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करतारपुर कॉरिडोर नहीं, सद्भावना का सेतु है

    • संतोष कुमार वर्मा
    • Updated: 04 नवम्बर, 2019 06:58 PM
  • 04 नवम्बर, 2019 06:17 PM
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करतारपुर कॉरिडोर न केवल करतारपुर और गुरदासपुर के बीच का मार्ग खोलता है बल्कि दोनों देशों के बीच बातचीत के लिए एक मौका भी उपलब्ध कराता है. ताकि दोनों देशों के बीच के तनाव को दूर किया जा सके.

1947 में भारत का विभाजन कर एक पृथक राष्ट्र पाकिस्तान का निर्माण किया गया और इस विभाजन के साथ ही भारतीयों की आस्था से जुड़े कुछ प्रमुख स्थल बंटवारे के कारण पाकिस्तान के क्षेत्र में पहुंच गए. दोनों देशों के बीच चले आ रहे कटु सम्बन्धों की वजह से इन स्थानों की ओर आना-जाना काफी मुश्किल हो गया. परन्तु सांस्कृतिक सम्बन्ध ऐसे सेतु का कार्य भी करते हैं जो दोनों देशों को परस्पर पास ला सकते हैं और सीमा के दोनों ओर स्थित दो धार्मिक स्थलों को आपस में जोड़ने की कवायद भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. और दोनों देशों की सरकारें भी अपने तल्ख़ संबंधों में सुधार के लिए एक नया प्रस्थान बिंदु ले सकती हैं. करतारपुर कॉरिडोर एक ऐसा ही प्रयास है.

पिछले साल 26 नवम्बर 2018 को भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकैय्या नायडू ने गुरदासपुर जिले के गांव “मान” में करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास किया. वहीं सीमा के दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 28 नवम्बर को इस परियोजना की आधारशिला रखी. परन्तु फरवरी 2019 में पुलवामा में केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल के काफिले पर पाक समर्थित आतंकवादी संगठन जैश ऐ मुहम्मद द्वारा किये गए आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में अत्यधिक असहजता आ गई और इस परियोजना पर भी संकट के बादल मंडराने लगे. परन्तु इस विषय पर मतभेदों को दरकिनार करते हुए पुलवामा की घटना के एक माह में 14 मार्च 2019 को पहले दौर की बातचीत, अटारी-वाघा सीमा के भारतीय हिस्से अटारी में आयोजित की गई जिसमें दोनों देशों ने ड्राफ्ट समझौते को अंतिम रूप देने के लिए आवश्यक मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की.

करतारपुर कॉरिडोर दोनों देशों को परस्पर पास ला सकता है

और अब 14 जुलाई को दूसरे दौर की चर्चा के बाद भारत और पाकिस्तान में इस विषय पर...

1947 में भारत का विभाजन कर एक पृथक राष्ट्र पाकिस्तान का निर्माण किया गया और इस विभाजन के साथ ही भारतीयों की आस्था से जुड़े कुछ प्रमुख स्थल बंटवारे के कारण पाकिस्तान के क्षेत्र में पहुंच गए. दोनों देशों के बीच चले आ रहे कटु सम्बन्धों की वजह से इन स्थानों की ओर आना-जाना काफी मुश्किल हो गया. परन्तु सांस्कृतिक सम्बन्ध ऐसे सेतु का कार्य भी करते हैं जो दोनों देशों को परस्पर पास ला सकते हैं और सीमा के दोनों ओर स्थित दो धार्मिक स्थलों को आपस में जोड़ने की कवायद भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. और दोनों देशों की सरकारें भी अपने तल्ख़ संबंधों में सुधार के लिए एक नया प्रस्थान बिंदु ले सकती हैं. करतारपुर कॉरिडोर एक ऐसा ही प्रयास है.

