारा 144, क्षेत्रीय दलों के नेताओं की नज़रबंदी को लोकतंत्र की हत्या या तानाशाहपूर्ण रवैया कह रहे हैं उन्हें...

कश्मीर के राजनैतिक दलों के रहनुमा महबूबा मुफ्ती फ़ारूख़ अब्दुल्ला सरीखे नेता और कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष जो कल तक यह कहता था कि कश्मीर समस्या का हल सैन्य कार्रवाई नहीं है बल्कि राजनैतिक है, वो धारा 370 खत्‍म करने के मोदी सरकार के फैसले को क्यों नहीं पचा पा रहे हैं. शायद इसलिए कि मोदी सरकार के इस कदम से कश्मीर में अब इनकी राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं बची है. लेकिन क्या यह सब इतना आसान था? घरेलू मोर्चे पर भले ही मोदी सरकार ने इसके संवैधानिक कानूनी राजनैतिक आंतरिक सुरक्षा और विपक्ष समेत लागभग हर पक्ष को साधकर अपनी कूटनीतिक सफलता का परिचय दिया है लेकिन अभी इम्तिहान और भी हैं.

क्योंकि पाक की घरेलू राजनीति, उसके चुनाव सब कश्मीर के इर्दगिर्द ही घूमते हैं, तो नापाक पाक इतनी आसानी से हार नहीं मानेगा. चूंकि भारत सरकार के इस कदम से अब कश्मीर पर स्थानीय राजनीति का अंत हो चुका है और प्रशासन की बागडोर पूर्ण रूप से केंद्र के पास है, पाक के लिए अब करो या मरो की स्थिति उत्पन्न हो गई है. शायद इसलिए उसने अपनी प्रतिक्रिया शुरू कर दी है और वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इस ओर आकर्षित करने भी लगा है. हालांकि वैश्विक पटल पर भारत की मौजूदा स्थिति को देखते हुए इसकी संभावना कम ही है कि भारत के आंतरिक मामलों में कोई भी देश दखल दे और पाकिस्तान का साथ दे. बालाकोट स्ट्राइक पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया इसका प्रमाण है.

370 पर मोदी सरकार ने अपनी कूटनीतिक सफलता का परिचय दिया है लेकिन अभी इम्तिहान और भी हैं

इसलिए जो लोग इस समय घाटी में सुरक्षा के लिहाज से केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों जैसे अतिरिक्त सैन्य बल की तैनाती, कर्फ़्यू, धारा 144, क्षेत्रीय दलों के नेताओं की नज़रबंदी को लोकतंत्र की हत्या या तानाशाहपूर्ण रवैया कह रहे हैं उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाक की कोशिश होगी कि किसी भी तरह से घाटी में कश्मीरियों के विद्रोह के नाम पर हिंसा की आग सुलगाई जाए ताकि वो अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर यह संदेश दे पाए कि भारत कश्मीरी आवाम की आवाज को दबा कर कश्मीर में अन्याय कर रहा है और मानवाधिकारों के नाम पर यूएन और अंर्तराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे संस्थानों को दखल देने के लिए बाध्य करे. इसलिए केंद्र सरकार के इन कदमों का विरोध करके ना सिर्फ वो पाकिस्तान की मदद कर रहे हैं बल्कि एक आम कश्मीरी के साथ भी अन्याय कर रहे हैं.

विगत 70 सालों ने यह साबित किया है कि धारा 370 वो लौ थी जो कश्मीर के गिने चुने राजनैतिक रसूख़ वाले परिवारों के घरों के चिरागों को तो रोशन कर रही थी लेकिन आम कश्मीरी के घरों को आतंकवाद अशिक्षा और गरीबी की आग से जला रही थी. संविधान की धारा 370 और 35A ने कश्मीर में अलगाववाद की आग को कट्टरपंथ और जेहाद के उस दावानल में तब्दील कर दिया था कि पूरा कश्मीर हिंसा की आग से सुलग उठा और बुरहान वानी जैसा आतंकी वहां के युवाओं का आदर्श बन गया. जब 21वीं सदी के भारत के युवा स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया के जरिए उद्यमी बनकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भविष्य के भारत की सफलता के किरदार बनने के लिए तैयार हो रहे थे तो कश्मीर के युवा 500 रूपए के लिए पत्थरबाज बन कर भविष्य के आतंकवादी बनकर तैयार हो रहे थे. जी हां, सेना के एक सर्वे के हवाले से यह बात सामने आई थी कि आज का पत्थर फेंकने वाला युवक ही कल का आतंकवादी होता है.

धारा 370 और 35 ए ने कश्मीर में अलगाववाद की आग को सुलगाया

सरकार के इस कदम का विरोध करने वालों से देश जानना चाहता है कि 370 या 35A से राज्य के दो चार राजनैतिक परिवारों के अलावा किसी आम कश्मीरी को क्या फायदा मिला? यही कि उनके बच्चों को पढ़ने के लिए अच्छे अवसर नहीं मिले? उन्हें अच्छी चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिलीं? हिंसा के कारण वहां का पर्यटन उद्योग पनप नहीं पाया? जो छोटा मोटा व्यापार था वो भी आए दिन के कर्फ़्यू की भेंट चढ़ जाता था? क्या हम एक आम कश्मीरी की तकलीफ का अंदाज़ा गृहमंत्री के राज्यसभा में इस बयान से लगा सकते हैं कि वो एक सीमेंट की बोरी की कीमत देश के किसी अन्य भाग के नागरिक से 100 रूपए ज्यादा चुकाता है सिर्फ इसलिए कि वहां केवल कुछ लोगों का रसूख चलता है? क्या हम इस बात से इंकार कर सकते हैं कि अब जब सरकार के इस कदम से राज्य में निवेश होगा, उद्योग लगेंगे पर्यटन बढ़ेगा तो रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे खुशहाली बढ़ेगी इससे वो कश्मीर जो अबतक 370 के नाम पर अनेक राजनैतिक कारणों से अलग थलग किया जाता रहा अब देश की मुख्यधारा से आर्थिक रूप से जुड़ सकेगा.

इसके अलावा अपने अलग संविधान और अलग झंडे के अस्तित्व के कारण जो कश्मीरी आवाम आजतक भारत से अपना भावनात्मक लगाव नहीं जोड़ पाई अब भारत के संविधान और तिरंगे को अपना कर उसमें निश्चित रूप से एक मनोवैज्ञानिक परिवर्तन का आगाज़ होगा जो धीरे-धीरे उसे भारत के साथ भावनात्मक रूप से भी जोड़ेगा. बस जरूरत है आम कश्मीरी के उस नैरेटिव को बदलने की जो बड़ी चालाकी से सालों से उसे मीठे जहर के रूप में दिया जाता रहा है भारत के खिलाफ भड़काकर जो उसे भारत से जुड़ने नहीं देता. जरूरत है आम कश्मीरी के मन में इस फैसले के पार एक नई खुशहाल सुबह के होने का विश्वास जगाने की, उनका विश्वास जीतने की. कूटनीतिक और राजनैतिक लड़ाई तो मोदी सरकार जीत चुकी है लेकिन उसकी असली चुनौती कश्मीर में सालों से चल रहे इस रणनीतिक युद्ध को जीतने की है.

ये भी पढ़ें -

धारा 370 का खात्‍मा मुझे 'बाहरी' से दोबारा कश्‍मीरी बना रहा है, शुक्रिया प्रधानमंत्री जी...

मोदी सरकार ने धारा 370 से ही धारा 370 को काट डाला!

अनुच्छेद 370- 35A पर कांग्रेस की बात कितनी गुलाम, कितनी आजाद?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