पिछले साल 26 नवम्बर 2018 को भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकैय्या नायडू ने गुरदासपुर जिले के गांव “मान” में करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास किया. वहीं सीमा के दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 28 नवम्बर को इस परियोजना की आधारशिला रखी. परन्तु फरवरी 2019 में पुलवामा में केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल के काफिले पर पाक समर्थित आतंकवादी संगठन जैश ऐ मुहम्मद द्वारा किये गए आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में अत्यधिक असहजता आ गई और इस परियोजना पर भी संकट के बादल मंडराने लगे. परन्तु इस विषय पर मतभेदों को दरकिनार करते हुए पुलवामा की घटना के एक माह में 14 मार्च 2019 को पहले दौर की बातचीत, अटारी-वाघा सीमा के भारतीय हिस्से अटारी में आयोजित की गई जिसमें दोनों देशों ने ड्राफ्ट समझौते को अंतिम रूप देने के लिए आवश्यक मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की.

करतारपुर कॉरिडोर दोनों देशों को परस्पर पास ला सकता है

और अब 14 जुलाई को दूसरे दौर की चर्चा के बाद भारत और पाकिस्तान में इस विषय पर महत्वपूर्ण सहमतियां बन गई हैं. इस वार्ता के बाद पाकिस्तान ने सहमति व्यक्त की है कि प्रतिदिन 5000 यात्री दरबार साहिब करतारपुर के दर्शन कर सकेंगे और कुछ विशेष अवसरों पर यह संख्या 10,000 तक हो सकेगी. (इससे पहले पाकिस्तान केवल 500 से 700 लोगों के लिए यह छूट देने पर अड़ा हुआ था और साथ ही इस यात्रा पर एक शुल्क भी लगाना चाह रहा था जिससे वह अब पीछे हट गया है) इसके साथ ही भारतीय पासपोर्ट के साथ साथ ओसीआई कार्ड धारकों के लिए भी यह कॉरिडोर खुला रहेगा. अब यह यात्रा सप्ताह के सातों दिन 'बिना वीज़ा' के की जा सकेगी और यात्री, व्यक्तिगत अथवा ग्रुप में भी यात्रा कर सकेंगे. इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान स्थित ऐसे व्यक्तियों और संगठनों के बारे में चिंता व्यक्त की जो तीर्थयात्रा को बाधित करने की कोशिश कर सकते थे. इस पर पाकिस्तान ने भारत को स्पष्ट आश्वासन दिया है कि वह भारत विरोधी किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं देगा.

उल्लेखनीय है कि करतारपुर कॉरिडोर एक प्रस्तावित मार्ग है जो भारत और पाकिस्तान की सीमा के निकट स्थित सिख धार्मिक स्थानों, गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक साहिब (पंजाब-भारत) और गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर (पंजाब–पाकिस्तान) को जोड़ता है. प्रस्तावित योजना के तहत भारत के श्रद्धालुओं को करतारपुर की यात्रा के लिए भारत पाकिस्तान की सीमा पर 4.7 किलोमीटर लम्बा मार्ग खोला जाना है जिसपर वीसा की आवश्यकता नहीं होगी. गुरु नानक जी के 550वें जन्म दिवस समारोह के पूर्व नवम्बर 2019 तक इसका कार्य पूरा कर लिए जाने की सम्भावना है.

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

डेरा बाबा नानक (भारत के पंजाब राज्य के गुरदासपुर में) रावी के किनारे स्थित पखोहे नाम का गांव था. डेरा बाबा नानक में वर्तमान में तीन प्रसिद्द गुरूद्वारे हैं. यहां गुरु नानक देव जी ध्यान किया करते थे और उन्होंने अपने जीवन के 18 वर्ष यहां व्यतीत किए थे. कालांतर में महाराजा रणजीत सिंह ने यहां गुरूद्वारे का निर्माण कराया. वहीं करतारपुर ही वह पहला स्थान है जहा गुरु नानक जी ने 1504 में पहली सिख संगत आयोजित की थी. जहां गुरुद्वारा दरबार साहिब स्थित है जो कि वही स्थान है जहां सितम्बर 1539 को गुरु नानक देव ईश्वर में सम्मलित हुए थे. 1947 में बंटवारे के दौरान रेडक्लिफ लाइन ने इस धार्मिक स्थल को भी दो भागों में विभाजित कर दिया. जहां गुरदासपुर तहसील तो भारत  में रही पर करतारपुर पाकिस्तान में चला गया. वर्तमान में करतारपुर पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के नारोवल जिले में आता है. उल्लेखनीय है कि जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में सन 2000 में पाकिस्तान, सिख धार्मिक यात्रियों को बिना वीसा यात्रा की सुविधा देने के लिए तैयार था परन्तु कई ऐसी शर्तें थीं जिनका पूरा किया जाना संभव नहीं हो सका. पाकिस्तान में नई सरकार के गठन के बाद इस दिशा में किये जाने वाले प्रयासों में नई ऊर्जा आई.

करतारपुर कॉरिडोर से फायदे भी हैं और नुकसान भी

सामरिक दृष्टिकोण

जैसा कि अभी हाल ही के दिनों में देखने में आया है कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है. पाकिस्तान में बैठे हाफ़िज़ सईद और मसूद अज़हर जैसे आतंकवादी सरगना पाकिस्तान की सरकार और सेना की शह पर लगातार भारत की शांति भंग करने में संलग्न रहते हैं. ऐसी स्थिति में पाकिस्तान द्वारा सम्बन्ध सुधारने के नाम पर गलियारा खोलने के लिए तैयार हो जाना कुछ मायनों में संदेहास्पद भी हो जाता है. यह भली भांति ज्ञात तथ्य है कि पाकिस्तान में इमरान खान की राजनीतिक सफलता के पीछे पाकिस्तान की सेना का कितना बड़ा हाथ है, और ऐसी स्थिति में इस परियोजना के प्रति पाकिस्तान की सेना की सहमति ना हो, ऐसा नहीं हो सकता. पंजाब सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के अनुसार, इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बजवा ने ही यह उन्हें बताया था कि पाकिस्तान यह कॉरिडोर को खोलने में रूचि रखता है. पाकिस्तान की सेना और आईएसआई लगातार इस प्रयास में हैं कि वह जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों और खालिस्तानी अतिवादियों के मध्य सामंजस्य स्थापित करवा कर भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों को एक नई धार दे सकें.

यह कॉरिडोर पाकिस्तान में बैठे सरगनाओं को भारत के पंजाब में ड्रग्स के कारोबार को और अधिक विस्तार देने का साधन भी बन सकता है जो पंजाब में पहले से ही पैर पसारे हुए है. इस रास्ते के सहारे से तस्करी और भारत में अवैध घुसपैठ का एक मार्ग भी खुल सकता है जिसपर सतत निगरानी की आवश्यकता होगी. साथ ही साथ इस खालिस्तानियों के सक्रिय सहयोग से पंजाब में दोबारा अशांति फ़ैलाने की साजिश की जा सकती है. खालिस्तान आन्दोलन के प्रति पाकिस्तान का प्रेम जगजाहिर है. भारत की कड़ी आपत्तियों के बावजूद पाकिस्तान उन खालिस्तानियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है जो पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (PSGPC) के सदस्य बना लिए गए हैं. हालांकि रविवार को करतारपुर कॉरिडोर पर बातचीत से पहले, इस्लामाबाद ने खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला को गुरुद्वारा प्रबंधक समिति और वाघा वार्ता में शामिल होने के लिए चुने गए प्रतिनिधिमंडल से हटा दिया था. हालांकि वार्ता के बाद भी, खालिस्तान के समर्थक समिति में बने हुए हैं. अमीर सिंह, जो एक कुख्यात खालिस्तानी बिशन सिंह का भाई है, PSGPC का हिस्सा बना हुआ है, जो करतारपुर गुरुद्वारा कमेटी का प्रबंधन करता है. इसी दौरान भारत ने खालिस्तान समर्थक समूह 'सिख ऑफ़ जस्टिस' पर प्रतिबंध लगाया है जिसकी वेबसाइट पाकिस्तान में कराची से संचालित हो रही थी.

पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देने वाली गतिविधियों के कारण विश्व भर में अलग थलग पड़ चुका है और उसके घनिष्ठ सहयोगी अमेरिका ने भी उससे किनारा कर लिया है. फाइनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स ने उसे इन गतिविधियों से अलग होने के लिए कड़ी चेतावनी और समय सीमा दे रखी है. पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है ऐसी स्थिति में भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने की कोशिशें विश्व समुदाय को गुमराह करने का प्रयास भी हो सकती हैं ताकि उसे मुख्या धारा में वापस आने का अवसर मिल सके.

गुरदासपुर और उसका निकटवर्ती इलाका सामरिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है. यहां सीमा सुरक्षा बल की टिबरी छावनी स्थित है. समीप ही पठानकोट में एशिया का सबसे बड़ा आयुधागार एवं एक एयर बेस और छावनी भी स्थित है जो लगातार पाकिस्तान के निशाने पर रहा है. पठानकोट पर पहले भी एक बड़ा आतंकी हमला हो चुका है. ऐसी स्थिति में भारत की सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण परिवर्तन आवश्यक होंगे.

 भारत पाकिस्तान की सीमा पर 4.7 किलोमीटर लम्बा मार्ग खोला जाना है जिसपर वीसा की आवश्यकता नहीं होगी

यह कॉरिडोर न केवल करतारपुर और गुरदासपुर के बीच का मार्ग खोलता है बल्कि दोनों देशों के बीच बातचीत के लिए एक मौका भी उपलब्ध कराता है. इस गलियारे से जहां दोनों देशों के लोगों के आपस में मिलने का एक जरिया खुलेगा और दोनों देशों के लोग कुछ हद तक परस्पर संपर्क में आयेंगे जो अप्रत्यक्ष रूप से भारत के लिए लाभकारी हो सकता है क्योंकि यह कहीं न कहीं पाकिस्तानी जनता में राजनैतिक और सामाजिक सुधारों और खुलेपन की अपेक्षाओं को ही बढ़ाएगा. अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता मॉर्गन ऑर्टागस ने भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण की सराहना की है. उनका मानना है कि गुरुद्वारा दरबार साहिब जाने के लिए भारत से सिख तीर्थयात्रियों की वीजा मुक्त यात्रा की सुविधा दोनों देशों के रिश्तों के लिए काफी अहम साबित होगी. जहां एक ओर इस परियोजना से भारत पाकिस्तान के संबंधों में एक नया दौर आने की बात कही जा रही है परन्तु पाकिस्तान के शासकों में इस उद्देश्य के प्रति गंभीरता का सदैव अभाव ही रहा है भले ही वह लोकतांत्रिक रूप से ही क्यों न चुने गए हों. फिर चाहे वह जुल्फिकार अली भुट्टो हों या नवाज़ शरीफ. यह पाकिस्तान की सम्बन्ध सुधारने के प्रति 'गंभीरता' को स्पष्ट करता है.

इमरान खान एक अच्छे और सधे हुए तेज गेंदबाज़ रहे हैं और यह बेहतर जानते हैं कि गेंद कितनी भी तेज फेंकी जाये अगर उसकी 'लाइन और लेंथ' गड़बड़ होती है तो उसका खामियाजा भी उठाना पड़ता है. अगर पाकिस्तान भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए वास्तव में गंभीर है तो उसे आतंकवाद और ऐसे हिंसक साधनों को छोड़कर वार्ता की टेबल पर आना चाहिए. केवल दुनिया को दिखाने के लिए प्रकट की गई सद्भावना का स्वांग टिकाऊ नहीं होता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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